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कवासी हिडमे के नाम मुकदमे में हिडमे मरकाम की गिरफ्तारी, उठ रहे सवाल

छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग की मानवाधिकार कार्यकर्ता हिडमे मरकाम की गिरफ्तारी को लेकर करीब एक हजार सामाजिक कार्यकर्ताओं व बुद्धिजीवियों ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को पत्र लिखा है। उनका आरोप है कि पुलिस ने हिडमे मरकाम को फर्जी मुकदमे में फंसाया है। बता रहे हैं मनीष भट्ट मनु

बीते 9 मार्च, 2021 को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के दिन छत्तीसगढ़ की युवा सामाजिक व मानवाधिकार कार्यकर्ता हिडमे मरकाम को दंतेवाड़ा जिले के अरनपुर थाने की पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। इस गिरफ्तारी को तब अंजाम दिया गया जब वे अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर समेली, जिला दंतेवाडा में दो युवा आदिवासी महिलाओं के साथ हिरासत में की गई शारीरिक और यौन हिंसा के विरोध में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित कर रही थीं। हिडमे मरकाम पर बलवा, हत्या, अवैध हथियार रखने और नक्सली गतिविधियों में संलिप्त होने के आरोप पुलिस द्वारा लगाए गए हैं। जबकि उन्हें रिहा करने व सारे मामले वापस लेने के लिए एक हजार की संख्या में विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को पत्र लिखा है। वहीं इस मामले में पुलिस पर यह आरोप भी है कि उसने कवासी हिडमे नामक एक दूसरे व्यक्ति पर दर्ज मामले में हिडमे मरकाम को गिरफ्तार किया है। 

हिडमे मरकाम के संदर्भ में एक पृष्ठभूमि

बात करीब नौ साल पुरानी है। 28-29 जून, 2012 की दरम्यानी रात को छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिला अंतर्गत सारकेगुडा गांव के पास कथित नक्सलियों और अर्धसैनिक बल के जवानों और स्थानीय पुलिस के मध्य “मुठभेड” के समाचार आए थे। सरकारी विज्ञप्ति के अनुसार इसमें 17 माओवादियों के मारे जाने का दावा किया गया था। हालांकि मृतकों में आठ नाबालिग बच्चे भी थे। सरकार की ओर से यह दावा भी किया गया था कि इसमें छह पुलिसकर्मी भी घायल हुए थे, जिन्हें इलाज के लिए निकट के बड़े शहर भेज दिया गया था। यह इलाका सारकेगुडा थाने और पुलिस कैम्प लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर था।

स्थानीय लोगों ने प्रारंभ से ही इस कथित मुठभेड़ को फर्जी करार देते हुए आरोप लगाया था कि वहां पर सारकेगुडा, कोर्सागुड़ा और राजपेंटा के निवासी बैठक कर आने वाले बीज पनडुम त्यौहार की तैयारियों पर विमर्श कर रहे थे। बीज पनडुम बस्तर अंचल का बीज बोने से पहले का त्यौहार है। उन्होंने बताया कि ग्रामीण बात कर रहे थे और बच्चे भी वहां मौजूद थे, जो खेल रहे थे और बातें सुन रहे थे। स्थानीय नागरिकों ने तब कहा था कि बैठक में कोई भी नक्सली नहीं मौजूद था, मगर फिर भी सुरक्षाबल के जवान चारों तरफ से गोलियां चला रहे थे। मारे गए बच्चों के बारे में ग्रामीणों का कहना था कि ये वो बच्चे थे जो रोज पुलिस कैम्प में सुरक्षाबलों के जवानों के साथ फुटबॉल खेलते थे। वे जवान इन सब बच्चों को पहचानते थे, फिर भी उन्हें मार दिया। इस “मुठभेड़” के विरोध में उठे स्वरों में एक महत्वपूर्ण स्वर सारकेगुडा की कमला काका का भी था।

