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छत्तीसगढ़ : नग्न प्रदर्शन कर दलित-बहुजन युवाओं ने किया बघेल सरकार को नंगा

इस मामले में जहां एक ओर पुलिस ने 14 प्रदर्शनकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर उन्हें जेल भेज दिया है, तो दूसरी ओर 18 जुलाई को देर शाम आदिम जाति तथा अनुसूचित जाति विकास विभााग, छत्तीसगढ़ शासन के द्वारा एक पत्र जारी किया गया। पढ़ें, यह खबर

गत 18 जुलाई, 2023 को छत्तीसगढ़ विधानसभा के मानसून सत्र का आगाज हुआ। रायपुर शहर के विधानसभा मार्ग में पुलिसकर्मियों की भारी तैनाती के बावजूद दलित-बहुजन युवाओं ने अपने सारे कपड़े उतारकर प्रदर्शन किया। यह सब उस समय हुआ जब विधायक और मंत्री अपनी-अपनी गाड़ियों में बैठकर विधानसभा जा रहे थे। अचानक हुए इस प्रदर्शन से सकते में आई पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को अपने कब्जे में लिया और उनसे उनके बैनर छीन लिये, जिसमें फर्जी प्रमाणपत्र के आधार पर आरक्षित वर्ग की नौकरियां पानेवाले कर्मियों को बर्खास्त करने की मांग लिखी थी। इस पूरे मामले में जहां एक ओर पुलिस ने 14 प्रदर्शनकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर उन्हें जेल भेज दिया है, तो दूसरी ओर 18 जुलाई को देर शाम आदिम जाति तथा अनुसूचित जाति विकास विभााग, छत्तीसगढ़ शासन के द्वारा एक पत्र जारी किया गया।

यह पत्र राज्य के सामान्य प्रशासन विभाग, आदिम जाति तथा अनुसूचित जाति विभाग, राजस्व एवं आपदा प्रबंधन विभाग, लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग, जल संसाधन विभाग, समाज कल्याण विभाग,

पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग, गृह विभाग, ऊर्जा विभाग, उच्च शिक्षा विभाग, कृषि विभाग, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, सहकारिता विभाग, स्कूल शिक्षा विभाग, खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण विभाग के अपर मुख्य सचिवों, प्रमुख सचिवों व सचिवों को निर्देशित किया गया है। पत्र के मुताबिक, “उच्च स्तरीय प्रमाणीकरण छानबीन समिति द्वारा फर्जी जाति प्रमाण पत्रों के सत्यापन पश्चात आपके विभाग से संबंधित प्रकरणों की संलग्न में निरस्त करने के आदेश दिये गये हैं। इन प्रकरणों में आपके द्वारा क्या कार्यवाही की गई है? इस संबंध में मुख्य सचिव महोदय द्वारा दिनांक 20 जुलाई, 2023 को विधान सभा में समीक्षा करेंगे। बैठक हेतु निर्धारित समय की सूचना पृथक से दी जाएगी।”

हालांकि प्रदर्शनकारियों ने एक दिन पहले ही प्रेस विज्ञप्ति जारी कर यह सूचना सार्वजनिक कर दी थी कि वे अपनी मांगों को लेकर निर्वस्त्र होकर प्रदर्शन करेंगे। अपने बयान में युवाओं ने कहा– 

“छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद से राज्य के विभिन्न विभागों को शिकायतें मिली थी कि गैर आरक्षित वर्ग के लोग आरक्षित वर्ग के कोटे का शासकीय नौकरियों एवं राजनीतिक क्षेत्रों में लाभ उठा रहे हैं। इस मामले की गंभीरता को देखते हुए राज्य सरकार नें उच्च स्तरीय जाति छानबीन समिति गठित की थी, जिसके रिर्पोट के आधार पर समान्य प्रशासन विभाग ने फर्जी जाति प्रमाण पत्र के सहारे नौकरी कर रहे अधिकारी-कर्मचारियों को उनके पदों से तत्काल हटाकर उन्हे बर्खास्त करने के आदेश जारी कर दिए। 

