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मुजफ्फरपुर बलात्कार कांड की हकीकत : दलितों ने पिछड़ों पर ढाया कहर, सवर्णों ने देखा तमाशा

इस मामले को सनसनीखेज बनाने वाले लोग और संगठन दलित उत्पीड़न, बलात्कार और हत्या के मामले को लेकर संजीदा नहीं थे। उनका मकसद नेतागीरी चमकाना और राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी समूह के खिलाफ नफ़रत और घृणा फैलाना था। पढ़ें, हेमंत कुमार की रपट

वे आए तो थे न्याय दिलाने का नारा लगाते हुए, लेकिन आक्रमणकारियों की तरह लूटपाट कर निकल गए! माहौल में जहर घोल कर चले गए! एक दलित युवती के बलात्कारी व हत्यारे को पकड़ने और सजा दिलाने के लिए मुट्ठियां तानकर, चीख-चीख कर नारेबाजी कर रही उस भीड़ ने देखते ही देखते पिछड़ों की उस बस्ती में जमकर तांडव किया। घरों में तोड़फोड़ की। जेवर और रुपए लूट लिये। महिलाओं और बुजुर्गों से मारपीट की। ट्रैक्टर, जेसीबी, कार और बाइक को तहस-नहस कर दिया! लुटेरी भीड़ का निशाना बने अधिकतर लोग यादव बिरादरी के हैं। उन लोगों का दोष सिर्फ इतना है कि आरोपित शख्स उनकी ही बिरादरी का है। बिहार पुलिस तब पहुंची जब लुटेरों की भीड़ भाग रही थी। पुलिस की भूमिका तब भी संदिग्ध दिख रही थी जब पिछले कई दिनों से माहौल में नफरत और विद्वेष का जहर घोल रहे दलित हितैषी, नीला पट्टाधारी नेता सुबह-शाम मजमा लगा रहे थे।

बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के पारू प्रखंड के लालू छपरा पंचायत के गोपालपुर टोला में गत 18 अगस्त, 2024 की दोपहर में हुई लूटपाट में जिन लोगों की गिरफ्तारी हुई है, जिन लोगों पर भीड़ जुटाकर लूटपाट कराने के आरोप लग रहे हैं, उससे दलितों-पिछड़ों की एकता को तोड़ने की साज़िश के खतरनाक संकेत मिल रहे हैं। इसमें स्थानीय पुलिस प्रशासन की भूमिका भी सवालों से घिरी है।

आरोप लग रहा है कि सुबह से ही हिंसा की आशंका की सूचना देने के बाद भी पुलिस ने एहतियात नहीं बरती। पुलिस गांव में तब पहुंची जब लूटपाट शुरू हो चुका था। इस कांड में मौके से गिरफ्तार किये गये बहुजन आर्मी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बताए जाने वाले गोल्डेन दास के बारे में मुजफ्फरपुर के एसएसपी राकेश कुमार के बयान से पता चलता है कि उसके खिलाफ औरंगाबाद, गया और पटना समेत बिहार के कुछेक अन्य जिलों में 23 मामले दर्ज हैं। चार मामलों में पुलिस को उसकी तलाश है। उसके साथ गिरफ्तार अन्य 15 व्यक्तियों में जहानाबाद और गया के एक-एक व्यक्ति शामिल हैं। बाकी 13 में से दो वैशाली और अन्य मुजफ्फरपुर जिले के हैं। पीड़ित परिवारों और प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि हमलावर तो सैकड़ों की तादाद में थे। लेकिन गिरफ्तारी केवल 16 की हुई है। पुलिस ने गिरफ्तार लोगों का जो पता-ठिकाना सार्वजनिक किया है, उससे लगता है कि एक-दो को छोड़कर बाकी लोग दूर-दराज से पहुंचे थे‌।

सवाल उठता है कि जो लोग भाग गए, वे कौन थे? कहां से आए थे? क्या वे आसपास से जुटाए गए थे? इस सवाल का जवाब भीड़ की लूटपाट का शिकार हुए लोगों की ओर से, पुलिस को एफआईआर के लिए दिये गए आवेदन से मिलता है।

