h n

बहस-तलब : क्या सिलेगर के आंदोलनरत आदिवासी नक्सली हैं?

आज भारत के आदिवासी इस जगह पहुंच गये हैं कि वे सरकार से कुछ नहीं मांग रहे। वे सिर्फ यह कह रहे हैं कि जो कुछ हमारे पास है, बस सरकार उसे हमसे ना छीने, हमारे ऊपर इतनी मेहरबानी कर दीजिये। लेकिन सरकार आदिवासियों की इतनी-सी बात भी मानने के लिए तैयार नहीं है। पढ़ें, हिमांशु कुमार का यह आलेख

छत्तीसगढ़ राज्य में एक जिला है– सुकमा। इसी सुकमा ज़िले का एक गांव है सिलेगर। इस गांव में रहने वालेलोग आदिवासी हैं। वैसे तो पूरा सुकमा जिला ही आदिवासियों का जिला है| क्योंकि यहां रहने वाले ज़्यादातर लोग आदिवासी हैं। इन्हें कोया आदिवासी कहा जाता है। यहां दोरला और हलबा आदिवासी भी रहते हैं। इसके अलावा तेलंगा, धाकड़, कलार, राउत और घसिया जातियां भी रहती हैं, लेकिन ये लोग संख्या में कोया लोगों से कम हैं।

पिछले छह महीने से यहां के कोया आदिवासी एक आंदोलन कर रहे हैं। आदिवासी यह आंदोलन छत्तीसगढ़ की कांग्रेसी सरकार तक अपनी मांगें पहुंचाने के लिए कर रहे हैं। जब यह आंदोलन शुरू हुआ था, तब सरकार ने आदिवासियों को डराकर आंदोलन खत्म करवाने के लिए उन पर गोलियां चलवाई। इसमें तीन पुरुष, एक महिला और एक गर्भस्थ शिशु मारा गया।

पूरा आर्टिकल यहां पढें : बहस-तलब : क्या सिलेगर के आंदोलनरत आदिवासी नक्सली हैं?

लेखक के बारे में

हिमांशु कुमार

हिमांशु कुमार प्रसिद्ध मानवाधिकार कार्यकर्ता है। वे लंबे समय तक छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के जल जंगल जमीन के मुद्दे पर काम करते रहे हैं। उनकी प्रकाशित कृतियों में आदिवासियों के मुद्दे पर लिखी गई पुस्तक ‘विकास आदिवासी और हिंसा’ शामिल है।

संबंधित आलेख

‘धर्मनिरपेक्ष’ व ‘समाजवादी’ शब्द सांप्रदायिक और सवर्णवादी एजेंडे के सबसे बड़े बाधक
1975 में आपातकाल के दौरान आरएसएस पर प्रतिबंध लगा था, और तब से वे आपातकाल को अपने राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करते...
हूल विद्रोह की कहानी, जिसकी मूल भावना को नहीं समझते आज के राजनेता
आज के आदिवासी नेता राजनीतिक लाभ के लिए ‘हूल दिवस’ पर सिदो-कान्हू की मूर्ति को माला पहनाते हैं और दुमका के भोगनाडीह में, जो...
दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों के ऊपर पेशाब : राजनीतिक शक्ति का कमजोर होना है वजह
तमाम पुनरुत्थानवादी प्रवृत्तियां सर चढ़कर बोल रही हैं। शक्ति के विकेंद्रीकरण की ज़गह शक्ति के केंद्रीकरण की प्रवृत्ति बढ़ रही है। ऐसे दौर में...
नीतीश की प्राथमिकता में नहीं और मोदी चाहते नहीं हैं सामाजिक न्याय : अली अनवर
जातिगत जनगणना का सवाल ऐसा सवाल है कि आरएसएस का सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति का जो गुब्बारा है, उसमें सुराख हो जाएगा, उसकी हवा...
मनुस्मृति पढ़ाना ही है तो ‘गुलामगिरी’ और ‘जाति का विनाश’ भी पढ़ाइए : लक्ष्मण यादव
अभी यह स्थिति हो गई है कि भाजपा आज भले चुनाव हार जाए, लेकिन आरएसएस ने जिस तरह से विश्वविद्यालयों को अपने कैडर से...