h n

बिहार में जातिगत गणना पर रोक हटी, 2018 में बना कानून आया काम

हाई कोर्ट का फैसला आने के बाद ही हरकत में आई राज्य सरकार ने सभी जिलाधिकारियों को जातिगत गणना व सर्वेक्षण का काम जल्द-से-जल्द पूरा करने का निर्देश जारी किया। अहम बात यह कि बिहार सरकार को मिली इस जीत के पीछे 2018 में बनाया गया राज्य सांख्यिकी संग्रह अधिनियम है। पढ़ें यह खबर

उत्तर भारत के एक प्रमुख राज्य बिहार में जातिगत गणना पर लगी रोक को पटना हाई कोर्ट ने वापस ले लिया है। गत 1 अगस्त, 2023 को अपने फैसले में पटना हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमृर्ति के. विनोद चंद्रन व न्यायमूर्ति पार्थ सारथी की पीठ ने इस मामले में छह याचिकाओं को खारिज कर दिया। बिहार सरकार के लिए हाई कोर्ट का यह फैसला राहत देनेवाला साबित हुआ। वजह यह कि राज्य सरकार ने अदालत को बताया था कि जातिगत गणना व सर्वेक्षण का काम 80 प्रतिशत पूर्ण हो चुका है। 

हाई कोर्ट का फैसला आने के बाद ही हरकत में आई राज्य सरकार ने सभी जिलाधिकारियों को जातिगत गणना व सर्वेक्षण का काम जल्द-से-जल्द पूरा करने का निर्देश जारी किया। अहम बात यह कि बिहार सरकार को मिली इस जीत के पीछे 2018 में बनाया गया राज्य सांख्यिकी संग्रह अधिनियम है। इसके तहत राज्य को सर्वेक्ष्ण कराने का अधिकार प्रदत्त है। इसके कारण सामाजिक और आर्थिक स्तर पर पिछड़ेपन के आकलन के लिए राज्य सरकार सर्वेक्षण करा सकती है।

दरअसल, इसके पहले जब 4 मई, 2023 को पटना हाई कोर्ट ने दायर याचिकाओं की सुनवाई के क्रम में जिस अहम सवाल को ध्यान में रखते हुए राज्य में जातिगत गणना व सर्वेक्षण पर अंतरिम रोक लगा दी थी, वह था– “क्या राज्य सरकार को जाति आधारित जनगणना कराने का अधिकार प्राप्त है?” दरअसल, इसी तर्क के आधार पर राज्य सरकार के निर्णय को सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। गत 21 अप्रैल, 2023 को शुरू हुई सुनवाई के बाद 27 अप्रैल, 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को पटना हाई कोर्ट जाने को कहा। इसके बाद की तारीख 4 मई, 2023 को पटना हाई कोर्ट ने राज्य सरकार के निर्णय पर अंतरिम रोक लगा दी।

पटना हाई कोर्ट परिसर की तस्वीर

पटना हाई कोर्ट के द्वारा अंतरिम रोक लगाए जाने के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की तरफ से राज्य सरकार पर यह कहकर हमला बोला गया कि राज्य सरकार ने अदालत में अपने निर्णय की रक्षा जान-बूझकर नहीं किया, क्योंकि वह राज्य के पिछड़ा वर्ग के लोगों की गणना को लेकर संवदेनशील नहीं है। लेकिन 9 मई, 2023 को राज्य सरकार द्वारा मामले की जल्द सुनवाई करने संबंधी अनुरोध याचिका को पटना हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया। नतीजतन राज्य सरकार 11 मई, 2023 को सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर कर उससे अनुरोध किया कि मामले की सुनवाई करने के संबंध में वह हाई कोर्ट को निर्देशित करे। लेकिन अदालत-दर-अदालत राज्य सरकार की कोशिशें विफल साबित हुईं। 18 मई, 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को वापस हाई कोर्ट जाने को कहा।

