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‘बाबा साहब की किताबों पर प्रतिबंध के खिलाफ लड़ने और जीतनेवाले महान योद्धा थे ललई सिंह यादव’

बाबा साहब की किताब ‘सम्मान के लिए धर्म परिवर्तन करें’ और ‘जाति का विनाश’ को जब तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने जब्त कर लिया तब ललई सिंह यादव रामस्वरूप वर्मा जी के पास आए। वे बहुत व्यथित थे कि इसके खिलाफ अब आंदोलन चलाना चाहिए। पढ़ें, रामचंद्र कटियार का यह साक्षात्कार

पेरियार ललई सिंह यादव (1 सितंबर, 1911 – 7 फरवरी, 1993) पर विशेष

रामचंद्र कटियार शोषित समाज दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। वे रामस्वरूप वर्मा और पेरियार ललई सिंह यादव के सहयोगी रहे। अर्जक संघ आंदोलन के विस्तार में पेरियार ललई सिंह यादव के योगदान व उनके जीवन आदि के बारे में उन्होंने फारवर्ड प्रेस से दूरभाष पर बातचीत की। इसमें उन्होंने तत्कालीन राजनीतिक परिदृश्य और समाज को भी याद किया है। प्रस्तुत है इस बातचीत का संपादित अंश

अर्जक संघ आंदोलन में पेरियार ललई सिंह यादव की भूमिका कैसी थी?

ललई सिंह जी फौजी थे। उन्होंने बगावत कर दी थी तो उनको जेल हो गई। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ। फिर वे मानववादी विचारधारा के स्तंभ बन गए। वे बहुत पढ़े-लिखे नहीं थे, लेकिन उन्हें पढ़ने-लिखने की बहुत उत्कंठा रहती थी। वे बौद्ध हो गए और आरपीआई से जुड़ गए। वे आरपीआई की संसदीय बोर्ड के सदस्य भी रहे। 

जैसे ही 1968 में अर्जक संघ की स्थापना हुई और चूंकि वे रामस्वरूप वर्मा जी के जिले (कानपुर देहात) के ही थे तो संपर्क में आए और उनसे पूरी तरह प्रभावित हो गए। ललई सिंह यादव ने एक प्रेस भी खोला। इसके जरिए उन्होंने मानववादी साहित्य छापकर प्रचार-प्रसार किया। यही वह जिंदगी भर करते रहे। 

अर्जक संघ की स्थापना के साल ही वह लखनऊ आए। तब तक वह पूरी तरह जुड़ चुके थे। जहां कहीं भी सभाएं होतीं, वे जाते थे। इसके बाद बाबा साहब की किताब ‘सम्मान के लिए धर्म परिवर्तन करें’ और ‘जाति का विनाश’ को जब तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने जब्त कर लिया तब वे वर्मा जी के पास आए। वे बहुत व्यथित थे कि इसके खिलाफ अब आंदोलन चलाना चाहिए। फिर आंदोलन की रूपरेखा बनी और सभाएं व प्रदर्शन आदि शुरू किया गया। 

फिर ललई जी ने कहा कि हमें सरकार के इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील करनी चाहिए। एक सखाराम यादव जी थे। उनके कहने पर बनवारी सिंह यादव जो कि वकील थे, उनसे संपर्क किया गया। वर्मा जी भी साथ में गए और उन्होंने पूरा ड्राफ्ट बनवाया। यह मुकदमा ललई सिंह जी ही लड़े और सुप्रीम कोर्ट तक सरकार के खिलाफ धावा बोला और विजयी हुए। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से किताबों पर से प्रतिबंध हटा और किताबें वापस की गईं। तो यह उत्तर प्रदेश की तत्कालीन सरकार को जो ललई सिंह यादव जी ने चुनौती दी, वह बहुत बड़ा क्रांतिकारी काम था। वजह यह कि वे अकेले दम पर लड़े। यह उनका बहुत ऐतिहासिक काम है। आजकल आंबेडकर की फोटो लगाकर बहुत लोग घूमते हैं, लेकिन तब एक भी आदमी ऐसा नहीं था, जिन्होंने इस जब्ती के खिलाफ आंदोलन किया हो। 

