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खुदकुशी को मजबूर किसान कौन हैं और क्या यह केवल महाराष्ट्र का सवाल है?

आंकड़े के हिसाब से राज्य में औसतन लगभग 240 किसान हर महीने और 7 किसान हर दिन अपनी जान दे रहे हैं। विदर्भ क्षेत्र में किसानों की आत्महत्या के सबसे अधिक मामले दर्ज किए गये हैं। बता रहे हैं मनीष भट्ट मनु

शिवसेना (शिंदे गुट), भाजपा और एनसीपी (अजीत पवार गुट) द्वारा संयुक्त रूप से शासित महाराष्ट्र में इस साल जनवरी से अक्टूबर के बीच 2,366 किसानों ने आत्महत्या की है। यह जानकारी राज्य के राहत और पुनर्वास मंत्री अनिल भाईदास पाटिल ने बीते 14 दिसंबर, 2023 को विधानसभा में दी। 

कांग्रेस विधायक कुणाल पाटिल द्वारा पूछे गए एक प्रश्न के लिखित उत्तर में मंत्री ने कहा कि अमरावती राजस्व मंडल में ऐसी सबसे अधिक 951 खुदकुशी की घटनाएं घटित हुईं। उन्होंने बताया कि महाराष्ट्र सरकार को रिपोर्ट मिली है कि इस साल जनवरी से अक्टूबर तक 2,366 किसानों ने अलग-अलग कारणों से आत्महत्या की है। 

जाहिर तौर पर यह र‍िपोर्ट चौंकाने वाली है, क्योंकि तमाम दावों के बावजूद महाराष्ट्र के माथे से किसानों की खुदकुशी का कलंक नहीं म‍िट रहा है। यह महाराष्ट्र की कृषि-व्यवस्था पर भी बड़ा सवाल खड़ा करता है।

विधानसभा में राज्य सरकार द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, अमरावती राजस्व मंडल में 951 किसानों ने अपनी जान दे दी। इसके बाद छत्रपति संभाजीनगर मंडल में 877, नागपुर मंडल में 257, नासिक मंडल में 254 और पुणे मंडल में 27 किसानों ने अपनी जान दे दी। इसके अलावा राज्य के कृषि मंत्री धनंजय मुंडे ने बताया कि सूबे में कम-से-कम 96,811 किसानों को पीएम किसान सम्मान निधि योजना और नमो शेतकारी महासम्मान निधि योजना के तहत सहायता नहीं मिल सकी, क्योंकि उनके बैंक खाते और आधार नंबर एक-दूसरे से लिंक नहीं थे। 

बताते चलें कि पीएम किसान सम्मान निधि योजना केंद्र सरकार की योजना है, जिसके तहत किसानों को प्रति एकड़ 6000 रुपए प्रति वर्ष दिए जाते हैं। वहीं नमो शेतकारी महासम्मान निधि योजना महाराष्ट्र सरकार की योजना है, जिसे मई, 2023 से प्रारंभ किया गया है। इस योजना के तहत राज्य सरकार अपनी तरफ से 2000 रुपए किसानों को प्रति एकड़ देती है। 

मुंडे ने विधानसभा में एक लिखित उत्तर में कहा कि इन दोनों योजनाओं के लाभार्थियों की सूची में 96,811 ऐसे हैं, जिन्हें राज्य योजना का लाभ मिलना था, लेकिन नहीं मिल सका। ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि इस साल 26 अक्टूबर तक उनका आधार नंबर और बैंक अकाउंट लिंक नहीं हुआ था।

आंकड़े के हिसाब से राज्य में औसतन लगभग 240 किसान हर महीने और 7 किसान हर दिन अपनी जान दे रहे हैं। विदर्भ क्षेत्र में किसानों की आत्महत्या के सबसे अधिक मामले दर्ज किए गये हैं। 

महाराष्ट्र में एक किसान द्वारा खुदकुशी किए जाने के बाद मृतक की तस्वीर दिखाते परिजन

