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मॉब लिंचिंग पर प्रधानमंत्री यदि चिन्तित हैं, तो कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाते?

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने समाचार एजेंसी एएनआई को दिए साक्षात्कार में मॉब लिंचिंग पर चिन्ता जताई है, लेकिन प्रश्न यह है कि एक ओर प्रधानमंत्री चिन्ता जता रहे हैं, दूसरी ओर उनके मंत्री मॉब लिंचिंग के दोषियों को सम्मानित कर रहे हैं, उनके खिलाफ मोदी जी कुछ नहीं कर रहे हैं, ऐसा क्यों ? गुलजार हुसैन की एक रिपोर्ट

मॉब लिंचिंग के मुद्दे पर देर से ही सही, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुंह खोला है, लेकिन इसके बावजूद वे कई जरूरी सवालों से मुंह फेरकर निकल गए हैं। गौरतलब है कि मोदी ने समाचार एजेंसी एएनआई को दिए एक इंटरव्यू में मॉब लिंचिंग की घटनाओं पर चिंता जताते हुए कहा है कि हर किसी को राजनीति से ऊपर उठकर समाज में शांति और एकता बनाने की जरूरत है। निस्संदेह मोदी ने जरूरी बात कही है, लेकिन देश को पूरी दुनिया में बदनाम करने वाले इतने गंभीर मुद्दे पर क्या प्रधानमंत्री की इतनी सी पहल की ही जरूरत है? सवाल तो यह भी उठता है कि क्या हाल ही में मॉब लिंचिंग के दोषियों को सम्मानित करने वाले भाजपाई मंत्री जयंत सिन्हा पर भाजपा ने किसी तरह की कोई कार्रवाई नहीं करके अपनी सियासत की धार को तेज किया है? जयंत सिन्हा प्रकरण से यह संदेह होता है कि भाजपा इस मुद्दे को अपना हिडेन एजेंडा बनाकर चल रही है, ऐसे में मोदी पर इस छवि से मुक्त होने की जिम्मेदारी बढ़ जाती है, लेकिन वे तो इस मामले पर चुप बैठे हैं।

मॉब लिंचिग के शिकार व्यक्ति के रोते-बिलखते परिजन

मॉब लिंचिंग कोई मामूली समस्या नहीं, बल्कि देश में राजनीतिक हित साधने के लिए उग्र संगठनों को खुराक के रूप में नई तरह की हिंसा को सौंपने की पहल भी है। यह समस्या इतनी गंभीर है कि सुप्रीम कोर्ट ने इसे रोकने की पहल करने को लेकर पिछले दिनों केंद्र सरकार और राज्य सरकारों पर सख्त टिप्पणी की है। पिछले तीन-चार सालों में मॉब लिंचिंग कि घटना ने देश के शांतिप्रिय लोगों और बुदि्धजीवियों को झकझोर कर रख दिया है। गौरतलब है कि अखलाक की पीट-पीट कर हत्या किए जाने के बाद पूरे देश में विरोध गहरा गया था, लेकिन इसके बावजूद यह हिंसक सिलसिला रुका नहीं, उल्टे और तेज होता गया। आंकड़ों के अनुसार पिछले कुछ सालों में एक जानवर (गाय) के नाम पर 40 से 45 लोगों की हत्या कर दी गई है। हाल ही में राजस्थान में रकबर की हत्या के बाद भी राज्य की भाजपा सरकार और पुलिस की लापरवाही पर उंगली उठी है।

प्रधानमंत्री मोदी यदि सचमुच मॉब लिंचिंग की घटनाओं को रोकने के लिए चिंतित हैं, तो यह बेहद अच्छी बात है, लेकिन सवाल यह है कि क्या वे इसके लिए अन्य जरूरी पहल कर रहे हैं? यह बात बहुत अधिक खलती है कि वे अक्सर ऐसी घटनाओं पर चुप्पी साधे रहते हैं और जब बोलते भी हैं तो बहुत देर हो चुकी होती है। मोदी यदि मॉब लिंचिंग की घटनाओं को रोकना चाहते हैं तो आखिर मॉब लिंचिंग के दोषियों को सम्मानित करने वाले भाजपाई मंत्री जयंत सिन्हा को अब तक पार्टी से क्यों नहीं निकाला? हत्या के मामले के दोषियों को सम्मानित करने वाले मंत्री जयंत सिन्हा पर रहम कर और दूसरी तरफ एकता की बात कर आखिर नरेंद्र मोदी कैसी राजनीति को हवा देना चाहते हैं?

दरअसल मोदी सरकार न तो मॉब लिंचिंग के आरोपी संगठनों पर कार्रवाई कर पा रही है और न ही भड़काऊ बयान देने और हरकत करने वाले पार्टी के नेताओं-मंत्रियों पर अंकुश लगा पा रही है। पिछले दिनों रकबर की हत्या के बाद आरएसएस नेता इंद्रेश कुमार ने कहा कि लोग यदि बीफ खाना छोड़ दें तो मॉब लिंचिंग जैसी घटनाएं खत्म हो सकती हैं। दरअसल जयंत सिन्हा और इंद्रेश कुमार जैसे भाजपा-आरएसएस नेताओं के ऐसे बयान मॉब लिंचिंग को जायज ठहराते प्रतीत होते हैं।

अपनी जान बख्शने की गुहार लगाता मॉब लिंचिंग का शिकार एक युवा

यह स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री मोदी के सामने मॉब लिंचिंग रोकने की बड़ी चुनौती है, लेकिन उन्होंने खुद बीफ पॉलिटिक्स शुरू कर इसे हवा भी दी है। देश में कई जगहों पर भाजपा की सरकार बीफ खाए जाने के पक्ष में है और दूसरी ओर कई जगहों पर गाय के नाम पर निर्दोष दलितों-मुस्लिमों का खून पीया जा रहा है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि मोदी यदि मॉब लिंचिंग को रोकना चाहते हैं, तो उन्हें कई ठोस कदम उठाने होंगे।  

(कॉपी-संपादक : सिद्धार्थ)


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लेखक के बारे में

गुलजार हुसैन

कवि व कहानीकार गुलजार हुसैन पेशे से पत्रकार हैं तथा मुंबई में रहकर राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर निरंतर लेखन करते हैं। मुंबई से प्रकाशित समाचार-पत्र 'हमारा महानगर' में लंबे समय तक चला 'प्रतिध्वनि’ नामक उनका कॉलम खासा चर्चित रहा था

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