पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के थाना बहेड़ी क्षेत्र स्थित एमजीएम इंटर कॉलेज के शिक्षक डॉ. रजनीश गंगवार की कविता ‘कांवड़ लेने मत जाना’ सोशल मीडिया पर वायरल हुई। यह कविता उन्होंने असेंबली के समय छात्रों के सामने खड़े होकर पढ़ा था। इस कविता का एक अंश है–
कांवड़ ढोकर कोई वकील, डीएम, एसपी नहीं बना है।
कांवड़ जल से कोई बनिया, हाकिम वैद्य नहीं बना है।।
कांवड़ से बुद्धि विवेक का तनिक विकास न होगा।
भांग, धतूरा, गांजा, सुल्फा मद्य से कोई उद्धार न होगा।।
जाति-धर्म का नशा छोड़कर स्वकल्याण करो तुम।
शिक्षालय-पुस्तकालय में पढ़, ज्ञान प्रगाढ़ करो तुम।।
सत्कर्मों से मानव सेवा कर, प्रेम का दीप जलाना।
कांवड़ लेने मत जाना, तुम ज्ञान का दीप जलाना।।
मानवता की सेवा करके, सच्चे मानव बन जाना…
इस कविता को सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने भी अपने एक्स एकाउंट पर साझा किया था। इसी मामले में थाना बहेड़ी के सीओ अरुण कुमार को एक तहरीर (शिकायत) प्राप्त हुई थी। यह तहरीर भाजपा नेता राहुल गुप्ता, नगर पालिका सभासद दिनकर गुप्ता, महंत धर्मेंद्र रस्तोगी और हिंदुत्ववादी संगठन महाकाल सेवा समिति के अध्यक्ष शक्ति गुप्ता द्वारा दी गयी थी। इसके आधार पर शिक्षक के खिलाफ़ मुकदमा दर्ज किया गया। स्कूल के प्रिंसिपल अशोक कुमार गंगवार के मुताबिक शनिवार 12 जुलाई को यह कविता पढ़ी गई थी। उन्होंने भी शिक्षक से स्पष्टीकरण मांगा है।
इस वीडियो के वायरल होने पर सोशल मीडिया पर जहां एक ओर उनकी इस कविता को सराहा गया वहीं न्यूज चैनलों पर उनको आड़े हाथों लिया गया। उनके एबीवीपी के पदाधिकारी होने और निकाले जाने की ख़बर भी चर्चा में रही। यहां यह स्पष्ट कर दें कि गंगवार उत्तर भारत की कुर्मी जाति की एक उपजाति है। यह कृषक समुदाय है और इसके सदस्य बरेली, पीलीभीत आदि जिलों में रहते हैं। उत्तर प्रदेश में कुर्मियों की अन्य उपजातियों में सचान, पटेल, कटियार, जैसवार, बैसवार आदि आती हैं।
इस पूरे संदर्भ में पढ़ें डॉ. रजनीश गंगवार से बातचीत का संपादित अंश।
कविता वायरल होने के बाद का आपका अनुभव कैसा रहा?
मिला-जुला असर रहा। समाज के बहुत बड़े वर्ग का समर्थन मिला। सबने एक स्वर में कहा कि मास्टर साहेब ने कविता में बच्चों से कुछ भी ग़लत नहीं कहा है। वहीं दूसरी ओर कविता वायरल होने के बाद, मीडिया ट्रायल से गुज़रना पड़ा। लगभग सारे पत्रकारों ने सबसे पहला सवाल यही पूछा कि आप आस्तिक हैं या नास्तिक? क्या आप भगवान को नहीं मानते हैं।
तो आपने क्या जवाब दिया?