मानवाधिकार कार्यकर्ता हिडमे मरकाम

इस मामले नें जब तूल पकड़ना शुरू कर दिया था तब कांग्रेस ने घटना से संबंधित अपनी रपट में आरोप लगाए थे कि सारकेगुडा और कोट्टागुडा में मारे गए ग्रामीणों में आठ नाबालिग बच्चे हैं, जिनकी उम्र 13 साल से लेकर 16 साल के बीच है। घायलों में भी तीन नाबालिग बच्चे हैं। उस समय छत्तीसगढ़ में कांग्रेस विपक्ष में थी और उसने मामले की जांच अपने विधायकों से करवाई थी, जिसका नेतृत्व कवासी लखमा कर रहे थे। रपट पार्टी आलाकमान को भेजी गई। अपनी रिपोर्ट में छत्तीसगढ़ कांग्रेस ने इसे नरसंहार करार दिया था। हालांकि उस समय केंद्र में कांग्रेसनीत सरकार ही थी और तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदंबरम – जो कांग्रेस से ही थे – ने इस रपट के विपरीत जाते हुए मरने वालों को माओवादी करार दिया था।

इस घटना की जांच के लिए सरकार ने 11 जुलाई, 2012 को मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त जज वी.के. अग्रवाल के नेतृत्व में एक आयोग का गठन किया। लगभग सात वर्ष बाद, 2019 में, आयोग ने अपनी रपट राज्य सरकार को सौंपी, जिसे आज तक राज्य मंत्रिपरिषद की बैठक में प्रस्तुत नहीं किया गया है। चूंकि मंत्रिपरिषद के संज्ञान में ही यह रपट नहीं लाई गई है तो विधानसभा में प्रस्तुत करने और अन्य आवश्यक कार्यवाहियों का सवाल भी नहीं उठता है। आयोग की रपट के निष्कर्ष भी सामने नहीं आ पाए हैं। लेकिन सूत्रों और विभिन्न अखबारों में छपे इसके अंशों के अनुसार आयोग ने इसे “फर्जी मुठभेड़” करार दिया है। उनके अनुसार डीआईजी एस. इलांगो और डिप्टी कमांडेंट मनीष बर्मोला ने आयोग को बतलाया है कि उनके अपने हथियारों से एक भी गोली नहीं चलाई गई थी। सूत्रों का यह भी कहना है कि आयोग ने अपनी रिपार्ट में सुरक्षाबलों के 190 जवानों को इस फर्जी मुठभेड़ के लिए दोषी ठहराया है।

आयोग द्वारा अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंप दिए जाने के बाद दिसंबर, 2019 के पहले सप्ताह में सारकेगुडा में एक बार फिर आदिवासियों ने एकत्रित होकर इस हत्याकांड के दोषियों के विरुद्ध रणनीति बनाने के लिए बैठक आयोजित की थी। इस बैठक का नेतृत्व सारकेगुड़ा की कमला काका ही कर रही थीं। वे न केवल घटना की चश्मदीद हैं, वरन उनका भतीजा राहुल भी उन लोगों में से था, जिसकी गोली लगने से मौत हो गई थी। इस बैठक में उनके बुलावे पर सोनी सोरी भी मौजूद थीं। 

गौरतलब है कि इस समय तक छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बन चुकी थी और कवासी लखमा मंत्री। कांग्रेस द्वारा गठित की गई जांच कमेटी में शामिल विक्रम शाह मंडावी भी बीजापुर से विधायक निर्वाचित हो चुके थे। मगर इसके बाद भी इस हत्याकांड के दोषियों पर कार्रवाई करने से बचा जाता रहा। इसी बैठक में आदिवासी अधिकारों और खनन विरोधी कार्यकर्ता ग्राम बुरुगम, जिला दंतेवाड़ा की निवासी हिड़मे मरकाम भी आईं थीं।

सजग मानवाधिकार कार्यकर्ता के रूप में रही हिडमे मरकाम की पहचान

हिड़मे मरकाम बस्तर संभाग में एक जाना-पहचाना चेहरा हैं। वे जेल बंदी रिहाई समिति की समन्वयक हैं, जिसकी शुरुआत बघेल सरकार के चुनावी वादे के चलते ही हुई थी। समिति ऐसे हजारों आदिवासी की रिहाई की मांग कर रही है, जिनपर फर्जी मुकदमें चलाये जा रहे हैं। उन्हें नक्सल का ठप्पा लगाकर कई सालों तक जेल में सड़ाया जा रहा है। हिड़मे मरकाम नंदराज पहाड़ के नाम से पहचाने जाने वाले उस आंदोलन से भी जुडी हैं, जो अडाणी प्राइवेट लिमिटेड द्वारा आदिवासी की पवित्र जमीन (बैलाडीला माइन डिपाजिट 13) पर कब्जा करने के खिलाफ आवाज उठा रहा है। 

