जब देश में अंग्रेजी हुकूमत थी तब कई जातियों व जनजातियों को आपराधिक जातियों की श्रेणी में रखा गया था। इन जातियों व जनजातियों को आजतक अतीत का दंश झेलना पड़ रहा है। इनमें खानाबदोश व घूमंतू जातियां भी शामिल हैं। एक बार फिर इसी तरह की कोशिश की जा रही है। बिहार के प्रवासी मजदूरों के बारे में कहा जा रहा है कि उनके कारण सूबे में अपराध बढ़ेगा और तथाकथित सुशासन संकट में आ जाएगा। जबकि यह निर्विवाद है कि प्रवासी मजदूरों में बहुलांश दलित और पिछड़े वर्ग के लोग हैं जो रोजी-रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में पनाह ले रखे थे, लेकिन कोरोना के कारण लॉकडाउन की वजह से उन्हें वापस आना पड़ा। अधिकांश ने तो हजारों किलाेमीटर की दूरी जान हथेली पर रखकर पांव पैदल तय की।
दरअसल, बिहार सरकार में शामिल पार्टियों की वैचारिक धारा पिछड़ों और दलितों के खिलाफ दिखायी पड़ती है। चाहे-अनचाहे शासकीय आदेशों में भी यह उजागर हो जाता है। विभिन्न प्रदेशों से वापस लौट रहे प्रवासी कामगारों के लेकर राज्य सरकार ने एक ऐसा आदेश जारी किया, जो किसी से तरह से मानवीय नहीं कहा जा सकता है। इस आदेश से प्रवासी मजदूरों, जिनमें बहुलांश दलित और पिछड़े वर्ग के हैं, के प्रति सरकार के रवैये का घृणात्मक पक्ष उजागर होता है।
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बीते 29 मई को अपर पुलिस महानिदेशक (विधि व्यवस्था) अमित कुमार ने सभी जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षकों को भेजे पत्र में कहा है – “विगत 2 माह में बिहार राज्य में भारी संख्या में स्थानीय नागरिकों का आगमन हुआ है जो अन्य राज्यों में श्रमिक के रूप में कार्यरत थे। गंभीर आर्थिक चुनौतियों के कारण वे सभी परेशान व तनावग्रस्त हैं। सरकार की अथक कोशिशों के बावजूद राज्य के अंदर सभी को वांछित रोजगार मिलने की संभावना कम है। इस कारण स्वयं व अपने परिवार का भरण-पोषण् करने के उद्देश्य से वे अनैतिक एवं विधि विरूद्ध गतिविधियों में शामिल हो सकते हैं। इससे अपराध में वृद्धि हो सकती है तथा विधि-व्यवस्था की स्थिति पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। यह समस्या सीमित क्षेत्र में अथवा व्यापक पैमाने पर उत्पन्न हो सकती है। इस परिस्थिति का सामना करने के लिए अनुरोध है कि स्थानीय परिदृश्य को देखते हुए कार्य योजना तैयार कर ली जाय ताकि आवश्यकतानुसार कार्रवाई की जा सके।”
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मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अधीन वाले पुलिस महकमे के इस पत्र के बाद राजनीतिक गलियारे में भूचाल आ गया। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने इसी मुद्दे को लेकर बीते 5 जून, 2020 को प्रेस वार्ता की और इस संदर्भ से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से स्थिति स्पष्ट करने और माफी मांगने की मांग की। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार श्रमवीरों को अपराधी समझती है और इससे सरकार की मंशा उजागर होती है। मामला प्रकाश में आते ही सरकार बैकफुट पर चली गयी और उसने आनन-फानन में आदेशात्मक पत्र को वापस ले लिया। स्वयं पुलिस महानिदेशक गुप्तेश्वर पांडेय ने अपर पुलिस महानिदेशक (विधि व्यवस्था) द्वारा जारी पत्र को गलती मानते हुए इसे वापस लेने की घोषणा की।
लेकिन डीपीजी द्वारा पत्र वापस लेने की घोषणा से प्रशासनिक मंशा को लेकर उठाये जा रहे सवाल समाप्त नहीं हो जाते हैं। सत्ता में भाजपा और जदयू शामिल है। भाजपा का आधार सवर्ण जातियों में माना जाता है और वैचारिक रूप से गैरसवर्ण विरोधी पार्टी है। लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद पिछड़ों की राजनीति करते हैं। जबकि उनके विश्वासपात्रों में सवर्ण ही शामिल हैं। (देखें सारणी)
इस संबंध में पूर्व विधायक एन.के. नंदा कहते हैं कि मेहनत करने वाले लोग चोर-बेईमान नहीं होते हैं। वे लोग अपनी मेहनत पर विश्वास करते हैं और अपनी मेहनत के खाते हैं। वे कहते हैं कि सत्ता में बैठे सवर्ण अधिकारी और उनका प्रशासनिक तंत्र गरीबों की भूख को कुचलने का लिए साजिश रचता है। उन्हीं साजिश के तहत इस तरह के प्रशासनिक आदेश जारी किये जाते हैं। वे कहते हैं कि प्रशासनिक तंत्र खुद अपराधियों का गिरोह बन गया है और गरीबों की जायज मांगों को दबाने के लिए प्रशासनिक सत्ता का इसतेमाल करता है।
नीतीश कुमार के मुख्य विश्वासपात्र नौकरशाह और उनकी जाति
पदनाम | नाम | जाति/वर्ग |
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मुख्य सचिव | दीपक कुमार | कायस्थ/सवर्ण |
मुख्यमंत्री के सलाहाकर व पूर्व मुख्य सचिव | अंजनी कुमार सिंह | राजपूत/सवर्ण |
गृह सचिव | आमिर सुबहानी | अशराफ/सवर्ण |
पुलिस महानिदेशक | गुप्तेश्वर पांडे | ब्राह्मण/सवर्ण |
मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव | चंचल कुमार | कायस्थ/सवर्ण |
ऊर्जा विभाग के प्रधान सचिव | प्रत्यय अमृत | कायस्थ/सवर्ण |
बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के अध्यक्ष | आनंद किशोर | कायस्थ/सवर्ण |
बहरहाल, इस पूरे प्रकरण को समझने के लिए यह समझना भी जरूरी है कि विभिन्न प्रदेशों से लौट रहे कामगारों में लगभग सभी दलित व पिछड़ी जातियों के हैं और इनकी आर्थिक पृष्ठभूमि भी कमजोर है। सामाजिक रूप से भी वे दमित हैं। वे रोजगार के साथ सम्मान की तलाश में भी दूसरे प्रदेशों में जाते हैं। वे लॉकडाउन में हाथ से रोजगार छीन जाने के बाद अपने गांव वापस लौट रहे हैं। उनको लेकर प्रशासनिक सोच सामंती मानसिकता को ही उजागर करता है।
(संपादन : नवल)