कोरोना के कारण ग्रामीण इलाकों में बड़ी संख्या में लोग मर रहे हैं। श्मशान घाटों पर जगह की कमी और अंत्येष्टि के लिए आवश्यक लकड़ियों की कीमत में बेतहाशा वृद्धि के कारण लोग मृतकों का शव गंगा नदी में बहा दे रहे हैं। गत 10 मई को बिहार के बक्सर जिले के चौसा में श्मशान घाट के किनारे एक साथ 40 लाशें मिलने के बाद कोहराम मच गया। बक्सर के जिलाधिकारी अमन समीर ने दूरभाष पर इसकी पुष्टि करते हुए बताया कि चौसा में लाशें मिली हैं। उन्होंने कहा कि ये लाशें सीमावर्ती राज्य (हालांकि उन्होंने उत्तर प्रदेश का नाम नहीं लिया) से बहकर आयी हैं। उन्होंने यह भी कहा कि बरामद लाशों का विधि-विधान के साथ जिला प्रशासन द्वारा अंत्येष्टि करा दी गई है।
वहीं स्थानीय लोगों के अनुसार 6 मई से ही लाशें नदी किनारे आ लगी थीं। लेकिन प्रशासन की नींद तब खुली जब लाशों की संख्या एक ही दिन में बढ़कर 40 से अधिक हो गईं। बिहार में नदियों को लेकर आवाज उठाने वाले सामाजिक कार्यकर्ता रणजीव ने बताया कि चौसा में गंगा नदी की धारा मुड़ती है जिस कारण वहां लाशें बहकर किनारे लगी होंगी। उन्होंने यह भी कहा कि लाशें उत्तर प्रदेश की भी हो सकती हैं और बिहार की भी। लेकिन दोनों राज्यों की सरकारें अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला छुड़ा रही हैं। उन्होंने यह भी कहा कि निश्चित तौर पर जिन लोगों की लाशें बरामद हुई हैं उनमें से अधिकांश दलित और पिछड़े वर्ग के लोग होंगे क्योंकि जिस तरह से लकड़ियों की कीमतें बढ़ी हैं, उसे देखते हुए गरीब अपने परिजनों की अंत्येष्टि सामान्य तरीके से नहीं कर सकते।
कोरोना के कारण अनाथ होने वाले बच्चों को पालेगी झारखंड सरकार
वे बच्चे, जिनके माता-पिता कोरोना महामारी में मर गए हैं, उनका पालन-पोषण झारखंड सरकार करेगी। इस आशय का आदेश मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन द्वारा राज्य के सभी जिलाधिकारियों को भेजा गया है। आदेश में कहा गया है कि यदि कोई परिवार ऐसे बच्चों का देखभाल करना चाहेगा तो राज्य सरकार उस परिवार को वित्तीय सहायता भी देगी। इस संबंध में चाइल्ड केयर सेंटरों को निर्देश दिया गया है। साथ ही हेल्पलाइन (टोल फ्री नंबर) 1098 के अलावा व्हाट्सअप नंबर (8789833434) जारी किया गया है।

गांवों में पंचायती राज निकायों के हवाले हो कोरोना टीकाकरण
उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और झारखंड सहित कई राज्यों के ग्रामीण इलाकों में कोरोना टीकाकरण की गति शहरी इलाकों की अपेक्षा बहुत धीमी है। इसकी एक वजह यह है कि अधिकांश सरकारें उन्हें प्राथमिकता दे रही हैं जो कोविन वेबपोर्टल का उपयोग कर अपना पंजीकरण करा रहे हैं। जबकि गांवों में रहने वाले लोग इस जटिल प्रक्रिया को करने में सक्षम नहीं हैं। वहीं टीकाकरण केंद्र रहवासों से दूर होने की वजह से वृद्धजनों के टीकाकरण की गति बहुत धीमी है। इस संबंध में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डा. हर्षवर्द्धन ने स्वीकार किया है कि अभी तक 45 वर्ष से अधिक उम्र के एक-तिहाई लोगों को भी दोनों खुराकें नहीं दी जा सकी हैं। वहीं इस संबंध में भाकपा माले के राष्ट्रीय महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य का कहना है कि पल्स पोलियो अभियान की तरह पंचायती राज निकायों को शामिल कर कोरोना टीकाकरण भी व्यापक स्तर पर होना चाहिए।