अपको बताऊं कि इसके पहले बाबा साहब की किताबों को जब वर्मा जी उत्तर प्रदेश के वित्तमंत्री थे, उन्होंने पूरे प्रदेश के सभी सरकारी पुस्तकालयों और अनुदान पर चलनेवाली पुस्तकालयों में और उस समय हरिजन पुस्तकालय हुआ करते थे, सभी में अविलंब रूप से रखने का आदेश जारी किया था। लेकिन बाद में आई कांग्रेस सरकार ने इन दो किताबों को वापस मंगवा लिया और जब्त कर ली थी। तो उसके खिलाफ जिलों में, तहसीलों में व्यापक प्रदर्शन हुए। और जब जगदेव बाबू 1974 में आंदोलन चला रहे थे तब उनकी एक मांग यह भी थी कि बाबा साहब की किताबें स्कूली पाठ्यक्रमों में तथा सरकारी पुस्तकालयों में रखी जाय। बाद में उन्हें शहादत देनी पड़ी। 

ललई सिंह यादव जी बहुत बड़े क्रांतिकारी और संगठनकर्ता थे। सन् 1974 में कानपुर देहात के राजपुर विधानसभा क्षेत्र में जब शोषित समाज दल के उम्मीदवार रणधीर सिंह हुए तब पूरी कमान ललई सिंह यादव ने अपने हाथ में रखी थी और उन्हें विजयी बनवाया। रणधीर सिंह यूपी में शोषित समाज दल के पहले विधायक थे। अब यह सिकंदरा हो गया है। पहले यह विधानसभा क्षेत्र वर्मा जी का था। जब वर्मा जी के ऊपर हाईकोर्ट ने पांच साल तक चुनाव लड़ने से रोक दिया तब रणधीर सिंह चुनाव लड़े थे और ललई सिंह यादव के नेतृत्व में ही वह विजयी हुए थे। यह बहुत बड़ा योगदान था उनका।

पेरियार ललई सिंह यादव व रामचंद्र कटियार की तस्वीर

कभी आपको ललई सिंह यादव को सुनने और देखने का मौका मिला हो तो कृपया कोई संस्मरण साझा करें। मतलब यह कि वे कैसे दिखते थे और उनका व्यवहार कैसा था?

अर्जक संघ की जितनी सभाएं होती थीं, उनमें वह जाते ही थे। हमलोग साथ में भाषण करते थे। ललई सिंह जी बहुत फुर्तीले थे। वे बहुत तेज चलते थे। और जब हम साथ चलते थे तब जब हम चाय-वाय पीने की बात कहते तो वह झट से कहते कि आगे चलो। वे तो ऐसे थे कि एक हाथ में रोटी रखते और हाथ से नोंचकर खाते जाते और चलते जाते। आखिरी समय तक वह फौजी ही रहे।

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एक मामला यह था कि आंबेडकर जयंती का कार्यक्रम फूलबाग, कानपुर में होना था। बहुत बड़ा कार्यक्रम था। उसमें ललई सिंह यादव को भी जाना था और मुझे भी जाना था। वे लखनऊ आए तो वर्मा जी के यहां मैं भी ठहरा हुआ था। उन्होंने कहा– चलो, हम एक साथ चलते हैं, लेकिन बोला कैसे जाय। इमरजेंसी है। कुछ बोलने पर ये तो बंद कर देंगे। 

तब वर्मा जी ने उनको बताया कि सरकार के खिलाफ मत बोलना, लेकिन कांग्रेस पार्टी के खिलाफ बोलना। बात वही है। कांग्रेस के खिलाफ बोलना और सरकार के खिलाफ बोलना एक ही है। जब पार्टी के खिलाफ बोलोगे तो जनता यही जानेगी कि सरकार के खिलाफ बोला जा रहा है। पार्टी के खिलाफ बोलने पर कोई जुर्म नहीं माना जाएगा। सरकार के खिलाफ बोलना जुर्म माना जाएगा। 

जब हमलोग वहां पहुंचे तो वहां लोग बहुत दहशत में थे। लेकिन हमलोगों ने सरकार के खिलाफ पार्टी का नाम लेकर खूब भाषण किया। कांग्रेस को खूब लताड़ा। लोगों ने तब बहुत सराहा। नहीं तो उस समय कोई मुंह खोलने का साहस नहीं करता था। यह उस समय बहुत बड़ी बात रही।

उन दिनों आपलोग आने-जाने के लिए किस तरह का साधन उपयोग में लाते थे?

बस से और रेल से भी जाते थे। हालांकि तब साथ में बहुत लोग नहीं जाते थे। अब जैसे लखनऊ से जाना हुआ तो हम दो लोग ही गए। हम पैदल भी खूब चलते थे और साइकिल का भी उपयोग करते थे।

फूलबाग में जब कार्यक्रम हुआ तब आपकी उम्र कितनी रही होगी?

