h n

रांची में देश भर से जुटे आदिवासियों ने बनाया प्रेशर ग्रुप

समिट में आदिवासियों के हक अधिकार, सुरक्षा और न्याय के लिए राष्ट्रीय स्तर पर स्वतंत्रत आदिवासी नेतृत्व तैयार करने के लिए प्रस्ताव पारित किया गया और विभिन्न राज्यों से कार्यक्रम में शामिल हुए बुद्धिजीवियों को मिलाकर एक प्रेशर ग्रुप का गठन किया गया। बता रहे हैं राजन कुमार

विगत दिनों मध्यप्रदेश के सीधी जिले में हुए पेशाब कांड और मणिपुर हिंसा के बाद आदिवासी समुदाय द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर ऐसे आदिवासी नेतृत्व की कमी महसूस की गई, जो आदिवासियों के हक-अधिकारों एवं सुरक्षा के लिए आवाज उठा सके। इसी के मद्देनजर सरना धर्म गुरु बंधन तिग्गा की अध्यक्षता में झारखंड की राजधानी रांची के कटहल मोड़ स्थित लालगुटवा रिसोर्ट में 26-27 अगस्त, 2023 को दो दिवसीय ‘राष्ट्रीय आदिवासी समिट’ का आयोजन किया गया। 

आदिवासी समन्वय मंच, भारत के तत्वावधान में राजी पड़हा सरना प्रार्थना सभा भारत व जय आदिवासी युवा शक्ति (जयस) के बैनर तले आयोजित इस समिट का उद्देश्य राष्ट्रीय स्तर पर ऐसे प्रेशर ग्रुप का गठन करना था, जो आदिवासियों के हक-अधिकारों एवं सुरक्षा के मुद्दों पर आवाज उठाए और आदिवासियों की न्याय के लिए सरकारों पर दबाव बनाए। झारखंड राज्य के अलावा 12 राज्यों– मध्यप्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़, दिल्ली, तेलंगाना, असम, बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, ओड़िशा, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों के आदिवासी बुद्धिजीवी एवं कार्यकर्ता शामिल हुए।

समिट में आदिवासियों के हक अधिकार, सुरक्षा और न्याय के लिए राष्ट्रीय स्तर पर स्वतंत्रत आदिवासी नेतृत्व तैयार करने के लिए प्रस्ताव पारित किया गया और विभिन्न राज्यों से कार्यक्रम में शामिल हुए बुद्धिजीवियों को मिलाकर एक प्रेशर ग्रुप का गठन किया गया। इस कड़ी में प्रेशर ग्रुप की अगली बैठक दिल्ली में दिसंबर माह में आयोजित की जाएगी, जिसमें प्रेशर ग्रुप के सभी राज्यों के आदिवासी सदस्य शामिल होंगे।

समिट में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के विरोध के अलावा मणिपुर हिंसा एवं देश के विभिन्न भागों में आदिवासियों के प्रति हो रहे जुल्म अत्याचार को रोकने; आदिवासियों के लिए सरना धर्म कोड देने; संवैधानिक रूप से अनुसूचित जनजाति शब्द को हटाकर ‘आदिवासी’ शब्द करने; शिड्यूल डिस्ट्रिक्ट अधिनियम – 1874, संविधान के अनुच्छेद 244(1) के तहत पांचवी अनुसूची, पेसा कानून 1996, समता निर्णय 1997, वन अधिकार अधिनियम 2006 से संबंधित प्रदत्त शक्ति, आदिवासी अधिकारों से संबंधित स्वशासन (गवर्नेंस) को लागू करने; ‘अबुआ दिशुम, अबुआ राज’ की परिकल्पना को हकीक़त कर ठेका-पट्टा, बाजार हॉट, वनोपज, बालू पत्थर, खनिज लवण, नौकरी अनुसूचित क्षेत्रों में आदिवासियों को देने की वकालत की गई।

मंचासीन वक्तागण (बाएं से दाएं) – संजय पहान, नरसिम्हा राव कत्राम, गजरा मेहता, बंधन तिग्गा, नब कुमार सराणिया, डॉ. हिरालाल अलावा, सालखन मुर्मू

