देश की राजधानी दिल्ली में 8 फरवरी को मतदान होने हैं। इसके मद्देनजर दिल्ली में रहने वाले अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से जुड़ी चार मांगों को विभिन्न राजनीतिक दलों के समक्ष रखा गया है। इस आशय की जानकारी संविधान बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक अनिल जयहिंद ने दी।
दरअसल, दिल्ली में चुनाव लड़ रहीं पार्टियों के लिए सामाजिक न्याय कोई मुद्दा नहीं है। सभी पार्टियों के अपने एजेंडे हैं। मसलन सत्तासीन आम आदमी पाटी (आप) अपने पांच वर्षों के दौरान किए गए कार्यों के आधार पर वोट मांग रही है तो वहीं भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) राष्ट्रवाद को एजेंडे के जरिए चुनावी वैतरणी पार करना चाहती है। लंबे समय तक सत्तासीन रही कांग्रेस के पास भी दलित-बहुजनों से जुड़े मुद्दे नहीं हैं। ऐसे में संविधान बचाओ संघर्ष समिति द्वारा ओबीसी से जुड़े सवालों को विमर्श में लाने की कोशिश की गई है।

संविधान बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक अनिल जयहिंद के मुताबिक सभी राजनीतिक दलों को मांगों से संबंधित ज्ञापन दिया गया और उनसे अनुरोध किया गया कि इन मांगों को वे अपने-अपने घोषणा पत्र में शामिल करें। इन मांगों में सबसे प्रमुख है ओबीसी वर्ग के लोगों के प्रमाण-पत्र का सरलीकरण। जयहिंद ने बताया कि वर्तमान में दिल्ली में ओबीसी वर्ग के केवल उन्हीं लोगों को ओबीसी का प्रमाण पत्र निर्गत किया जाता है जो 1993 के पहले से रहते आए हैं। जबकि 1993 के बाद बड़ी संख्या में अलग-अलग प्रदेशों से ओबीसी वर्ग के लोग आए और अब वे यहां के स्थायी निवासी हैं। ऐसा केवल ओबीसी के साथ ही होता है। एससी, एसटी और आर्थिक रूप से गरीब सवर्णों के लिए यह नियम नहीं है। इस प्रकार ओबीसी के साथ दोहरा रवैया अख्तियार किया जाता है।

जयहिंद ने बताया कि बढ़ते निजीकरण से सरकारी नौकरियों में कमी आई है। इसका शिकार ओबीसी वर्ग के लोग हो रहे हैं। इसके लिए जरूरी है कि ओबीसी के लोगों को उद्यमिता के लिए विशेष सहायता उपलब्ध करायी जाए। उन्होंने यह भी कहा कि एक और मांग जो राजनीतिक दलों के समक्ष रखी गयी है उसमें नेशनल बैकवर्ड क्लासेज डेवलपमेंट एंड फाइनांस कारपोरेशन की तर्ज पर दिल्ली में भी एक कारपोरेशन का गठन की मांग शामिल है।
उन्होंने यह भी कहा कि इसके अलावा दिल्ली में लगभग सभी राज्यों के लोग रह रहे हैं। इस प्रकार दिल्ली मिनी इंडिया बन चुका है। इसलिए हम मांग कर रहे हैं कि दिल्ली सरकार के अधीन ओबीसी आयोग इस वर्ग की उन जातियों को शामिल करे जो केंद्र सरकार की ओबीसी सूची में शामिल हैं। ऐसा इसलिए कि बहुत ओबीसी की कई जातियों को दिल्ली में ओबीसी का दर्जा हासिल नहीं है जबकि केंद्रीय सूची में वे ओबीसी में शामिल हैं। आयोग को इसकी समीक्षा करनी चाहिए।
(संपादन : सिद्धार्थ)