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मणिपुर में हिंसा : सबकी नजर में ‘केंद्र’ जिम्मेदार

मणिपुर में जो घटना घटित हुई है, इसकी जिम्मेदार पूरी भारत सरकार है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसके लिए जिम्मेदार हैं। मैं तो अपने ऊपर हुए जुल्म की बात कहती हूं कि कैसे जब मेरे गुप्तांगों में पत्थर डाला गया, मैं सुप्रीम कोर्ट तक गई, लेकिन जाने के बाद भी मुझे क्या मिला, जेल में ढाई साल की कैद। और जिन्होंने भी मेरे साथ अपराध किया उनको तो राष्ट्रपति पुरस्कार दिया गया। पढ़ें, सोनी सोरी सहित विभिन्न राजनेताओं व सामाजिक कार्यकर्ताओं की प्रतिक्रिया

[गत 4 मई, 2023 को मणिपुर में एक जघन्य घटना को अंजाम दिया गया। इस घटना की प्राथमिकी चौदह दिनों के बाद 18 मई, 2023 को दर्ज की गई। और इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर 19 जुलाई, 2023 को वायरल हुआ, क्योंकि हिंसा शुरू होने के साथ ही मणिपुर सरकार ने पूरे राज्य में इंटरनेट पर प्रतिबंध लगा दिया था। अगले दिन 20 जुलाई, 2023 को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ ने इस घटना के बारे में स्वत: संज्ञान लेते हुए भारत सरकार के अटार्नी जनरल आर. वेंकटारमणी व सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को बुलाया और उनके मार्फत केंद्र व राज्य सरकार से कहा कि वे जल्द ही मणिपुर के मामले में कार्रवाई करे, नहीं तो वे (अदालत) खुद कार्रवाई करेंगे। तब जाकर मणिपुर में हिंसा प्रारंभ होने के ढाई महीने बाद पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी चुप्पी तोड़ी। हालांकि संसद के मानसून सत्र के पहले मीडियाकर्मियों को संबोधित उनके आठ मिनट के संबोधन में उन्होंने छठवें मिनट में मणिपुर की घटना का जिक्र किया। मणिपुर में न जाने ऐसी कितनी घटनाएं घटित हुईं होंगी, जो प्रकाश में नहीं आईं या फिर कितने मामलों की प्राथमिकी पुलिस थानों में दर्ज की गई होंगी? जाहिर तौर पर जब ऐसे वीडियो सामने आएंगे तभी हम जो सामान्य जीवन जी रहे हैं, जान पाएंगे कि मणिपुर में हमारे भाई-बहन पिछले ढाई महीने से किस भयानक दौर से गुजर रहे हैं। वैसे भी ऐसा लगता है कि केवल ऐसे वीडियो ही प्रधानमंत्री की जुबान खुलवा सकते हैं।] 

अपराध, जिसे अंजाम दिया गया

मणिपुर में हिंसा गत 3 मई, 2023 को राज्य के उच्च न्यायालय के एक फैसले के खिलाफ कुकी व नागा जनजाति के लोगों द्वारा प्रदर्शन के दौरान मैतेई समुदाय के लोगों के साथ झड़प से शुरू हुई। अप्रैल माह के अंत में दिए गए फैसले में उच्च न्यायालय ने बहुसंख्यक मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा दिए जाने की उनकी मांग को सही ठहराया था। अगले दिन, 4 मई को, कांगपोकपी जिले के बी. फैनोम गांव के कुकी निवासियों को अपने मैतेई पड़ोसियों से पता चला कि मैतेई लोगों की एक हिंसक भीड़ उनके गांव की तरफ बढ़ रही है। अपनी जान बचाने के लिए कुकी समुदाय के लोग पास में स्थित जंगल की ओर भाग निकले। इनमें शामिल थे बीस साल के आसपास की एक महिला, उसका भाई, पिता और दो अन्य महिलाएं, जो क्रमशः अपने जीवन के चौथे और पांचवे दशक में थीं। सबसे युवा महिला ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ को बताया, “जिस भीड़ ने हमारे गांव पर हमला किया, उसके साथ पुलिस भी थी। पुलिसवालों ने हमें (हमारे) घर के नज़दीक से पकड़ा और गांव से थोड़ी दूर ले जाकर सड़क पर वहीं छोड़ दिया, जहां भीड़ थी। पुलिस ने हमें उनके हवाले कर दिया।”

