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जेएनयू के मेहमान होंगे कट्टर दक्षिणपंथी एल्स्ट, राजस्थान का दायरा बढ़ा, कुछ गांवों और कुछ तर्कों की भी बात

अकादमियों यानी विचारों की दुनिया में कट्टरपंथियों की मौजूदगी और हिंदू-मुस्लिम विमर्श ही नहीं बल्कि मिट्टी-पत्थर आकाश से लेकर मानवीय रिश्तों और सामाजिक स्थितियों पर विचार हो रहा है। आगामी आयोजनों के इस स्तंभ में देखते हैं देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों और अन्य संस्थानों में आने वाले दिनों में क्या-क्या खास हो रहा

अकादमिक दुनिया में समाज व इतिहास

जेएनयू में कट्टर दक्षिणपंथी

असली घुसपैठ हथियारों और विचारों के बल पर होती है। बेशक कश्मीर की घुसपैठ जरा भी कम-ज्यादा हुई या नहीं सिर्फ सरकार को पता है लेकिन वैचारिक धरातल में यह अतिक्रमण लगातार बढ़ रहा है। हिंदुस्तान में अकादमिक जगत में गहरी चिंता और आलोचना के केंद्र में रहे बेल्जियम के हिंदू कार्यकर्ता कोएनराड एल्स्ट का जेएनयू में धर्मनिरपेक्षता को लेकर एक विशेष व्याख्यान रखा गया है जिसे शिमला स्थित एडवांस स्टडी संस्थान के  सहयोग से किया जा रहा है।

1959 में बेल्जियम में जन्मे एल्स्ट वहां की एक केथोलिक यूनिवर्सिटी और बनारस हिंदू विश्वविश्यालय से पढ़े हुए हैं। वो भारत और उससे जुड़े देशों में इस्लाम विरोधी साहित्य के प्रचार-प्रसार के लिए जाने जाते हैं और इसीलिए भारत के अकादमिक जगत में उनकी छवि कट्टर दक्षिणपंथी की है।

नई दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के परिसर में स्थापित भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की प्रतिमा

बहरहाल, उनके व्याख्यान के आयोजन के फायदे आने वाले समय में जेएनयू के स्कॉलर बता पाएंगे कि कार्यक्रम कितना अर्थवान रहा। लेकिन जिस दौर में यह कार्यक्रम आयोजित हो रहा है, वह स्वाभाविक लग रहा है। कार्यक्रम भारत नीति प्रतिष्ठान ने आयोजित किया है जो 23 सितंबर 2019 को हो रहा है। इसका विषय है- सेक्यूलरिज्म इन इंडिया एंड रीसेंट डेवलेपमेंट। कार्यक्रम की अध्यक्षता आईआईएस, शिमला के चेयरमैन कपिल कुमार करेंगे।

कार्यक्रम शाम के 4.30 बजे शुरू होगा। जेएनयू का सोशल साइंस विभाग का ये सभागार आईआईटी और मुनिरका मेट्रो स्टेशन के पास है जहां व्याख्यान होना है।

ग्रामीण भारत की तस्वीर

त्रिपुरा यूनिवर्सिटी के बांग्ला विभाग ने कोलकाता के बांयजारबुना फाउंडेशन की मदद से दो दिन का अंतरराष्ट्रीय सेमिनार आयोजित किया है। इसका विषय है इमरजिंग सिनोरियो ऑफ रूरल इंडिया: सोसाइटी, एजूकेशन एंड लिटरेचर। यह कार्यक्रम 15-16 नवंबर को त्रिपुरा सेंट्रल यूनिवर्सिटी के बंगाली विभाग के सभागार में होगा। कार्यक्रम की ज्यादा जानकारी के लिए 9051631232 या ईमेल एड्रेस rangamati76@gmail.com पर संपर्क करके ली जा सकती है।

