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असामाजिक तत्वों की मदद करके सरकार ने कुकियों पर हमला करवाया : एनी राजा

हमारा यह मानना है कि राज्य सरकार ने अपने प्रति नाराजगी चालाकीपूर्वक मैतेई के खिलाफ टर्न करवाया। मिलिटेंट को, बाकी तमाम असामाजिक तत्वों की मदद करके सरकार ने कुकियों पर हमला करवाया। इन हमलों को रोकने के लिए उसने कोई काम नहीं किया है। पढ़ें, भाकपा नेता व एनएफआईडब्ल्यू की राष्ट्रीय महासचिव एनी राजा का यह साक्षात्कार

गत 28 जून, 2023 से लेकर 1 जुलाई, 2023 के दौरान भारतीय महिला फेडरेशन (एनएफआईडब्ल्यू) के एक तथ्यशोधक दल ने हिंसाग्रस्त मणिपुर का दौरा किया था। तीन सदस्यीय इस दल में फेडरेशन की महासचिव एनी राजा, राष्ट्रीय सचिव निशा सिद्धू और दिल्ली की एक अधिवक्ता दीक्षा द्विवेदी शामिल थीं। इस दल के खिलाफ एक मुकदमा भी दर्ज कराया गया। बीते 19 जुलाई, 2023 को कुकी जनजाति की दो महिलाओं को नग्न घुमाने का वीडियो वायरल होने के बाद मणिपुर में जारी हिंसा ने पूरे विश्व का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया है। भारतीय महिला फेडरेशन की राष्ट्रीय महासचिव एनी राजा से इस संबंध में फारवर्ड प्रेस के हिंदी संपादक नवल किशोर कुमार ने दूरभाष पर बातचीत की। प्रस्तुत है आंशिक तौर पर संपादित यह साक्षात्कार

मणिपुर में 28 जून से लेकर 1 जुलाई के दरमियान फैक्ट फाइंडिंग के क्रम में क्या आपको ऐसे दृश्य देखने को मिले थे, जो अब सामने रहे हैं? जिस तरह का वीडियो 19 जुलाई को सामने आया, क्या वह आपके लिए चौंकानेवाला था?

चौंकानेवाला बिल्कुल नहीं था। हमलोग जब गए, तब तक दो महीने हो चुके थे। वहां हिंसा 3 मई को ही शुरू हो गया था, हमलोग 28 जून को पहुंचे। इस दरमियान कोई भी चाहे वह सरकार का नुमाइंदा हो या पंचायत का नुमाइंदा हो या कोई बाहर का, वहां नहीं पहुंचा था उनके पास। इसलिए भी आप सोच सकते हैं कि ऐसी महिला जो इस प्रकार की पीड़ा से गुजरी है, वह हमारे ऊपर कैसे विश्वास करती, कैसे अपना अनुभव बताती, जब वह हमारे ऊपर विश्वास ही नहीं कर रही थी। ये तमाम बातें उनके मन में होंगी। सरकार की तरफ से कोई नहीं जा रहा उनके पास। जिसने शिकायत दर्ज कराई, उसके खिलाफ ही एफआईआर दर्ज हो गया है। तो वे [मणिपुर के पीड़ित] उनके पास जानेवालों के ऊपर क्यों विश्वास करें। फिर भी कुछ लड़कियों ने आकर हमसे यह बताया कि उन्होंने कितना अत्याचार सहा, कैसे उनका उत्पीड़न किया गया। उन्होंने आपबीती बताई। तो अब जो 19 जुलाई को वीडियो वायरल हुआ, हमारी टीम के लिए चौंकानेवाला नहीं है।

फैक्ट फाइंडिंग के दौरान आप कुकी, नागा और मैतेई समुदायों के रहवासों में गई थीं? आपने वहां क्या देखा?

ऐसा था कि रहवासों में तो हमें बाद में जाना था। पहले हमें उनसे मिलना था जो शरणार्थी कैंप में रह रहे थे। महिला मोर्चा की प्राथमिकता यही थी। फिर हम दूसरे लोगों से भी मिले। दोनों तरफ के लोगों से मिले। उन लोगों से भी हम मिले जो कैंप में नहीं थे, लेकिन कैंप के लोगों के लिए खाना या अन्य दूसरी चीजें लेकर आते थे। उन तमाम लोगों से हमने बात की। हमारा फोकस रिलीफ कैंपों पर था।

वहां लोगों ने आपसे क्या कहा? आपके क्या निष्कर्ष रहे?

