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साहित्‍य

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में दलित साहित्य
दलित साहित्य के सौंदर्यशास्त्र का विकास दलित समाज, उसकी चेतना, संस्कृति और विचारधारा पर निर्भर करता है, जो एक लंबी प्रक्रिया में होते हुए धीरे-धीरे हो रहा है। यह वर्तमान के दलित रचनाकारों की रचनाओं...
बानू मुश्ताक की कहानियों में विद्रोही महिलाएं
सभी मुस्लिम महिलाओं को लाचार और बतौर वस्तु देखी जाने वाली बताने की बजाय, लेखिका हमारा परिचय ऐसी महिला किरदारों से कराती हैं जो मजबूत हैं, जिनके तेवर विद्रोही हैं, जो अन्याय को चुनौती देती...
योनि और सत्ता पर संवाद करतीं कविताएं
पितृसत्ता की जड़ें समाज के हर वर्ग में अत्यंत गहरी हो चुकी हैं। फिर चाहे वह प्रगतिशीलता के आवरण में लिपटा तथाकथित प्रगतिशील सभ्य समाज हो या स्त्री/पुरुष समानता की पैरवी करने वाली बुद्धिजीवी जमात।...
रोज केरकेट्टा का साहित्य और उनका जीवन
स्वभाव से मृदु भाषी रहीं डॉ. रोज केरकेट्टा ने सरलता से अपने लेखन और संवाद में खड़ी बोली हिंदी को थोड़ा झुका दिया था। उसे अपने क्षेत्र की बोलियों की मिठास से जोड़ कलकल बहती...
भक्ति आंदोलन का पुनर्पाठ वाया कंवल भारती
आलोचक कंवल भारती भक्ति आंदोलन की एक नई लौकिक और भौतिक संदर्भों में व्याख्या करते हैं। इनका अभिधात्मक...
सत्यशोधक पंडित धोंडीराम नामदेव कुंभार का धर्मचिंतन
पंडित धोंडीराम नामदेव कुंभार ने एक ऐसे विचारक के रूप में अपना बहुमूल्य योगदान दिया, जिन्होंने ब्राह्मणवादी श्रेष्ठता...
जेर-ए-बहस : प्रसाद के अधूरे उपन्यास ‘इरावती’ का आजीवक प्रसंग जिसकी कभी चर्चा नहीं होती
जिस दौर में जयशंकर प्रसाद ने इन कृतियों की रचना की, वह भी सांस्कृतिक-राजनीतिक उथल-पुथल का था। आजादी...
जातिवाद और सामंतवाद की टूटती जकड़नों को दर्ज करती किताब
बिहार पर आधारित आलेख के लेखक का मानना है कि त्रिवेणी संघ के गठन का असर बाद में...
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