कोरोना से ठीक हो चुके मरीजों को सर्वाइवल गिल्ट
देश में कोरोना के कारण जहां एक ओर अब तक ढाई लाख से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है वहीं लोग ठीक भी हुए हैं। हालांकि ठीक होने वाले वे लोग जो अस्पतालों में भर्ती रहे, उन्हें मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसेस, बेंगलुरू की रिपोर्ट के हिसाब से अस्पतालों में ठीक होने वाला हर तीसरा व्यक्ति सर्वाइवल गिल्ट यानी “खुद बच गए” के अपराध बोध से ग्रसित हैं। इसकी एक वजह यह बतायी जा रही है कि अस्पतालों में मरीजों की मौतों ने लोगों को झकझोर कर रख दिया है। वहीं बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जिन्होंने अपनी आंखों के सामने लोगों को मरते देखा है। इसके अलावा सर्वाइवल गिल्ट की समस्या से वे लोग भी जूझ रहे हैं जो स्वयं कोरोना संक्रमित रहे और उनके किसी संक्रमित परिजन की मौत हो गई। उपरोक्त संस्थान की रिपोर्ट के अनुसार सर्वाइवल गिल्ट के कारण चिड़चिड़ापन, वेंटिलेटर से निकलने वाली बीप की ध्वनि महसूस करना, बार-बार अस्पताल की बातों का याद आना, एंग्जायटी, अनिद्रा आदि समस्याओं से लोग जूझ रहे हैं। संस्थान ने इस संबंध में कहा है कि अस्पताल से स्वस्थ होकर लौटने वाले लोगों का उनके परिजनों के द्वारा खास ख्याल रखा जाना चाहिए। उन्हें बोलने देना चाहिए। उन्हें समझाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। उन्हें कहा जाना चाहिए कि कोरोना से एकमात्र संक्रमित वे नहीं रहे हैं, बड़ी संख्या में लोग इससे संक्रमित हो रहे हैं और हर हाल में सकारात्मक माहौल बनाए रखा जाना चाहिए। मरीजों के सामने उन सभी स्वास्थ्यकर्मियों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करनी चाहिए जिनके अथक मेहनत से वे ठीक हुए हैं।
उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में किसानों पर कोरोना की दोहरी मार
उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल इलाकों में कोरोना के कारण छोटे किसानों पर दोहरी मार पड़ रही है। देवरिया, बहराइच आदि जिलों में बड़ी संख्या में छोटे किसानों ने खरबूजा की खेती की है। फसल अब पूरी तरह तैयार है लेकिन कोरोना के कारण खेत में बर्बाद हो रही है। इनमें अधिकांश बहुत छोटे किसान हैं जो ओबीसी जातियों से संबंध रखते हैं, और उन्होंने कर्ज लेकर पहले खेत लिया और अच्छी आमदनी की प्रत्याशा में खेती की। लेकिन अब बिक्री प्रभावित होने से वे हताश हो रहे हैं।
अंत में, लॉकडाउन के कारण रोजगार नहीं मिला तो दलित युवक ने पत्नी का गला घोंटा, फिर खुद दे दी जान
कोरोना के कारण ग्रामीण इलाकों में लोगों के समक्ष रोजी-रोजगार का संकट उत्पन्न हो गया है। गत 10 मई, 2021 को बिहार के रोहतास थाने के बंजारी गांव में रोजगार नहीं मिलने के कारण एक दलित युवक ने पहले अपनी पत्नी का गला घोंटकर उसे मार दिया तथा बाद में खुद फंदे से लटक गया। मृतक का नाम पूरण भुईयां (30 साल) और चिंता देवी (27 साल) है। स्थानीय पुलिस ने रोजगार के संकट के कारण खुदकुशी से इंकार किया है। पुलिस के मुताबिक मृतक दंपत्ति के तीन बच्चे हैं जो बगल के कमरे में सो रहे थे।
(संपादन : अनिल/अमरीश)
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