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साहित्‍य

‘चमरटोली से डी.एस.पी. टोला तक’ : दलित संघर्ष और चेतना की दास्तान
यह आत्मकथा सिर्फ रामचंद्र राम के इंस्पेक्टर से डीएसपी बनने तक जीवन संघर्ष की गाथा नहीं बल्कि यह दलित समुदाय के उस प्रत्येक व्यक्ति की गाथा है जो जातिवादियों के अखाड़े में अपने अधिकारों के...
रोज केरकेट्टा का कथा संसार
रोज केरकेट्टा सोशल एक्टिविस्ट रही हैं। झारखंड अलग राज्य के आंदोलन की एक अग्रणी नेता। और इसी सामाजिक सरोकार ने उन्हें निरा कहानीकार बनने से रोका है। छोटी-छोटी कहानियों के माध्यम से वे लगभग उन...
‘कुशवाहा रामप्रकाश’ : कुशवाहा पर कुशवाहा की कविता
यह कविता उन तमाम उत्पीड़ितों की व्यथा-वाणी है जिनकी पहली-दूसरी पीढ़ी खेती-बारी से गुज़रते हुए उच्च शिक्षा की दुनिया तक पहुंची है और अपने लिए सम्मानजनक और न्यायपूर्ण जगह की तलाश कर रही है। बता...
‘ज्योति कलश’ रचने में चूक गए संजीव
जोतीराव फुले के जीवन पर उपन्यास लिखना एक जटिल काम है, लेकिन इसे अपनी कल्पनाशीलता से संजीव ने आसान बना दिया है। हालांकि कई जगहों पर वे अतिरेक भी कह जाते हैं। पढ़ें, यह समीक्षा
दलित साहित्य को किसी भी राजनीतिक दल का घोषणापत्र बनने से जरूर बचना चाहिए : प्रो. नामदेव
अगर कोई राजनीतिक दल दलित साहित्य का समर्थन करे तो इसमें बुराई क्या है? हां, लेकिन दलित साहित्य...
‘गाडा टोला’ : आदिवासी सौंदर्य बोध और प्रतिमान की कविताएं
कथित मुख्य धारा के सौंदर्य बोध के बरअक्स राही डूमरचीर आदिवासी सौंदर्य बोध के कवि हैं। वे अपनी...
स्वतंत्र भारत में पिछड़ा वर्ग के संघर्ष को बयां करती आत्मकथा
ब्राह्मण या ऊंची जातियों के जैसे अपनी जाति को श्रेष्ठ बताने की अनावश्यक कोशिशों को छोड़ दें तो...
दलित साहित्य में समालोचना विधा को बहुत आगे जाना चाहिए : बी.आर. विप्लवी
कोई कुछ भी लिख रहा है तो उसका नाम दलित साहित्य दे दे रहा है। हर साहित्य का...
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