उस समय मेरी उम्र करीब 26 साल रही होगी।

नौजवानों को ललई सिंह यादव कैसे संगठित करते थे?

ललई सिंह यादव के अंदर तो गजब का जज्बा था। जब वे बोलते थे तो रोंगटे खड़े हो जाते थे। एक बार तो ऐसा था कि लखनऊ में वर्मा जी का जो सरकारी आवास था, उसका किराया बहुत हो गया। तब ललई सिंह यादव ने नौजवानों से कहा कि तुमलोग वर्मा जी का उपयोग करना नहीं जानते। जैसे अंग्रेजों के समय में डकैती डाली गई थी, उसी तरह से सरकार के यहां डकैती डालो और वर्मा जी को पैसे दो ताकि वह लड़ाई लड़ सकें। वे युवाओं को उत्साह से भर देते थे और उनका खून गरम कर देते थे।

कभी कोई उत्पीड़न की कोई घटना घटी हो जब ललई सिंह यादव और आप सभी ने पहल की हो?

हम सब जाते ही थे। दलित उत्पीड़न और किसान उत्पीड़न की ऐसी अनेक घटनाएं घटित हुईं। हमलोग वहां जाते थे और आंदोलन करके न्याय दिलाते थे। एक घटना याद आ रही है। हमारे यहां 28 जून, 1982 को दस्तमपुर कांड हुआ था। उसमें ठाकुरों ने दलितों की सामूहिक हत्या कर दी थी। उसमें ललई सिंह यादव के साथ हमलोग गए। उस समय वहां बहुत दहशत का माहौल था। पुलिस का पहरा तो था ही। हमलोग हिम्मत करके बीस आदमी गए। उन सभी को देखा और उनकी रिपोर्ट तैयार की। वह मामला बहुत दिनों तक चला। अनेक ठाकुर सब गिरफ्तार हुए। 

इस मामले में तो एक ऐसा मामला आ गया कि एक एसपी थे तिवारी जी। एक ध्रुवलाल यादव इंस्पेक्टर थे सिकंदरा थाना के। उसने इस घटना की जांच की थी। उस समय सूबे में कांग्रेस की सरकार थी। हत्यारों के तरफ के एक वकील थे जयनारायण सिंह ठाकुर। वीरेंद्र बहादुर सिंह चंदेल विधान परिषद के अध्यक्ष थे। सारे हत्यारे वीरेंद्र बहादुर सिंह चंदेल के यहां ही छिपे हुए थे। तो एसपी तिवारी ने ध्रुवलाल यादव से कहा कि जाओ और चंदेल से कहो कि एक मुजरिम हमें दे दें, क्योंकि ऊपर से बहुत दबाव है। हमारी जान बच जाय और सरकार की भी किरकिरी न हो। सरकार पीछे पड़ी है और मामला बहुत बढ़ गया है।

ध्रुवलाल यादव गया और उसने जयनारायण सिंह ठाकुर से कहा कि सुनो, वीरेंद्र बहादुर सिंह चंदेल से कहकर एक मुजरिम हमें दिलवा दो नहीं तो विधानपरिषद की सारी अध्यक्षगीरी हम पिछवाड‍़े में घुसा देंगे। यह सुनकर जयनारायण सिंह ठाकुर ने जाकर वीरेंद्र बहादुर चंदेल से कहा। उस समय क्या था कि विधान परिषद के ही एक सदस्य वीरेंद्र दीक्षित (भारतीय लोक दल के) उनके चेले थे। सवर्णों का मामला था। वीरेंद्र बहादुर सिंह चंदेल ने उनसे कहकर ध्रुवलाल यादव के खिलाफ विधान परिषद में सवाल उठवा दिया। एक दया बहन एमएलसी थीं। पहले वह सोशलिस्ट पार्टी में थीं, बाद में कांग्रेस में चली गईं और एमएलसी बन गई थीं। विधानसभा के पुस्तकालय में मुझे मिल गईं, तो उन्होंने ही कहा कि वर्मा जी से कहना कि सिकंदरा का एक इंस्पेक्टर है, उसको विधान परिषद ने बर्खास्त करने का आदेश जारी किया है।