मरकाम ने दंतेवाडा, सुकमा और बीजापुर में आंदोलन किया है। वे छत्तीसगढ़ महिला अधिकार मंच से भी जुडी हैं। वह छत्तीसगढ़ में महिलाओं की समस्याओं व विस्थापन और मानव अधिकार के मुद्दों पर कई मंचों पर बात करती हैं। हिड़मे ने इन मुद्दों को प्रशासन के सामने भी उठाया है और जनता पर पुलिस अत्याचार के खिलाफ शांतिपूर्ण मोर्चे निकाले हैं। 

दिसंबर 2019 को सारकेगुडा में आयोजित उपरोक्त बैठक के कुछ माह बाद वर्ष 2020 में स्थानीय नागरिकों और समाजिक कार्यकर्ताओं ने थाने में जाकर 2012 की फर्जी मुठभेड़ के दोषियों के विरुद्ध एफआईआर दर्ज करवाने के लिए आवदेन दिया था। हिड़मे उस समय भी कमला काका और सोनी सोरी के साथ वहां मौजूद थी।

दाएं से सोनी सोरी, कमला काका, हिड़मे मड़कम

हिडमे मरकाम काे लेकर पुलिसिया सच क्या है?

आज पुलिस अपनी अक्षमता छिपाने के लिए हिड़मे मरकाम को नक्सली करार देने पर तुली हुई है। मगर वह यह बताने से बच रही है कि विस्थापन विरोधी नेतृत्व, जेल बंदी रिहाई समिति के समन्वयक के रूप में जबरन कैद किए गए आदिवासियों की रिहाई और पवित्र स्थलों पर खनन के मुद्दे पर वे कई बार राज्यपाल व मुख्यमंत्री समेत कई आला अधिकारियों से मुलाकातें कर चुकी हैं। छत्तीसगढ़ पुलिस को इस बात का जवाब देना होगा कि यदि हिड़में मरकाम नक्सली है तो उन्हें राज्यपाल और मुख्यमंत्री समेत बाकी लोगों से बेरोकटोक मिलने क्यों दिया जाता रहा? 

विधायक विक्रम शाह मंडावी, विधायक देवती महेंद्र कर्मा, कवासी लखमा के पुत्र हरिश लखमा कोवासी व अन्य के साथ हिड़मे मरकाम

नाम उजागर न करने की शर्त पर बस्तर संभाग में सक्रिय एक समाजिक कार्यकर्ता का कहना है कि यहां हिड़मे एक बेहद प्रचलित नाम है। और इसी का फायदा उठाकर दंतेवाड़ा जिले के अरनपुर थाने में कवासी हिड़मे के नाम पर दर्ज विभिन्न अपराध क्रमांक की आड़ में हिड़मे मरकाम को पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया है। 

स्थानीय आदिवासियों की मान्यता है कि हिडिंबा उनकी पुरखा थीं जिनका उल्लेख हिंदू ग्रंथ महाभारत में पांडू पुत्र भीम की पत्नी के रूप में है। इसलिए बस्तर संभाग में हिडमा, हिडमे और हिड़मो आदि बेहद प्रचलित नाम हैं। इसके चलते सुरक्षा बल या तो गलफत में अथवा जानबुझकर मिलते-जुलते नाम वालों को पकड़ लेते हैं। कई बार तो ऐसे लोगों को मुठभेड़ में मार गिराया भी जाता है।        

गौरतलब है कि हिडमे मरकाम की गिरफ्तारी के बाद दंतेवाड़ा के पुलिस अधीक्षक अभिषेक पल्लव ने अरनपुर पुलिस थाना में कवासी हिडमे के नाम पर दर्ज प्रकरणों को ही हिडमे मरकाम के नाम पर दर्ज होना बताकर उनकी गिरफ्तारी को वाजिब ठहराया था।

दंतेवाड़ा पुलिस ने हिडमे मरकाम की गिरफ्तार के बाद जो जानकारी जारी की, उसमें  उनका नाम कवासी हिडमे और उन्हें नक्सली संगठन में केएमएस से संबंधित बताया था। 