भीड़ की हिंसा का सबसे अधिक नुकसान उठाने वाले पैक्स अध्यक्ष राजेंद्र राय की ओर से पारू थाने में दिये गये आवेदन में बसपा के प्रदेश अध्यक्ष शंकर महतो, बसपा नेता विजय कुमार सिंह, आलोक कुमार राम, राजधारी राम, बालकनाथ सहनी और पूर्व मुखिया नरेश राम पर भीड़ को उकसा कर हिंसा और लूटपाट करवाने के आरोप लगाए गए हैं। राजद नेता और पारू विधानसभा क्षेत्र से पार्टी के पूर्व प्रत्याशी शंकर यादव हिंसा और लूटपाट को प्रायोजित बताते हुए कहते हैं कि मैंने सुबह 9 बजे ही सरैया के एसडीपीओ कुमार चंदन को गोपालपुर में जुट रही भीड़ की ओर से हिंसा की आशंका की जानकारी दी। लेकिन उन्होंने कोई तत्परता नहीं दिखाई। इसके बाद उन्होंने एसएसपी से बात की तो पुलिस बल को रवाना किया गया। तब तक देर हो चुकी थी। भीड़ हिंसा और लूटपाट शुरू कर चुकी थी। शंकर यादव पारू के भाजपा विधायक अशोक सिंह और वैशाली की लोजपा सांसद वीणा देवी की भूमिका पर सवाल‌ उठाते हुए उनके फोन कॉल की जांच कराने की मांग कर‌ रहे हैं।

मृतका के घर में तहकीकात करती पुलिस

पीयूसीएल, पटना की ओर से गोपालपुर गांव पहुंचे पटना विश्वविद्यालय के पूर्व प्राध्यापक प्रोफेसर रमाशंकर आर्य ने बताया कि “जब हम वहां पहुंचे तो दिल्ली से आए बहुजन नेता बताए जाने वाले अभिषेक कुमार जाटव का भाषण शुरू हुआ। उनका भाषण काफी उत्तेजक था। उसके बाद भीम आर्मी के गोल्डेन दास का भाषण हुआ। गोल्डेन का भाषण भी बेहद भड़काऊ था। वे मौके पर फैसला करने की बात कर रहे थे। अनहोनी की आशंका देखते हुए मैं वहां से निकल गया। रास्ते में पता चला कि भीड़ ने गांव में हिंसा और लूटपाट की है।”

अभिषेक कुमार जाटव के भाषण का वीडियो देखकर लगता है कि प्रो. आर्य की आशंका निराधार नहीं थी। अभिषेक की भाषा किसी आंबेडकरवादी की भाषा नहीं बल्कि करणी सेना, हिंदू सेना, बजरंगदल वालों की भाषा लग रही थी, जिसमें अपनी ‘ताकत’ का अहंकार और सड़क पर न्याय कर देने की मध्ययुगीन बर्बर सोच उबाल मार रही थी। मौके की तस्वीर और वीडियो से पता चलता है कि अभिषेक कुमार जाटव और गोल्डेन दास के आगमन को लेकर तैयारी पहले से की गई थी। शामियाना लगाया गया था। झंडा-पताका भी लगा हुआ था। अब सवाल उठता है कि जिस गांव में एक नाबालिग लड़की से रेप और हत्या की घटना को लेकर पिछले एक सप्ताह से तनाव बना हुआ था, वहां पुलिस ने सभा और भाषण क्यों होने दिया? प्रोफेसर आर्य कहते हैं कि “इस मामले में न्याय दिलाने का दंभ भरने वाले नेताओं के रवैये से लग रहा था कि उनका मकसद यादवों को टारगेट करना था। ऐसा करने से बसपा, लोजपा और भाजपा को राजनीतिक रूप से फायदा मिलता दिखता है। स्थानीय राजनीतिक समीकरण को सामने रखकर देखें तो पुलिस पर निष्क्रियता और पक्षपात के लग रहे आरोप में दम दिखता है।”

न अगवा की गयी थी न बलात्कार हुआ था, प्रेम प्रसंग से ख़फ़ा चल रहे पड़ोसी युवकों ने युवती की हत्या कर दी थी

लेकिन जिस युवती से बलात्कार के बाद उसकी हत्या के मामले को लेकर निर्दोष लोगों के घरों में लूटपाट और हिंसा हुई, उस मामले का पटाक्षेप हुआ तो पता चला कि मृतका और आरोपित शख्स संजय राय के बीच पुराना प्रेम संबंध था। उसे घर से उठाकर नहीं ले जाया गया था, बल्कि प्रेमी के बुलाने पर वह रात के अंधेरे में उससे मिलने खेत में गयी थी। उसके इस रिश्ते की जानकारी पूरे गांव को थी। इसकी वजह से उसके पड़ोसी कुछ युवक नाराज चल रहे थे। वे लड़की को रंगे हाथ पकड़कर सबक सिखाना चाहते थे। घटना की रात लड़की जब घर से निकली तो उसके पड़ोसी चुन्नू पासवान, मुन्ना राम और पंकज राम अपने दो अन्य दोस्तों के साथ उसके पीछे लग गए। खेत में लड़की अपने प्रेमी संजय राय के साथ जब अंतरंग हालत में थी, तभी पांचों युवकों ने दोनों को घेर लिया। संजय राय अंधेरे का लाभ उठाकर झाड़ी में छुप गया। लेकिन लड़की पकड़ी गई। युवकों ने उसके सिर पर लोहे की रॉड, खुरपी से वार किया। जब वह अचेत हो गई तो उसे उठाकर तालाब में फेंक दिया। संजय राय की निशानदेही पर चुन्नू, मुन्ना और पंकज को गिरफ्तार कर लिया गया है।