इस पूरे मामले में बिहार में मुख्य विपक्षी दल भाजपा और उसके सहयोगी उपेंद्र कुशवाहा ने राज्य सरकार पर तमाम तरह के आरोप लगाए। वहीं कथित ऊंची जातियों के लोगों ने यह मान लिया था कि राज्य सरकार द्वारा प्रारंभ की गई यह कोशिश अदालत में अंतिम रूप से खारिज कर दी जाएगी। उनकी उम्मीदों को बल उस वक्त और मिला जब 3 जुलाई, 2023 को हाई कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई शुरू करने के बाद 7 जुलाई, 2023 को सुनवाई पूरी करने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था।

दरअसल, इस पूरे मामले में दलगत आधार पर किसी भी दल ने हस्तक्षेप नहीं किया। इसकी वजह यह रही कि इस मामले का संबंध राज्य के बहुसंख्यक पिछड़ा वर्ग से है। लिहाजा किसी भी दल, यहां तक कि भाजपा ने भी सीधे तौर पर गणना सह सर्वेक्षण पर सवाल नहीं उठाया। लेकिन इसे अदालत में चुनौती देनेवाले छह याचिकाकर्ताओं, जिनमें से एक ‘यूथ फाॅर इक्वलिटी’ नामक तथाकथित सामाजिक संगठन भी शामिल है, जिसने पूर्व में भी दलित-बहुजनों को मिलनेवाले आरक्षण का विरोध किया था।

बहरहाल, पटना हाई कोर्ट के फैसले का स्वागत मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव सहित राज्य के सभी दलों के नेताओं ने किया है। विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता ने अपने बयान में हाई कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए यह आरोप लगाया कि राज्य सरकार सर्वेक्षण के आंकड़ों को दुरूपयोग करेगी। वहीं राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद ने अपनी प्रतिक्रिया में हाई कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा है कि इस गणना से राज्य के दलितों और पिछड़ों के कल्याण के वास्ते कानून बनाए जा सकेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि इस तरह की गणना राष्ट्रीय स्तर पर हो, इसके लिए वे केंद्र सरकार से अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध कर रहे हैं। 

(संपादन : राजन/अनिल)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

संबंधित आलेख

वजीरपुर के स्वाभिमान अपार्टमेंट्स और दिल्ली चुनाव
इन अपार्टमेंट्स के लिए आवंटन 2009 में किया गया, लेकिन इसके लिए टेंडर 2014 में निकाले गए और निर्माण कार्य 2017 में प्रारंभ हुआ,...
जेएमडी की नाराज़गी पड़ी आम आदमी पार्टी को भारी
झुग्गियों पर डीडीए की बुलडोज़र कार्रवाई, सीएए-एनआरसी मुद्दे पर आंदोलन और फिर उत्तरी दिल्ली में हुए सांप्रदायिक दंगों पर चुप्पी से पार्टी के कोर...
यूजीसी के नए मसौदे के विरुद्ध में डीएमके के आह्वान पर जुटान, राहुल और अखिलेश भी हुए शामिल
डीएमके के छात्र प्रकोष्ठ द्वारा आहूत विरोध प्रदर्शन को संबोधित करते हुए अखिलेश यादव ने कहा कि आरएसएस और भाजपा इस देश को भाषा...
डायन प्रथा के उन्मूलन के लिए बहुआयामी प्रयास आवश्यक
आज एक ऐसे व्यापक केंद्रीय कानून की जरूरत है, जो डायन प्रथा को अपराध घोषित करे और दोषियों को कड़ी सज़ा मिलना सुनिश्चित करे।...
राहुल गांधी का सच कहने का साहस और कांग्रेस की भावी राजनीति
भारत जैसे देश में, जहां का समाज दोहरेपन को अपना धर्म समझता है और राजनीति जहां झूठ का पर्याय बन चली हो, सुबह बयान...