उल्लेखनीय है कि दंतेवाड़ा पुलिस आज तक इस सवाल का जवाब नहीं दे पाई है कि एक तथाकथित हार्डकोर नक्सली को इतनी आसानी से कैसे गिरफ्तार कर लिया गया और उसके पास से कोई हथियार बरामद नहीं हुआ। साथ ही, उनके उपर पहले एक लाख रुपए का घोषित इनाम की चर्चा भी पुलिस द्वारा दी गई जानकारी में शामिल है।

कवासी हिडमे के खिलाफ अरनुपर थाना में पंजीकृत अपराधों के बारे में उपलब्ध करवायी गई जानकारी

पुलिस द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार कवासी हिडमे पर अरनपुर थाने में जुलाई, 2016, सितंबर, 2016 में मामले दर्ज हुए। उन पर बलवा के 4, हत्या के प्रयास के 3, हत्या का एक और आर्म्स एक्ट के तहत 3 मामले दर्ज हैं।

स्थानीय लोग सवाल उठाते हैं कि जब जुलाई, 2016 से ही कवासी हिडमे, जिनके बारे में पुलिस का कहना है कि वही हिडमे मरकाम हैं, पर अरनपुर थाना में इतने गंभीर मामले दर्ज हैं, तो उन्हें पहले क्यों नहीं गिरफ्तार किया गया और यह भी कि हिडमे मरकाम कैसे न केवल सार्वजनिक आयोजनों में शामिल होती रहीं बल्कि राज्यपाल और मुख्यमंत्री सहित अनेक अतिविशिष्ट व्यक्तियों से मिलती रहीं? पुलिस के दावों पर एक सवाल हिडमे मरकाम और कवासी हिडमे के अलग-अलग पतों से भी उठता है। हिडमे मरकाम के आधार कार्ड के अनुसार वह कोवासी पारा, बुरगुम, जिला दंतेवाड़ा की निवासी हैं। जबकि कवासी हिडमे को सुकमा जिले के पुरवती गांव का नागरिक बताया जाता है। 

कौन है कवासी हिड़मे?

पुलिस जिस कवासी हिडमे के नाम पर हिडमे मरकाम की गिरफ्तारी को जायज ठहरा रही है, स्थानीय नागरिकों के अनुसार वह स्त्री न होकर पुरुष है। स्थानीय लोगों के अनुसार सुकमा जिले के पुवार्ती गांव का हिडमे मदवी हिडमा, हिडमन्ना, हिदमालु और संतोष जैसे नामों से पहचाना जाता है तथा जो अपने साथ एके-47 रखता है। यही वह शख्स है जिसकी आड़ में हिड़में मरकाम को गिरफ्तार करने के आरोप पुलिस पर लग रहे हैं। कवासी हिडमे को पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी की बटालियन-1 का मुखिया बताया जाता है। इसके उपर वर्ष 2010 (ताड़मेटला) में सीआरपीएफ के 75 जवानों समेत 76 लोगों की हत्या, वर्ष 2013 में झीरम घाटी (दरभा) में कांग्रेस नेताओं समेत 32 लोगों की हत्या और वर्ष 2017 (बुर्कापाल) में सीआरपीएफ के 25 जवानों की हत्या का आरोप है। 

हिडमे मरकाम के पक्ष में खड़े हो रहे बुद्धिजीवी व सामाजिक कार्यकर्तागण

बस्तर में कार्यरत विभिन्न मानवाधिकार संगठनों और समाजिक कार्यकर्ताओं का आरोप है कि अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर समेली, जिला दंतेवाडा में दो युवा आदिवासी महिलाओं के साथ हिरासत में की गई शारीरिक और यौन हिंसा के विरोध में आयोजित कार्यक्रम के दौरान हिड़मे मरकाम को लगभग 4-5 सौ ग्रामीणों की मौजूदगी में घसीटते हुए ले जाया गया। उनका आरोप है कि चूंकि हिड़मे हमेशा ही सरकार और निजी कंपनियों की गलत नीतियों व कामकाज का विरोध करती रही हैं, इसलिए सरकार की शह पर पुलिस उन्हें डराने, धमकाने के कई तरीके अख्तियार कर रही है।

(संपादन : नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

मनीष भट्ट मनु

घुमक्कड़ पत्रकार के रूप में भोपाल निवासी मनीष भट्ट मनु हिंदी दैनिक ‘देशबंधु’ से लंबे समय तक संबद्ध रहे हैं। आदिवासी विषयों पर इनके आलेख व रपटें विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होते रहे हैं।

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