जब वर्मा जी को बताया तो उन्होंने कहा कि ध्रुवलाल यादव तो बहुत अच्छा थानाप्रभारी है और बहादुर है। उसको कैसे सस्पेंड कर दिया। यह तो विधान परिषद के अधिकार क्षेत्र में ही नहीं है। विधान परिषद को चाहिए था कि उसे पहले बुलाया जाता, उसका पक्ष सुना जाता। बिना उसका पक्ष सुने कैसे उसको सजा दे दोगे। उस समय बलदेव सिंह आर्या एक मंत्री थे, दलित समाज से आते थे। वह विधान परिषद में सदन के नेता थे। वर्मा जी ने उनको फोन लगाया और कहा कि सारी जिम्मेदारी और बदनामी तुमपर आ जाएगी। विधान परिषद ने ध्रुवलाल यादव को बिना उसका पक्ष जाने ही बर्खास्त कर दिया है। यदि वह हाई कोर्ट चला जाएगा तो तुम्हारी मंत्रीगीरी चली जाएगी। बलदेव सिंह आर्या वर्मा जी को बहुत मानता था। वह वर्मा जी के पास आया और बोला कि आप सब जानते हैं कि यह सब ठाकुर लोग गुंडई करते हैं। हमारे पास क्या रास्ता है? तो वर्मा जी ने कहा कि एक कमेटी बना दो जो घटनास्थल पर जाकर जांच करे। तो उन्होंने कहा कि अब हम कहां कोई कमेटी बनाएं, आप ही एक जांच कमेटी बना दें, उसकी रपट हम मान लेंगे। तो हुआ यह कि वर्मा जी ने एक कमेटी गठित की और मुझे उसका अध्यक्ष बना दिया। 

इसके बाद हमलोग गए वहां। ध्रुवलाल यादव बहुत लोकप्रिय आदमी था। उसके समर्थन में हजारों लोग सड़क पर उतरे हुए थे। जाम लगा था। हमलोगों ने ध्रुवलाल यादव का बयान एक स्कूल में लिया। उसने कहा कि ये लोग गुंडई करते हैं। सात दलित लोगों को मार दिया है। इंक्वायरी करने गए तो विजय नारायण सिंह ठाकुर से कहा कि एक वीरेंद्र सिंह चंदेल से एक मुजरिम देने को कहो। नहीं तो हम ऐसा-वैसा कर देंगे। इसी बात से चिढ़ गया। 

मैंने ध्रुवलाल से कहा कि कोई सबूत है तो दो। तो उसने बावन ग्राम प्रधानों को बुलवाया। रात में हमलोगों ने गैस जलवाकर सभी का बयान लिया और रात दो बजे लखनऊ लौट पाए। सुबह हमने रिपोर्ट वर्मा जी को सौंपी। उस समय नारायण दत्त तिवारी मुख्यमंत्री थे। वर्मा जी ने उनसे मिलने का समय मांगा। वे वर्मा जी को गुरुजी ही कहते थे। उन्होंने बारह बजे मिलने का समय दिया। जब वर्मा जी के साथ हम सभी गए तब वे खाना खा रहे थे। उन्होंने वर्मा जी और हम सभी से कहा कि आप सब भी खाइए। तो वर्मा जी ने कहा कि हम सब खाकर आए हैं। आप हमारी बात सुनें। जवाब में नारायण दत्त तिवारी ने कहा कि वर्मा जी, आप आए हैं तो आगे क्या बात करनी है। वही होगा जो कानून कहता है। ध्रुवलाल यादव की बर्खास्तगी का आदेश रद्द कर दिया जाएगा। उसका ट्रांसफर भी नहीं होगा। वर्मा जी ने कहा कि कहीं आप हफ्ते भर बाद उसका ट्रांसफर न कर दें, हमें आप लिखित में दें। तब नारायण दत्त तिवारी ने कहा कि तीन महीने की गारंटी मैं देता हूं।

इस मामले में आगे यह हुआ कि सारे आरोपी पकड़े गए और वीरेंद्र बहादुर सिंह चंदेल का खेल धरा का धरा रह गया। यह इतिहास में पहली बार हुआ कि विधान परिषद का आदेश रद्द हुआ और ध्रुवलाल यादव की बर्खास्तगी को खत्म किया गया।   

पेरियार ललई सिंह यादव के निधन के बाद अर्जक संघ और शोषित समाज दल पर क्या प्रभाव पड़ा?

बिल्कुल पड़ा। सबसे पहले तो ललई सिंह यादव जी का प्रकाशन बंद हो गया। उसमें मानववादी साहित्य छपता था। वे अपनी पुस्तकें सुदूर इलाकों तक ले जाते थे और मानववादी विचारों का प्रचार-प्रसार करते थे। उनके निधन के बाद यह काम रूक गया। इस कारण अर्जक संघ को बहुत बड़ा नुकसान हुआ।

(संपादन : राजन/अनिल)


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लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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