बीते 12 फरवरी, 2024 को बिहार विधानसभा में कुछ भी ऐसा नहीं हुआ जो पहले कभी नहीं हुआ हो। शतरंज की बिसात बिछी थी। मोहरें दोनों तरफ से तैयार थे। सारा खेल मोहरों का था। खास बात यह थी कि सामाजिक न्याय के खेमे की साख कमजोर हुई। खेल शुरू हुआ और देखते ही देखते सामाजिक न्याय के खेमे की घेराबंदी धूल-धूसरित हो गई, जिसके एक घटक नीतीश कुमार स्वयं भी रहे। हालांकि यह एकतरफा बिल्कुल भी नहीं था।
दरअसल, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार विधान सभा में विश्वास मत हासिस कर लिया। उनके पक्ष में 129 मत पड़े, जबकि विपक्ष ने वोटिंग का बहिष्कार किया था। इसलिए इसे 129 बनाम शून्य भी कह सकते हैं। परिणाम की घोषणा के पहले सियसत की परंपराओं का निर्वहन होना शेष था। और फिर शुरू हुआ विश्वास मत को लेकर पहले विपक्ष और फिर सत्ता पक्ष का भाषण।
यह भी कोई पहला नजारा नहीं था जब तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार एक-दूसरे के आमने-सामने थे। लेकिन इस बार तेजस्वी के तरकश में कुछ खास तीर थे। वे इससे वाकिफ थे कि यदि मतों की गणना हुई तो पराजय निश्चित है, क्योंकि उनके अपने दल के तीन विधायक चेतन आनंद, नीलम सिंह और प्रह्लाद यादव राज्यपाल के अभिभाषण के बाद विधानसभा के हॉल में पहुंचने के बाद अपना पाला बदलकर सत्ता पक्ष में जा बैठे। इसके अलावा जदयू और भाजपा के असंतुष्ट विधायक भी पहुंच गए थे, जो विधानसभा अध्यक्ष के खिलाफ विश्वास मत के दौरान अनुपस्थित थे। इनमें शामिल थे भाजपा के मिश्रीलाल यादव, भागीरथी देवी और रश्मि वर्मा तथा जदयू की बीमा भारती और दिलीप राय। विश्वास मत के दौरान यह विपक्षी खेमे की पहली हार थी जब 125 बनाम 112 मतों के आधार पर अवध बिहारी चौधरी विधानसभा अध्यक्ष पद से हटाए गए।
इस प्रकार हार सामने होने के बावजूद विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने एक हद तक संयमित भाषण देकर जीत के रथ पर सवार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बैकफुट पर ला दिया। इसकी वजह भी रही। यह कहना अतिरेक नहीं कि इसका असर मतदाताओं के जेहन में लंबे समय तक रहेगा। तेजस्वी यादव ने जाति आधारित गणना; एससी, एसटी और ओबीसी के आरक्षण का दायरा 50 फीसदी से 65 फीसदी बढ़ाना और नौकरियां देने का श्रेय आगे बढ़कर लिया। हालांकि इसके साथ यह भी कहा कि इसमें मुख्यमंत्री की सहमति भी रहती थी। तेजस्वी यादव ने कहा कि यह दोनों काम राजद के दबाव में हुआ है। नौकरियों में अधिकारियों की आनाकानी पर प्रहार करते हुए कहा कि वित्त विभाग के प्रधान सचिव इसके लिए तैयार नहीं थे, लेकिन जब हमने कहा कि इस मुद्दे पर कोई समझौता नहीं होगा, तब अधिकारी स्थायी सरकारी नौकरी देने को राजी हुए।
कहा जा सकता है कि तेजस्वी यादव का पूरा भाषण काफी संतुलित, आक्रामक और तथ्यपूर्ण रहा। तेजस्वी की भाव-भंगिमा के साथ प्रहार के तेवर में काफी तालमेल दिख रहा था। शैली और शब्द भी सधे हुए थे। उन्होंने भाजपा के सदस्यों द्वारा सदन के अंदर ‘जय श्रीराम’ के हंगामे के बीच रामायण के मिथक का ही उपयोग करते हुए कहा कि नीतीश कुमार उनके लिए दशरथ के समान हैं, जिन्होंने वनवास दिया है, ताकि जनता के साथ संपर्क बना सकें, उनकी समस्याओं से अवगत हो सकें। इसके साथ ही उन्होंने अगल-बगल में बैठे कैकेयियों से सावधान रहने की सलाह भी दी।
विश्वास मत के सवाल पर सदन में पक्ष और विपक्ष के बीच बहस के नाम पर आरोप-प्रत्यारोप की परंपरा रही है। यही हुआ भी। तेजस्वी के तीखे बाणों ने सत्ता पक्ष को विचलित कर दिया और स्वयं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी अपना आपा खो बैठे। उन्होंने तेजस्वी के पिता लालू प्रसाद को भी घसीट लिया और कहा कि इनके पिता के राज में लोग शाम होने के बाद घरों से बाहर निकलना बंद कर देते थे। साथ ही उन्होंने यह आरोप भी लगा दिया कि पिछले सत्रह महीनों में शिक्षा विभाग के जरिए राजद ने अकूत कमाई की है।
लेकिन मुख्यमंत्री यह नहीं समझा पाए कि उन्होंने जिस तरह भाजपा के साथ सरकार बनायी है, उसके साथ आने का औचित्य क्या है और इससे बिहार को क्या फायदा होगा।
बहरहाल, बिहार के लगभग 75 वर्षों के ससंदीय इतिहास में पहली बार किसी विधानसभा स्पीकर को अविश्वास प्रस्ताव पर हुई वोटिंग के आधार पर अपने पद से हटाया गया। इससे पहले 1960 में स्पीकर विंध्येश्वरी प्रसाद वर्मा के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा हुई थी, लेकिन सदन ने उसे खारिज कर दिया था।
खैर, अब यह तय है कि नीतीश कुमार के नेतृत्व में एक सरकार बिहार में राज करेगी, लेकिन कब तक, इसकी गारंटी कौन देगा? और यह कि जो भाजपा जातिगत जनगणना का विरोध करती रही है, अब उसके साथ मिलकर नीतीश कुमार किस तरह की सियासत करेंगे, यह भी आनेवाले समय में ही सामने आएग।
(संपादन : राजन/नवल/अनिल)