[अरविंद केजरीवाल और उनके कबीना सहयोगी रहे राजेंद्र पाल गौतम को लेकर तमाम तरह की बातें कही जा रही हैं। लोगों का कहना है कि अरविंद केजरीवाल ने भाजपा और आरएसएस के दबाव के कारण राजेंद्र पाल गौतम से जबरन इस्तीफा लिया। इस पूरे मुद्दे के बारे में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता डॉ. उदित राज से फारवर्ड प्रेस से बातचीत की।]
गत 5 अक्टूबर, 2022 को डॉ. आंबेडकर की 22 प्रतिज्ञाएं लेने के मामले में राजेंद्र पाल गौतम द्वारा इस्तीफा दिया गया है। आपकी प्रतिक्रिया क्या है?
अगर उनसे इस्तीफा मांगा गया होता या फिर उनको केजरीवाल जी ने निकाल दिया होता तो मैं यह मानता कि वह डॉ. आंबेडकर की 22 प्रतिज्ञाओं के साथ खड़े थे। उन्होंने तो यह कहकर इस्तीफा दिया है कि वे अपने नेता की छवि बचाने के लिए इस्तीफा दे रहे हैं। दूसरी बात यह कि वे दो साल से कहते रहे हैं कि वे जय भीम मिशन चला रहे हैं। लेकिन वे अपनी बात पर स्थिर नहीं रह पाए। जब मीडिया और भाजपा के लोगों ने सवाल किया तो उन्होंने कह दिया कि एक कार्यक्रम था, उसमें शरीक होने ऐसे ही चला गया था। जबकि यह उसी संगठन का कार्यक्रम था, जिसे चलाने की बात वह कहते रहे हैं। तो उनको तो डटकर खड़ा रहना चाहिए था। जिम्मेदारी लेनी चाहिए थी। उन्हें यह बात पूरी ताकत से कहनी चाहिए थी कि हां, मैंने प्रतिज्ञा ली और मेरे साथ हजारों लोगों ने हिंदू धर्म के परित्याग की प्रतिज्ञा ली। तीसरी बात यह कि भाजपा के इस आलोचना पर कि प्रतिज्ञा लेकर राजेंद्र पाल गौतम जी ने हिंदू धर्म की आस्था पर चोट किया, उसकी वजह से उन्होंने सार्वजनिक तौर पर माफी मांग ली। यानी भाजपा और आरएसएस की बात सही हो गई। राजेंद्र पाल गौतम जी ने माफी मांग ली, यह उन्हें नहीं करना चाहिए था, यदि वे अपने आपको आंबेडकरवादी कहते हैं। मुझे उनके द्वारा माफी मांगे जाने से दुख हुआ। जब उन्होंने प्रतिज्ञाएं लीं, तो कह देना था कि हां, मैंने प्रतिज्ञा ली है।
मैंने भी ऐसा ही एक कार्यक्रम 4 नवंबर, 2001 को आयोजित किया था। दस-बारह हजार पुलिस लगा दी गई थी। दिल्ली की सारी सीमाएं सील कर दी गई थीं। जब पूरे देश से लोग आने की तैयारी कर रहै थे तब आईबी के द्वारा उनको वहीं पर रोकने की कोशिश की गई। रामलीला मैदान में कार्यक्रम के आयोजन की अनुमति को निरस्त कर दिया गया। मुझे स्वयं छिप-छिपाकर रहना पड़ा, क्योंकि मेरी जान को खतरा था। आरएसएस और भाजपा के लोगों ने दरियागंज पुलिस को कहा था कि यदि रामलीला मैदान में दीक्षा का कार्यक्रम हुआ तो हमलोग हमला करेंगे। रामलीला मैदान इसी थाने के अंतर्गत आता है। तब एक स्थानीय एसपी ने कहा था कि यदि कार्यक्रम का आयोजन हुआ तो हिंसा होगी। उनका नाम अभी भूल रहा हूं। तब मैंने उन्हें कहा था कि मैं लिखकर देता हूं कि अगर मेरी मौत हो जाय या फिर हमारे लोगों को चोटें आएंगीं तो हम शिकायत नहीं करेंगे।
इतने विषमताओं के बावजूद हमलोगों ने वह कार्यक्रम किया। तो राजेंद्र पाल गौतम जी ने बौद्ध धम्म दीक्षा की बात कही थी तो उन्हें इस पर डटे रहना चाहिए था। अब वे बेचारा बनकर हीरो बनना चाह रहे हैं, क्योंकि उन्होंने 22 प्रतिज्ञाओं के सम्मान में कुछ नहीं किया। जो किया अपने नेता केजरीवाल जी की छवि बचाने के लिए किया।

भाजपा के लोगों ने जो हंगामा किया, उसके बारे में आप क्या कहेंगे?
भाजपा के लोगों को डॉ. आंबेडकर का फोटो प्यारा है और विचारों से नफरत है। यही मूल बात है। डॉ. आंबेडकर का चित्र सभी लगा रहे हैं। इनमें केजरीवाल जी भी शामिल हैं। केजरीवाल जी को तो डॉ. आंबेडकर का चित्र नहीं लगाना चाहिए। उन्हें जवाब देना चाहिए।
तो क्या आप यह मानते हैं कि केजरीवाल जी ने ही राजेंद्र पाल गौतम पर इस्तीफा देने का दबाव बनाया?
