भारत में मजदूर दिवस के प्रथम आयोजन का श्रेय तमिलनाडु के सिंगारवेलु चेट्टियार को जाता है। यही नहीं, दि लेबर एंड पीजेंट पार्टी ऑफ हिंदुस्तान नाम से पहली ठेठ साम्यवादी पार्टी बनाने, किसी जनसभा में पहली बार कामरेड कहने, पहली बार लाल झंडा फहराने का श्रेय भी उन्हीं के नाम है। उन्हें दक्षिण का प्रथम साम्यवादी कहा जाता है। उन्होंने कई सफल हड़तालों का नेतृत्व किया था। पढ़ें उनके एक भाषण का हिंदी अनुवाद। यह भाषण उन्होंने चूलई मिल वर्कर्स की सार्वजनिक सभा में 19 मई, 1921 को दिया था।
प्यारे दोस्तो!
आपकी तरह मैं भी एक मजदूर हूं। मैंने भी आपकी तरह खेतों में काम किया है, पौधों को पानी लगाया है। और भी बहुत से काम किए हैं। मेरे परदादा मछुआरे थे, मैं आज भी आपके लिए अजनबी नहीं हूं। आज दोपहर के वक्त मेरे मित्र मिस्टर वी.आर. वेदाचलम ने मेरे पास एक संदेश भेजा था। वे चाहते हैं कि मैं आपको संबोधित करूं।
पिछले कुछ वर्षों से मैं मजदूरों के हालात का अध्ययन करता आया हूं। अपने हालात को सुधारने के लिए आप जो लगातार संघर्ष करते आए हैं, मेरी उसपर भी गहरी नज़र रही है। अखबारों के माध्यम से विदेशी कामगारों की स्थितियों के बारे में जरूरी विवरण को जुटाता हुआ आया हूं। यूरोप के मजदूर भी आप ही की तरह मुश्किल भरे हालात और परेशानियों से गुजर रहे हैं। अमेरिकी मजदूरों की स्थिति भी आपसे बेहतर नहीं है। इसलिए मैं चाहता हूं कि आपको उन मजदूरों के साथ भाईचारा बढ़ाना चाहिए। यह बहुत आवश्यक है।
सर्व-श्रमिक समभाव
दूसरे देशों के मजदूरों का लक्ष्य भी वही है, जो आपका है। वे भी उसी मकसद से संघर्ष कर रहे हैं जिस मकसद से आप संघर्ष कर रहे हैं। वे भी उसी तरह से सोचते हैं, जैसे कि आप सोचते हैं। जो चीजें आपको डराती हैं, वही उन्हें भी डराती हैं। इसलिए दूसरे देशों के मजदूरों को भी हमें अपना भाई मानना चाहिए। यही आपके संगठन का उद्देश्य है। दुनिया-भर में जहां के भी मजदूर परेशानी में दिखाई पड़ें, आपकी सहानुभूति और सहयोग उनके साथ होना चाहिए। ‘एकता में ही शक्ति है।’ आपको हमेशा इस सुभाषित पर भरोसा करना चाहिए। आपके अपने मजदूर संगठनों की जो समस्याएं हैं, उन्हें किसी भी प्रकार का नुकसान पहुंचाए बिना, आपको दूसरे मुल्कों के मजदूरों की समस्याओं के बारे में जानने-समझने की कोशिश करते रहना चाहिए।
सबसे पहले आपको अपनी यूनियन के बारे में सोचना चाहिए। उन कारणों को समझना चाहिए, जिनके लिए यूनियन का गठन किया गया है। उसके बाद में नगर में जो दूसरे मजदूर संगठन हैं, उनके बारे में जानना-समझना चाहिए। अंतत: आपको अपने राज्य के मजदूरों के साथ एकता कायम करनी चाहिए, फिर संपूर्ण देश के मजदूरों के साथ और अंत में, चरम लक्ष्य के रूप में आपको दूसरे देशों के मजदूरों के बारे में जानना-समझना और उनके साथ एक हो जाना चाहिए। आपका दूसरा लक्ष्य होना चाहिए, मजदूर संगठनों के इतिहास को पढ़ना और समझना। यदि आप इन सब बातों को जानने की कोशिश करेंगे, तब आप समझ सकेंगे कि भाईचारा क्या होता है। तभी आप यह दुनिया-भर के मजदूरों के साथ आत्मीयता और बंधुत्व का अनुभव कर पाएंगे। महसूस कर पाएंगे जैसे सारे मजदूर आपस में भाई-भाई हैं।