हमलोगों ने एक प्रेस रिलीज जारी किया था। शायद आपको मिला होगा, उसे देख सकते हैं। उसमें हमने तमाम बातों को बताया है। [प्रेस विज्ञप्ति में उद्धृत निष्कर्ष साक्षात्कार के अंत में संलग्न][1]

फैक्ट फाइंडिंग के क्रम में आपने किस तरह का वातावरण महसूस किया था? क्या इसमें ध्रुवीकरण के तत्व शामिल थे? क्या आपको ऐसा लगा कि मैतेई और कुकी समुदायों के बीच वार्तालाप हो रहा है या इसके लिए कोई पहल की जा रही हो?

देखिए, आपको इन तमाम चीजों को समझना है कि इन सबकी शुरुआत में क्या था। कुकी लोग सरकार के खिलाफ आवाज उठा रहे थे। वे मैतेई समुदाय के लोगों के खिलाफ नहीं थे। वे सरकार के खिलाफ संघर्ष कर रहे थे, क्योंकि सरकार उन्हें उनके घरों, गिरजाघरों और स्कूलों से निकाल रही थी। इन वजहों से वे लोग सरकार से नाराज थे। इसी बीच मैतेई समुदाय को ट्राईबल में शामिल करने संबंधी हाई कोर्ट का आदेश भी आ गया। इससे भी लोग गुस्से में थे।

एनी राजा, राष्ट्रीय महासचिव, भारतीय महिला फेडरेशन

क्या आपको लगता है कि जारी हिंसा के मद्देनजर राज्य सरकार की तरफ से कोई गंभीर प्रयास नहीं किया गया?

देखिए, हमारा यह मानना है कि राज्य सरकार ने टैक्टफुली [चालाकीपूर्वक] मैतेई के खिलाफ टर्न करवाया [मोड़ा]। क्योंकि मिलिटेंट को, बाकी तमाम असामाजिक तत्वों की मदद करके सरकार ने कुकियों पर हमला करवाया। इन हमलों को रोकने के लिए उसने कोई काम नहीं किया है। इस वजह से जो आंदोलन सरकार के खिलाफ था, वह आंदोलन कुकी और मैतेई के बीच हिंसा में तब्दील हो गया। यही असली सच्चाई है। नहीं तो कुकी और मैतेई लोगों में इतनी नफरत नहीं थी। बहुत सारे गांव हैं जहां दोनों मिलकर रह रहे थे। अभी भी जब हम दोनों पक्षों के रिलीफ कैंपों में लोगों से मिले तो दोनों पक्षों के लोगों ने कहा कि हमें जल्दी से जल्दी अपने गांव वापस जाना है। हमें अपने पड़ोसी के साथ रहना है। जबकि वह पड़ोसी दूसरे समुदाय का है। एक महिला बोली कि मेरा पड़ोसी मैतेई है, मैं उसके साथ बहुत अच्छे से रह रही थी, हमें उन्हीं के साथ आगे भी रहना है। फिर मैतेई समुदाय के लोग भी यही बोले कि कुकी परिवार हमारे पड़ोसी थे, हमें भी उन्हीं के साथ रहना है। कैंपों में जो निर्दोष लोग हैं, गरीब लोग हैं और आम जनता है, उनको इस हिंसा से कोई लेना-देना नहीं है। चूंकि सरकार ने यह सब किया। राज्य सरकार के खिलाफ जो भी मुद्दा था, उस मुद्दे को ऐसा टर्न करवाया। इसमें सरकार का एजेंडा जरूर है।

इसमें एक बात और कही जा रही है कि कोई थर्ड पार्टी है, जो यह करवा रही है। इस संबंध में आपको क्या लगता है?

बात ऐसी है कि अगर कोई थर्ड पार्टी है तो सरकार का क्या काम है, उसे तुरंत हस्तक्षेप करके रोकना चाहिए था। जब 3 मई को इतना बड़ा हादसा हुआ तो उसी दिन उसे अपना काम करना चाहिए था। राज्य सरकार के पास अपनी पुलिस है, इसके अलावा केंद्रीय बल है, इन तमाम ताकतों को कंट्रोल करना चाहिए था। सरकार ने क्यों नहीं किया? इस मामले में फर्स्ट पार्टी सरकार है।

क्या आपको लगता है कि मणिपुर में जो हिंसा आज भी जारी है, उसे रोकने के लिए के लिए केंद्र सरकार की तरफ से कोई गंभीर प्रयास नहीं किया गया?

