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यूपी का गोहरी हत्याकांड : कटघरे में पुलिस, सवर्ण आरोपी को बचाने का आरोप

गोहरी हत्याकांड मात्र घटना नहीं, पुलिस, प्रशासन, सत्ता, मीडिया के सवर्ण चरित्र का एक और नमूना है। अब, जबकि कथित मुख्य आरोपी पवन के डीएनए घटनास्थल पर प्राप्त डीएनए से नहीं मिले और उसे निर्दोष बता कर छोड़ना पड़ा, तब किसी अखबार ने यह सवाल नहीं उठाया कि ठाकुर परिवार के डीएनए की जांच का क्या नमूना निकला? आखिर ठाकुर परिवार के लोग जेल कब भेजे जाएंगे, कौन है जो उन्हें बचा रहा है? पढ़ें, सीमा आजाद की जमीनी पड़ताल

गोहरी हत्याकांड याद है आपको? इलाहाबाद शहर से सटे इस गांव से 25 नवंबर 2021 को बलात्कार और पूरे परिवार की हत्या की ऐसी खबर आई थी, जिसने रोंगटे खड़े कर दिए थे। घटना के बारे में पढ़कर सितंबर, 2006 में महाराष्ट्र के खैरलांजी घटना की याद ताज़ा हो गई, जिसमे भैया लाल भोटमांगे के पूरे परिवार की वीभत्स तरीके से हत्या कर दी गई थी। बिटिया प्रियंका और पत्नी सुरेखा भोटमांगे के साथ बर्बरता पूर्वक बलात्कार किया गया था। लेकिन अफसोस कि खैरलांजी की घटना के बाद जिस तरह से पूरा महाराष्ट्र दलित उत्पीड़न की इस घटना के खिलाफ उठ खड़ा हुआ था, वैसा उत्तर प्रदेश में नहीं हो सका। 

हालांकि इलाहाबाद के पीयूसीएल जैसे कुछ मानवाधिकार संगठनों ने मामले की जांच कर शहर में प्रदर्शन किया, कांग्रेस की प्रियंका गांधी सहित कई बड़े नेताओं के आने से मामला लोगों की नज़र में आ गया, और इस कारण घटना में जातिवादी क्रूरता-उत्पीड़न की बात सामने आ गई, वरना इसे पारिवारिक मामला बता कर रफा-दफा कर ही दिया जाता। इसके बावजूद भी इलाहाबाद की पुलिस ने गांव के आरोपी ‘ठाकुर’ परिवार को बचाने में पूरी जान लगा दी है। घर के लोगों ने ‘कान्हा ठाकुर’ के इस परिवार के 11 लोगों के खिलाफ नामजद रिपोर्ट लिखाई, पीयूसीएल ने अपनी जांच में भी इसी परिवार पर हत्या संदेह जाहिर किया, लेकिन पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार करने की बजाय गांव के ही एक दलित लड़के पवन कुमार सरोज को मृतक लड़की का प्रेमी बताते हुए गिरफ्तार किया। 

जब लोगों ने सवाल उठाया कि चौबीस साल का अकेला लड़का चार लोगों की ऐसी वीभत्स हत्या कैसे कर सकता है, तो पुलिस ने इसी लड़के के दो और रिश्तेदारों को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया। उसके बाद ज्यादातर लोग इस मामले को भूल गए।

कटघरे में यूपी पुलिस

हाल ही में 3 फरवरी 2022 को इलाहाबाद के अखबारों में यह सूचना आईं कि गोहरी हत्याकांड में पुलिस द्वारा गिरफ्तार पवन सरोज और दो अन्य लोगों के डीएनए घटनास्थल के सबूतों से न मिलने के कारण उन्हें छोड़ना पड़ा। पुलिस को उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं मिल सका। यह इस मामले का ऐसा पड़ाव है, जहां फिर से यह मांग उठानी चाहिए कि आखिर फूलचंद्र के परिवार की हत्या और पत्नी व बेटी का बलात्कार किसने किया? एफआईआर में नामजद कान्हा ठाकुर का परिवार आखिर जेल क्यों नहीं भेजा गया? क्या सिर्फ इसलिए कि उनके नाम के पीछे ‘ठाकुर’ लगा है और मारा गया परिवार दलित था? 

