h n

साक्षात्कार : ‘हम विमुक्त, घुमंतू व अर्द्ध घुमंतू जनजातियों को मिले एसटी का दर्जा या दस फीसदी आरक्षण’

“मैंने उन्हें रेनके कमीशन की रिपोर्ट दी और कहा कि देखिए यह रिपोर्ट क्या कहती है। आप उन जातियों के लिए काम कर रहे हैं, जो आपके साथ आना ही नहीं चाहती है। लेकिन यह जो 666 जातियों में बंटी हमारे समुदाय जिसकी आबादी 20 करोड़ है, उसको नजरअंदाज कर रहे हो। इनके लिए काम करो।” पढ़ें, सामाजिक कार्यकर्ता सुरेश महेला से विशेष साक्षात्कार

[बीते 31 अगस्त, 2022 को कांग्रेस की ओर से विमुक्त, घुमंतू और अर्द्ध घुमंतू जनजातियों के लिए दस प्रतिशत आरक्षण की मांग हेतु एक श्वेत पत्र जारी किया गया। इस श्वेत पत्र और इन समुदायों के सवालों को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता सुरेश माहला से विशेष बातचीत]

कृपया अपने बारे में बताएं।

मेरा नाम सुरेश माहला है। वर्तमान में दिल्ली में निवास करता हूं। सुप्रीम डेमाक्रेटिक अलायंस ऑफ इंडिया हमारा संगठन है। इस संगठन में बड़े पैमाने पर विमुक्त, घुमंतू और अर्द्ध घुमंतू जातियों व जनजातियों के बुद्धिजीवी, पढ़े-लिखे बुद्धिमान लोग जुड़े हैं। मूल रूप से यह जो समाज है, वह पूर्व में आपराधिक जातियों की सूची में शामिल था। यह देश 1947 में आजाद हुआ। तो इसके साथ ही इन जातियों के लोगों को भी आजादी मिल जानी चाहिए थी। लेकिन इनको स्वतंत्रता नहीं मिल पाई, क्योंकि इनके उपर क्रिमिनल ट्राइब एक्ट लगा था। यह एक्ट कहता था कि इन जातियों में जो कोई भी पैदा होगा, वह क्रिमिनल होगा। 

आप किस समुदाय से संबंध रखते हैं?

मैं साहसी समुदाय से संबंध रखता हूं, यह विमुक्त जातियों में शामिल है। मूलत: मैं उत्तर प्रदेश के मेरठ के मवाना से हूं। 

कांग्रेस द्वारा जारी श्वेत पत्र में आपकी क्या भूमिका रही है? और क्या पहले भी 31 अगस्त को राष्ट्रीय स्वाभिमान मुक्ति दिवस के रूप में मनाया गया?