साहित्य क्षेत्रे 

जाटान की संगोष्ठी अंतरराष्ट्रीय हुई

राजस्थान में हंस, पूर्वकथन और श्रीगंगानगर के जाटान महाविद्यालय का 2 दिन का सेमिनार 11 अक्टूबर से हो रहा है। पहले ये सेमिनार राष्ट्रीय था लेकिन अब इसे अंतरराष्ट्रीय कर दिया गया है। हमने इसी कॉलम से इस सेमिनार की खबर दी थी। मुख्य आयोजक ने कहा कि लोगों के भारी समर्थन को देखते हुए इसे अंतरराष्ट्रीय किया गया है। बौद्धिक और शैक्षणिक मोर्चे पर अपनी सक्रियता बढ़ाते हुए इस कॉलेज ने “समकालीन विमर्श और बेहतर समाज के सपने- यथार्थ और संभावनाएँ” विषयक एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया है जिसे श्रीगंगानगर स्थित भगवती जाटान कन्या महाविद्यालय और साहित्य की दो पत्रिकाएं मिलकर कर रही हैं। आयोजन समिति का कहना है कि एक बेहतर और विकसित समाज के निर्माण की स्थापना और उसकी संभावनाओं को लेकर मौजूदा दौर में जिस परिवर्तनकारी विचार-मंथन, बौद्धिक विमर्श और विश्लेषण की आवश्यकता है, उसके लिए कन्या महाविद्यालय, लालगढ़ जाटान (श्रीगंगानगर), देश की विख्यात जनचेतना का प्रगतिशील कथा मासिक ‘हंस’ (नई दिल्ली) और साहित्य, कला और विचार की पत्रिका ‘पूर्वकथन’ (श्रीगंगानगर) के संयुक्त तत्त्वावधान में 11-12 अक्टूबर, 2019 को भगवती कन्या महाविद्यालय के प्राँगण में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गई है।


इसमें दो राय नहीं कि शोधपरक और बौद्धिक विमर्श को लेकर जो आपसी सक्रिय सहभागिता से निष्कर्ष निकलकर सामने आएंगे, वे गोष्ठी के उद्देश्यों को स्थापित करने में अहम भूमिका निभाएंगे। इस महत्त्वपूर्ण संगोष्ठी में राजस्थान और देश के विभिन्न महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों के प्रोफेसर्स, विद्वान, स्वतंत्र रचनाकार, चिंतक और समालोचक भाग लेंगे। गोष्ठी का केंद्रीय विषय ‘समकालीन विमर्श और बेहतर समाज के सपने : यथार्थ और संभावनाएँ’ होगा जिसमें साहित्य, कला, संस्कृति, समाज, सिनेमा, शिक्षा, मीडिया सहित अनेक संवेदनशील मुद्दे विचार-विमर्श के केंद्र में रहेंगे। आयोजकों ने संगोष्ठी के लिए  महाविद्यालयों/ विश्वविद्यालयों से शोधपत्र आमंत्रित किए हैं।

शोधपत्र के विषय के लिहाज से प्रमुख बातें कुछ यूं हैं- समकालीन नव विमर्श और हिंदी साहित्य, स्त्रियों की दुनिया: आधी आबादी का विमर्श, आदिवासी विमर्श: जल, जंगल और जमीन, दलित विमर्श, अल्पसंख्यक विमर्श, वैश्वीकरण के परिप्रेक्ष्य में विमर्श, मीडिया विमर्श, बाजार विमर्श, समकालीन सामाजिक संदर्भ, सांस्कृतिक संदर्भ: अतीत से भविष्य का निर्माण, लोक जीवन और लोक संस्कृति, धर्म और अध्यात्म: रोशनी या अंधेरा, नई आर्थिक व्यवस्था: देश और दुनिया, कला, साहित्य और शिक्षा, कला : बाजार और सरोकार, सिनेमा के सौ साल और नया सिनेमा, साहित्यिक पत्रकारिता की भूमिका, उच्च शिक्षा: दशा और दिशा, शोध: दशा और दिशा, समकालीन हिंदी साहित्य और लेखन, साहित्य का बदलता स्वरूप, साहित्य सृजन, पठन-पाठन और बाजार का अंत:संबंध, पाठकीय अभिरुचि और नवलेखन, साहित्य लेखन और साहित्यकारों की दृष्टि, सोशल मीडिया का बढ़ता प्रभाव, साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं की सिकुड़ती दुनिया।

उपरोक्त विषयों पर शोध या आलेख के सार संक्षेप को bhagwaticollege@gmail.com पर भेजा जा सकता है। साथ ही शोध पत्र 11 अक्टूबर, 2019 तक ई-मेल पर तथा इसकी एक हार्डकॉपी महाविद्यालय के पते पर प्रेषित करें। इसके अलावा संगोष्ठी में प्रस्तुत एवं वाचन किए गए स्तरीय शोध पत्रों का पुस्तक (आईएसबीएन नंबर युक्त) में प्रकाशित किया जाएगा। कार्यक्रम में आयोजन समिति को प्रमुख हिंदी पत्रिकाओँ के अलावा सुभाष सिंगाठिया, डॉ वीना बंसल, राजाराम कस्वां हैं। कस्वां मुख्य संयोजक हैं जिनका मोबाइल नंबर 9928429024 है।