मैंने उनसे कहा कि कोरोना की त्रासदी मे दुनिया के सारे देश भयभीत थे, डरे हुए थे। ऐसी चर्चाएं उठने लगी थीं कि काफ़ी लंबे समय तक शायद ऐसे ही रहना पड़े मानव जाति को। या मानव जाति का पूर्ण विनाश ही हो जाए। हमने कहा कि यदि ईश्वर होता तो उस समय निकलकर क्यों नहीं आया सामने। तब सारे धर्मस्थल बंद कर दिये गए थे। कोई धर्मगुरु अपना चमत्कार नहीं दिखा पाया। सब विज्ञान के शरणागत थे। वहीं गुरुद्वारे खुले रहे और ग़रीब लोगों, लॉकडाउन में फंसे प्रवासी मज़दूरों को भोजन और आश्रय देते रहे। बीमारों को ऑक्सीजन मुहैया करवाते रहे। तो मानवतावाद के सबसे बड़े प्रतीक तो वे हो गए। यदि ईश्वर कहीं होता तो दुख की उस घड़ी में वो निकलकर नहीं आता क्या? इतिहास में मुझे ऐसी कोई घटना नहीं मिली कि ईश्वर आया हो और उसने किसी का कल्याण किया हो। सिर्फ़ लोगों को भ्रमित करने के लिए षड्यंत्र के तहत बहुत सारे भगवानों की कहानियां गढ़ी गईं। इससे ज़्यादा विडंबनापूर्ण और क्या हो सकता है कि हम सच्चाई को मान ही नहीं रहे। कहने को इतने सारे देवी-देवता हैं, लेकिन कहीं कोई काम आया क्या किसी के? महामारी में मनुष्य ही मनुष्य के काम आया। मनुष्य ही अपने आप से अपना कल्याण कर सकता है। कोई भगवान उसका कल्याण नहीं कर सकता है। सबसे बड़ा विरोध इन लोगों का मेरी इस बात से है कि मैने इसी वीडियो में बाबा साहेब आंबेडकर का नाम लिया है। नेल्सन मंडेला का नाम लिया है। भगत सिंह का नाम ले लिया, जो ईश्वर को ही नकार देते हैं। ये तथाकथित सनातनी असामाजिक तत्व हैं। ये बहुत कम मात्रा में हैं, ज्यादा नहीं हैं ये। मैंने सिर्फ़ बच्चों को कहा है कि यह उनके शिक्षा ग्रहण करने की उम्र है, कांवड़ ढोने की नहीं। मैंने कहीं भी कांवड़ का विरोध नहीं किया है।

आपकी पारिवारिक पृष्ठभूमि क्या है?
मेरा गांव पुरैना, तहसील बीसलपुर, जनपद पीलीभीत का मूलनिवासी हूं। माता-पिता, बड़े भाई, भाभी – चार लोग गांव में रहते हैं। जबकि मुझ समेत तीन भाई बाहर रहते हैं। पिता श्री भगवानदास गंगवार इंटर कॉलेज से प्रवक्ता पद से रिटायर हुए हैं। माता श्रीमती रामश्री गृहिणी हैं। खेती-बाड़ी का शौक है तो पिता जी ने खेती-बाड़ी ख़ूब बढ़ा रखी है। बड़े भाई ने ज़्यादा पढ़ाई नहीं की है। इंटर के बाद वे ट्रैक्टर ले लिये और खेती करवाने लगे। लेकिन अब उन्होंने फिर से पढ़ाई शुरू की है। वे बहुत क्रांतिकारी व्यक्ति हैं। हमारे गांव में एक पुल बनना था। पुल स्वीकृत भी हो गया था। लेकिन फिर सांसद, विधायक और लोक निर्माण के अधिकारियों ने मिलकर दूसरे गांव में पुल बनवा दिया। पहले मेरे बड़े भैय्या 16-17 घंटे खेती ही करते थे। लेकिन जब पुल दूसरी जगह चला गया तो वो खेती का काम छोड़कर पूरी तरह से सामाजिक काम मे कूद पड़े हैं। दो बार विधायक के घर पर धरना भी दे चुके हैं। वे किसानों की समस्याओं को लेकर काम कर रहे हैं। मेरे दूसरे भाई व्यापार करते हैं। मुझसे छोटा भाई भारतीय सेना से रिटायर हुआ है। मैं बरेली इंटर कॉलेज में हिंदी विषय का प्रवक्ता हूं।
साहित्य और कविता की ओर कैसे रुझान हुआ?
साल 2005-06 में अखिल भारतीय देवनागरी लिपि निबंध प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया। 2017 में हमारा माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड से बरेली के इंटरमीडिएट कॉलेज में प्रवक्ता पद पर चयन हो गया। तब से यहां बच्चों को पढ़ाते हुए गीत कविता लिखने लगा, जो समय-समय पर आकाशवाणी और दूरदर्शन पर प्रसारित हुईं। इसके अलावा विभिन्न समाचार पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुईं। मैं हिंदी साहित्य के बड़े कवि प्रोफ़ेसर वीरेन डंगवाल का शिष्य रहा हूं। उनके सिखाये रास्ते पर चल रहा हूं। फिलहाल मैं अंतरराष्ट्रीय मानव कल्याण ट्रस्ट का प्रदेश उपाध्यक्ष हूं। इसके अलावा मैं तथागत फाउंडेशन बरेली का सचिव रह चुका हूं। इतना ही नहीं, नगर पालिका बहेड़ी के पार्षद, स्वच्छ भारत मिशन भारत सरकार का ब्रांड एंबेसडर भी हूं।
क्या आपका परिवार किसी राजनीतिक मंच या आंदोलन से जुड़ा रहा है?