युवती को घर से उठाकर ले जाने, सामूहिक बलात्कार करने, उसके स्तन काट डालने उसके प्राइवेट पार्ट को क्षतिग्रस्त कर तालाब में फेंक देने की खबरें/सूचनाएं भ्रामक साबित हुईं। एसएसपी पोस्टमार्टम रिपोर्ट के हवाले से पहले से कह रहे थे कि बलात्कार, स्तन काटने और प्राइवेट पार्ट में चाकू मारने की पुष्टि नहीं हुई है। उनके हवाले से अखबारों में ये सारी बातें छपी हैं। लेकिन इन्हीं अखबारों के डिजिटल संस्करण और नफरती यूट्यूबर, सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर एसएसपी के बयान की अनदेखी करते हुए भड़काऊ खबरें चलती रही। फर्जी खबरों के आधार पर नेशनल मीडिया कोलकाता बलात्कार मामले से जोड़कर खबरें चलाता रहा। हद तो यह कि अपने सरोकार को लेकर गंभीर समझे जाने वाले राजनीतिक दलों ने भी मामले की तह तक जाने की जहमत नहीं उठाई।

पुलिस की सीडीआर रिपोर्ट में पता चला कि युवती और मुख्य अभियुक्त संजय राय के बीच लगातार बातचीत होती थी। उसकी बड़ी बहन से भी संजय बात करता था। युवती की हत्या की सूचना उसने उसकी बड़ी बहन को फोन से दी थी। लेकिन बड़ी बहन और युवती की मां ने पुलिस से झूठ बोला था कि संजय राय चार-पांच लोगों के साथ उसकी बेटी को घर से उठाकर ले गया था। सामूहिक बलात्कार के बाद उसकी हत्या कर दी थी। यह भी पता चला है कि युवती नाबालिग नहीं थी।

इतना सबकुछ सामने आने के बाद साफ हो गया है कि इस मामले को सनसनीखेज बनाने वाले लोग और संगठन दलित उत्पीड़न, बलात्कार और हत्या के मामले को लेकर संजीदा नहीं थे। उनका मकसद नेतागीरी चमकाना और राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी समूह के खिलाफ नफ़रत और घृणा फैलाना था। यह घटना यह भी बताती है कि समाज में ‘मोरल पुलिसिंग’ की आड़ में महिलाओं के खिलाफ हिंसा और हत्या की प्रवृत्ति खतरनाक रूप से बढ़ रही है।

वरिष्ठ पत्रकार पुष्यमित्र कहते हैं कि “इस सनसनीखेज प्रकरण का नतीजा देखिए। खुद को बहुजन आर्मी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बताने वाला गोल्डन दास औरंगाबाद से अपने साथ सैकड़ों लोगों को लेकर मुख्य अभियुक्त के गांव पहुंच गया और उसने वहां हंगामा और तोड़-फोड़ मचाया। मुख्य अभियुक्त एक दबंग जाति से संबंध रखता है, इसके बावजूद बाहर से जाकर उसके गांव में हंगामा और तोड़फोड़ करना सामान्य हिम्मत की बात नहीं।”

गोल्डन दास ने इस काम के लिए ऑनलाइन चंदा जुटाया, क्योंकि वह इस खबर से उद्वेलित था। पूरा दलित समाज उद्वेलित था, इसलिए लोगों ने चंदा भी दिया। गोल्डन दास अब गिरफ्तार हो गया है। उसने माफी भी मांग ली है।

इन सब तमाशों का जिम्मेदार कोई है तो वह व्यक्ति या संगठन है, जिसने इस घटना को सनसनीखेज बनाने के लिए इसमें झूठे तथ्य जोड़े। यदि वे ऐसा नहीं भी करते तो भी यह एक स्त्री के खिलाफ जघन्य अपराध ही कहा जाता। दलित समाज के युवकों ने मोरल पुलिसिंग करने की कोशिश में उसकी जान ले ली।

इसलिए बेहतर है कि सच को सामने आने दीजिए। झूठ की बुनियाद पर अपनी लड़ाई को धारदार बनाने की कोशिश मत कीजिए। इससे सबका नुकसान है। आपकी विश्वसनीयता भी घटती है।

(संपादन : राजन/नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

हेमंत कुमार

लेखक बिहार के वरिष्ठ पत्रकार हैं

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