घटनास्थल पर मौजूद पुलिस अधिकारी

अब तो खुद पुलिस भी कटघरे में है, वो क्यों और किसके कहने पर इस ठाकुर परिवार को बचा रही है? मामले को ठंडा करने के लिए पुलिस ने तीन निर्दोष लोगों को जेल भेज दिया। पुलिस इस बात की भी दोषी है, कि उसने बलात्कार पीड़ित मृतक लड़की का मरणोपरांत चरित्र हनन किया। वह इस बात की दोषी है कि उसने सब कुछ जानते हुए एक गरीब निर्दोष लड़के को बलि का बकरा बना कर सवा दो महीने तक जेल में रखा। उसे यातना दी, जिसके कारण 24 साल के इस लड़के का पूरा जीवन प्रभावित होगा। उसे इसका क्या मुआवजा मिला? क्या एक बार फिर इन मुद्दों को उठाने की जरुरत नहीं है। तब और भी, जबकि हत्यारे अभी तक पकड़े नहीं गए हैं।

आइए आपको पूरी घटना एक बार फिर से याद दिला देते हैं। 25 नवंबर, 2021 को अख़बारों में यह सूचना आई कि इलाहाबाद के फाफामऊ क्षेत्र के गोहरी गांव में एक दलित परिवार के चार सदस्यों की कुल्हाड़ी से काटकर हत्या कर दी गयी। परिवार की 17 वर्षीय नाबालिग लड़की सपना के साथ हत्या से पहले बलात्कार की आशंका भी जताई गई। पुलिस ने हत्या का कारण व्यक्तिगत रंजिश बताया, जबकि मृतक परिवार के घर वालों का आरोप था कि यह हत्या गांव के सवर्ण (ठाकुर) परिवार द्वारा जातीय दबंगई में की गई है। उत्तर प्रदेश का यह क्षेत्र पहले भी जातीय उत्पीड़न की घटनाओं के लिए समाचारों में आता रहा है। अतः विभिन्न राजनीतिक दल भी घटना स्थल पर अगले दिन से ही पहुंचने लगे थे। सभी का यह कहना था कि यह पड़ोस के ठाकुर परिवार की जातीय दबंगई का मामला है। उनका आरोप था कि यह सरासर जातीय उत्पीड़न की घटना है। मृतक फूलचंद चार भाई थे। जो आस पास ही रहते थे, वे शुरू से ही घटना के लिए कान्हा ठाकुर के परिवार पर आरोप लगा रहे थे। इनमें सबसे छोटे भाई किशन चन्द्र, जो कि एसएसबी में सिपाही है, ने इसी परिवार के 11 लोगों के खिलाफ नामजद एफआईआर भी दर्ज कराई, उन्होंने हर जाने वाले राजनीतिक लोगों, पत्रकारों और जांच टीम से कान्हा ठाकुर के परिवार की दबंगई का पुराना किस्सा भी खुल कर बताया, लेकिन पुलिस प्रशासन और सरकार उन्हें बचाने में लगी रही, गोदी मीडिया इनकी ही भाषा बोलती रही। पहले तो इन सबने मिलकर लड़की के प्रेम संबंध की कहानी प्रचारित की, फिर एफआईआर लिखाने वाले फूलचंद के परिवार के लोगों पर भी शक जताना शुरू कर दिया, जांच के लिए उनके डीएनए नमूने भी लिए गए। 

दूसरी ओर असली जांच मे पुलिस इतनी ज्यादा लापरवाह रही, कि घटना स्थल पर कई दिनों तक बलात्कार और हत्या के सबूत बिखरे रहे, लेकिन पुलिस ने उन्हें सील करने की कोई ज़रूरत नहीं समझी, जबकि वहां बड़े पैमाने पर लोगों का आना जाना लगा रहा। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में लड़की और मां दोनों के साथ गैंग रेप किये जाने की भी पुष्टि हो गई। पीयूसीएल इलाहाबाद की रिपोर्ट के अनुसार घर के 10 वर्षीय मूक बाधिर बच्चे का लिंग भी काट लिया गया था, लड़की जिस सुतली की चारपाई पर मिली, उसके नीचे की मिट्टी की ज़मीन खून से सनी हुई थी। घटना स्थल का दृश्य और विवरण रोंगटे खड़े कर देने वाला था और खैरलांजी की घटना की याद ताज़ा करने वाला था, शायद इसीलिए इसे दूसरा मोड़ देने की सरकार की ओर से पूरी कोशिश की गई।

ठाकुर परिवार की दबंगई पुरानी

इलाहाबाद जिले के सोरांव थाने के अंतर्गत आनेवाले गोहरी गांव की आबादी करीब 16 हजार है। इस गांव में दलितों के अलावा मुख्यतौर पर पटेल, ठाकुर, कुम्हार, भुजवा, मौर्य जाति के लोग रहते हैं। जिसमें पासी जाति के मात्र दो परिवार हैं। एक परिवार के मृतक फूलचंद व उनके अन्य चार भाई दीपचंद, लालचन्द, भारत और किशनचंद हैं। जिनका दो जगह घर है। एक घर सड़क के दायीं तरफ कुछ अंदर है जहां लालचन्द, भारत और किशनचन्द का परिवार रहता है। सबसे बड़े भाई दीपचंद अपने ससुराल में रहते हैं। फूलचंद का दूसरा घर सड़क के बाईं तरफ है, जो कि ग्राम समाज से पट्टे में कोटे पर कोई 12-13 साल पहले मिली है। यहां फूलचंद अपने पत्नी व दो बच्चों के साथ रहते थे। फूलचंद का बेटा पैर, जुबान और कान से विकलांग था। ठाकुरों के गुस्से की वजह ठीक सड़क किनारे बसा यह कच्चा घर भी है, जो उनकी आंख में किरकिरी की तरह चुभता रहा है। दूसरा ये परिवार ठाकुरों की ज़मीन पर पासी होकर भी बेगार नहीं करता, यह बात उन्हें बर्दाश्त नहीं। बेशक झगडे दूसरी छोटी बातों पर होते रहे हैं, लेकिन मूल वजह यही रही। 

