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छत्तीसगढ़ चुनाव : कांग्रेस ने आदिवासियों के प्रति असंवेदनशीलता और पाखंड की कीमत चुकाई

कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार दिसंबर, 2018 में सत्ता में आई। उसके कई वायदों में से एक वायदा यह भी था कि फर्जी मुठभेड़ों की जांच दोबारा की जाएगी और पीड़ितों को न्याय मिलेगा। लेकिन इसके पांच साल बाद भी मड़कम लक्ष्मी न्यायालय को इस बात का यकीन करवाने में सफल नहीं हो सकी हैं कि वे ही मड़कम हिड़मे की मां हैं

दो हिस्सों में लंबवत विभाजित इस बड़े होर्डिंग का उद्देश्य आदिवासियों को कांग्रेस की ओर आकर्षित करना था। होर्डिंग का आधा हिस्सा श्वेत-श्याम था, जिसमें माओवादी की वर्दी पहने मड़कम हिड़मे की लाश दिखाई गई। वर्दी अधिक बड़ी दिख रही थी। उनका चेहरा साफ़ दिखाई दे रहा था। होर्डिंग का दूसरा हिस्सा राष्ट्रध्वज के रंगों में रंगा हुआ था और इसमें एक आदिवासी महिला अपने कंधे पर जंगल से इकट्ठा किए गए तेंदू पत्तों से भरी एक गठरी टांगे हुए दिखाई दे रही थी। उसके चेहरे पर मुस्कुराहट थी और संतोष का भाव भी दिख रहा था। यह होर्डिंग छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा शहर, जो संविधान की पांचवी अनुसूची के तहत अधिसूचित क्षेत्र है, में प्रवेश करते ही हर आगंतुक का स्वागत कर रहा था। थोड़ा आगे बढ़ने पर आप एक और पोस्टर देख सकते थे, जिसमें कांग्रेस उम्मीदवार छवींद्र कर्मा यह वायदा कर रहे थे कि अगर वे चुनाव जीते तो सलवा जुडूम 2.0 लाया जाएगा। 

ये दोनों होर्डिंग कांग्रेस पार्टी द्वारा लगाए गए थे। पहले में यह बताने का प्रयास था कि कांग्रेस के राज में छत्तीसगढ़ में खुशहाली और शांति थी, जबकि उसके पहले भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के शासनकाल में प्रदेश को अंधकार में धकेल दिया गया था और फर्जी मुठभेड़ की घटनाएं आम बात थीं। 

लेकिन यदि सोनी सोरी जैसे अन्य स्थानीय आदिवासियों ने इन होर्डिंग में माओवादियों जैसे कपड़े पहने मड़कम हिड़मे का चित्र और सलवा जुडूम 2.0 का वायदा देखा-पढ़ा होगा तो उनकी जेहन में क्या आया होगा? मड़कम हिड़मे की मां लक्ष्मी ने अपनी बेटी को इंसाफ दिलाने के लिए काफी लंबी लड़ाई लड़ी, जिसमें सोनी सोरी ने भी उनका पूरा साथ दिया। 

यह बात वर्ष 2016 की है। मड़कम हिड़मे करीब 23 साल की थीं और उनका ब्याह हुए एक हफ्ता भी नहीं बीता था। तब 13 जून को कुछ एसपीओ (विशेष पुलिस अधिकारी) सुकमा जिले के कोंटा ब्लॉक में स्थित उनके गांव गोमपाड़ पहुंचे और हिड़मे व उनकी मां मड़कम लक्ष्मी के कड़े प्रतिरोध के बावजूद हिड़मे को अपने साथ ले गए। बाद में लक्ष्मी और अन्य लोग, हिड़मे की तलाश में एक दूसरे गांव पहुंचे। गांववालों ने बताया कि उन्होंने देखा था कि कुछ पुलिसवाले (एसपीओ) हिड़मे को जंगल की तरफ ले गए। उन्होंने चीखने और गोली चलने की आवाज़ भी सुनी थी। अगली सुबह लक्ष्मी के लिए मायूस करनेवाली थी। वे कोंटा गईं, जहां उन्हें बताया गया कि हिड़मे की लाश को सुकमा ले जाया गया है। उसी दिन शाम को, प्लास्टिक की पन्नियों में लिपटी लाश कोंटा लाई गई। पुलिस ने हिड़मे की लाश की जो तस्वीर जारी की, उसमें वे वह पारंपरिक कपड़े नहीं पहने हुई थीं जो वे तब पहने थीं जब एसपीओ उन्हें पकड़ कर ले गए थे। उनके बदन पर माओवादियों द्वारा पहनी जानेवाली वर्दी थी, जिसकी साइज़ उनके लिए अधिक बड़ी थी। वह जो फुलपेंट पहने हुई थीं, वह नीचे से मुड़ा हुआ था, और वर्दी पर बंदूक की गोलियों का कोई निशान नहीं था। यह साफ़ दिख रहा था कि वे कपड़े मृतका मड़कम हिड़मे के नहीं थे।  