नहीं। हम लोग राजनीतिक रूप से कभी किसी संगठन से नहीं जुड़े रहे हैं। पिता जी सरकारी शिक्षक थे तो सवाल ही नहीं उठता है खुली राजनीति का। बड़े भाई सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर कार्य करते हैं। पुल की मांग को लेकर हमारे गांव में पिछले लोकसभा चुनाव का बहिष्कार किया गया था। बहिष्कार का नेतृत्व मेरे बड़े भाई ने ही किया था।
क्या छात्र जीवन में आपका किसी छात्र संगठन से जुड़ाव रहा?
नहीं, पढ़ाई के दौरान मेरा कभी मन नहीं हुआ कि किसी संगठन से मेरा जुड़ाव हो। लेकिन कई साथी छात्र संगठनों में जरूर रहे, जिनके चलते आइसा, एबीवीपी आदि के संपर्क में रहा। लेकिन कभी किसी का कार्यकर्ता या सदस्य नहीं रहा।
तो क्या आप एबीवीपी से नहीं जुड़े रहे हैं?
दरअसल शिक्षक बनने के बाद बरेली में हमारी जान-पहचान के कुछ लोग एबीवीपी में थे। उन्होंने ही बिना मेरी सहमति और इज़ाज़त के और मेरे मना करने के बाद भी 2020 में मुझे एबीवीपी बरेली का नगर उपाध्यक्ष बना दिया, फिर अध्यक्ष बना दिया। लेकिन इस वायरल कविता के बाद अब मुझे हटा दिया गया है उस पद से।
आपके वायरल गीतों में आपकी मानवीय और तार्किक चेतना है और एबीवीपी की सांप्रदायिक विचारधारा में 36 का आंकड़ा है। एबीवीपी में कैसे रहे इतने दिन?
असल में जो सीनियर लोग थे, वे सब जानते थे कि मैं बौद्ध मतावलंबी हूं। और कबीर की तर्कवादी, मानववादी विचारधारा का अनुसरण करता हूं। मैं वैज्ञानिक चेतना का प्रसार करता रहता हूं। लेकिन फिर भी वे लोग मुझे अपने साथ रखे रहे और यह कहकर पद दिया कि आप सही हैं, आप ही बच्चों को सही मार्गदर्शन देंगे। मैंने कहा भी कि मेरे विचार आपकी विचारधारा से मेल नहीं खाते। फिर भी वे लोग अड़े रहे। दरअसल मैं बच्चों के सर्वांगीण विकास, वैज्ञानिक तार्किक चिंतन पर ध्यान देता हूं। शायद उन लोगों को मुझसे बेहतर कोई नहीं मिला, इसीलिए मुझे बना दिया।
आप बालगीत वगैरह भी लिखते हैं?
हां, जब मैं आईएएस की तैयारी कर रहा था तो इलाहाबाद में संगम किनारे के झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले बच्चों को पढ़ाने जाया करता था। तो बच्चों से एक तरह का लगाव है। मेरी कोशिश है कि बच्चे ख़ूब पढ़ें-लिखें और अंधविश्वास, पाखंड, धार्मिक भीरुता, जात-पात, छुआछूत, धार्मिक भेदभाव आदि से दूर रहें। इसीलिए बच्चों को लेकर कुछ-कुछ लिखता रहता हूं। जैसे मैंने एक गीत लिखा–
न हिंदू बनना, न मुसलमान बनना
अगर बन सको तो इंसान बनना
भेदभाव अपने हृदय से मिटाकर
सच्ची मानवता का पहचान तुम बनना
बच्चे इस कविता को स्कूल के कार्यक्रमों में गाते थे। एक दिन एक शिक्षक जो आरएसएस से जुड़े हुए हैं, वे मुझसे कहने लगे कि डॉ. साहेब ऐसी चीजें मत लिखा कीजिए। हमें यह पसंद नहीं है।
ताे क्या आपने अपने स्कूल में बच्चों के साथ या शिक्षकों के साथ जाति या धर्म के आधार पर व्यवहार होते देखा है?