पुलिस द्वारा दर्ज प्राथमिकी के मुताबिक पीड़ित औरतों ने कहा कि हथियाबंद भीड़ ने दोनों पुरुषों की हत्या कर दी और महिलाओं को उनके कपड़े उतारने पर मजबूर किया। 

फिर, जैसा कि वीडियो में दिखाया गया है, उन्हें नज़दीक के एक खेत में ले जाया गया। रास्ते में भीड़ में मौजूद पुरुष उनके शरीर के अंगों को जबरदस्ती छू रहे थे। बाद में, जैसा कि प्राथमिकी में वर्णित है कि सबसे युवा लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया।  

फारवर्ड प्रेस ने इस मुद्दे पर जनजाति समुदाय के राजनेताओं व सामाजिक कार्यकर्ताओं से बातचीत की।  

सरकार नियंत्रण ही नहीं करना चाहती : नाबा कुमार सरणिया, सांसद, कोकराझार (असम) 

असम के कोकराझार से सांसद व गण सुरक्षा पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नाबा कुमार सरणिया ने दूरभाष पर कहा कि “मणिपुर में जो हुआ, वह ठीक नहीं है। मैं पहले से ही कहता रहा हूं कि वहां के सीएम ठीक नहीं हैं। सीएम ऐसा होना चाहिए, जो सबको एकजुट कर सके और सबको एक साथ लेकर चल सके। हमारे पास इतना बड़ा फोर्सेज (सुरक्षा बल) हैं, इंटेलिजेंस, तंत्र, मंत्री और अधिकारी हैं, फिर भी यह कंट्रोल क्यों नहीं हो रहा है? जांच के लिए कोई टीम क्यों नहीं जा रही है? क्योंकि यह सब कंट्रोल करना नहीं चाह रहे। वीडियो में जो दिख रहा है, उसकी जांच के लिए हमारी टीम जाएगी और फैक्ट फाइंडिंग करेगी। मणिपुर में कोई थर्ड पार्टी है, जो यह सब कर रही है।” 

उन्होंने आगे कहा कि “हमारे देश की राष्ट्रपति और मणिपुर की राज्यपाल आदिवासी जरूर हैं, लेकिन यह पद ऐसा होता है कि ये लोग कुछ बोल नहीं सकते, और बोल नहीं सकते तो कुछ कर भी नहीं सकते, क्योंकि ये पावरफुल दिखते जरूर हैं, लेकिन पावरलेस और रबरस्टांप होते हैं। इस घटना के बारे में हम मानसून सत्र में बोलेंगे।”

भारत सरकार और नरेंद्र मोदी हैं जिम्मेदार : सोनी सोरी

छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में रहनेवाली देश की प्रसिद्ध मानवाधिकार कार्यकर्ता सोनी सोरी ने कहा कि “मणिपुर में जो घटना घटित हुई है, इसकी जिम्मेदार पूरी भारत सरकार है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसके लिए जिम्मेदार हैं। मैं तो अपने ऊपर हुए जुल्म की बात कहती हूं कि कैसे जब मेरे गुप्तांगों में पत्थर डाला गया, मैं सुप्रीम कोर्ट तक गई, लेकिन जाने के बाद भी मुझे क्या मिला, जेल में ढाई साल की कैद। और जिन्होंने भी मेरे साथ अपराध किया उनको तो राष्ट्रपति पुरस्कार दिया गया। भारत सरकार तो ऐसे लोगों को सम्मानित करती है। हम महिलाओं के साथ, हम आदिवासी महिलाओं के साथ तो इस सरकार में यहीं होना है। 