“लेकिन आदेश खानापूर्ति ही साबित हुए। सरकारी आदेश को अमल में नहीं लाया गया और फर्जी जाति प्रमाण पत्र के सहारे नौकरी करने वाले कुछ सेवानिवृत हो गए तो कुछ ने जांच समिति के रिपोर्ट को न्यायालय में चुनौती दी। सामान्य प्रशासन की ओर से जारी फर्जी प्रमाण पत्र धारकों की लिस्ट में अधिकांश लोग ऐसे हैं जो सरकारी फरमान के पालन नहीं होने का मौज काट रहे और प्रमोशन लेकर मलाईदार पदों पर काबिज रहे हैं। इसे लेकर अनुसूचित जाति, जनजाति वर्ग के युवाओं ने मोर्चा खोल दिया और पिछले दिनों वे आमरण अनशन पर बैठ गए, प्रदर्शन के दौरान आंदोलनकारियों की तबीयत बिगड़ गई, लेकिन सरकार और प्रशासन का रवैया उदासीन रहा। इसके बाद आंदोलनकारी आमरण अनशन को स्थगित कर आगामी होने वाले मानसून विधानसभा सत्र में निर्वस्त्र होकर प्रदर्शन करने जा रहे हैं।”

रायपुर में प्रदर्शन करते दलित-बहुजन युवा

प्रेस विज्ञप्ति में यह जानकारी भी प्रदर्शनकारियों द्वारा दी गई कि “छत्तीसगढ़ सरकार ने मामले को गंभीरता से लेते हुए फर्जी जाति प्रमाण पत्र के शिकायतों की जांच करने उच्च स्तरीय जाति छानबींन समिति का गठन किया। समिति को वर्ष 2000 से लेकर 2020 तक के कुल 758 प्रकरण मिले, जिसमें से 659 प्रकरणों में जांच की गई। इसमें 267 प्रकरणों में जाति प्रमाण पत्र फर्जी पाए गए।”

बहरहाल, इस मामले में छत्तीसगढ़ पुलिस ने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ एक मुकदमा दर्ज किया है। इसमें 14 युवाओं को नामजद अभियुक्त बनाया गया है। इनमें विक्रम जांगडे, राजकुमार सोनवानी, मोहनीश गेदले, व्यंकटेश मनहर, विनय कौशल, संगीत वर्मन, योगेश मनहर, अभिषेक कांबले, अश्वन कुमार भास्कर, जागृत कुमार खांडे, आशुतोष जानी, अमन दिवाकर, अंकित पात्रे और धनंजय बरमाल शामिल हैं।

वहीं इस पूरे मामले में राज्य का अनुसूचित जाति आयोग भी स्वयं को लाचार बताता है। आयेाग के अध्यक्ष के.पी. खांडे ने दूरभाष पर बातचीत के दौरान फारवर्ड प्रेस द्वारा यह पूछे जाने पर कि क्या उनके संज्ञान में फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर नौकरी प्राप्त करने का मामला लाया गया है, उन्होंने बताया कि “जानकारी तो बहुत नहीं है, लेकिन कुछ जानकारी है। लेकिन इस पर हम कार्यवाही क्या कर सकते हैं! हम तो उन्हें [फर्जी जाति प्रमाणपत्र धारी के] निष्कासन के लिए सिर्फ शासन को लिख सकते हैं, क्योंकि शासन ने इन्हें अपाइंट किया है और जांच में शासन इन्हें फर्जी पाया है तो निकालने का अधिकार शासन को है। हम तो इसमें कुछ नहीं कर सकते हैं। हम तो सिर्फ फारवर्ड कर देंगे कि इसमें कार्यवाही कीजिए। हमने तो कई बार शासन को लिखा है कि आपने जांच में इन्हें फर्जी पाया है तो इनका निष्कासन कीजिए।” वहीं आयोग द्वारा ऐसे मामले की जांच किए जाने के सवाल पर खांडे ने कहा, “नहीं, हम जांच क्या करेंगे। जांच तो शासन द्वारा हो गई है तभी तो फर्जी पाया है। हां, यदि कोई व्यक्तिगत रूप से शिकायत करता है तो हम उसकी जांच करवाएंगे। लेकिन जिस मामले में ऑलरेडी जांच हो चुकी है, उसमें हम कुछ नहीं कर सकते।”

(इनपुट : राजन/डिग्री प्रसाद चौहान/तामेश्वर, संपादन : राजन/अनिल)


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लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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