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संथाल हुल : जब आदिवासियों के हुंकार से कांप उठा अंग्रेज सहित सभी दिकुओं का कलेजा

हुल दिवस के मौके पर विशद कुमार याद कर रहे हैं आदिवासी योद्धाओं को, जिन्होंने अंग्रेजों, जमींदारों और सूदखोर महाजनों के खिलाफ लड़ाई का आगाज किया। वे यह भी बता रहे हैं कि जिन परिस्थितियों के बीच संथाल हुल हुआ, वे आज भी आदिवासियों के समक्ष मौजूद हैं

तीस जून 1855 को प्रारंभ हुआ “संथाल हुल” एक व्यापक प्रभाव वाला युद्ध था। संथाल हुल इस मायने में खास था कि इसमें एक शक्ति थी जमींदार, सूदखोर महाजन और उन्हें संरक्षण देने वाले अंग्रेज तो दूसरी शक्ति बहुजनों की थी, जिसका नेतृत्व आदिवासी कर रहे थे।

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लेखक के बारे में

विशद कुमार

विशद कुमार साहित्यिक विधाओं सहित चित्रकला और फोटोग्राफी में हस्तक्षेप एवं आवाज, प्रभात खबर, बिहार आब्जर्बर, दैनिक जागरण, हिंदुस्तान, सीनियर इंडिया, इतवार समेत अनेक पत्र-पत्रिकाओं के लिए रिपोर्टिंग की तथा अमर उजाला, दैनिक भास्कर, नवभारत टाईम्स आदि के लिए लेख लिखे। इन दिनों स्वतंत्र पत्रकारिता के माध्यम से सामाजिक-राजनैतिक परिवर्तन के लिए काम कर रहे हैं

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