h n

मरंग बुरू की धरती पर गैर-आदिवासियों का कब्जा

मरंग का अर्थ होता है सबसे पुराना और बुरू का अर्थ पहाड़ होता है। यह आदिवासियों के लिए पवित्र पुरखे के समान है। मान्यता है कि इसी के दम पर आस-पास रहने वाले आदिवासी जीवनयापन कर रहे हैं। पारसनाथ पहाड़ी और उसके आसपास रहने वाले आदिवासी पारसनाथ को मरंग बुरू के नाम से ही जानते हैं। पढ़ें, मोनिका मरांडी का यात्रा संस्मरण

यात्रा संस्मरण 

इस बार झारखंड जाने का प्लान थोड़ा लंबा बना था। मैं तय करके गई थी कि झारखंड के हर जिले में कदम रखूंगी। मैंने शुरुआत की गिरिडीह जिले से। गिरिडीह में जैन समुदाय सबसे धार्मिक स्थल पारसनाथ मंदिर है। इसका इतिहास 1775 साल पुराना है। जैन के 23वें तीर्थंकर पारसनाथ ने यहां समाधि ली थी, जिसके बाद इस जगह का नाम पारसनाथ पड़ा। पारसनाथ में 24 तीर्थंकरों में से 20 तीर्थंकरों की समाधि है।

पारसनाथ की पहाड़ियां समुद्र तल से लगभग 4500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। कई मंदिर तो यहां 2000 साल से भी ज्यादा पुराने बताए जाते हैं। आप सभी को जानकर हैरानी होगी कि यहां के गांवों में पारसनाथ की पहाड़ियों को कोई नहीं जानता। अगर आप यहां आसपास रहने वाले किसी आदिवासी से पूछेंगे कि पारसनाथ कहां है? तो वो 23वें तीर्थंकर की समाधि तक ले जाएंगे, परंतु पूरे पहाड़ को पारसनाथ नहीं कहेंगे। पारसनाथ का नाम तो यहां रहने वाले आदिवासियों के इतिहास में है ही नहीं, उनके यहां इसे मरंग बुरू कहा जाता है।

पूरा आर्टिकल यहां पढें : मरंग बुरू की धरती पर गैर-आदिवासियों का कब्जा

लेखक के बारे में

मोनिका मरांडी

आईआईएमसी की छात्र रहीं मोनिका मरांडी युवा पत्रकार तथा यात्रा आधारित वेब पोर्टल "चलत मुसाफिर डॉट कॉम" व आदिवासी विषयों पर आधारित वेब पोर्टल "सखुआ डॉट कॉम" की संस्थापक संपादक हैं।

संबंधित आलेख

‘धर्मनिरपेक्ष’ व ‘समाजवादी’ शब्द सांप्रदायिक और सवर्णवादी एजेंडे के सबसे बड़े बाधक
1975 में आपातकाल के दौरान आरएसएस पर प्रतिबंध लगा था, और तब से वे आपातकाल को अपने राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करते...
हूल विद्रोह की कहानी, जिसकी मूल भावना को नहीं समझते आज के राजनेता
आज के आदिवासी नेता राजनीतिक लाभ के लिए ‘हूल दिवस’ पर सिदो-कान्हू की मूर्ति को माला पहनाते हैं और दुमका के भोगनाडीह में, जो...
दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों के ऊपर पेशाब : राजनीतिक शक्ति का कमजोर होना है वजह
तमाम पुनरुत्थानवादी प्रवृत्तियां सर चढ़कर बोल रही हैं। शक्ति के विकेंद्रीकरण की ज़गह शक्ति के केंद्रीकरण की प्रवृत्ति बढ़ रही है। ऐसे दौर में...
नीतीश की प्राथमिकता में नहीं और मोदी चाहते नहीं हैं सामाजिक न्याय : अली अनवर
जातिगत जनगणना का सवाल ऐसा सवाल है कि आरएसएस का सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति का जो गुब्बारा है, उसमें सुराख हो जाएगा, उसकी हवा...
मनुस्मृति पढ़ाना ही है तो ‘गुलामगिरी’ और ‘जाति का विनाश’ भी पढ़ाइए : लक्ष्मण यादव
अभी यह स्थिति हो गई है कि भाजपा आज भले चुनाव हार जाए, लेकिन आरएसएस ने जिस तरह से विश्वविद्यालयों को अपने कैडर से...