महाराष्ट्र के नेता प्रतिपक्ष विजय वडेट्टीवार ने राज्य सरकार पर किसानों की दुर्दशा के प्रति उदासीनता बरतने का आरोप लगाया है। प्रकृति की मार और राज्य सरकार की उपेक्षा के कारण प्रतिदिन औसतन 7 किसान आत्महत्या कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि भारत के लगभग 38 प्रतिशत किसान अकेले महाराष्ट्र में आत्महत्या करते हैं। यह राज्य सरकार का ही एक आंकड़ा है कि फसल की विफलता और बढ़ते कर्ज के कारण 1 जुलाई, 2022 से 1 जुलाई, 2023 तक, एक वर्ष में राज्य में 3,000 से अधिक किसानों ने आत्महत्या की है।

हालांकि, महाराष्ट्र सरकार द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों में विस्तृत जानकारी का अभाव दिखाई देता है। वहीं नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक खेती से जुड़े कार्यों में संलग्न व्यक्तियों द्वारा आत्महत्या करने में एक बड़ा हिस्सा खेतिहर मजदूरों का है, जो मुख्य तौर पर दलित व पिछड़े वर्गों के होते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर वर्ष 2022 में आत्महत्या करने वाले 11,290 व्यक्तियों में से, 53 प्रतिशत (6,083) खेतिहर मजदूर थे। 

एनसीआरबी द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2022 के दौरान आत्महत्या करने वाले 6,083 कृषि मजदूरों में 5,472 पुरुष और 611 महिलाएं शामिल थीं। इसी प्रकार जिन 5,207 किसानों ने इस अवधि में आत्महत्या की, उनमें 4,999 पुरुष और 208 महिलाएं थीं। महाराष्ट्र में सबसे अधिक 4,248 किसानों और खेतिहर मजदूरों ने आत्महत्या की। यह संख्या न केवल सबसे अधिक थी, बल्कि कृषि से जुड़े लोगों की आत्महत्या के मामलों में राज्य का योगदान 38 प्रतिशत था। दूसरे सबसे अधिक मामले कर्नाटक (2,392) में दर्ज किए गए। इसके बाद आंध्र प्रदेश (917), तमिलनाडु (728), और मध्य प्रदेश (641) थे।

हालांकि एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश में सभी राज्यों में आत्महत्याओं की संख्या में सबसे अधिक वृद्धि देखी गई। यहां वर्ष 2021 की तुलना में 42.13 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। दूसरी सबसे बड़ी वृद्धि छत्तीसगढ़ (31.65 प्रतिशत) में थी। हालांकि 2022 में 16 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई। इसी तरह, केरल में भी 30 प्रतिशत की गिरावट देखी गई। जबकि पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडिशा, उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, दिल्ली, लक्षद्वीप और पुडुचेरी जैसे कुछ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में किसानों तथा खेतिहर मजदूरों की शून्य आत्महत्या भी एनसीआरबी के आंकड़ों में दर्ज है।

दरअसल, केंद्र सरकार और विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा किसानों को दी जाने वाली राशि भी उनमें जीने की ललक पैदा कर पाने में नाकाम साबित हो रही है। विकास के तमाम दावों के मध्य उनके जीवन-यापन में किसी तरह का कोई सुधार नहीं हुआ है। बढ़ते तापमान, बिगड़ती जलवायु और सरकारी उपेक्षा के मध्य समाज का यह अन्नदाता अपने आप को एक ऐसे अंधे मोड़ पर पा रहा है, जहां से उसकी परेशानियां और चिंताएं किसी की भी प्राथमिकता में नहीं हैं।

(संपादन : राजन/नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

मनीष भट्ट मनु

घुमक्कड़ पत्रकार के रूप में भोपाल निवासी मनीष भट्ट मनु हिंदी दैनिक ‘देशबंधु’ से लंबे समय तक संबद्ध रहे हैं। आदिवासी विषयों पर इनके आलेख व रपटें विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होते रहे हैं।

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