h n

नयी सदी के साहित्य में दलित, आदिवासी और किन्नर, दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

क्या नई सदी के हिंदी कथा साहित्य में दलितों, किन्नरों और आदिवासियों की सामाजिक और आर्थिक स्थितियों का चित्रण आपने पढ़ा हैं? अगर हां तो इन जैसे तमाम विषयों पर उस चित्रण के बारे में छात्र और शिक्षक शोधपत्र तैयार कर सकते हैं। कमला नेहरू कॉलेज में आयोजित अहम संगोष्ठी की जानकारी दे रहे हैं कमल चंद्रवंशी

दिल्ली विश्वविद्यालय के कमला नेहरू कॉलेज के हिंदी विभाग और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने संयुक्त रूप से आगामी 5 और 6 सितंबर को शोध पत्र की प्रस्तुति के लिए राष्ट्रीय संगोष्ठी का अहम आयोजन किया है। इस संगोष्ठी का नाम दिया गया है- इक्सीसवीं सदी का हिंदी कथा साहित्य- चिंतन और विविध दिशाएँ।‘

कॉलेज ने कहा है कि शोध पत्र मौलिक और अप्रकाशित होने चाहिए, साथ ही इनका सार समझाने के लिए 500 शब्दों से ज्यादा इस्तेमाल नहीं किया जा सकेगा। शोध पत्र की शब्द-सीमा 2000 से 3000 शब्दों के बीच बांधनी होगी। छात्र या शिक्षक शोध के सारांश को 30 जुलाई 2019 तक भेज सकते हैं जबकि पूर्ण शोध पत्र भेजने के लिए अंतिम तिथि 20 अगस्त 2019 है। इसके पंजीकरण शुल्क के तौर पर शिक्षकों को जहां 500 रुपये लगेंगे तो छात्र-शोधकर्ता 300 रुपये में पंजीकरण करा सकेंगे। छात्र, शिक्षक अपने शोध के सारांश और पूरे शोध पत्र को निर्धारित तिथियों तक- kncnationalseminar2019@gmail.com पर भेज सकते हैं। 

कमला नेहरू कॉलेज, दिल्ली

संगोष्ठी में भाग लेने हेतु दलित-वंचित समुदाय से संबंधित कुछ उप-विषय भी दिए गए हैं जो इस प्रकार हैं:

  • 21वीं सदी के कथा साहित्य में दलित स्त्री और सामाजिक परिवेश
  • 21वीं सदी के दलित कथा साहित्य में सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक जीवन 
  • 21वीं सदी के कथा साहित्य में दिव्यांगों का सामाजिक जीवन एवं चुनौतियाँ
  • 21वीं सदी के कथा साहित्य में दिव्यांग स्त्री की समस्याएं
  • 21वीं सदी के कथा साहित्य में दिव्यांगों के अधिकार एवं चुनौतियाँ
  • 21वीं सदी के कथा साहित्य में चित्रित वृद्ध दिव्यांगों की स्थिति
  • 21वीं सदी के कथा साहित्य में दिव्यांगों के लिए रोजगार एवं चुनौतियाँ
  • 21वीं सदी के कथा साहित्य में किन्नरों की सामाजिक चुनौतियां

इसके अलावा जो अन्य उप-विषय संगोष्ठी के लिए दिए गए हैं वो इस तरह हैं- 

  • 21वीं सदी के कथा साहित्य में नई पूंजीवादी व्यवस्था और औद्योगिकीरण से उत्पन्न स्थितियों का चित्रण।
  • गैरपरंपरागत मीडिया का कथा साहित्य पर प्रभाव 
  • 21 वीं सदी के कथा साहित्य में नई तकनीक का प्रभाव
  • नई सदी की भाषा भंगिमा और चुनौतियां
  • 21वीं सदी के कथा साहित्य में वैश्वीकरण का आगमन: चुनौतियां और प्रभाव
  • 21वीं सदी के कथा साहित्य में आदिवासी कथा साहित्य का योगदान एवं मूल्यांकन
  • 21वीं सदी के कथा साहित्य में आदिवासी स्त्री की समस्याएं और संघर्ष
  • 21वीं सदी के हिंदी उपन्यास और पर्यावरणीय संकट 
  • 21वीं सदी के उपन्यास में विकास बनाम पर्यावरणीय संकट
  • 21वीं सदी के उपन्यास में पर्यावरणीय चेतना और हिंदी कहानी
  • 21वीं सदी के कथा साहित्य में जल-जंगल- जमीन के प्रश्न 
  • 21वीं सदी के कथा साहित्य में चित्रित जल एवं वृक्ष संरक्षण के आन्दोलन 
  • 21वीं सदी के कथा साहित्य और पर्यावरण चिंतन 
  • 21वीं सदी के कथा साहित्य में शहरीकरण, पलायन एवं पर्यावरण के प्रश्न 
  • 21वीं सदी के कथा साहित्य में चित्रित नदियों का जीवन 
  • 21वीं सदी के कथा साहित्य में चित्रित धार्मिक आस्थाएं एवं पर्यावरण के अंतर्संबंध  
  • 21वीं सदी के कथा साहित्य में व्यक्त जलवायु परिवर्तन के प्रश्न
  • 21वीं सदी के कथा साहित्य में सोशल मीडिया की भूमिका