दंतेवाड़ा में कांग्रेस पार्टी द्वारा लगाए गए पोस्टर

करीब एक महीने बाद, पुलिस के भारी विरोध के बावजूद, लक्ष्मी ने छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में उपरोक्त विवरणों को उद्धृत करते हुए एक याचिका दाखिल की। तत्कालीन न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति संजय के. अग्रवाल की एक खंडपीठ ने दंतेवाड़ा के तत्कालीन जिला एवं सत्र न्यायाधीश को घटना की जांच करने का आदेश दिया। इस न्यायादेश में कहा गया था, “ऐसा आरोपित है कि शरीर पर यातना दिए जाने के निशान हैं। आंखें निकाल दी गईं हैं, कान उखाड़ दिए हैं और जीभ, स्तन और बांया हाथ काट दिए गए हैं। यह भी आरोपित है कि जब मड़कम हिड़मे को पुलिस ले गई थी, तब वह लुंगी (आदिवासी साड़ी), ब्लाउज और गमछा पहने हुई थीं, लेकिन पुलिस ने उनकी जो तस्वीर प्रकाशित किया, उसमें वे लड़ाकों द्वारा पहनी जानेवाली पोशाक में हैं। याचिकाकर्ता का यह आरोप भी है कि लाश का या तो पोस्टमार्टम हुआ ही नहीं, और यदि हुआ तो सही ढंग से नहीं हुआ।”       

दंतेवाड़ा के तत्कालीन जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने घटना की जांच की, जिसके आधार पर उच्च न्यायालय ने 13 सितंबर, 2018 को एक आदेश पारित किया। तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश अजय कुमार त्रिपाठी एवं न्यायमूर्ति पार्थ प्रतीम साहू की खंडपीठ द्वारा दिए गए आदेश में कहा गया, “न्यायिक जांच का निष्कर्ष यह है कि मड़कम हिड़मे एक नक्सली संगठन का हिस्सा थी और वे किस्ताराम क्षेत्रीय समिति की सदस्य थी। पुलिस मुठभेड़ वास्तविक थी, जिसमें मड़कम हिड़मे सहित कुछ लोग मारे गए और यह फर्जी मुठभेड़ का मामला नहीं था। वास्तव में इस पूरे मामले को कुछ निहित स्वार्थी तत्वों द्वारा स्पष्ट कारणों से एक विशेष रंग में रंगा गया।” साथ ही, इस बात का जिक्र भी किया गया कि “न तो याचिकाकर्ता और ना ही मृतका मड़कम हिड़मे के माता-पिता जीवित हैं तथा स्पष्टतः निहित स्वार्थी तत्वों द्वारा उनका इस्तेमाल एक लक्ष्य और उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया जा रहा है।”

यह सब तब हुआ जब छत्तीसगढ़ रमन सिंह के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सत्ता में थी। कांग्रेस के पोस्टर के मुताबिक वह अंधकारमय दौर था, जब फर्जी मुठभेड़ें आम थीं। कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार दिसंबर, 2018 में सत्ता में आई। उसके कई वायदों में से एक वायदा यह भी था कि फर्जी मुठभेड़ों की जांच दोबारा की जाएगी और पीड़ितों को न्याय मिलेगा। लेकिन इसके पांच साल बाद भी मड़कम लक्ष्मी न्यायालय को इस बात का यकीन करवाने में सफल नहीं हो सकी हैं कि वे ही मड़कम हिड़मे की मां हैं। उन्हें सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ा है, जहां से उन्हें इंसाफ की प्रतीक्षा है। इसके बावजूद भी कांग्रेस को मड़कम हिड़मे की लाश की तस्वीर का इस्तेमाल स्वयं को आदिवासियों के खैरख्वाह के रूप में प्रदर्शित करने में जरा-सी भी हिचक नहीं हुई। 

मानवाधिकार कार्यकर्ता सोनी सोरी, जिन्हें स्वयं पुलिस हिरासत के दौरान यातना झेलनी पड़ी, कहती हैं कि कांग्रेस पार्टी द्वारा मड़कम हिड़मे की क्षत-विक्षत शव का उपयोग अपने चुनाव प्रचार में किए जाने और स्वयं को शाबाशी दिए जाने से वह स्तब्ध हैं। वह कहती हैं, “यह सब देखकर उनकी (मड़कम हिड़मे की) मां क्या सोचेंगीं? अगर उन्हें अपने दूरदराज के गांव में इस पोस्टर के बारे में पता लगेगा तो वे तुरंत यहां आ जाएंगीं।”