बिल्कुल, उन्होंने राजेंद्र पाल गौतम जी पर दबाव बनाया। हालांकि गौतम जी को यह कहना चाहिए था कि आप पार्टी के मुखिया हैं और यदि आप निकालना चाहते हैं तो निकाल दें।
आपने 2001 में आपके द्वारा आयोजित दीक्षा कार्यक्रम के बारे में जानकारी दी। उसी के बारे में बताएं कि उसका मुख्य लक्ष्य क्या था?
मुख्य लक्ष्य पाने में तो मैं विफल रहा। दस लाख लोगों ने उस कार्यक्रम में दीक्षा ली थी, लेकिन इसके बावजूद मैं संतुष्ट नहीं हूं। मैं तो जाति-पांति खत्म करना चाहता था। लोगों ने इतना ज्यादा जाति और उपजाति का जहर पैदा कर दिया। रामविलास पासवान जी की जाति पासवान बताकर, बंगारू लक्ष्मण को सफाई करने वाली जाति का बताकर, सबको जाति-उपजाति में बांट-बांटकर, सबकुछ छिन्न-भिन्न कर दिया। मेरे कार्यक्रम का मुख्य लक्ष्य तो यही था– जाति का टूटना, जातिविहीन समाज की स्थापना। लेकिन इसके उलट ही हुआ। बहुजन आंदोलन की वजह से दलित समाज जातियों और उपजातियों में बंट गए। इस आधार पर मैं कहता हूं कि बहुजन आंदोलन के कारण दलितों में जातिवाद तेज हुआ। एक होड़ सी लग गई है कि यदि हम अपनी जाति के लोगों को इकट्ठा करेंगे तो एमपी, एमएलए बन जाएंगे। इससे हुआ यह कि हर जाति अपने नेता के पीछे हो गई।
तो क्या आप यह कह रहे हैं कि दलितों में जातिवाद अधिक तेजी से फैला है?
बिल्कुल, हम दलितों में ज्यादा भयंकर जातिवाद है। जैसे तेली समाज में भी कई सारी उपजातियां हैं। लेकिन उन्हें लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कारण लाभ मिल रहा है तो वे उनके पीछे खड़े हैं। दलित में अगर कोई चमार जाति का नेता है तो दूसरी दलित जातियों के लोग उसके साथ खड़ा नहीं होंगे। वे लाभ नहीं देखेंगे, जाति देखेंगे। अगर कोई पासी जाति का नेता है तो चमार भी लाभ नहीं देखेंगे, जाति देखेंगे। तो सबसे ज्यादा जातिवादी तो दलित है। इन्हें अपनी जातियों से प्रेम है। इन्हें प्रगति से, मानवता से और खुशहाली से प्रेम नहीं है।
यह तो आपने दलित समाज की समसया के बारे में कहा। लेकिन इसके निवारण के लिए आपके पास कोई कार्य योजना है?
बहुत मुश्किल है जाति तोड़ना। कुछ संस्थाएं हैं जो दिन-रात ब्राह्मणवाद के खिलाफ बोलते रहती हैं। वे अपने गिरेबां में झांककर देखें और खुद से पूछें जाति से समस्या सवर्णों को है या फिर हम दलितों को अधिक है। तो पहले अपनी जाति तो खत्म करें। वे चाहते हैं कि दलित अपनी जाति न छोड़ें और ब्राह्मण, ठाकुर तथा राजपूत अपनी जाति खत्म कर दें। यह कैसे मुमकिन है?
हाल के दिनों में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत जाति को लेकर मुखर हो गए हैं। आपके हिसाब से उन्हें ऐसा करने की जरूरत क्यों पड़ रही है?
मैंने तो पहले ही जवाब दे दिया है। मोहन भागवत कहते हैं कि जाति को भूल जाओ। तो मैंने कहा कि ठीक है हम जाति भूल जाते हैं, लेकिन पहले रोटी-बेटी का संबंध बनाओ। इसके लिए वे आंदोलन चलाएं। तभी तो जाति जाएगी। वे ऐसा क्यों नहीं करते? अगर मोहन भागवत कहते हैं कि जाति बीते हुए दिनों की बात है तो उतना भी मैं मान लेता हूं लेकिन जाति तभी जाएगी जब आरएसएस और भाजपा के लोग रोटी और बेटी का संबंध दलितों से करने का बयान जारी करें। लेकिन मैं जानता हूं कि वे ऐसा नहीं करेंगे। वे तो केवल वोट लेने के लिए ऐसी बातें कह रहे हैं कि जाति को भूल जाओ या फिर जाति बीते दिनों की बात है। वे झूठ बोल रहे हैं।
लेकिन वे ऐसी बातें कह क्यों रहे हैं? क्या उन्हें लगता है कि भाजपा को 2024 के लोकसभा चुनाव में नुकसान होने जा रहा है?
बिल्कुल। भाजपा के ऊपर किसी तरह की आंच न आए, उसके लिए ही तो आरएसएस रात-दिन यह सब करता रहता है। आरएसएस तो भाजपा की मां है। वह अपने बच्चे की मदद तो करेगी ही करेगी। वह लोगों को डराकर, धमकाकर और मूर्ख बनाकर भाजपा के लिए वोटों का इंतजाम करती रहेगी।
इन सदंर्भों में कांग्रेस की कोई परियोजना है?
भारत जोड़ो यात्रा ही एक बड़ी योजना है। हम रोजगार, महंगाई और गरीबी के बारे में बात कर रहे हैं। देश को जोड़ने की बात कर रहे हैं। नफरत खत्म करने की बात कर रहे हैं। इसमें सभी लोग शामिल हों।
(संपादन : अनिल)
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