2 सितंबर 2019 को कान्हा ठाकुर के जानवर फूलचंद और उनके भाईयों के सयुंक्त खेत में घुस आया, और फसल का काफी नुकसान किया। फूलचंद के परिवार का कहना है वे अक्सर खेत को अपने जानवरों से चरा दिया करते थे। उस दिन फूलचन्द की मां ने कान्हा ठाकुर के घर जाकर शिकायत की। शिकायत के जवाब में कान्हा ठाकुर 5 सितंबर 2019 की रात 8 बजे के आस पास अपने दल बल के साथ लाठी, डंडे लेकर फूलचंद के भाईयों के घर पर आ धमका और मार-पीट शुरू कर दी। इस घटना में फूलचंद के तीसरे भाई लालचन्द का सिर फट गया था। मारपीट व जातिसूचक गाली-गलौच करते हुए कान्हा ठाकुर और उनके साथ के लोग लगातार यह धमकी दे रहे थे कि “तुम पासियों की हिम्मत कैसे हुई शिकायत करने की, दुबारा कुछ बोले तो तुम्हारे पूरे घर को तबाह कर देंगे।” उसी रात फूलचंद व उनके भाईयों ने घटना की सूचना अपने थाने पर दी। लेकिन कोई कार्यवाई नहीं की गई, उल्टे अगले दिन फिर से कान्हा ठाकुर ने कई दबंगों के साथ घर पर हमला किया। घर के लोग किसी तरह छिप कर अपनी जान बचा पाये। अगले दिन इसकी सूचना फिर से थाने को दी गयी, दबाव डाला गया, तब जाकर खून बहता सिर देखकर एससी-एसटी एक्ट के साथ एफआईआर लिखी गई। फिर भी किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई। 

इस बार कान्हा ठाकुर के परिवार की बहू बबली सिंह ने घर के दरवाजे पर आकर धमकी दी थी, कि “भले हमारी जमीन बिक जाए, लेकिन तुम लोगो के परिवार को तबाह करके ही रहेंगे।” यह महत्त्वपूर्ण तथ्य है कि फूलचंद की हत्या के समय नियुक्त गोहरी थाने के हेड कॉन्स्टेबल सुशील सिंह बबली सिंह के रिश्तेदार (समधी) भी हैं। उत्पीड़न की दास्तां यहीं नहीं रुकती। फूलचंद के छोटे भाई किशनचंद की पत्नी पूजा ने पीयूसीएल की जांच टीम को बताया था कि पुलिस अधिकारी सुशील कुमार सिंह, सुरेन्द्र सिंह तथा थाना प्रभारी रामकेवल पटेल आये दिन समझौता करने के लिए दबाव बनाते रहते थे। 2020 में होली के करीब विवेचना करने के बहाने कुछ पुलिस अधिकारी उनके घर पर आये और घर की सभी औरतों का नाम लिख कर ले गए। उसके कुछ दिनों बाद सभी औरतों को जबरन थाने ले जाकर बन्द कर दिया और बोले कि “तुम लोगों पर त्यौहार के समय में शांतिभंग करने का आरोप है। अब तुम लोगों को जमानत लेकर ही बाहर जाना होगा।” सभी महिलाएं जमानत पर बाहर आईं। उसके बाद भी धमकियां मिलती रहीं। जिसकी सूचना थाने पर दी जाती थी, लेकिन कोई कार्यवाई नहीं होती थी।

सितम्बर 2021 को एक बार फूलचन्द की भाभी की और बेटी सपना अपने घर के आगे बैठी थी, तब कान्हा ठाकुर के घर के लोगों ने उनके साथ छेड़खानी की, घर का दरवाजा तोड़ कर घुस गए और मार-पीट की। इसकी भी सूचना थाने पर दी गयी। लेकिन पुलिस वालों ने फिर से एफआईआर नहीं लिखी। बार-बार जाकर दबाव डालने पर 7 दिन बाद प्राथमिकी तो लिख ली गयी लेकिन ठाकुर परिवार द्वारा क्रॉस एफआईआर यानी समानांतर प्राथमिकी भी लिखवा दी गयी, जिसमें फूलचंद के भाईयों द्वारा बबली सिंह के साथ छेड़खानी की रिपोर्ट लिखवाई गई। और इतने सारे घटनाक्रमों के बाद 22 नवंबर 2021 को फूलचंद के पूरे परिवार की कुल्हाड़ी से काट कर हत्या कर दी गई, जिसके बारे में लोगों को 24 नवंबर को पता चला।