अधिवक्ता एवं पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) के प्रदेश अध्यक्ष डिग्री प्रसाद चौहान कहते हैं, “कांग्रेस के शासन और उससे पहले के भाजपा के शासन में कोई खास फर्क नहीं था। कांग्रेस की कथनी और करनी में बहुत अंतर था। इस चुनाव में कांग्रेस की हार की कई वजहों में से एक यह भी था कि वह फर्जी मुठभेड़ों के शिकार हुए आदिवासियों को इंसाफ दिलाने में विफल रही।”

चौहान बताते हैं कि मड़कम हिड़मे जैसे बहुत से मामले हैं, जिनमें कांग्रेस के पांच साल के शासन के दौरान पीड़ितों को न्याय नहीं मिला। उनका कहना है कि उच्च न्यायालय द्वारा मड़कम लक्ष्मी का प्रकरण खारिज किए जाने के बाद भी सरकार बहुत कुछ कर सकती थी जैसे कि मामले की दोबारा जांच करना, बेहतर विधिक सहायता उपलब्ध कराना और इसके अलावा भी बहुत कुछ।”

मई, 2022 की एक तस्वीर जिसमें निवर्तमान भूपेश बघेल मड़कम मुद्राज के साथ दिखाई दे रहे हैं। मड़कम हिड़मे की मां लक्ष्मी के मुताबिक यह वही मुद्राज है, जिसने उनकी बेटी के साथ बलात्कार किया और हत्या कर दी

सलवा जुडूम छवींद्र कर्मा के पिता स्वर्गीय महेंद्र कर्मा के दिमाग की उपज था। सलवा जुडूम में नक्सलियों से मुकाबला करने के लिए स्थानीय आदिवासियों को हथियारबंद करना शामिल था। इससे आदिवासियों का टकराव आदिवासियों से ही हुआ और इस सशस्त्र आंदोलन को अनेकानेक मौतों और गांवों को जलाने के लिए जिम्मेदार माना गया। इसे सन् 2011 में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद भंग कर दिया गया, लेकिन इसके कुछ ही समय बाद छत्तीसगढ़ सरकार ने विशेष पुलिस अधिकारी यानी एसपीओ के रूप में इन्हें विधि सम्मत दर्जा देने का कानून बना दिया, जो सलमा जुडूम के हिस्सा थे।

इस तरह सलवा जुजूम 2.0, जिसका वायदा छवींद्र कर्मा द्वारा पोस्टर में किया गया, पहले से ही अस्तित्व में है, संभवतः अपेक्षाकृत कम हिंसक रूप में। लेकिन 2016 में मड़कम हिड़मे को एसपीओ ही ले गए थे, वे ही वर्तमान समय के सलवा जुडूम हैं। सोनी सोरी मड़कम हिड़मे की मां लक्ष्मी के हवाले से कहती हैं कि मड़कम हिड़मे की हत्या का मुख्य दोषी एक एसपीओ ही था, जिसने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के साथ मई, 2022 में कोंटा में फोटो खिंचवाई थी। इस फोटो में मुख्यमंत्री मड़कम मुद्राज नामक इस व्यक्ति, जो डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड (डीआरजी) में निरीक्षक है, को गले लगा रहे हैं।

सोनी सोरी कहती हैं, “मड़कम मुद्राज पहले नक्सली था और हिड़मे को उसने कई बार प्यार का प्रस्ताव दिया था। लेकिन हिड़मे ने इंकार कर दिया। मुद्राज जब सरेंडर करके एसपीओ बना तो वह बदला लेने के इरादे से हिड़मे को जबरन उनके घर से उठाकर जंगल ले गया, बलात्कार किया और गोली मारकर हत्या कर दी।”

वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक दंतेवाड़ा जिला (विधानसभा क्षेत्र) की आबादी 5 लाख 33 हजार 638 है, जिसमें करीब 80 फीसदी (4 लाख 10 हजार 255) आदिवासी हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि चुनाव आयोग के मुताबिक इस विधानसभा क्षेत्र में कुल मतदाताओं की संख्या 1 लाख 87 हजार 641 है। इस बार हुए विधानसभा चुनाव में कुल 1 लाख 34 हजार 532 मतदाताओं ने अपने मताधिकार का उपयोग किया। विजेता भाजपा के चैतराम आतमी रहे, जिन्हें कुल 56 हजार 920 मत प्राप्त हुए। दूसरे स्थान पर छवींद्र कर्मा रहे, जिन्हें 40 हजार 578 मत मिले। इस प्रकार उन्हें जो 16 हजार 803 मतों के अंतर से हार मिली, क्या उसका निहितार्थ यह नहीं कि आदिवासियों को कांग्रेस की घोर असंवेदनशीलता और स्पष्ट पाखंड का एहसास हो गया था, जो कांग्रेस के हाथ से छत्तीसगढ़ छिनने की मुख्य वजह बना?

(अनुवाद : अमरीश हरदेनिया, संपादन : राजन/नवल)


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लेखक के बारे में

अनिल वर्गीज

अनिल वर्गीज फारवर्ड प्रेस के प्रधान संपादक हैं

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