अगर भारत सरकार इस मामले में गंभीर रहती तो प्रधानमंत्री कुछ तो बोले होते! कुछ तो कदम उठाते। ऐसा नहीं है कि कुछ ही जिलों में या केवल इंफाल में समस्या है। पूरा राज्य हिंसा से पीड़ित है। जहां एक पूरा राज्य पीड़ित है, वहां यदि केंद्र सरकार ने गंभीरता से इसको देखा होता तो इतने लोगों की हत्या, इतने लोगों का घर जलना, और इतने लोगों का बेघर होना, यह सब नहीं होता। केंद्र सरकार अभी भी क्या कर रही है? कुछ नहीं कर रही है।

आपके और आपके टीम के खिलाफ एक मैतेई समुदाय के व्यक्ति ने मुकदमा दर्ज कराया। उसने ऐसा क्यों किया? आपको क्या लगता है?

मेरी समझ यह है कि उसने अपने आप यह नहीं किया है। हमें यह बताया गया है कि वह बंदा मुख्यमंत्री का करीबी है और इसलिए कराया है क्योंकि उन्होंने कभी सोचा नहीं कि बाहर से कोई आकर इस चीज को देखे और मणिपुर से बाहर जाकर बोले। मणिपुर में जारी हिंसा और अपनी नाकामी को राज्य सरकार ढंकना चाहती थी। मगर हमने उनका यह एजेंडा विफल कर दिया। इस वजह से गुस्से में हमारे ऊपर एफआईआर कराया। और दूसरी बात यह है कि इसलिए भी ऐसा किया गया ताकि आगे कोई दूसरा भी ना आए फैक्ट फाइडिंग टीम को लेकर। जो भी आए, उनके ऊपर देशद्रोह का मुकदमा करेंगे। निश्चित तौर पर ऐसा डराने के लिए ही किया गया है।

अंतिम सवाल है कि आपके हिसाब से मणिपुर में समाधान की राह क्या है? क्या विकल्प है? क्या एक मुख्यमंत्री, जो मैतेई और कुकी दोनों समुदायों को स्वीकार्य हो या फिर राष्ट्रपति शासन?

देखिए, बहुत सारी चीजें हैं, क्योंकि अभी लगभग तीन महीने होने को है। इतने दिन एक-दूसरे को मार-काट रहे थे, जिससे अभी लोगों में सरकार के ऊपर बिल्कुल विश्वास नहीं है। पहले से ही केंद्र सरकार के ऊपर बिल्कुल विश्वास नहीं था। फिर भी हमें जनतांत्रिक देश में देखना चाहिए कि कोई अकेला एक समाधान नहीं है। एक तो यह कि केंद्र द्वारा मुख्यमंत्री को तुरंत हटाया जाना चाहिए, क्योंकि मुख्यमंत्री के ऊपर बिल्कुल विश्वास नहीं है। मैतेई लोगों का भी उनके ऊपर विश्वास नहीं है। दूसरा यह कि इतने सारे मामले जो दर्ज कराए गए हैं, उन्हें टाइम बाउंड हिसाब से देखा जाना चाहिए और जो दोषी हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई किया जाना चाहिए। जिन परिवारों में लोगों की मौत हो गई, अभी भी कइयों की लाशें अस्पतालों-शवगृहों में हैं। तो सरकार को शवों को उनके परिजनों को सौंप देना चाहिए ताकि वे उनका अंतिम संस्कार कर सकें। और साथ-साथ लोगों को कैंपों से गांव में वापस लेकर जाने का काम करे। यह नहीं कि कहीं और किसी दूसरे जगह पर कुछ घर बनाके इन लोगों को रहने को कहा जाय। हमने उड़ीसा में देखा है कि गांव में आदिवासियों का घर जलाया और 50-60 किलाेमीटर दूर घर बनाकर दिया। यह एक छोटा रिलीफ कैंप जैसा था। अभी वहां कितना साल हो गया, फिर भी [उड़ीसा में] वे लोग वापस नहीं गए। तो ये तमाम चीजें ऐसी ना हों, इसके लिए एक स्वतंत्र कमेटी, जिसमें स्थानीय जनता का भी विश्वास जीतने वाला हो, गठित होनी चाहिए। ऐसी बहुत सारी चीजें एक साथ करनी होंगी, नहीं तो एक महज औपचारिकता होगी। मणिपुर की समस्या को हल करने का कोई सिंगल फॉर्मूला नहीं है।

[1] प्रेस विज्ञप्ति में उद्धृत निष्कर्ष :