संगोष्ठी में इन तमाम विषयों के अलावा प्रवासी हिंदी कथा साहित्य पर भी शोध आलेख लिखे जा सकते हैं। संगोष्ठी से संबंधित सूचनाएं समय-समय पर अपडेट भी की जा रही हैं जिनकी जानकारी संगोष्ठी की संयोजक डॉ. सुषमा सहरावत से ली जा सकती हैं। छात्र और शिक्षक किसी दुविधा में हों तो डॉ. सहरावत से 9891483516 पर संपर्क कर सकते हैं।

(कॉपी संपादन : नवल)


(फारवर्ड प्रेस उच्च शिक्षा जगत से संबंधित खबरें प्रकाशित करता रहा है। हाल के दिनों में कई विश्वविद्यालयों द्वारा नियुक्तियों हेतु विज्ञापन निकाले गए हैं। इन विज्ञापनों में आरक्षण और रोस्टर से जुड़े सवालों को भी हम  उठाते रहे हैं; ताकि उच्च शिक्षा के क्षेत्र में दलित-बहुजनों समुचित हिस्सेदारी हो सके। आप भी हमारी इस मुहिम का हिस्सा बन सकते हैं। नियोजन संबंधी सूचनाओं, खामियों के संबंध में हमें editor@forwardmagazine.in पर ईमेल करें। आप हमें 7004975366 पर फोन करके भी सूचना दे सकते हैं)

बहुजन साहित्य की प्रस्तावना 

दलित पैंथर्स : एन ऑथरेटिव हिस्ट्री : लेखक : जेवी पवार 

महिषासुर एक जननायक’

महिषासुर : मिथक व परंपराए

जाति के प्रश्न पर कबी

चिंतन के जन सरोकार

लेखक के बारे में

कमल चंद्रवंशी

लेखक दिल्ली के एक प्रमुख मीडिया संस्थान में कार्यरत टीवी पत्रकार हैं।

संबंधित आलेख

यूजीसी के नए मसौदे के विरुद्ध में डीएमके के आह्वान पर जुटान, राहुल और अखिलेश भी हुए शामिल
डीएमके के छात्र प्रकोष्ठ द्वारा आहूत विरोध प्रदर्शन को संबोधित करते हुए अखिलेश यादव ने कहा कि आरएसएस और भाजपा इस देश को भाषा...
डायन प्रथा के उन्मूलन के लिए बहुआयामी प्रयास आवश्यक
आज एक ऐसे व्यापक केंद्रीय कानून की जरूरत है, जो डायन प्रथा को अपराध घोषित करे और दोषियों को कड़ी सज़ा मिलना सुनिश्चित करे।...
राहुल गांधी का सच कहने का साहस और कांग्रेस की भावी राजनीति
भारत जैसे देश में, जहां का समाज दोहरेपन को अपना धर्म समझता है और राजनीति जहां झूठ का पर्याय बन चली हो, सुबह बयान...
‘सामाजिक न्याय की जमीनी दास्तान’ नई किताब के साथ विश्व पुस्तक मेले में मौजूद रहेगा फारवर्ड प्रेस
हमारी नई किताब ‘सामाजिक न्याय की जमीनी दास्तान : इतिहास का पुनरावलोकन’ पुस्तक मेले में बिक्री के लिए उपलब्ध होगी। यह किताब देश के...
छत्तीसगढ़ में दलित ईसाई को दफनाने का सवाल : ‘हिंदू’ आदिवासियों के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट
मृतक के परिजनों को ईसाई होने के कारण धार्मिक भेदभाव और गांव में सामाजिक तथा आर्थिक बहिष्कार का सामना करना पड़ रहा है। जबकि...