सामाजिक बंदिशों की केंचुल

“हिंदी रंगभूमि” संस्था की ओर से देश के जाने माने हिंदी और राजस्थानी भाषा के साहित्यकार-कहानीकार, लोककला मर्मज्ञ और अध्येता स्वर्गीय विजयदान देथा की कहानी ‘केंचुली’ का नाट्य मंचन दिल्ली में आयोजित किया जा रहा है। इस नाटक का मंचन 30 सितम्बर 2019 को मुक्तधारा सभागार, भाई वीर सिंह मार्ग, गोल मार्केट नई दिल्ली में किया जाएगा। देथा की कहानियों में केंचुली एक चर्चित कहानी रही है जिसका नाट्यारूपांतरण सुमन कुमार ने किया है। नाटक के निर्देशक नीलेश दीपक हैं। हिंदी रंगभूमि उत्तर भारत की कला, संस्कृति और रंगमंच को समर्पित संस्था के तौर पर पहचानी जाती है।

आयोजकों के मुताबिक, विजयदान देथा की कहानियां और उनकी रचनाएं लोक की कोख से उपजी कथा को आधुनिक और वैश्विक परिदृश्य पर ले जाती हैं। वे अपनी कहानियों में आम जन की समस्याओं, उनकी दमित इक्छाओं, मानवता की विकृति होती क्षरण को उजागर करने और समाज की विडंबनापूर्ण कुरूतियों को लौकिक रूप से वर्णन करते हैं। रचनाओं में यह खासियत है कि वे लोक मान्यताओं में रची बसी कथाओं, मुहावरों, लोकोक्तियों का प्रयोग कर, मानव इतर अन्य जीव जन्तुओं को एक मानवीय स्वरूप प्रदान कर सुन्दर रचना प्रस्तुत करते हैं।

कहानी केंचुली एक स्त्री के मन की कई उधेडबुन परतों की पड़ताल और खुद की लड़ाई का आत्मबोध कराती है। लाछी की सुन्दरता पर मोहित गाँव के जमींदार और उसके चमचे की अतिवादिता व पति की अवहेलना से उपजी मन व्यग्रता को इस कहानी में दर्शया गया है। इस कहानी का अंत सामाजिक बेड़ियो को तोड़कर, केंचुली से निकली साँप की तरह आजाद होती स्त्री की दास्तान है जो संपूर्ण जगत में निर्वासना घूमती है।

हिन्दी रंगभूमि  नाटक और रंगमंच के उत्थान विशेषकर नाट्य संबंधी प्रदर्शन, संवर्धन, अध्ययन, प्रलेखन के लिए स्थापित किया गया है। संस्था द्वारा मंचित नाटकों में काबुलीवाला, शवयात्रा के बाद देहशुद्धि, रसप्रिया, मलाह टोली एक चित्र, निरमोही बालम और भूख आग है प्रमुख रूप से शामिल हैं। संस्था के प्रमुख समारोहों और आयोजनों में हिन्दी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार राजकमल चौधरी के जन्मदिन पर ‘राजकमल जयन्ती’ 2017 और बिहार की प्रदर्शनकारी लोक कलाओं केन्द्रित ‘नाच लोक उत्सव’ 2019 महत्वपूर्ण है।

इस नाटक में प्रवेश निशुल्क है लेकिन रंगमच प्रेमियों से अनुरोध किया गया है कि कला, संस्कृति और रंगमंच को बढ़ावा देने के लिए संस्था को आर्थिक सहयोग प्रदान कर सकते हैं। इस तरह की कोई भी मदद ‘हिन्दी रंगभूमि’ नाम से चेक, ड्राफ्ट, मनीऑर्डर, आरटीजीएस और नकद से भी किया जा सकता है। ज्यादा जानकारी के लिए नीरज झा, अध्यक्ष, हिन्दी रंगभूमि, 09999741715, ईमेल एड्रेस hindirangbhoomi@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है। नाटक का मंचन शाम सात बजे से होगा।

अरुणाचल प्रदेश में हिंदी की स्थिति

शिमला स्थित एडवांस स्टडी में अरुणाचल प्रदेश की जनजातियाँ और हिंदी में उनका साहित्य शोध प्रोजेक्ट के तहत डॉ. अभिषेक यादव अरुणाचल प्रदेश में हिन्दी का विकास और उसके साहित्य की रूपरेखा को प्रस्तुत करेंगे। यह सेमिनार 19 सितंबर को आयोजित किया गया है।

संस्थान का मानना है कि अरुणाचल प्रदेश भारत का सीमाई इलाका है। चीन, भूटान और म्यांमार की सीमाएं इस भारतीय भूभाग को छूती हैं। ब्रिटिश भारत में इसे एक पृथक रूप से सुरक्षित भूभाग की तरह रखा गया था। आज़ादी के बाद तक इसे नेफा कहा जाता था। यह केंद्र-शासित प्रदेश था। 1972 में इसे अरुणाचल प्रदेश नाम दिया गया और बाद में 1987 में इसे पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया। इस प्रदेश में तकरीबन 30 प्रमुख जनजातीय समूहों तथा 100 के आसपास उप जनजातीय समूहों के लोग रहते हैं। किन्ही दो प्रमुख जनजातीय समूहों की भाषा सामान्य तौर पर भिन्न है, यही कारण है कि जब इस इलाके में भारतीय राज्य की प्रशासनिक और अन्यान्य गतिविधियाँ बढ़ने लगीं तो एक संपर्क भाषा की आवश्यकता हुई। चूँकि शुरूआती दौर में इस क्षेत्र से असम के ज्यादा लोग संपर्क में आए इसीलिए असमिया संपर्क भाषा के रूप में विकसित हो गयी।