श्रम का मूल्य
आज मजदूर कितने अपरिहार्य हैं, समाज को उनकी कितनी जरूरत है, इसका आपको ठीक से अहसास नहीं है। ऐसा लगता है कि आज के ट्रेड यूनियन वाले भी मजदूरों की भूमिका और महत्व से पूरी तरह वाकिफ नहीं हैं। खेतों में उगाया जाने वाला धान या खदानों से निकाले जाने वाले खनिज पदार्थ के लिए दुनिया मजदूरों पर निर्भर हैं। आपके श्रम से ही रेल चलती है और स्टीमर चलते हैं। दुनिया में पैदा होने वाली सभी वस्तुएं मजदूरों के श्रम का परिणाम हैं। जो वस्तुएं लोगों के लिए उपयोगी और जरूरी हैं, उनका उत्पादन मजदूरों द्वारा किया जाता है। कोई भी वस्तु उपयोगी हो या बेकार, उसका उत्पादन आपके शारीरिक या मानसिक श्रम से होता है। जीवन के लिए भोजन, कपड़ा और मकान जैसी बुनियादी आवश्यकताएं मानव श्रम से ही पैदा होती हैं। संक्षेप में, दुनिया पूरी तरह से मजदूरों के कारण ही अस्तित्व में है।

अपने श्रम का मूल्य जानना भी आपकी जिम्मेदारी है। श्रम और श्रमिक के महत्व, उसकी अपरिहार्यता के बारे में आपको समझना चाहिए। ऐसा लगता है कि आजकल के मजदूर नेता भी मजदूरों के महत्व, समाज विकास में उनकी भूमिका के बारे में पूरी तरह से जागरूक नहीं हैं। चाहे खेतों में धान उगाना हो या खान से बहुमूल्य धातुओं का शोधन करना हो— ये सारे काम मजदूरों की पसीने की मांग करते हैं। आपके पसीने के बल पर रेल पटरियों पर दौड़ती है, हवाई जहाज और पानी के जहाज चलते हैं। दुनिया में एक भी वस्तु ऐसी नहीं जिसका उत्पादन बिना मजदूर का पसीना बहाए संभव हो सके।
आम जरूरत की जितनी भी वस्तुएं हैं, सभी का निर्माण मजदूरों द्वारा किया जाता है। हर उपयोगी और अनुपयोगी उत्पाद आपके शारीरिक और मानसिक श्रम की कमाई है। रोजमर्रा की जरूरत की अत्यावश्यक वस्तुएं जैसे भोजन, वस्त्र, आवास सब मजदूरों के गाढ़े पसीने से पैदा होती हैं। संक्षेप में, यदि दुनिया आज कायम है तो पूरी तरह से आपके श्रम के कारण।
मजदूरों के हालात
इसके बावजूद आज मजदूरों की क्या स्थिति है? किन परिस्थतियों में उन्हें अपना जीवन बिताना पड़ रहा है? इस बारे में सोचें? आप धन का उत्पादन करते हैं, उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन करते हैं। फिर भी आपका अपना कुछ भी नहीं है। दुनिया में बेशुमार दौलत है, लेकिन आपके पास भोजन, वस्त्र और आवास की कमी है। मैंने देखा है कि इंग्लेंड के मजदूर भी इन्हीं मूल-भूत वस्तुओं की वंचना के शिकार हैं। इटली के श्रमिकों की भी यही दुरवस्था है। यहां तक कि दुनिया के किसी भी हिस्से में चले जाएं, मजदूर की हालत, उसका रहन-सहन, उसके दुख-दर्द सब एक समान है। सच मानिये, वे गरीबी और अपनी जरूरतों के संजाल में बुरी तरह फंसे हैं। जीने के लिए उन्हें कठिन परिश्रम करना पड़ता है।
