h n

छत्तीसगढ़ : फर्जी जाति प्रमाण पत्र धारकों के खिलाफ दलित-बहुजन कर रहे अनशन

न्याय करने की बात कहकर सत्ता में आने वाली कांग्रेस की सरकार खुद कटघरे में है। तीन वर्ष बीतने के बाद भी फर्जी जाति प्रमाण पत्र धारकों को बर्खास्त नहीं किया गया है। बता रहे हैं तामेश्वर सिन्हा

फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर सरकारी नौकरी करने वाले अधिकारियेां व कर्मचारियों के खिलाफ सूबे के दलित-बहुजन युवाओं ने मोर्चा खोल दिया है। ऐसे कर्मियों व अधिकारियों की बर्खास्तगी को लेकर वे रायपुर में पिछले चार दिनों से आमरण अनशन कर रहे हैं। अनशन कर रहे नौजवानों में विनय कौशल, हरेश बंजारे, मनीष गायकवाड, लव कुमार, आशीष टंडन और रोशन जांगड़े शामिल हैं।

युवकों की मांग है कि अनुसूचित जाति एवं जनजाति के नाम पर जो सैंकड़ों की तादाद में अधिकारी व कर्मचारी फर्जी जाति प्रमाण पत्र बनवाकर शासकीय सेवा में बने हुए हैं। जबकि जाति प्रमाण पत्र उच्च स्तरीय छानबीन समिति के द्वारा उनके जाति प्रमाण पत्र को फर्जी करार दे दिया गया है। इतना ही नहीं, सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा इन कर्मियों को सेवा से बर्खास्त करने के लिए 25 नवंबर, 2020 को ही संबंधित विभागों को निर्देशित कर दिया गया था। युवाओं का आरोप है कि कार्यवाही के नाम पर पत्र-व्यवहार के रूप में केवल खानापूर्ति की जा रही है। 

आमरण अनशन कर रहे विनय कौशल का कहना है कि आमरण अनशन का आज चौथा दिन है। सत्ता में बैठे हुए लोग फर्जी जाति प्रमाण पत्र धारकों को संरक्षण प्रदान कर रहे हैं, जो हमारे संवैधानिक अधिकारों की हत्या में मददगार साबित हो रहे हैं। उन्होंने आगे कहा कि हमारे लिए चिंता इस बात की भी है कि छत्तीसगढ़ विधानसभा में तमाम आरक्षित जनप्रतिनिधि इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए हैं। 

सामाजिक कार्यकर्ता एवं दलित चिंतक धनंजय बरमाल कहते हैं कि उच्च स्तरीय जाति प्रमाण पत्र छानबीन समिति बनाकर उनके ही रिपोर्ट को आधार मानते हुए शासन एवं प्रशासन कार्रवाई करने से डर रही है। आरक्षित वर्ग के हितों पर कुठाराघात करने के लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष सब मिले हुए हैं। 

आंदोलनकारी मनीष गायकवाड़ कहते हैं कि न्याय करने की बात कहकर सत्ता में आने वाली कांग्रेस की सरकार खुद कटघरे में है। तीन वर्ष बीतने के बाद भी फर्जी जाति प्रमाण पत्र धारकों को बर्खास्त नहीं किया गया है। उन्होंने आगे कहा कि इस सरकार में वाकई न्याय होता है तो मुख्यमंत्री को फर्जी प्रमाण पत्र धारकों को तत्काल बर्खास्त करना चाहिए। 

प्रदर्शन कर रहे दलित-बहुजन युवा

बताते चलें कि इस मामले को लेकर सरकार द्वारा गठित की गई उच्च स्तरीय छानबीन समिति की जांच में 267 मामलों में जाति प्रमाण पत्र फर्जी पाए गए, जिनकी सूची संबंधित विभाग को कार्रवाई के लिए भेजी गई। इनमें से सिर्फ एक कर्मचारी की ही सेवा समाप्त की गई। 

यह भी उल्लेखनीय है कि जिन बड़े अधिकारियों की जाति प्रमाण पत्र को छानबीन समिति ने फर्जी माना, उनमें समाहर्ता आनंद मसीह, अनुराग लाल, उप समाहर्ता शंकर लाल डगला और उनके बेटे सुरेश कुमार डगला, संयुक्त आयुक्त भुवाल सिंह, एसडीएम सुनील मैत्री, उपायुक्त सी.एस. कोट्रीवार, आडिटर रामाश्रय सिंह, असिस्टेंट सर्जन डॉ. आर.के. सिंह, संयुक्त संचालक क्रिस्टीना सी. एस. लाल, सीईओ राधेश्याम मेहरा आदि शामिल हैं। इनमें से ज्यादातर लोगों के मामले न्यायालय में विचाराधीन हैं।

(संपादन : नवल/अनिल)

लेखक के बारे में

तामेश्वर सिन्हा

तामेश्वर सिन्हा छत्तीसगढ़ के स्वतंत्र पत्रकार हैं। इन्होंने आदिवासियों के संघर्ष को अपनी पत्रकारिता का केंद्र बनाया है और वे विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर रिपोर्टिंग करते हैं

संबंधित आलेख

आरएसएस का सीएमसी, वेल्लोर जैसा अस्पताल क्यों नहीं? कांचा काइतैय्या के जीवन से सबक
स्वाधीनता के बाद अगर किसी हिंदुत्ववादी ताकत का हमारे देश पर राज कायम हो गया होता और उसने सीएमसी को बंद करवा दिया होता...
बिहार विधानसभा चुनाव : सामाजिक न्याय का सवाल रहेगा महत्वपूर्ण
दक्षिणी प्रायद्वीप में आजादी के पहले से आरक्षण लागू है और 85 फ़ीसदी तक इसकी सीमा है। ये राज्य विकसित श्रेणी में आते हैं।...
जनसंघ के किसी नेता ने नहीं किया था ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्द जोड़े जाने का विरोध : सिद्दीकी
1976 में जब 42वां संविधान संशोधन हुआ तब चाहे वे अटलबिहारी वाजपेयी रहे या फिर आडवाणी या अन्य बड़े नेता, किसी के मुंह से...
जेर-ए-बहस : श्रम-संस्कृति ही बहुजन संस्कृति
संख्या के माध्यम से बहुजन को परिभाषित करने के अनेक खतरे हैं। इससे ‘बहुजन’ को संख्याबल समझ लिए जाने की संभावना बराबर बनी रहेगी।...
‘धर्मनिरपेक्ष’ व ‘समाजवादी’ शब्द सांप्रदायिक और सवर्णवादी एजेंडे के सबसे बड़े बाधक
1975 में आपातकाल के दौरान आरएसएस पर प्रतिबंध लगा था, और तब से वे आपातकाल को अपने राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करते...