“इस घटना को देखकर मैं खुद के साथ हुई घटना को याद कर रही हूं कि कितने ऐसे जख्म हैं। सवाल सिर्फ आदिवासी का नहीं है। महिला तो हर वर्ग की है। लेकिन यह सब जो हो रहा है यह बहुत शर्म की बात है। क्या मोदी सरकार को समझ में नहीं आ रहा है? मोदी जी को तुरंत स्टैंड लेना चाहिए। तुरंत अपराधियों को जेल में डालना चाहिए। लेकिन मोदी सरकार तो इसमें भी घुमाव-फिराव कर रही है। 

“आज हर दिन हमारे बस्तर के आदिवासी महिलाओं के साथ छेड़छाड़ हो रहा है, ये बातें बाहर नहीं आती हैं। बस्तर की महिलाएं रोजाना सह रही हैं। मणिपुर में जो हमारी बहनों के साथ हुई घटना ढाई महीने बाद यह घटना सामने क्यों आई, पहले क्यों नहीं आई? मैं तो कहती हूं कि मोदी जी हम लोगों से सवाल पूछें। आ जाएं बात करने के लिए। उनके सवाल का जवाब देंगे और साबित भी करेंगे कि आप मणिपुर में जारी हिंसा और महिलाओं के साथ हुए अपराध के लिए तथा बस्तर में होनेवाली घटनाओं के लिए भी कैसे जिम्मेदार हैं। बस्तर के ही पद्दागेलूर की बारह महिलाओं के मामले में हमलोग छत्तीसगढ़ की हाईकोर्ट गए, हमारी अपील खारिज हो गई। महिलाओं ने अपनी बलात्कार के कपड़े ले जाकर शासन, प्रशासन और कोर्ट को दिखाया। उनकी एफआईआर भी दर्ज हुई, लेकिन उससे क्या हुआ, उसके बाद कोर्ट मुकदमे को खारिज कर दिया। 

“उसके बाद फिर यहां की पुलिस बोलती है कि सरकार हमारी है, कोर्ट हमारी है, हम कुछ भी करेंगे, जो तुम्हें करना है कर लो। यह सब मैं सबूत के साथ कह रही हूं। बस्तर के महिलाओं के साथ हुआ, सोनी सोरी के साथ हुआ, कितने महिलाओं के साथ बलात्कार करके उनके स्तनों को काटा गया, नाकों को काटा गया, गुप्तांगों में पत्थर डाला गया, बलात्कार करके मार दिया। बस्तर में तो ऐसे अनगिनत है। सोनी सोरी तो जिंदा है। मैं पूछती हूं कि मैंने क्या गुनाह किया था? यदि कोई इल्जाम मुझ पर था या कोई अपराध था तो मुझ पर कार्रवाई करनी चाहिए थी, मेरे गुप्तांगों में पत्थर डालने का क्या जरूरत थी। मुझे तो थाने में निर्वस्त्र किया गया। और निर्वस्त्र करने वाले को राष्ट्रपति पुरस्कार मिलता है। तो इसका जिम्मेदार कौन है? प्रधानमंत्री से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक जिम्मेदार है। आप बोलते हैं कि समानता (यूसीसी) का कानून लाएंगे, लेकिन समानता का कानून लाकर क्या करेंगे जब यह सब नहीं रोक पा रहे हैं।”

मणिपुर में हिंसा का दौर खत्म करने के लिए अविलंब पहल करे केंद्र : (तस्वीर में बाएं से दाएं – सोनी सोरी, नाबा कुमार सरणिया, डॉ. हिरालाल अलावा, छोटूभाई वसावा, राजू वलवई, वंदना टेटे व डॉ. मेडुसा)

अविलंब बर्खास्त हों मणिपुर सरकार, लगे राष्ट्रपति शासन : डॉ. हिरालाल अलावा, विधायक, मनावर (मध्य प्रदेश)

