गत 21 अगस्त, 2025 को संसद के मानसून सत्र का समापन हो गया। वैसे तो यह पूरा सत्र बिहार में हुए विशेष मतदाता पुनरीक्षण का विपक्ष के द्वारा विरोध के कारण हंगामेदार रहा। लेकिन समापन के ठीक एक दिन पहले यानी 20 अगस्त, 2025 को संविधान के अनुच्छेद 15(5) के क्रियान्वयन के संबंध में एक रिपोर्ट दोनों सदनों में पेश की गई। शिक्षा, महिला, बाल, युवा और खेल संबंधी संसदीय स्थायी समिति की इस रिपोर्ट में भारत सरकार से निजी उच्चतर शिक्षण संस्थानों में एससी, एसटी और ओबीसी समुदायों के छात्रों के लिए क्रमश: 15 प्रतिशत, 7.5 प्रतिशत और 27 प्रतिशत आरक्षण संबंधी प्रावधान करने का परामर्श दिया गया है।
इस संसदीय स्थायी समिति के अध्यक्ष दिग्विजय सिंह हैं। वे कांग्रेसी हैं। उनके अलावा राज्यसभा के अन्य सदस्यों में बिकास रंजन भट्टाचार्य, सुष्मिता देव, डॉ. सिकंदर कुमार, सुनेत्रा अजीत पवार, रेखा शर्मा, डॉ. भीम सिंह, हरभजन सिंह, घनश्याम तिवारी और संगीता यादव शामिल हैं। वहीं इस समिति में लोकसभा के सदस्यों में बृजमोहन अग्रवाल, अंगोमचा बिमाल अकोइजम, रचना बनर्जी, शोभनाबेन महेंद्रसिंह बारैया, दर्शन सिंह चौधरी, जितेंद्र दोहरे, एकनाथ गायकवाड़, अभिजीत गंगोपाध्याय, डॉ. हेमांग जोशी, अमर शरदराव काले, कालिपद सरेन खेरवाल, डीन कुरियाकोस, डॉ. संबित पात्रा, रविशंकर प्रसाद, डॉ. डी. पुरंदेश्वरी, राजीव राजय, जिया उर रहमान, करण भूषण सिंह, बांसुरी स्वराज, कामाख्या प्रसाद तासा, और डॉ. टी. सुमति उर्फ तामिझाची थंगापंडियन शामिल रहे।
बताते चलें कि डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार ने 2006 में 93वें संशोधन के माध्यम से अधिनियमित भारतीय संविधान का अनुच्छेद 15(5) जोड़ा था, जो राज्य को अल्पसंख्यक संस्थानों को छोड़कर, निजी संस्थानों सहित, शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के लिए सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए विशेष प्रावधान करने का अधिकार देता है।
हालांकि मई 2014 में इसे न्यायालय में चुनौती दी गई थी। लेकिन प्रमति एजुकेशनल एंड कल्चरल ट्रस्ट बनाम भारत संघ मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 15(5) की वैधता को बरकरार रखा और यह स्पष्ट किया कि निजी उच्च शिक्षण संस्थानों में भी आरक्षण की अनुमति है।

दिग्विजय सिंह की अध्यक्षता वाली संसदीय स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इस प्रावधान का कार्यान्वयन असंतोषजनक रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक, निजी शैक्षणिक संस्थानों में एससी, एसटी और ओबीसी समुदायों का वर्तमान में प्रतिनिधित्व बेहद कम है। समिति ने केंद्र सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त तीन निजी उत्कृष्ट संस्थानों के छात्र संरचना का अध्ययन किया। मसलन, बिरला प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान (बिट्स), पिलानी, राजस्थान का आंकड़ा बताता है कि वर्ष 2024-25 के दौरान कुल 5137 छात्रों (जिनमें 952 ने अपनी श्रेणी को सार्वजनिक नहीं किया) में सामान्य श्रेणी के 3434 (82 प्रतिशत), ईडब्ल्यूएस के 204 (4.87 प्रतिशत), ओबीसी के 514 (12.28 प्रतिशत), एससी के 29 (0.69 प्रतिशत) और एसटी के 4 (0.1 प्रतिशत) छात्रों को दाखिला मिला। ऐसे ही ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी में 2024-25 में कुल 3358 छात्रों ने दाखिला लिया, जिनमें 3017 (89.8 प्रतिशत) छात्र सामान्य, 291 ओबीसी (8.67 प्रतिशत), 31 एससी (0.92 प्रतिशत) और 19 (0.57 प्रतिशत) एसटी समुदाय के हैं। शिव नाडर यूनिवर्सिटी में ये आंकड़े इस प्रकार हैं– कुल छात्र 3359, ईडब्ल्यूएस 9 (0.27 प्रतिशत), सामान्य 2736 (81 प्रतिशत), ओबीसी 537 (16 प्रतिशत), एससी 48 (1.43 प्रतिशत) और एसटी 29 (0.86 प्रतिशत)।
समिति का मानना है कि संविधान के अनुच्छेद 15(5) का प्रावधान शिक्षा तक समान पहुंच सुनिश्चित करने का प्रयास करता है, जो सामाजिक-आर्थिक गतिशीलता के लिए महत्वपूर्ण उपकरण है, जिससे समावेशिता को बढ़ावा मिलता है और अवसरों में असमानता कम होती है। लेकिन वर्तमान में संसद ने ऐसा कोई कानून पारित नहीं किया है जो अनुच्छेद 15(5) को लागू करे और निजी उच्च शिक्षण संस्थानों में एससी, एसटी और ओबीसी समुदाय के छात्रों के लिए आरक्षण अनिवार्य बनाए।
बहरहाल दिग्विजय सिंह की अध्यक्षता वाली संसदीय स्थायी समिति ने सर्वसम्मति से सिफारिश की है कि संसद एक कानून पारित करे, जिसके तहत एससी समुदायों के लिए 15 प्रतिशत आरक्षण, एसटी समुदायों के लिए 7.5 प्रतिशत आरक्षण और ओबीसी समुदायों के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण लागू किया जाए। समिति ने निजी उच्च शिक्षण संस्थानों के द्वारा छात्रों से लिए जानेवाले शुल्क को लेकर भी सवाल उठाया है और कहा है कि इन्हें कम किया जाना चाहिए ताकि इन समुदायों के बच्चे भी दाखिला ले सकें।
(संपादन : राजन/नवल/अनिल)
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