h n

भारत के वंचितों में क्यों नहीं बनती अमेरिकी अश्वेतों के जैसी एकजुटता?

अमेरिका में जारी अश्वेतों के आंदोलन की पृष्ठभूमि में प्रेम कुमार, भारतीय समाज और इसकी वैचारिकी का विश्लेषण कर रहे हैं। उनके मुताबिक, भारत में जातीय अंतर्विरोधों से ऊपर उठकर अश्वेत जैसी कोई वर्गीय अवधारणा का विकास अभी तक संभव नहीं हो पाया है। शोषण और भेदभाव के पीड़ित मजबूत और टिकाऊ सामाजिक गठबंधन बना सकते हैं

बीते 25 मई, 2020 को अमेरिका के मिनियापोलिस शहर में श्वेत पुलिसकर्मी डेरेक शॉविन द्वारा अश्वेत नागरिक जॉर्ज फ्लॉयड की निर्ममतापूर्वक हत्या कर दी गई। इस घटना ने पूरी दुनिया को स्तब्ध कर दिया। सबसे अधिक आक्रोशित अमेरिका के लोग हुए और विरोध प्रदर्शनों का आलम यह है कि ट्रंप हुकूमत हिल उठी है। यह घटनाक्रम 1960 के दशक के अमरीकी नागरिक अधिकार आंदोलन की याद दिलाता है।

पूरा आर्टिकल यहां पढें : भारत के वंचितों में क्यों नहीं बनती अमेरिकी अश्वेतों के जैसी एकजुटता?

लेखक के बारे में

प्रेम कुमार

प्रेम कुमार दिल्ली विश्वविद्यालय के मोतीलाल नेहरू कॉलेज में इतिहास विभाग के सहायक प्रोफेसर हैं

संबंधित आलेख

दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों के ऊपर पेशाब : राजनीतिक शक्ति का कमजोर होना है वजह
तमाम पुनरुत्थानवादी प्रवृत्तियां सर चढ़कर बोल रही हैं। शक्ति के विकेंद्रीकरण की ज़गह शक्ति के केंद्रीकरण की प्रवृत्ति बढ़ रही है। ऐसे दौर में...
नीतीश की प्राथमिकता में नहीं और मोदी चाहते नहीं हैं सामाजिक न्याय : अली अनवर
जातिगत जनगणना का सवाल ऐसा सवाल है कि आरएसएस का सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति का जो गुब्बारा है, उसमें सुराख हो जाएगा, उसकी हवा...
मनुस्मृति पढ़ाना ही है तो ‘गुलामगिरी’ और ‘जाति का विनाश’ भी पढ़ाइए : लक्ष्मण यादव
अभी यह स्थिति हो गई है कि भाजपा आज भले चुनाव हार जाए, लेकिन आरएसएस ने जिस तरह से विश्वविद्यालयों को अपने कैडर से...
आखिर ‘चंद्रगुप्त’ नाटक के पन्नों में क्यों गायब है आजीवक प्रसंग?
नाटक के मूल संस्करण से हटाए गए तीन दृश्य वे हैं, जिनमें आजीवक नामक पात्र आता है। आजीवक प्राक्वैदिक भारत की श्रमण परंपरा के...
कौशांबी कांड : सियासी हस्तक्षेप के बाद खुलकर सामने आई ‘जाति’
बीते 27 मई को उत्तर प्रदेश के कौशांबी में एक आठ साल की मासूम बच्ची के साथ यौन हिंसा का मामला अब जातिवादी बनता...