सन् 62 में हुए भारत-चीन युद्ध ने इस इलाके में सरकारी और प्रशासनिक गतिविधियों को बढ़ावा दिया। पहला महाविद्यालय खुला पासीघाट में। हिंदी का विकास भी इसी दौर में शुरू हुआ। सेना के जवान, रेडियो, और स्कूलों में हिंदी की पढ़ाई ने इसे गति प्रदान की। धीरे-धीरे हिंदी ने इस राज्य में असमिया को किनारे कर संपर्क भाषा का स्थान ले लिया। 1984 में इस राज्य में पहला विश्वविद्यालय खुला और 1999 में उसमें हिंदी विभाग की स्थापना हुई।

हिंदी के इस बढ़ते प्रचलन ने यहाँ के निवासियों को साहित्य लिखने के लिए भी उत्प्रेरित किया। यहाँ के हिंदी साहित्य लेखन में अब तक उपन्यास, कविता, नाटक, कहानी और आलोचनात्मक पुस्तकें सामने आयीं हैं। यह शोध परियोजना इसी साहित्यिक परिदृश्य का विवेचन और विश्लेषण करेगी।


हिंदी में लिखा जो साहित्य अब तक प्रकाश में आया है, वह यहाँ के समाज के अंतर्विरोधों, संस्कृति के सामने खड़े अस्मिता और अस्तित्व के सवालों और वर्तमान व्यवस्था के तंतुओं को समझने की कोशिश कर रहा है। साथ ही वह परम्परा के नाम पर चल रही अवैज्ञानिक रूढ़ियों से भी टकरा रहा है। इसीलिए इस साहित्य का व्यापक सन्दर्भों में अध्ययन और विश्लेषण बहुत ज़रूरी है। पूर्वोत्तर के जनजातीय समाजों की चिंताएं, सरोकार और विमर्श के मुद्दे भारत के अन्य जनजातीय समुदायों से थोड़े भिन्न हैं। कुछ मूलभूत साम्यता के बावजूद अपनी व्यापकता में ये अंतर्विरोध भिन्न हैं। इसीलिए इस शोध परियोजना के माध्यम से साहित्य में अभिव्यक्त इन चिंताओं और सरोकारों को भी विश्लेषित करने की कोशिश की जाएगी।

अध्याय विभाजन के तहत 1. अरुणाचल प्रदेश की भू-राजनैतिक और भाषाई स्थिति, 2. अरुणाचल प्रदेश में हिंदी की विकास यात्रा और साहित्य लेखन, 3. अरुणाचल प्रदेश की जनजातियों द्वारा लिखित हिंदी उपन्यास, 4. अरुणाचल प्रदेश की जनजातियों द्वारा लिखित हिंदी कहानी, 5. अरुणाचल प्रदेश की जनजातियों द्वारा लिखित हिंदी कविता, 6. अरूणाचल प्रदेश की जनजातियों द्वारा लिखित हिंदी नाटक, 7. अरुणाचल प्रदेश की जनजातियों द्वारा हिंदी की अन्य विधाओं में लिखा साहित्य जैसे विषय शामिल होंगे।

‘समर हिल’ का आगामी अंक

शिमला स्थित भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान (आईआईएएस) में हर साल जून और दिसंबर में प्रकाशित होने वाली पत्रिका ‘समर हिल’ के लिए पेपर्स और बुक रिव्यू आमंत्रित किए हैं। लेखकों से अनुरोध किया गया कि दिसंबर अंक के लिए 1 अक्टूबर से 15 नवंबर के बीच अपने आलेख और रिव्यू जमा कराएं। जून अंक के लिए 1 अप्रैल से 15 मई के बीच पेपर जमा करने होते हैं।

ज्ञातव्य है कि समर हिल देश की प्रतिष्ठित अकादमिक और बौद्धिक जर्नल है जो साल में दो बार प्रकाशित होता है। इससे देशभर के अकादमिक, बौद्धिक और लेखकीय लोग जुड़े हैं जो समाज अध्ययन और शोध के क्षेत्र में जुड़े हैं। इसमें स्वतंत्र आलेख और महत्वपूर्ण पुस्तकों की समीक्षाएं प्रकाशित की जाती हैं।    