रूस के पीटर क्रोप्टोकिन का कहना है कि यदि कोई मजदूर पूरे दिन में मात्र पांच घंटे में भी काम करना चाहे तो दुनिया में हर व्यक्ति खुशहाल जीवन जी सकता है। लेकिन आपको तो दिन में दस घंटे काम करना पड़ता है, फिर भी आपको अपनी अपनी अनिवार्य जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। इतनी कम मजदूरी आपको मिलती है कि अपनी मूलभूत आवश्यकताओं को भी पूरा नहीं कर पाते हैं। हमेशा दयनीय हालात के बीच आपको जीना पड़ता है। देश में भरपूर भोजन है। इतना की हरेक की भूख मिटाकर भी कम न पड़े। फिर भी यदि भरपूर अनाज होने के बाद भी लोगों को भूखे सोना पड़ता है, यदि ब्रिटेन के दौलत को पूरे मजदूरों में बराबर-बराबर बांट दिया जाए तो हर मजदूर को प्रति सप्ताह 150 रुपए मिलेंगे। लेकिन हमें पता चला है कि ब्रिटेन के खान मजदूर हड़ताल पर हैं, इसलिए हड़ताल पर हैं कि उन्हें जो वेतन मिलता है, उससे उनकी न्यूनतम जरूरतें भी पूरी नहीं हो पाती हैं। कोयला खदानों में हड़ताल होने के कारण न रेल चल पा रही है, न ही स्टीमर। उन्हें चलाने के लिए कोयला चाहिए। और कोयला हड़ताल के कारण मिल नहीं पा रहा है।
इंग्लैंड की खानों में इतना कोयला है कि वह उसकी आने वाले 1000 वर्षों की जरूरत को पूरी कर सकता है। यही नहीं जरूरत पड़ने पर इंग्लैंड पूरी दुनिया को कोयला आपूर्ति कर सकता है। इसके बावजूद इंग्लैंड आज कोयले की कमी से गुजर रहा है। जब उस देश में भरपूर कोयला है तो उपभोक्ताओं को कोयले की कमी का सामना क्यों करना पड़ रहा है? आखिर क्यों? एक और रोजमर्रा की जरूरत बढ़ रही हैं, खर्च बढ़ रहे हैं, दूसरी ओर रुपये की खरीद क्षमता लगातार घट रही है। कुछ वर्ष पहले जो वस्तु चार आने में मिल जाती है, अब उसकी कीमत एक रुपया या उससे भी ज्यादा है। मजदूर अपनी मेहनत से उत्पादन बढ़ा रहे हैं, उसके लिए निरंतर मेहनत कर रहे फिर भी उन्हें अपनी जरूरत की चीजों के लिए तरसना पड़ रहा है। आखिर किसलिए? इसलिए कि उत्पादक और उपभोक्ता के बीच एक तीसरा आदमी भी। वह उत्पाद का स्वामी है। उसके पास जमीन है, फैक्ट्रियां हैं, मिल और रेलवे आदि पर भी उसका मालिकाना हक है। वही है जो लोगों को लूटने के लिए वस्तुओं के मनमाने दाम बढ़ाता है। उससे अकाल के हालात पैदा होते हैं। लोगों को रातदिन अनथक मेहनत करनी पड़ती है। हड़ताल और दंगे होते हैं। पूरी दुनिया में यही सब चल रहा है।
उत्पादक और उपभोक्ता के बीच यह तीसरा आदमी कौन है। उसका नाम है पूंजीपति।
(मूल तमिल से अंग्रेजी अनुवाद : के. मुरुगेशन, हिंदी अनुवाद : ओमप्रकाश कश्यप)
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