बिहार में ‘नीतीश निर्भर’ भाजपा बड़ी संजीदगी से आत्मनिर्भर भाजपा की रणनीति पर काम कर रही थी। वह लगातार अपने आधार विस्तार के लिए नये-नये प्रयोग कर रही थी। कई बार भाजपा ने नीतीश कुमार के राजनीतिक मंसूबों पर पानी फेरने का काम भी किया। जाति जनगणना, शराबबंदी समेत कई मुद्दों पर भाजपा का स्टैंड नीतीश कुमार के खिलाफ रहा है। भाजपा का एक खेमा मीडिया के माध्यम से नीतीश कुमार को ‘डिमोर्लाइज’ करने के लिए राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति बनाने की कवायद भी खूब चला रहा है।
इन राजनीतिक परिस्थितियों के बीच नीतीश कुमार ने 22 अप्रैल, 2022 को राजद की ओर से आयोजित इफ्तार में शामिल होकर नया बखेड़ा शुरू कर दिया है। कयास यह भी लगाया जाने लगा है कि भाजपा को छोड़कर नीतीश कुमार फिर पलटी मार सकते हैं और राजद के साथ मिलकर सरकार बना सकते हैं। राजद की इफ्तार पार्टी में शामिल होकर नीतीश ने भाजपा को यह संदेश दे दिया है कि ज्यादा तीन-पांच किये तो विकल्प की कमी नहीं है। भाई और भतीजों से भरा-पूरा ‘परिवार’ हमारा भी है। इधर मुजफ्फरपुर जिले के बोचहां विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव में भाजपा की जबरदस्त पराजय के बाद एनडीए में समन्वय और विश्वास पर सवाल उठने लगे हैं। भाजपा के वरिष्ठ नेता और सांसद सुशील मोदी ने कहा कि भाजपा और जदयू के बीच तालमेल के अभाव में एमएलसी चुनाव और उपचुनाव में गठबंधन को पराजय झेलनी पड़ी है। अतिपिछड़ों और सवर्ण वोटों का खिसकना अप्रत्याशित है।
दरअसल, भाजपा लगातार नीतीश कुमार के आधार वोटों में सेंधमारी का अभियान चला रही है। अतिपिछड़ा और कुशवाहा मतदाता इसके निशाने पर हैं। इसके लिए भाजपा अपने तरीके से काम कर रही है। मुकेश सहनी की पार्टी विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) विधायक दल के भाजपा में विलय के बाद विधान सभा में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बन गयी है। यह सब भाजपा की सहयोगी पार्टी जदयू को नागवार गुजर रहा है। इस बीच बोचहां विधान सभा उपचुनाव में भाजपा की जबरदस्त पराजय के लिए भाजपा नीतीश कुमार को भी जिम्मेवार मान रही है। सुशील मोदी जब अतिपिछड़ों के खिसकने की बात कह रहे थे तो उनका कहना स्पष्ट था कि नीतीश कुमार अपने आधार वोट को नहीं समेट पा रहे हैं और अतिपिछड़ा राजद की ओर जा रहा है।
बोचहां की पराजय ने भाजपा को अंदर तक हिला दिया है। उसके एक-एक मंत्री, विधायक और सांसद गांव-गांव में कैंप कर रहे थे। इसके बावजूद भाजपा को 35 हजार के बड़े मतों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा। इसकी एक बड़ी वजह जदयू और भाजपा के बीच आपसी अविश्वास भी रहा है। इसी बीच तेजस्वी यादव की ओर से आयोजित इफ्तार पार्टी में मुख्यमंत्री नीतीश कुमर का शामिल होना भाजपा की बेचैनी बढ़ा दी है। हालांकि इस इफ्तार पार्टी में विधान परिषद के कार्यकारी सभापति अवधेश नारायण सिंह, मंत्री शाहनवाज हुसैन और सांसद चिराग पासवान भी शामिल हुए थे। लेकिन सवाल नीतीश कुमार के शामिल होने पर उठाये जा रहे हैं।

नीतीश कुमार करीब 5 साल बाद राबड़ी आवास पर गये थे। इससे पहले 2017 में जनवरी महीने में मकर संक्रांत के भोज में शामिल हुए थे। इसके बाद जुलाई 2017 में नीतीश कुमार ने खेमा बदलकर भाजपा के साथ सरकार बना ली थी। इस घटना के बाद नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के राजनीतिक रिश्तों में तल्खी बनी रही थी। विधान सभा से सड़क तक हर जगह तेजस्वी यादव नीतीश कुमार पर हमलावर बने रहे थे। कई बार तेजस्वी के हमलों से नीतीश असहज नजर आये। उधर भाजपा भी शराबबंदी, जाति जनगणना जैसी मुद्दों पर नीतीश कुमार के स्वर में स्वर मिलाने से परहेज करती रही है। जहरीली शराब से हुई मौत पर भाजपा ने सरकार के खिलाफ ही मोर्चा खोल रखा था। इसी बीच बोचहां की पराजय से भाजपा सकते में आ गयी। उसे लगता है कि जदयू के असहयोग के कारण ही भाजपा को शर्मनाक पराजय का सामना करना पड़ा।
इधर इफ्तार पार्टी में नीतीश कुमार को आमंत्रित कर तेजस्वी यादव ने रिश्तों पर पड़े मैल को साफ करने की कोशिश की थी और मुख्यमंत्री ने शामिल होकर तेजस्वी के प्रयास को अपनी सहमति दे दी है। इसके बाद से राजनीतिक गलियारे में यह चर्चा शुरू हो गयी कि क्या बिहार में सरकार बदल रही है।
इन कयासबाजियों को छोड़ दें तो इफ्तार पार्टी में शामिल होकर मुख्यमंत्री भाजपा को संदेश देने में सफल रहे कि अब वह ज्यादा दबाव बर्दाश्त नहीं करेंगे। कदम-कदम पर नीतिगत मामलों में सरकार का विरोध का खामियाजा भाजपा को भुगतना पड़ सकता है।
कुल मिलाकर भाजपा, जदयू और राजद के त्रिकोणीय रिश्ते में नयी संभावना गढ़ने के प्रयास तेज हो गये हैं। इसका परिणाम क्या होगा, अभी तय नहीं है। (संपादन : नवल/अनिल)
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