नए अंक में योगदान के लिए शोधार्थियों, शिक्षकों और लेखकों को ज्यादा जानकारी के लिए प्रोफेसर अमिया पी. सेन  amiyasen1@gmail.com  और प्रोफेसर रमेश चंद्र प्रधान से उनके ईमेल एड्रेस pradhanrameshchandra@yahoo.com  पर संपर्क करना चाहिए।

विज्ञान की दुनिया में

फायदे के लिए खेती में खोज

बदलते वैश्विक परिदृश्य में सतत कृषि विकास को लेकर 11- 13 अक्टूबर 2019 को स्वतंत्र भवन, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी में तीन दिवसीय विश्व स्तरीय सेमिनार का आयोजन किया गया है। इस कार्यक्रम को रॉयल एसोसिएशन फॉर साइंस-लेड सोशियल कल्चरल एडवांसमेंट (आरएएएसए) नई दिल्ली और पर्यावरण और सतत् विकास संस्थान (आईईएसडी)  बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी ने संयुक्त रूप से आयोजित किया है।

आयोजकों द्वारा दी गई रूपरेखा के मुताबिक उनका मकसद- 1. समाज की स्थायी उन्नति के लिए कृषि उद्योग और उद्यमिता का विकास करना, 2. जलवायु परिवर्तन के जोखिम के लिए क्लाइमेट स्मार्ट सिस्टम से जोखिम कम करना और आय बढ़ोतरी के लिए प्रबंधन करना है, 3. योजनाओं के निर्माण और उद्यमशीलता की गतिविधियों का निर्माण करके लोगों की शैक्षणिक और आर्थिक कल्याण को बढ़ावा देना, 4. आय और रोजगार के लिए कृषि और ग्रामीण उद्यमिता गतिविधियों में युवाओं को सलाह और सहायता प्रदान करना, 5. विज्ञान और तकनीकों के जरिए समुदाय के लाभ के लिए सम्मेलनों, बैठकों, निष्पक्ष, किसान गोष्ठियों आदि का आयोजन करना, 6. किसानों और हितधारकों के लिए एक बहु-विषयक पत्रिका संदेश का प्रकाशन करना, 7. आदर्शपूर्ण विकास के लिए सामाजिक और सांस्कृतिक विरासत का पता लगाना और पोषण करना है।

बता दें कि मेजबान संस्था ‘पर्यावरण और सतत् विकास संस्थान’ की स्थापना 2011 में बीएचयू में की गई थी जिसकी मूल भावना में स्वच्छ पर्यावरण की भविष्य की आवश्यकता के तमाम पहलुओं को देखना है। संस्थान का काम महज शोध ही नहीं बल्कि आम जनता और सरकार को जागरूक करना भी रहा है।

उप-विषय की कुछ थीम इस तरह हैं- 1: क्लाइमेट स्मार्ट क्रॉप, पशुधन उत्पादन तकनीक, कृषि और पशुधन, उत्पादन के लिए आधुनिक प्रौद्योगिकियां,  भोजन और पोषण के लिए पौधे और पशुधन प्रजनन में नवीन दृष्टिकोण, स्थिरता के लिए जैविक और अजैविक प्रबंधन, मृदा, पौधे और पशु स्वास्थ्य, एकीकृत बीमारी और कीट प्रबंधन,  बायोटेक्नोलॉजिकल दखल 2: एडवांस फूड साइंस और फसल प्रौद्योगिकी में उन्नति, खाद्य प्रसंस्करण और फसल कटाई के बाद की प्रौद्योगिकी में नवाचार, भोजन और स्वास्थ्य के लिए पोषण और पोषण सुरक्षा. औषधीय और सुगंधित उत्पाद विकास,  3: पर्यावरण, स्थिरता और जलवायु परिवर्तन, बदलते जलवायु परिदृश्य में सतत कृषि व्यवसाय और खाद्य सुरक्षा, उद्योगों और पर्यावरण की स्थिरता के लिए अक्षय ऊर्जा, पर्यावरणीय स्थिरता के लिए इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी, प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन, संरक्षण कृषि और जैविक खेती 4: जैव विविधता और आईपीआर- मुद्दे और चुनौतियां, बौद्धिक संपदा अधिकारों का संरक्षण, पौधों की विविधता और किसान अधिकारों का संरक्षण, जैव विविधता और भूमि प्रबंधन, पेटेंट कानूनों के अंतर्राष्ट्रीय सामंजस्य और जैव प्रौद्योगिकी उत्पादों के व्यावसायीकरण 5: उद्योग, उद्यमिता और विकास के रुझान और भविष्य की संभावनाएं, कृषि बीज विपणन प्रणाली और कृषि मशीनीकरण, कृषि उद्योग और स्थायी उद्यमिता मॉडल, विपणन हस्तक्षेपों के नए तरीकों के माध्यम से सतत् राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा और किसान की आय को दोगुना करना, आधुनिक प्रौद्योगिकी के लिए टिकाऊ वितरण कृषि विपणन और ग्रामीण युवा 6: शिक्षा, विस्तार और नीतिगत मुद्दे, शैक्षिक सुधार, मांग पर आधारित विस्तार और बाजार का नेतृत्व विस्तार, विस्तार अनुसंधान और शिक्षा का अनुबंध, अनुबंध खेती और सार्वजनिक भागीदारी, स्थायी नीति को बढ़ावा देने के लिए व्यापार नीति, आर्थिक शिक्षा और कृषि अनुसंधान।