विधायक व जय आदिवासी युवा शक्ति (जयस) संगठन के राष्ट्रीय संरक्षक डॉ. हिरालाल अलावा ने दूरभाष पर अपनी प्रतिक्रिया में कहा–  “मणिपुर की घटना बहुत ही वीभत्स है। मणिपुर सरकार को तुरंत बर्खास्त करके राष्ट्रपति शासन लगाया जाना चाहिए। पूरे देश में आदिवासियों पर जो अत्याचार हो रहा है, मणिपुर के आदिवासियों पर जो बर्बरता हो रही है, उसके बारे में प्रधानमंत्री को अपना स्पष्टीकरण देना चाहिए और तत्काल कड़े एक्शन लेना चाहिए। जयस संगठन मांग करता है कि यदि राष्ट्रपति महोदया कड़े एक्शन नहीं ले सकती हैं, दोषियों को फांसी नहीं दिला सकती हैं तो उन्हें अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए।”

जब तक आदिवासी इकट्ठे नहीं हो जाएंगे तब तक आरएसएस-भाजपा आदिवासियों को बांट-बांट कर अत्याचार करती रहेगी : छोटू भाई वसावा

गुजरात के वरिष्ठ नेता एवं भारतीय ट्राईबल पार्टी के संस्थापक छोटूभाई वसावा ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा– “मणिपुर की अबतक की सभी घटना आरएसएस और भाजपा के एजेंडा का हिस्सा है, ताकि मणिपुर को आदिवासियों से खाली कराकर अडानी-अंबानी और मल्टीनेशनल कंपनियों को वहां ला सकें, क्योंकि मणिपुर में तो 371-सी लागू है। जब तक पूरे देश के आदिवासी इकट्ठे नहीं हो जाएंगे तब तक आरएसएस-भाजपा आदिवासियों को बांट-बांट कर अत्याचार करती रहेगी। हमारे देश में आदिवासियों का कोई नेशनल लीडरशीप नहीं है, आदिवासियों का कोई नेशनल लीडरशीप होना चाहिए। पावर के लिए हमारे लोग बंट गए हैं और अलग-अलग पार्टियों में जाते हैं। हमारे लोग संगठित नहीं हैं, इसीलिए तो ये सब हमला कर रहे हैं हम लोगों के ऊपर। ये जो आदिवासी राष्ट्रपति और राज्यपाल बनाए हैं, यह लेबर हैं आरएसएस-भाजपा के। ये लोग कुछ भी नहीं बोलेंगे। मणिपुर में सब लोग साथ रहते थे, लेकिन आरएसएस-भाजपा वालों उन्हें डिवाइड करके रूल करने के लिए यह सब कर रहे हैं। इसके लिए आरएसएस-भाजपा जिम्मेदार है। मणिपुर की घटना के विरोध में हमारी पार्टी ने पूरे गुजरात में आवेदन दिया है और विरोध प्रदर्शन भी कर रहे हैं।” 

नरेंद्र मोदी खुद को मुस्लिम और ईसाई विरोधी साबित करके हिंदुओं का वोट बटोरना चाहते हैं : राजू वलवई

गुजरात के वरिष्ठ सामाजिक राजनीतिक कार्यकर्ता राजू वलवई ने कहा कि “मणिपुर घटना के विरोध में गुजरात में आदिवासियों के लिए काम करने वाले सभी संगठन मिलकर गुजरात के सभी जिलों में भाजपा कार्यालयों पर हल्ला बोलेंगे। भाजपा शासित राज्यों में हाल ही में दो कांड ऐसे हुए हैं, जिससे मानवता शर्मसार हो जाए। एक घटना मध्य प्रदेश के सीधी में पेशाब कांड और दूसरा मणिपुर में आदिवासियों महिलाओं को गैंगरेप और निर्वस्त्र कर घुमाया जाना। यह तो बिलकुल निंदनीय है, प्रधानमंत्री को इस मामले में सख्त एक्शन लेना चाहिए। दोनों राज्यों मध्य प्रदेश और मणिपुर के मुख्यमंत्रियों से इस्तीफा ले लेना चाहिए। मणिपुर में अभी तक शांति नहीं बहाल हो सकी है, इसके लिए तो केंद्र सरकार ही जिम्मेदार है। खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिम्मेदार हैं। नरेंद्र मोदी खुद को मुस्लिम और ईसाई विरोधी साबित करके हिंदुओं का वोट बटोरना चाहते हैं। राष्ट्रपति और [मणिपुर] के राज्यपाल भी आदिवासी हैं, लेकिन भाजपा के रबर स्टांप हैं, इसलिए इन दोनों ने अभी तक इस घटना के बारे में कुछ नहीं कहा। इस घटना के बारे में राष्ट्रपति और राज्यपाल का कोई बयान नहीं आना दुर्भाग्यपूर्ण है।”