जाहिर तौर पर हत्या की पूरी पृष्ठभूमि जानने के बाद किसी का भी पहला शक कान्हा ठाकुर परिवार पर ही जाएगा, सिवाय सवर्ण मानसिकता वाली पुलिस के। 

पुलिस का दोहरा रवैया

गौरतलब यह भी है कि इस पूरी पृष्ठभूमि में दलित परिवार कभी भी कान्हा ठाकुर की दबंगई के आगे झुका नहीं, वह कानूनी तरीके की लड़ाई में डटा रहा, उनकी इतनी बर्बर हत्या की यही एक वजह नज़र आती है। उनके खिलाफ नामजद रिपोर्ट दर्ज होने के बावजूद पुलिस ने उन्हें कभी गिरफ्तार नहीं किया। हत्या के बाद जब दबाव बना तो 8 लोगों की गिरफ्तारी हुई, लेकिन उन्हें जल्द ही छोड़ दिया गया। इलाहाबाद नागरिक समाज के एक दल ने जब ठाकुर परिवार की गिरफ्तारी से संबंधित सवाल पूछा तो एसएसपी का जवाब था कि “ऐसे कैसे गिरफ्तार कर लेंगे, पहले जांच होगी।” 

सवाल जो शेष हैं

सवाल यह है कि इस विधान को पवन सरोज पर क्यों नहीं लागू किया गया? इसलिए कि वह दलित है और असली मुजरिम सवर्ण। पवन की गिरफ्तारी के लिए पुलिस के पास मात्र दो कथित सबूत थे। एक यह कि उसने सपना को व्हाट्सअप संदेश में “आय लव यू” और सपना ने उसे “आय हेट यू” लिखा था। दूसरा यह कि पवन के घर से खून लगी एक टी-शर्ट मिली। पुलिस का कहना है कि पवन ने हत्या वाले दिन वही टी-शर्ट पहनी थी, जबकि पवन ने बताया कि वही पहनकर पोल्ट्री फार्म पर काम करता था, और लगा हुआ खून मुर्गे का है। लेकिन पुलिस ने उसकी एक नहीं सुनी। अखबार वालों को भी इसमें प्रेम का एंगल मिल गया, तो वे उससे ही चिपक गए। 

दरअसल गोहरी हत्याकांड मात्र घटना नहीं पुलिस, प्रशासन, सत्ता, मीडिया के सवर्ण चरित्र का एक और नमूना है। और अब, जबकि पवन के डीएनए घटनास्थल पर प्राप्त डीएनए से नहीं मिले और उसे निर्दोष बता कर छोड़ना पड़ा, तब किसी अखबार ने ये सवाल नहीं उठाया कि ठाकुर परिवार के डीएनए की जांच का क्या नमूना निकला? आखिर ठाकुर परिवार के लोग जेल कब भेजे जाएंगे, कौन है जो उन्हें बचा रहा है, आखिर पुलिस की ‘प्रेम थियोरी’ हर बार ध्वस्त क्यों हो जाती है? क्या इसलिए नहीं कि खास तौर पर महिला की हत्या प्रेम के कारण नहीं, मनुवादी-जातिवादी पितृसत्तात्मक व्यवस्था के कारण होती है? 

बहरहाल, खैरलांजी से लेकर हाथरस, हाथरस से लेकर गोहरी तक की हर ऐसी घटना ने यही साबित किया है। सवाल यह है कि पुलिस असली मुजरिमों को कब पकड़ेगी? और सवाल यह भी है कि क्या पुलिस पर ठाकुर परिवार को बचाने साथ-साथ दलित पवन कुमार और उसके दो रिश्तेदारों को उत्पीड़ित करने का मुकदमा भी दर्ज होगा? 

(संपादन : नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

सीमा आजाद

मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल से सम्बद्ध लेखिका सीमा आजाद जानी-मानी मानवाधिकार कार्यकता हैं। उनकी प्रकाशित कृतियों में ‘ज़िंदांनामा’, ‘चांद तारों के बगैर एक दुनिया’ (जेल डायरी), ‘सरोगेट कन्ट्री’ (कहानी संग्रह), ‘औरत का सफर, जेल से जेल तक’ (कहानी संग्रह) शामिल हैं। संपति द्वैमासिक पत्रिका ‘दस्तक’ की संपादक हैं।

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