इस बारे में शोध छात्रों और शिक्षकों को आईईएसडी के असिस्टेंट प्रोफेसर राजीव प्रताप सिंह को ईमेल एड्रेस rassaiesd@gmail.com  पर संपर्क करना चाहिए। चयनित प्रतिभागियों को 10 से 15 मिनट की समय सीमा में मुख्य कार्यक्रम में माइक्रोसाफ्ट पावर प्वाइंट (पीपीटी) प्रारूप में अपने शोधपत्र आलेख की प्रस्तुति देने का समय दिया जाएगा।

अन्य मुख्य आयोजन

तर्क और विश्लेषण की क्षमता बढ़ेगी

कैपासिटी बिल्डिंग प्रोग्राम यानी क्षमता निर्माण कार्यक्रम-सीबीपी को लेकर असम में “सामाजिक विज्ञान और सामाजिक कार्य में अनुसंधान पद्धति पाठ्यक्रम” को लेकर दो सप्ताह का कार्यक्रम आय़ोजित किया गया है। यह आयोजन यूथ साइंटिफिक फैकल्टी के विद्यार्थियों के लिए की गयी है। आईसीएसएसआर, नई दिल्ली के सहयोग से इस कार्यक्रम को सामाजिक कार्य विभाग असम विश्वविद्यालय, सिलचर ने किया है जो 7 से 20 नवंबर को असम विश्वविद्यालय सिलचर के सभागार में होगा।

आयोजकों के मुताबिक इस अवधारणा को यों समझा जा सकता है कि सामाजिक विज्ञान और सामाजिक कार्यों में अनुसंधान के लिए मोटे तौर पर दो दृष्टिकोण हैं, मात्रात्मक दृष्टिकोण और गुणात्मक दृष्टिकोण। दोनों दृष्टिकोणों के बीच का अंतर यों समझा जा सकता है- (एक) वास्तविकता की प्रकृति के बारे में अनुमान (ओंटोलॉजिकल) मान्यताएं, (दो) ज्ञान की संभावना के बारे में अनुमान, मान्यताएं, (तीन) जानने के लिए तर्क, और (चार) अनुसंधान के तरीके। तुलनात्मक शोध फ्रांसीसी बौद्धिक परंपरा में इसकी जड़ें मोटे तौर पर सिद्धांतों पर आधारित हैं जिनका आधार ‘सकारात्मकता’ धारणाएं हैं। गुणात्मक अनुसंधान अपनी जड़ों को खोजता है। जर्मन बौद्धिक परंपरा मोटे तौर पर सैद्धांतिक मान्यताओं पर आधारित है’। मात्रात्मक शोध में, यह माना जाता है कि सामाजिक वास्तविकता की प्रकृति उद्देश्यपूर्ण है और इसलिए यह मानता है कि सामाजिक तथ्यों को स्पष्ट करना संभव है। मात्रात्मक अनुसंधान मेंं शोधकर्ता अध्ययन के तहत सामाजिक घटना के बारे में सामान्यीकरण की ओर देखता है और उसके बाद तर्कों तक पहुंचता है। नतीजतन, शोधकर्ता सर्वेक्षण और प्रयोगों जैसे तौर-तरीकों का उपयोग करता है। मात्रात्मक अनुसंधान में व्यवस्थित जांच के तरीके होते हैं जिनमें परिमाणात्मक डेटा एकत्र करने के साथ साथ सांख्यिकीय, गणितीय या कम्प्यूटेशनल तकनीकों को देखा गया है। कोर्स का मुख्य उद्देश्य अनुसंधान पद्धति को बढ़ाना होगा ताकि युवा शिक्षाविदों के लेखन कौशल में और विशेषज्ञ शोधकर्ताओं के रूप में अपनी क्षमता को विकसित कर सकें। 