राष्ट्रपति के अंदर आदिवासियत बची होगी तो वह जरूर बोलेंगी : वंदना टेटे

झारखंड की वरिष्ठ लेखिका वंदना टेटे ने कहा कि “मणिपुर की जो यह घटना है, जिसमें दो आदिवासी कुकी समुदाय की महिलाओं को बंधक बनाया और उनके साथ जघन्यतम कुकृत्य किया है, इतना घिनौना किया है कि पूरी मानवता शर्मसार हो रही है। अभी हम जिस समय में जी रहे हैं, जिस तरह से आदिवासियों पर अत्याचार की घटनाएं हो रही हैं, अभी हम मध्य प्रदेश के सीधी वाले पेशाब कांड से उबरे भी नहीं थे कि इस घटना को लोगों ने अंजाम दिया है। ये सारी चीजें कहीं न कहीं सुनियोजित तरीके से की जा रही हैं, क्योंकि एक आदमी वीडियो बना रहा है, और उसको सोशल मीडिया पर डाल रहा है। इसमें भी भीड़ है, जो इस कुकृत्य को अंजाम देती है। और उसका वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर डाल रहे हैं। तो यह उनके मानसिक दिवालियेपन का स्तर है कि लोग किस हद तक गिर रहे हैं। गिरने की कोई सीमा नजर नहीं आ रही है। इस तरह से करना इंसानी समाज के लिए डूब मरने वाली बात है। यह क्या हो रहा है कि हम इस तरह के समाज में जी रहे हैं और खुद को सभ्य और विकसित समाज माने जा रहे हैं। हमारे राष्ट्र को चलाने वाले उच्च पदों पर बैठे हमारे लोग प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, और आदिवासी राज्यों में राज्यपाल उस राज्य का सर्वोच्च कर्ताधर्ता होता है। उनकों यह विशेष जिम्मेदारी होती है कि पांचवीं और छठी अनुसूची के तहत आनेवाले आदिवासियों के सुरक्षा की व्यवस्था करें। लेकिन ये सभी लोग चुप हैं। क्या इन लोगों के आंखों का पानी मर गया है। जिस भयावहता से इस घटना को अंजाम दिया गया है, क्या इन लोगों को इससे पीड़ा नहीं होती है? क्या उनकों अपने परिवार की महिलाओं की चिंता नहीं होती है। जबसे मणिपुर जल रहा है राज्यपाल ने एक शब्द नहीं कहा। राज्यपाल की क्या भूमिका होती है। उनके जुबान से एक शब्द भी क्यों नहीं निकला। हमारी महामहिम राष्ट्रपति महोदया के जुबान से भी एक शब्द नहीं निकला। हम किससे उम्मीद करें। आदिवासियों को अपने तरीके से जीने नहीं देना चाहते हैं। और वो आपकी तरफ आते हैं तो वहां भी उन्हें इसी तरह बर्बरतापूर्ण बर्ताव किया जा रहा है। जिस पार्टी की सरकार केंद्र में और उस राज्य में है, वह पार्टी तो महिलाओं को अपने पैर की जूती समझती है। कहने को तो वह पार्टी कहती है कि महिलाएं माता हैं, धीरेंद्र शास्त्री ने भी महिलाओं के बारे अपमानजनक कहा। यह बताता है कि आपकी सोच क्या है। हमारी महामहिम भी जिस पार्टी से भी आती हों, हम उनसे उम्मीद करते हैं कि उनमें जरा-सा भी आदिवासियत बची होगी तो इससे बाहर निकलेंगी और बोलेंगी अपने लोगों के लिए।” 

