h n

दिल्ली में अन्य राज्यों के दलितों और ओबीसी को भी मिलेंगे सारे अधिकार : राजेंद्र पाल गौतम

दिल्ली सरकार के समाज कल्याण मंत्री राजेंद्र पाल गौतम के मुताबिक, उनकी सरकार दलितों और ओबीसी वर्ग के लोगों के हितों की रक्षा करेगी। इस कड़ी में उन्होंने दिल्ली में रहने वाले ओबीसी वर्ग के लोगों के आरक्षण के लिए 1993 के पहले के निवासी होने की शर्त को खत्म करने हेतु केंद्र सरकार को प्रस्ताव भी भेजा है। पढ़ें, साक्षात्कार का संपादित अंश :

दिल्ली सरकार दलितों और ओबीसी वर्ग के लोगों को केंद्र में रखकर अनेक योजनाएं चला रही है। इनमें दलित-बहुजन युवाओं को विदेश में उच्च शिक्षा ग्रहण करने में मदद करने से लेकर प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए कोचिंग सुविधा देना भी शामिल है। इसके अलावा सरकार ने दलित-बहुजन नायकों के सम्मान में कई कार्यक्रमों का आयोजन किया है। साथ ही आरक्षण को लेकर भी अहम पहल की है। इस संदर्भ में दिल्ली सरकार के समाज कल्याण मंत्री राजेंद्र पाल गौतम से फारवर्ड प्रेस ने बातचीत की। प्रस्तुत है संपादित अंश :

अभी हाल ही में एक खबर आई कि दिल्ली में रहने वाले ओबीसी वर्ग के लोगों को आरक्षण का लाभ मिल सकेगा। सरकार उस प्रावधान में संशोधन करने जा रही है, जिसके कारण ओबीसी के उन लोगों को रिजर्वेशन नहीं मिल पा रहा है, जो 1993 के बाद दिल्ली आए हैं। आप की तरफ से इस दिशा में कोई और पहल की गई है?

इसको लेकर हमारा मंत्रालय गंभीर है और तोड़ ढू़ंढा जा रहा है। क्योंकि, हम खुद महसूस करते हैं कि यह कितनी अजीब बात है कि दिल्ली में बच्चे का जन्म व पढ़ाई-लिखाई होने के बावजूद उस बच्चे तक को दिल्ली का निवासी नहीं माना जा रहा है। उन्होंने कहा कि चूंकि यह मामला केंद्र सरकार से भी जुड़ा है, इसलिए इस दिशा में केंद्र के अधिकारियों से भी सकारात्मक बातचीत चल रही है। हालांकि, ठोस रूप में अभी कुछ हासिल नहीं हुआ है, जिसके लिए इंतजार करना पड़ेगा। मैं एक बार फिर दाेहरा रहा हूं कि दिल्ली सरकार दलित-बहुजनों के हितों की रक्षा करेगी। तमाम बाधाएं होने के बावजूद इसके लिए हम प्रयासरत हैं।

पूरा आर्टिकल यहां पढें : दिल्ली में अन्य राज्यों के दलितों और ओबीसी को भी मिलेंगे सारे अधिकार : राजेंद्र पाल गौतम

 

 

 

लेखक के बारे में

कुमार समीर

कुमार समीर वरिष्ठ पत्रकार हैं। उन्होंने राष्ट्रीय सहारा समेत विभिन्न समाचार पत्रों में काम किया है तथा हिंदी दैनिक 'नेशनल दुनिया' के दिल्ली संस्करण के स्थानीय संपादक रहे हैं

संबंधित आलेख

‘धर्मनिरपेक्ष’ व ‘समाजवादी’ शब्द सांप्रदायिक और सवर्णवादी एजेंडे के सबसे बड़े बाधक
1975 में आपातकाल के दौरान आरएसएस पर प्रतिबंध लगा था, और तब से वे आपातकाल को अपने राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करते...
दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों के ऊपर पेशाब : राजनीतिक शक्ति का कमजोर होना है वजह
तमाम पुनरुत्थानवादी प्रवृत्तियां सर चढ़कर बोल रही हैं। शक्ति के विकेंद्रीकरण की ज़गह शक्ति के केंद्रीकरण की प्रवृत्ति बढ़ रही है। ऐसे दौर में...
नीतीश की प्राथमिकता में नहीं और मोदी चाहते नहीं हैं सामाजिक न्याय : अली अनवर
जातिगत जनगणना का सवाल ऐसा सवाल है कि आरएसएस का सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति का जो गुब्बारा है, उसमें सुराख हो जाएगा, उसकी हवा...
मनुस्मृति पढ़ाना ही है तो ‘गुलामगिरी’ और ‘जाति का विनाश’ भी पढ़ाइए : लक्ष्मण यादव
अभी यह स्थिति हो गई है कि भाजपा आज भले चुनाव हार जाए, लेकिन आरएसएस ने जिस तरह से विश्वविद्यालयों को अपने कैडर से...
आखिर ‘चंद्रगुप्त’ नाटक के पन्नों में क्यों गायब है आजीवक प्रसंग?
नाटक के मूल संस्करण से हटाए गए तीन दृश्य वे हैं, जिनमें आजीवक नामक पात्र आता है। आजीवक प्राक्वैदिक भारत की श्रमण परंपरा के...