इसके उद्देश्य होंगे- 1. सामाजिक विज्ञान और सामाजिक कार्य में मात्रात्मक और गुणात्मक अनुसंधान के बीच अंतर को उजागर करना, 2. सामाजिक विज्ञान और सामाजिक कार्यों में मात्रात्मक और गुणात्मक अनुसंधान के विभिन्न दृष्टिकोणों पर चर्चा करना, 3. सामाजिक अनुसंधान में मात्रात्मक और गुणात्मक अनुसंधान डिजाइनिंग, डेटा संग्रह, डेटा विश्लेषण और डेटा व्याख्या प्रक्रियाओं के विवरण को समझने के लिए और सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल मात्रात्मक और गुणात्मक डेटा के विश्लेषण में करना, 4. गुणात्मक डेटा की गुणवत्ता और विश्वसनीयता के पहलुओं पर चर्चा करना और सामाजिक विज्ञान और सामाजिक कार्य अनुसंधान में त्रिकोणीय महत्व को समझना, 5. शोध के निष्कर्षों को व्यापक बनाना, डेटा प्रसार और लेखन कौशल का निर्माण करना।

कार्यक्रम के लिए योग्य प्रतिभागियों में कुल 20 (10 स्थानीय और 10 बाहरी) का चयन होगा। आवेदन पत्र जमा करने की अंतिम तिथि 27 सितंबर 2019 है। चयन की अधिसूचना 3 अक्टूबर 2019 को दी जाएगी। वर्कशॉप 7 नवंबर, 2019 को शुरू होगी। कार्यशाला का समापन 20 नवंबर 2019 को है। अधिक जानकारी के लिए ईमेल एड्रेस icssraus.cbp2019@gmail.com पर समाज कार्य विभाग के प्रोफेसर सुभब्रत दत्ता को संपर्क किया जा सकता है। इनका फोन नंबर 09401533405 है।

डिजिटल अनुसंधान बदल रहा है संसार

सेंट मेरी कालेज (स्वायत्त) थूथुकुड़ी, तमिलनाडु कॉलेज ने 4 अक्टूबर को डिजिटल इनोवेशन-ए ट्रांसफार्मेटिव टूल फॉर इकोनोमिक ग्रोथ पर एक दिन का राष्ट्रीय सेमिनार आयोजित किया है। आयोजक महाविद्यालय का कॉमर्स विभाग है। 

आयोजकों का कहना है कि डिजिटल साइंस में होने वाली खोजें हमारी संस्थाओं की दिल की धड़कन हैं। हमारी जरूरत है कि डिजिटल तरीके से हम अपने अंदरूनी कामकाज से तेज गति के साथ कहीं बेहतर और किफायती तरीके से कर सकते हैं। इसके जरिए हम बाजार तक जल्द से जल्द अपने उत्पाद पहुंचा सकते हैं। लेकिन डिजिटल दुनिया में अनुसंधान इतने आसान नहीं हैं। बदलाव के लिए डिजिटल दुनिया के सामने रणनीतियां तैयार करने की चुनौती है। जाहिर है इस रणनीति के लिए हर संस्था अपने में बदलाव के लिए तैयार है। प्रतिस्पर्धा के समय में हमारे तकनीकी व्यवसाय को नई ऊंचाइयों की जरूरत है। डिजिटल दुनिया के भीतर विध्वंसकारी शक्तियों की पहचान रखनी भी जरूरी होती है। 

सेमिनार में प्रमुख उपविषय डिजिटल इनोवेशन रखा गया है। डिजिटल मार्केटिंग,  रिटेल मार्केटिंग, लॉजिस्टिक एंड सप्लाई चेन मैनेजमेंट, ग्रीन मार्केटिंग, ई-सीआरएम सोशल मीडिया मार्केटिंग, इंटरनेशनल मार्केटिंग के अलावा बैंकिंग, वित्त, एचआरएम और उद्यमशीलता के लिए भी अपने शोधपत्र और आलेख तैयार किए जा सकते हैं। आयोजकों को उम्मीद है कि इसमें देशभर के स्कॉलर्स रुचि लेंगे।

सेंट मेरी कॉलेज तमिलनाडु क्षेत्र की तटीय क्षेत्र की गरीब और वंचित महिलाओं की सेवा के लिए खासतौर पर काम करता है। यह एक कैथोलिक शिक्षण संस्थान हैं जिसकी कमान पूरी तरह से महिलाओं के हाथ हैं। इसने शिक्षा में गुणवत्ता के तमाम राष्ट्रीय मानकों पर खरे होकर काम किया है। कार्यक्रम के संयोजक सचिवों में डॉ. टी. प्रियंका और डॉ. एस. बुलोमाइन रेगी हैं। कार्यक्रम संबंधी किसी भी जानकारी के लिए डॉ. रेगी से commercessc2019@gmail.com पर संपर्क करें, उनका फोन नंबर 99420 57102 है।

