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भारतीय कार्यपालिका में सामाजिक न्याय का संघर्ष : अनकही कहानी, पी. एस. कृष्णन की जुबानी

मंडल कमीशन कैसे लागू हुआ? एससी-एसटी एक्ट कैसे बना? इसके अलावा दलित-बहुजनों के हितार्थ कानूनों के बनने की कहानी है इस किताब में। इसे घर बैठे अमेजन और फ्लिपकार्ट के जरिए खरीदा जा सकता है। आज ही आर्डर करें

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करीब 460 पन्नों की यह किताब भारत सरकार के भूतपूर्व सचिव पी.एस. कृष्णन की अनकही कहानियों का संग्रह है। इन कहानियों में से एक मंडल आयोग के लागू होने की है। अपने संस्मरण में पी. एस. कृष्णन इस महत्वपूर्ण निर्णय के विभिन्न आयामों को सामने लाते हैं और यह बताते हैं कि केवल राजनेता ही नहीं, बल्कि नौकरशाह भी इस आयोग की अनुशंसाओं को लागू करने के खिलाफ थे।

 पी.एस. कृष्णन आजीवन भारत के उत्पीड़ित और शोषित तबकों के असाधारण हितैषी रहे। शोषित-उत्पीड़ित तबकों के हितार्थ उनका संघर्ष तभी शुरू हो गया था जब 1956 में वे आंध्र प्रदेश कैडर के आईएएस अधिकारी बने। सामाजिक न्याय के क्षेत्र में उनके योगदान का आकलन मात्र इसी से किया जा सकता है कि उन्होंने दलितों के लिए विशेष घटक योजना से लेकर, एससी-एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम व मंडल आयोग की अनुशंसाएं लागू करवाने में अहम भूमिका निभायी। उनके इसी संघर्ष व प्रतिबद्धता का दस्तावेजीकरण है फारवर्ड प्रेस की नई किताब। 

यह किताब मनोनमेनियम सुन्दरनार विश्वविद्यालय, तमिलनाडु की पूर्व कुलपति डॉ. वी. वासंती देवी के साथ कृष्णन की लंबी बातचीत पर आधारित है। उन्होंने भूमिका में विस्तार से बताया है कि कैसे जिलाधिकारी से लेकर भारत सरकार में सचिव तक के विभिन्न पदों पर रहते हुए पी.एस. कृष्णन ने वंचित वर्गों के लिए विभिन्न अग्रणी योजनाओं का सृजन किया और उन्‍हें क्रियान्वित किया। इन योजनाओं में शामिल हैं– राज्यों में अनुसूचित जाति विकास कॉरपोरेशनों के लिए केंद्रीय सहायता तथा अन्य योजनाएं।

इसके अलावा अनेक संवैधानिक संशोधनों और अधिनियमों के पीछे उनका दिल, दिमाग और हाथ थे। इनमें शामिल हैं– संविधान (65वां संशोधन) अधिनियम, 1990, जिसने राष्ट्रीय अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति आयोग को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया; दलित बौद्धों को एससी कर दर्जा देने वाला कानून, एससी-एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (और बाद में, एससी-एसटी (अत्याचार निवारण) संशोधन अधिनियम, 2015); मैनुअल सफाई कर्मचारियों और शुष्क शौचालयों के निर्माण (प्रतिषेध) अधिनियम, 1993 (और बाद में, उसका संशोधित संस्करण, हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013)। उनके अथक प्रयासों से ही मंडल आयोग की रपट को ठंडे बस्ते से निकाला जा सका और विश्वनाथ प्रताप सिंह को इस बात के लिए राजी किया जा सका कि सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता देते हुए उनके लिए आरक्षण की व्यवस्था की जाय। 

इन वर्गों को आरक्षण प्रदान करने के आधार सर्वोच्च न्यायालय में सफलतापूर्वक रखने में भी कृष्णन के महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

पीएस कृष्णन की किताब का कवर

इस किताब में पी.एस. कृष्णन ने बताया है कि अपने प्रशासनिक करियर के शुरूआती दौर में ही उन्हें दलितों और पिछड़ों के लिए काम करने से रोका जाता था। यहां तक कि उनकी गोपनीय चरित्रावली में विपरीत टिप्पणियां की जाती थीं। कृष्णन ने इस किताब में अपने तमाम सहयोगियों को याद किया है। इनमें सबसे खास उनके तीन मित्र श्री एस.आर. शंकरन, डॉ. बी. डी. शर्मा और डॉ. भूपिंदर सिंह शामिल हैं। कृष्णन ने विस्तार से लिखा है कि कैसे इन सभी ने आईएएस अधिकारी रहते हुए दलितों, आदिवासियों और पिछड़े वर्गों के लिए आगे बढ़कर काम किया।

यह किताब बिक्री के लिए उपलब्ध है। यह उन सभी के लिए महत्वपूर्ण है जो भारत में सामाजिक न्याय की अनिवार्यता को जानना-समझना चाहते हैं। फिर वे चाहे अध्येतागण हों या फिर प्रशासनिक अधिकारी अथवा राजनीतिक कार्यकर्ता। आज ही खरीदने के लिए यहां क्लिक करें

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