जातिवादी मानसिकता का तो मैं भी शिकार हुआ हूं। 2017 में जब से यहां आया हूं तब से हमारा स्कूल में विरोध ही होता रहा है। कुछ साल पहले मेरे ख़िलाफ़ फ़र्ज़ी मामला दर्ज़ करवाया गया था। जैसे कि अगर हमने बच्चों से कह दिया कि बच्चों जिस तरह से आप मस्जिद जाते हो, मज़ार जाते हो, नमाज पढ़ते हो, मंदिर-मठ जाते हो उसी तरह का सम्मान आप इस स्कूल को भी दीजिए। जैसे आप पंडा पुरोहितों, मुल्ला-मौलवियों की बात मानते हो, उसी तरह आप हम गुरुजनों की बातें मानिए। तो देखो आपके घर में उजाला हो जाएगा। अगर आपको हमारी बातों पर भरोसा न हो तो अपने घर के बुजुर्गों से पूछ लेना। तो स्कूल में हमसे कहा गया कि आप धार्मिक हस्तक्षेप करते हैं। आख़िर एक शिक्षक और क्या समझाएगा बच्चों को?
दरअसल कुछ निठल्ले सवर्ण शिक्षक हैं स्कूल में। उनका सिर्फ़ एक ही काम रहता है– स्कूल में टाइम पास करना। आप देखिए न कि आज सरकारी स्कूलों में आख़िर कौन पढ़ने आ रहा है। एससी, एसटी और मुस्लिम समुदाय के बच्चे ही तो आ रहे हैं। सवर्ण मानसिकता के शिक्षक उन्हें अशिक्षित गुलाम रखना चाहते हैं। तो उनका रहता है कि जितना किताब में लिखा है बस उतना ही पढ़ाया जाए। समझाने पर उनका जोर नहीं रहता है। अगर बच्चे जागरुक हो जाएं तो अपनेआप पढ़ने लगेंगे। हम उनको इसी लायक बनाने की कोशिश करते हैं। जो इन लोगों को पसंद नहीं आता।
तो क्या आप सावित्रीबाई फुले, आंबेडकर जयंती, विज्ञान दिवस आदि के मौके पर भी सांस्कृतिक कार्यक्रम करवाते हैं स्कूल में?
नहीं, मनाया तो नहीं जाता। लेकिन प्रार्थना स्थल में हम बच्चों को उनके बारे में बताते हैं। काम देते हैं उन पर लिखकर लाने के लिए। इन नायकों पर बच्चों से निबंध लिखवाते और सुनते हैं। हमारे स्कूल की लाइब्रेरी कई सालों से बंद थी। हमने उसे साफ-सुथरा करवाकर बच्चो के लिए खोला है। तो तमाम शिक्षकों ने लाइब्रेरी बंद करवाने की कोशिश की कि बच्चे वहां न बैठें। एक मीटिंग में हमसे कहा गया कि आप छात्र-छात्राओं को ज़्यादा लाइब्रेरी में नहीं बैठाएंगे और उनसे ज़्यादा संबंध नहीं रखेंगे।
वे फेसबुक पर ओशो, आंबेडकर, कबीर और बुद्ध के विचार रखने, तर्कवादी, वैज्ञानिक बातें लिखने का विरोध करते हैं। वे कहते हैं कि आप सनातन विरोधी हैं और धर्म और सरकार के ख़िलाफ़ लिखते हैं। वे मुझे अपनी विचारधारा के संकीर्ण दायरे में लाना चाहते हैं।
बरेली जैसे पश्चिमी यूपी के जिलों में मूर्ति स्थापना का प्रचलन बहुत तेज़ी से बढ़ा है। सांस्कृतिक स्तर पर आपने इसके प्रतिकार में क्या कुछ क़दम स्कूली स्तर पर उठाया है।
भाजपा ने सांस्कृतिक प्रतीकों को थोपने के प्रयास के तहत यह सब किया है। इसका एक ही प्रतिकार है कि बुद्ध, कबीर के बहुजन आंदोलन को आगे बढ़ाया जाए। तमाम दलित-बहुजन सांस्कृतिक कार्यक्रम इस दौर में शुरू हुए हैं। हम बच्चों को उनका जीवन परिचय बताते हैं। फिर उनसे उन पर लिखकर लाने को कहते हैं।
किस राजनीतिक विचारधारा की ओर आपका झुकाव ज़्यादा है?
मैं समाजवादी विचारधारा में विश्वास रखता हूं। समाज के सभी वर्गों को समान प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। मैं जिले में किसानों के, छात्रों के या किसी अन्य मुद्दे पर होने वाले आंदोलनों में भागीदारी करता आया हूं। इस घटना के बाद मेरे पूर्ववर्ती छात्रों ने मुझसे संपर्क किया। कई मिलने भी आए। उन्होंने कहा कि सर हम आपके साथ हैं। मेरे छात्रों ने मेरे पढ़ाए सबक को याद रखा। यह मेरे लिए खुशी और सम्मान की बात है।
(संपादन : राजन/नवल/अनिल)