समिट की अध्यक्षता कर रहे सरना धर्मगुरु बंधन तिग्गा ने धरती और प्रकृति को बचाने एवं संरक्षित करने का संदेश देते हुए समिट की शुरुआत की। उन्होंने कहा कि आदिवासियों के हित में अनेक कानून रहते हुए भी आदिवासियों का शोषण किया जा रहा है, जल जंगल जमीन लूटा जा रहा है, जो चिंता का विषय है। देशभर में आदिवासियों पर अत्याचार हो रहा है, लेकिन केंद्र एवं राज्यों की सरकारें आदिवासियों को सुरक्षा नहीं दे पा रही हैं क्योंकि हम लोग एकजुट नहीं हैं। बहुत पहले पुरखों के समय में गांव में एक घंटा बजता था तो सभी गांव वाले इकट्ठा हो जाते थे, और अत्याचार के विरुद्ध एकजुट होकर लड़ाई लड़ी जाती थी। आज फिर आदिवासी समुदाय को एकजुट होने की जरूरत है ताकि हम अपने लोगों को सुरक्षा दे सकें, अपने जल, जंगल, जमीन को बचा सकें और अपने रीति-रिवाज, परंपराओं, प्रथाओं, मानकी मुंडा व्यवस्था, स्वशासन एवं पंचायत व्यवस्था को बेहतर कर सकें। 

असम के कोकराझार से सांसद नब कुमार सराणिया ने कहा कि धार्मिक सामाजिक पहचान सरना धर्म कोड दिलाने हेतु मैं संसद में बात उठाऊंगा। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर आदिवासी समाज को राजनीतिक एजेंडा के तहत आदिवासी नेतृत्व तैयार करना होगा। यदि आदिवासी समाज पोलिटिकल एजेंडा तैयार करता है तो हम 100 से ज्यादा सांसद चुनकर दिल्ली भेज सकते हैं। हमें एकजुट होकर और अन्य वंचित वर्गों को भी साथ लेकर हमें अपना पोलिटिकल एजेंडा तय करना होगा। हमें अपना पोलिटिकल एजेंडा कांशीराम के बहुजन आंदोलन से समझना होगा। मैं इस प्रेशर ग्रुप को आगे सुचारू रूप से काम करने के लिए हर तरह से साथ हूं। 

मध्य प्रदेश से विधायक डॉ. हिरालाल अलावा ने कहा कि पूरे भारत हमारा आदिवासी समुदाय को आज आजादी के 75 साल बाद इस अमृतकाल में भी संघर्ष करना पड़ रहा है। आदिवासियों को हक अधिकारों के लिए, रोजगार और शिक्षा के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है। हम लोग सिर्फ नाचने गाने में ध्यान न दें, बल्कि अपने अधिकारों के लिए जागरूक बनें। यदि हम लोग राजनीति में दमदारी से भाग नहीं लेंगे तो बुरे लोग हमपर राज करने लगेंगे। संविधान में हमको आदिवासी के रूप में दर्ज करने के लिए जयपाल सिंह मुंडा ने आवाज उठाई थी, लेकिन हम लोगों को अनुसूचित जनजाति दर्जा दिया गया, जिससे हम आदिवासी एक राज में एसटी हैं, दूसरे राज्य एससी, ओबीसी, और जनरल में आ गये, जिससे हमारी एकजुटता खत्म हो रही है। 

ओड़िशा के पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने कहा कि आज की सभी पार्टियों की सरकारें आदिवासियों को अपमानित जीवन जीने के लिए मजबूर कर रही हैं। हमें न्याय नहीं मिल रहा है। यह हमारे लिए दुख की बात है कि हमारे जनप्रतिनिधि संसद और विधानसभा में हमारे लिए कुछ बोल नहीं पा रहे हैं। यहां का प्रेशर ग्रुप जनता की जागरूकता पर निर्भर करेगा। यदि आम आदिवासी लोग प्रेशर ग्रुप के साथ खड़ा होंगे तो हम अपने अधिकारों को हासिल करने मे कामयाब हो पाएंगे। और आदिवासियों को सुरक्षा भी मिल सकेगा। हम सरना धर्म कोड भी हासिल कर पाएंगे। आदिवासी जनसमुदाय एकजुट हो कर हमारे आंदोलन को साथ देना होगा। 

गुजरात से आए अशोक चौधरी (अध्यक्ष, आदिवासी एकता परिषद) ने कहा कि यूसीसी के लागू करने से समाज ‘व्यक्ति केंद्रित’ होकर बिखर जाएगा। पूंजीवादी विचारधारा हावी हो जाएगी, आदिवासियों की संपत्ति जल-जंगल-जमीन पर उद्योगपतियों और गैर-आदिवासियों का कब्जा हो जाएगा। यूसीसी के द्वारा षड्यंत्र के तहत कुछ संभ्रांत आदिवासियों को अपने पक्ष में लाने के बाद आदिवासियों की राजनीतिक, सामाजिक अधिकारों को पूंजीवादी तरीके से इस्तेमाल किया जाएगा। पूरा परिदृश्य पूंजीवादी हो जाएगा।

आदिवासी समन्वय समिति मध्य प्रदेश के अध्यक्ष गजरा मेहता ने कहा कि आज जरूरत है ऐसे नेतृत्व की जो राष्ट्रीय स्तर पर आदिवासियों का नेतृत्व कर सके। यह सभा एक उम्मीद की किरण है जो ऐसे नेतृत्व पैदा करेगी। और दिल्ली में संसद में जाकर हमारे हक-अधिकारों के लिए लड़ेगी। हम एकजुटता और सामूहिकता का मूलमंत्र लेकर आगे बढ़ेंगे।