देखिए क्या है कि 31 अगस्त, 1952 को तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा क्रिमिनल ट्राइब एक्ट से हमलोगों को मुक्त किया गया था। तो इस दिन की स्मृति हमारे समुदायों के लोग स्वाभिमान दिवस के रूप में पूरे देश में जिला स्तर और प्रखंड स्तर पर मनाते रहे हैं। तो मेरे संपर्क में कांग्रेस के कुछ लोग थे। मैंने उनसे आग्रह किया कि कांग्रेस जो टाइटेनिक जहाज है, जो कमजोर हुआ है तो उसकी वजह यह है कि आपने, 2005 में कमीशन बना और उसके पहले काका कालेलकर कमीशन बना लोकुर कमेटी बनी, अयंगर कमीशन बना तब भी कांग्रेस की सरकार थी। तब चलो यह मान लिया कि उस समय हमारा समाज अनपढ़ था, पढ़ा-लिखा नहीं था। लेकिन अब पढ़-लिख चुका है। वर्ष 2005 में कांग्रेस ने बालाकृष्ण रेनके की अध्यक्षता में एक कमीशन का गठन किया, जिसने अपनी रिपोर्ट 2008 में सरकार को सौंप दिया। और फिर कांग्रेस उसे लागू नहीं किया। तो कई धरने-प्रदर्शन हुए, कई चेतावनियां दी गईं। 7 फरवरी 2014 को हमने संसद घेराव का कार्यक्रम भी किया था। फिर 19 से 21 फरवरी, 2014 तक मैं भूख हड़ताल पर भी बैठा था। 26-27 फरवरी को उनकी सरकार का कार्यकाल खत्म हो रहा था तो हमने चेतावनी दी थी कि आप रेनके कमीशन की अनुशंसाओं को लागू कर दो। यह 15 करोड़ लोगों का सवाल है। अब तो खैर इस आबादी में भी वृद्धि हुई है। लेकिन कांग्रेस के लोगों ने अनदेखा किया। जब उन्होंने अनदेखा किया तो हमने अपने समाज को बताया कि भाई, कांग्रेस ने हमें अनदेखा किया। उसके बाद उन्हें धरती पर लाने का प्रयास किया गया। विमुक्त जातियों, घुमंतू और अर्द्ध घुमंतू जातियों के लोगों ने कांग्रेस का बहिष्कार कर दिया। इसी बीच हाल ही में यूपी में विधानसभा चुनाव के दौरान मेरी मुलाकात राजेश लिलोठिया जी से हुई। तो मैंने उनसे कहा कि इतनी बड़ी आबादी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। फिर उन्होंने के. राजू से मेरी मुलाकात करवायी। लिलोठिया जी को कांग्रेस ने विमुक्त जातियां, घुमंतू और अर्द्ध घुमंतू जनजातियों के प्रकोष्ठ का राष्ट्रीय अध्याक्ष बना दिया। मैंने उन्हें रेनके कमीशन की रिपोर्ट दी और कहा कि देखिए यह रिपोर्ट क्या कहती है। आप उन जातियों के लिए काम कर रहे हैं, जो आपके साथ आना ही नहीं चाहती है। लेकिन यह जो 666 जातियों में बंटी हमारे समुदाय जिसकी आबादी 20 करोड़ है, उसको नजरअंदाज कर रहे हो। इनके लिए काम करो। तो उनको यह बात समझ में आई। फिर उन्होंने यह काम किया है। फिर इसका परिणाम यह हुआ पंजााब के फाजिल्लका जिले के बल्लुआना विधानसभा क्षेत्र से  बाजीगर  समुदाय की राजिंदर कौर राजपुरा को विधायकी का एक टिकट दिया। फिर इसके बाद राजस्थान सरकार ने हमारे समुदायों के लोगों के लिए सौ करोड़ रुपए दिये। इसके अलावा एक घुमंतू-अर्द्धघुमंतू जनजाति कल्याण बोर्ड था जो कि सक्रिय नहीं थी, उसे सक्रिय बनाया। तो कहीं न कहीं उन्होंने हमें इंपोर्टेंश दी। फिर हमने उनको रास्ता बताया। तब जाकर उन्होंने यह श्वेत पत्र जारी किया है। दरअसल भाजपा का क्या है कि वह भी वही कर रही है जो पूर्व में कांग्रेस ने किया। अभी जो कांग्रेस हमारी समुदायों की बात कर रही है तो वह इसलिए कि उन्हें हमारे वोटों की जरूरत है। भाजपा हमारी मांगें नहीं सुन रही है क्योंकि आज उसके पास पूर्ण बहुमत है। इसके पहले भी जो लोग थे, भले ही गठबंधन-महागठबंधन में थे और सरकार में थे, लेकिन सत्ता के नशे में थे। 

सुरेश महेला, सामाजिक कार्यकर्ता

इदाते कमीशन की रिपोर्ट (2017) से आपको क्या आपत्ति है?

देखिए, इदाते कमीशन से हमें कोई प्रॉब्लम नहीं है। इस आयोग ने भी अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी और इसने भी बालाकृष्ण रेनके की अनुशंसाओं को लागू करने की बात कही। थोड़ा-बहुत परिवर्तन किया है इस आयोग ने लेकिन कुल मिलाकर इस आयोग की रिपोर्ट वही है जो रेनके कमीशन की रिपोर्ट में थी। कांग्रेस की तरह ही भाजपा ने भी इदाते कमीशन बनाया और दो-तीन साल तक इस आयोग का कार्यकाल रहा। सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय ने हमारे समुदायों के विकास के लिए कुल 200 करोड़ रुपए जारी किया। लेकिन यह राशि उन्होंने खास योजनाओं के मद में दिये। चाहे वह आयुष्यमान योजना हो या मुद्रा लोन योजना हो। तो सरकार ने शर्त यह लगा दिया कि इन योजनाओं का लाभ उन्हें ही मिलेगा जिनके पास विमुक्त जाति का प्रमाणपत्र है। और वे विमुक्त जाति का प्रमाणपत्र बना नहीं रहे हैं। यह तो वैसी ही बात हो गई कि पांच किलो की थैली में दो रसगुल्ले डाल दिये हों और मुंह में डालकर कह रहे हों इसे थैली सहित खाओ। तो ये सारी चीजें रही हैं। मैं इदाते साहब से मिला था कि आप अपनी सिफारिश लागू कराना चाहते हैं तो आइए एक दिन जंतर-मंतर पर। लेकिन उन्होंने कहा कि सरकार के खिलाफ नहीं जाऊंगा। फिर मैंने कहा कि आप नहीं जाएंगे तो हम तो क्रांतिकारी हैं, हम तो जाएंगे।

श्वेत पत्र में तो यह आरोप लगया गया है कि 201 दिनों की अवधि में 186 दिनों तक इदाते केवल महाराष्ट्र में रहे?

यह मैं नहीं कह रहा हूं। यह श्वेत पत्र कांग्रेस ने जारी किया है। हमने तो उन्हें संक्षेप में हमारी समुदायों का इतिहास दिया है और अपनी मांगें रखी हैं। 

तो आप कांग्रेस से संबद्ध नहीं हैं?

नहीं, मैं कांग्रेस से जुड़ा हुआ नहीं हूं और ना ही मैं भाजपा से जुड़ा हूं। मैं सामाजिक कार्यकर्ता हूं। मैं संगठन के माध्यम से अपने समाज के लोगों को जगाने का काम करता हूं।

इस श्वेत पत्र में कहा गया है कि विमुक्त जातियों और घुमंतू व अर्द्ध घुमंतू जनजातियों को दस प्रतिशत आरक्षण ईडब्ल्यूएस की तर्ज पर सरकारी नौकरियों व उच्च शिक्षा में दी जाय। इसके बारे में आप क्या कहेंगे?

यह तो बिल्कुल ठीक बात है। दस प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश बालाकृष्ण रेनके कमीशन ने भी की थी और दादा इदाते ने भी की। लेकिन उन्होंने अलग से देने की बात कही। यह लंबी प्रक्रिया है। हमारी मांग है कि शेड्यूल ट्राइब में ही हमें शामिल कर लिया जाय  या फिर दस फीसदी पृथक आरक्षण दे दिया जाय और हमें विधायिका में भी आरक्षण मिले।

आगे आपकी क्या योजना है?

हम अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं। अभी 31 अगस्त वाले कार्यक्रम में रामदास अठावले सहित लगभग सभी दलों के नेता आए थे। रामदास अठावले ने प्रधानमंत्री कार्यालय से संपर्क किया है और नंवबर में हमारी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व गृह मंत्री अमित शाह से मिलने की योजना है। हम उनसे अपनी लंबित मांगों के बारे में कहेंगे।

(संपादन : अनिल)

*आलेख परिवर्द्धित : 9 सितंबर, 2022 06:23 PM


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें 

मिस कैथरीन मेयो की बहुचर्चित कृति : मदर इंडिया

बहुजन साहित्य की प्रस्तावना 

दलित पैंथर्स : एन ऑथरेटिव हिस्ट्री : लेखक : जेवी पवार 

महिषासुर एक जननायक’

महिषासुर : मिथक व परंपराए

जाति के प्रश्न पर कबी

चिंतन के जन सरोकार

लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

संबंधित आलेख

फुले, पेरियार और आंबेडकर की राह पर सहजीवन का प्रारंभोत्सव
राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के सुदूर सिडियास गांव में हुए इस आयोजन में न तो धन का प्रदर्शन किया गया और न ही धन...
लोकसभा चुनाव : भाजपा को क्यों चाहिए चार सौ से अधिक सीटें?
आगामी 19 अप्रैल से लेकर 1 जून तक कुल सात चरणों में लाेकसभा चुनाव की अधिसूचना चुनाव आयोग द्वारा जारी कर दी गई है।...
ऊंची जातियों के लोग क्यों चाहते हैं भारत से लोकतंत्र की विदाई?
कंवल भारती बता रहे हैं भारत सरकार के सीएए कानून का दलित-पसमांदा संदर्भ। उनके मुताबिक, इस कानून से गरीब-पसमांदा मुसलमानों की एक बड़ी आबादी...
1857 के विद्रोह का दलित पाठ
सिपाही विद्रोह को भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम कहने वाले और अखंड हिंदू भारत का स्वप्न देखने वाले ब्राह्मण लेखकों ने यह देखने के...
मायावती आख़िर किधर जा सकती हैं?
समाजवादी पार्टी के पास अभी भी तीस सीट हैं, जिनपर वह मोलभाव कर सकती है। सियासी जानकारों का मानना है कि अखिलेश यादव इन...