सांख्यिकी का महत्व

एक समय में सांख्यिकी सिर्फ जनगणना के काम आती थी लेकिन अब सांख्यिकी ने गणित जितना ही महत्व हासिल कर लिया है। टीचिंग लर्निंग सेंटर रामानुजन कॉलेज (दिल्ली विश्वविद्यालय, मान्यता प्राप्त ग्रेड ‘ए’ एनएएसी) वाणिज्य विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय (नॉलेज पार्टनर) डिपार्टमेंट ऑफ फाइनेंशियल स्टडीज, साउथ कैंपस, दिल्ली विश्वविद्यालय (नॉलेज पार्टनर) और भारतीय लेखा संघ, एनसीआर ने मल्टीवेरेट डेटा विश्लेषण- सांख्यिकीय अनुप्रयोगों में कौशल बढ़ाने के लिए पर राष्ट्रीय संकाय विकास कार्यक्रम का आयोजन किया है। यह कार्यक्रम 30 सितंबर से 6 अक्टूबर, 2019 साउथ कैंपस, दिल्ली विश्वविद्यालय, नई दिल्ली में होगा।

कार्यक्रम की रूपरेखा में आयोजकों ने कहा है कि कार्यक्रम में फैकल्टी डवलेपमेंट प्रोग्राम (एफडीपी) में शोध विधि की संरचना और प्रशिक्षण के समग्र पहलुओं को मिलाकर  देखा जाएगा। अनुसंधान डेटा के अपेक्षाकृत ज्यादा मेहनत और विश्लेषण के साथ नई अवधारणाओं पर जाने की कोशिश होगी। प्रतिभागियों को अनुभव से सीखने की सुविधा के लिए विश्लेषण के उद्देश्य के लिए प्रासंगिक डेटा सेट प्रदान किया जाएगा। इस बात पर जोर दिया जाना चाहिए कि कार्यशाला गुणात्मक तौर पर डेटा का विश्लेषण करे, साथ ही उस पर सार्थक चर्चा हो।

कार्यक्रम में निम्नलिखित विषय शामिल होंगे- गुणात्मक अनुसंधान का परिचय, कारक अनुसंधान के लिए विश्लेषणात्मक उपकरण- विवेकशील विश्लेषण, लॉजिस्टिक प्रतिगमन, इकोनोमिट्रिक यानी अर्थमिति के  सरल प्रतिगमन और एकाधिक प्रतिगमन, प्रतिगमन मॉडल में डमी का उपयोग, मान्यताएं और मान्यताओं का उल्लंघन, टेक्स माइनिंग; सेंटीमेंट एनालेसिस, खोजपूर्ण कारक विश्लेषण; पुष्टिकरण कारक विश्लेषण, संरचनात्मक समीकरण मॉडलिंग। इसके लिए अपनाई जाने वाली कार्यप्रणाली के तहत असाइनमेंट और लाइव प्रोजेक्ट, इंटरेक्टिव व्याख्यान, चर्चा, प्रस्तुतियों, अध्ययन सामग्री (जहां भी आवश्यक हो) और मूल्यांकन परीक्षणों के संयोजन के माध्यम से आयोजित किया जाएगा। अनुसंधान डेटा के अपेक्षित कठोरता और विश्लेषण के साथ अवधारणाओं का निर्माण करने पर जोर दिया जाएगा।

एफडीपी में किसी भी भारतीय विश्वविद्यालय/ कॉलेज से संकाय सदस्यों (नियमित/ तदर्थ/ अस्थायी) से जुड़े प्रतिभागी शिरकत कर सकते हैं। इसके लिए https://ramanujancollege.ac.in पर ऑनलाइन पंजीकरण करवाया जा सकता है। लिंक है https://forms.gle/survDwFgekjyjKnU7 

कार्यक्रम में सीमित सीटें हैं, इसलिए जाहिर है पंजीकरण पहले आओ, पहले पाओ के आधार पर किया जाएगा। चयनित प्रतिभागियों को 23 सितंबर 2019 तक सूचना दी जाएगी। अधिक विवरण के लिए इन नंबरों पर संपर्क किया जा सकता है: डॉ. जे.एल. गुप्ता (9868124224), डॉ. रेखा दयाल (9873475753), डॉ. एच.के. डांगी (9968316938), डॉ. अमित कुमार सिंह (9810992326), डॉ. आभा वाधवा (9910048640), डॉ. अंजलि गुप्ता (9811385880), डॉ. अंशिका अग्रवाल (9871373360), सुश्री सोनिया मुदेल (9911316976), हिमांशु शेखर साहू (9971585816)।

 

(संपादन : नवल)


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लेखक के बारे में

कमल चंद्रवंशी

लेखक दिल्ली के एक प्रमुख मीडिया संस्थान में कार्यरत टीवी पत्रकार हैं।

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