समिट में अनु अरूणा कुजूर (जशपुर, छत्तीसगढ़), बेनीलाल वसावा (सूरत, गुजरात), ठाकोर भाई चौधरी (गुजरात), सुश्री कुसूम रावत (अध्यक्ष, आदिवासी एकता परिषद महिला विंग, राजस्थान), शंभू हंसदा (असम), जवरभाई वसावा (गुजरात), बृजभाई चौधरी (गुजरात), डॉ. सुनील प्रहाद (महाराष्ट्र), राजेश गोंड (बिहार), ए.जी. पटेल (गुजरात), संजय पटेल (गुजरात), डीएम पटेल (गुजरात), नीरव पटेल (गुजरात), डॉ. प्रदीप गरसिया (गुजरात), निकोलस बारला (ओड़िशा), रोशन एक्का (दिल्ली), डेनियल हंसदा (असम) के अलावा झारखंड के राणा प्रताप उरांव (संरक्षक, राजी पड़हा सरना प्रार्थना सभा), रवि तिग्गा (झारखंड प्रदेश अध्यक्ष, राजी पड़हा सरना प्रार्थना सभा), प्रभात तिर्की (राष्ट्रीय आदिवासी छात्र संघ), सुखदेव मुर्मू (धनबाद), श्यामलाल मरांडी (जामताड़ा), के.सी. मार्डी (जमशेदपुर), शिव उरांव (रांची), कलिंदर उरांव (लोहरदग्गा), दिलेश्वर उरांव (लातेहार), राहुल मुर्मू (बोकारो), निर्मल मरांडी (सचिव, संथाल परगना, सरना राजी पड़हा प्रार्थना सभा), एस एन. बेदिया (हजारीबाग), प्रदीप मरांडी (जयस प्रभारी, गोड्डा), मनोज कुमार टुडू (जयस प्रभारी, साहेबगंज), अर्जुन हेम्ब्रम (जयस प्रभारी, गिरिडीह), राजीव किस्कू (ट्राइबल ड्रीम अध्यक्ष, धनबाद), सुनील कच्छप (अध्यक्ष, आदिवासी 21 पड़हा नगड़ी), रेनू उरांव, कमलई किस्पोट्टा, डेसा उरांव (रांची जयस), रंथू उरांव और बलकू उरांव ने भी अपनी बातें रखी।। 

कार्यक्रम का संचालन संजय पहान (राष्ट्रीय प्रवक्ता, राजी पड़हा सरना प्रार्थना सभा, भारत) और विश्वनाथ तिर्की (महासचिव, आदिवासी समन्वय मंच) ने किया।

(संपादन : नवल/अनिल)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, संस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

लेखक के बारे में

राजन कुमार

राजन कुमार फारवर्ड प्रेस के उप-संपादक (हिंदी) हैं

संबंधित आलेख

केशव प्रसाद मौर्य बनाम योगी आदित्यनाथ : बवाल भी, सवाल भी
उत्तर प्रदेश में इस तरह की लड़ाई पहली बार नहीं हो रही है। कल्याण सिंह और राजनाथ सिंह के बीच की खींचतान कौन भूला...
बौद्ध धर्मावलंबियों का हो अपना पर्सनल लॉ, तमिल सांसद ने की केंद्र सरकार से मांग
तमिलनाडु से सांसद डॉ. थोल थिरुमावलवन ने अपने पत्र में यह उल्लेखित किया है कि एक पृथक पर्सनल लॉ बौद्ध धर्मावलंबियों के इस अधिकार...
मध्य प्रदेश : दलितों-आदिवासियों के हक का पैसा ‘गऊ माता’ के पेट में
गाय और मंदिर को प्राथमिकता देने का सीधा मतलब है हिंदुत्व की विचारधारा और राजनीति को मजबूत करना। दलितों-आदिवासियों पर सवर्णों और अन्य शासक...
मध्य प्रदेश : मासूम भाई और चाचा की हत्या पर सवाल उठानेवाली दलित किशोरी की संदिग्ध मौत पर सवाल
सागर जिले में हुए दलित उत्पीड़न की इस तरह की लोमहर्षक घटना के विरोध में जिस तरह सामाजिक गोलबंदी होनी चाहिए थी, वैसी देखने...
फुले-आंबेडकरवादी आंदोलन के विरुद्ध है मराठा आरक्षण आंदोलन (दूसरा भाग)
मराठा आरक्षण आंदोलन पर आधारित आलेख शृंखला के दूसरे भाग में प्रो. श्रावण देवरे बता रहे हैं वर्ष 2013 में तत्कालीन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण...