स्वभाव से मृदु भाषी रहीं डॉ. रोज केरकेट्टा ने सरलता से अपने लेखन और संवाद में खड़ी बोली हिंदी को थोड़ा झुका दिया था। उसे अपने क्षेत्र की बोलियों की मिठास से जोड़ कलकल बहती...
आलोचक कंवल भारती भक्ति आंदोलन की एक नई लौकिक और भौतिक संदर्भों में व्याख्या करते हैं। इनका अभिधात्मक व्याख्या स्वरूप इनके पत्रकार व्यक्तित्व का ही परिणाम लगता है। अब तक भक्ति आंदोलन की जो व्याख्याएं...
पंडित धोंडीराम नामदेव कुंभार ने एक ऐसे विचारक के रूप में अपना बहुमूल्य योगदान दिया, जिन्होंने ब्राह्मणवादी श्रेष्ठता को अस्वीकार किया। संस्कृत भाषा और सनातन शास्त्रों पर उनकी पकड़ थी और नए युग के लिए...
जिस दौर में जयशंकर प्रसाद ने इन कृतियों की रचना की, वह भी सांस्कृतिक-राजनीतिक उथल-पुथल का था। आजादी की लड़ाई अपने अंतिम दौर में प्रवेश कर चुकी थी। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की आड़ में जातिवादी ताकतें...