राष्ट्रपति महोदया, मणिपुर की कुकी महिलाओं को इंसाफ दिलाएं : डॉ. मेडुसा 

इस पूरे प्रकरण में लखनऊ विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. मेडुसा ने ट्वीटर पर वीडियो अपील जारी किया है। मूलत: असम की रहनेवाली मेडुसा ने अपनी प्रतिक्रिया हमारे अनुरोध पर लिखित रूप में भेजा है–

“आदरणीय महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी, नमस्ते। इस देश की एक आम नागरिक, एक औरत आज इस वीडियो के माध्यम से आपतक एक अपील पहुंचाना चाहती हूं। यह अपील मैं पूर्ण रूप से एक औरत एक इंसान होने की हैसियत से कर रही हूं।

पिछले ढाई महीने से हमारे देश का एक राज्य मणिपुर जातीय हिंसा की आग में जल रहा है। इस आग की लपट में 150 से अधिक लोग आए हैं, जिनमें पुरुष, महिलाएं और बच्चे सभी शामिल हैं। मगर आज एक जघन्य घटना की वजह से मेरी आत्मा कांप उठी है और हिंसा को बढ़ावा देकर लाशों पर अपनी सत्ता की नींव रखकर काटे हुए नरमुंडों से अपना सिंहासन सजानेवाली एक सरकार की डर के बावजूद मेरे लब खुल पड़े हैं।

कुकी जनजाति की दो महिलाओं को सरेआम नंगी अवस्था में सैंकड़ों की तादाद में मैतेई मर्द एक मैदान में ले जाते हैं, उनके शरीर के साथ खिलवाड़ करते हुए, उनकी निश्चित मृत्यु की ओर। 

आज करोड़ों लोग वह वीडियो देख रहे हैं, कुछ मानवता की मौत का शोक मना रहे हैं, कुछ पितृसत्ता के द्वारा औरत के शरीर को जंग में जीत या हार का हथियार और परिणाम दोनों बनते बस देख रहे हैं। आप भी एक महिला हैं। एक आदिवासी महिला हैं। इस देश का इतिहास सदियों से मूलनिवासी महिलाओं के साथ हुए हिंसा को देखता आ रहा है। 

आप भी यह सब जानती हैं। आपका देश के सर्वोच्च पद पर होना सभी महिलाओं के लिए गर्व और आशावान का विषय था। फिर आज आप चुप क्यों हैं? आपके पास वह अधिकार है, वह ताकत है जो हम जैसी आम महिलाओं के पास नहीं है। हम आम नागरिकों के पास नहीं है। 

आप शांति की अपील करेंगी शायद। देश के विभिन्न समुदायों में हिंसा को पालने वाली सरकार की डिनर टेबुल से गिरते लोगों के मांस के टुकड़ों पर पलनेवाली देश की मीडिया को मणिपुर का अहसास हो?

शायद आपके कहने से दुनिया में बजते भारत के डंके की आवाज के शोर में कहीं उन दो कुकी महिलाओं की आंखों में गूंजती चीख सुनाई दे। शायद सरकार को ही गोश्त नोंचते नोंचते यह याद आए कि ये इंसान है। औरत का शरीर इस देश में बहुत सस्ता है। शायद आपकी आवाज से उसे कोई भाव मिले। 

इसलिए मेरी आपसे करबद्ध प्रार्थना है। उन दो कुकी महिलाओं के लिए जो उन सौ आदमियों के नंगे जीत की, एक कातिल, एक बुजदिल फासीवादी सरकार की, और पितृसत्ता की बलि चढ़ गई। मणिपुर को बचा लिजीए। वहां औरतों को बचा लिजीए। आप ही कुछ कर सकती हैं।”

(संपादन : नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

राजन कुमार

राजन कुमार फारवर्ड प्रेस के उप-संपादक (हिंदी) हैं

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