  • यह राज्य-प्रायोजित हिंसा है.
  • 3 मई को शुरू हुई हिंसा स्वत:स्फूर्त नहीं थी। इसकी ज़मीन पहले से तैयार थी। दोनों समुदायों में एक दूसरे के प्रति जो अविश्वास और संशय का भाव था, उसे राज्य और केंद्र की सरकारों ने और गहरा किया, उन्होंने आग में घी डाला, ताकि गृहयुद्ध जैसी स्थितियां निर्मित की जा सकें। मार्च और अप्रैल 2023 में ऐसी कई घटनाएं हुईं थीं, जिनके व्यापक हिंसक टकराव में बदलने की संभावना स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रही थी। लेकिन सरकार ने इन्हें नज़रअंदाज़ किया और भयावह हिंसा को भड़कने दिया।
  • मणिपुर के इतिहास और वहां के सामाजिक ताने-बाने के चलते, वहां का सामाजिक ढांचा पदक्रम पर आधारित था, जिसमें मैतेई वर्चस्वशाली समुदाय था और कुकी लोगों को असभ्य माना जाता था और नीची निगाहों से देखा जाता था। संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप राज्य में सकारात्मक प्रयासों की जो नीतियां अपनाई गईं, उनके चलते कुकी समुदाय का सामाजिक स्तर कुछ सुधरा। वे शिक्षा हासिल करने लगे और सरकारी नौकरियां भी उन्हें मिलने लगीं। कुकी लोगों के हालात बेहतर होने से बहुसंख्यक मैतेई समुदाय में गुस्सा और असंतोष पनपा।
  • मणिपुर के लोगों की जिंदगी और उनके रोज़ी-रोज़गार की रक्षा करने की बजाय, सरकार भड़काऊ कार्यवाहियां कर रही है, जिससे दोनों समुदायों के बीच बैर-भाव बढ़ रहा है और उनके बीच की खाई और अधिक गहरी हो रही है। इन भड़काऊ कार्यवाहियों में से कुछ हैं–
  1. न्यू चेक्कों में इस बहाने तीन चर्चों को ढाहना कि वे अतिक्रमित भूमि पर बने थे।
  2. कांगपोकपी और तेंगोपाल जिले से वन एवं वन्यप्राणी संरक्षण के नाम पर कुकी ग्रामीणों की उनके घरों से बेदखली और उनके घरों का ढाहना।
  3. मणिपुर उच्च न्यायालय का निर्णय जिसमें मैतेई लोगों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिये जाने की बात कही गई।
  4. इस निर्णय को लागू करने पर रोक का सरकार द्वारा विरोध
  • आल इंडिया स्टूडेंट्स यूनियन, मणिपुर ने चुराचांदपुर जिले में हुई घटनाओं के विरोध में दोपहर करीब 12 बजे शांति रैली निकली और 3 बजे के आसपास हिंसा शुरू हो गई।
  • कुकी लोगों का आरोप है कि मैतेई, शांति मार्च निकाले जाने से खफा हो गए और इसलिए उन्होंने पवित्र भारत-कुकी युद्ध स्मारक काे जलाने का प्रयास किया। बड़ी संख्या में मैतेई चुराचांदपुर पहुंचे। उन्होंने पहले ही मैतेई और कुकी घरों पर निशान लगा दिए थे।
  • दोनों समुदाय पवित्र भारत-कुकी युद्ध स्मारक को नष्ट करने के प्रयास के लिए एक-दूसरे को दोषी ठहरा रहे हैं।
  • अतिवादियों और कट्टरपंथियों ने हालात का फायदा उठाया।
  • ज्यादातर मकान, 3 और 4 मई को जलाये गए। ऐसा बताया जाता है कि राज्य पुलिस सहित सुरक्षाबालों ने हिंसा को नियंत्रित करने में जानबूझकर देरी की और लापरवाही बरती।
  • जिस दिन राज्य जल रहा था, उस दिन मुख्यमंत्री शाम सात बजे तक उपराष्ट्रपति की मेजबानी करने और उनके साथ अपने फोटो ट्विटर पर अपलोड करने में व्यस्त थे।
  • दोनों समुदायों में मुख्यमंत्री के प्रति गुस्सा और आक्रोश है। वे यह मानते हैं कि मुख्यमंत्री ने हालात से ठीक तरह मुकाबला नहीं किया। (अनुवाद : अमरीश हरदेनिया)

(संपादन : समीक्षा/राजन/अनिल)


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लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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