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देशों के लिए तुलनात्मक चार्ट : मतों को तथ्यों से अलग करना

संस्कृतियों के परिणाम भी होते हैं, क्योंकि संस्कृतियों के नैतिक केंद्र होते हैं, और इन केंद्रों में अंतर होता है। लगभग हर तरह का अंतर अलग-अलग सांस्कृतिक मूल्य के कारण आता है और वे अलग-अलग प्रकार की सामाजिक व्यवस्था का निर्माण करते हैं।

आप एक समाज की किसी दूसरे समाज के साथ तुलना कैसे कर सकते हैं? आप कैसे कह सकते हैं कि एक समाज किसी दूसरे समाज से बेहतर है?

फुले ने ऐसा क्यों कहा कि उनके समय का ब्राह्मण विश्वदृष्टि वाला समाज हजारों साल पुराना “बंदीगृह” था? वह क्यों चाहते थे कि उस बंदीगृह के द्वार ठोकर मार कर खोल दें और एक दूसरे जगत में प्रवेश कर जाएँ? फुले ने यह समाज को संगठित करने और एक अन्य प्रकार का जीवन जीने की कामना क्यों की?

क्या किसी के पास यह कारण है कि वह यह कह सके कि अमुक संस्कृति किसी दूसरी से “बेहतर” है? क्या यह केवल किसी व्यक्ति की प्राथमिकता, उनकी निजी पसंद या नापसंद का मामला-भर है? मुझे लगता है डी. मोएनिहैन की अंतर्दृष्टि कुछ मदद कर सकती है।

डैनियल मोएनिहैन (मृत्यु 2003) अमेरिकी सिनेटर, संयुक्त राष्ट्र में राजदूत, और भारत में राजदूत रहे थे। वह गरीबों की समस्याओं के बारे में की जा रही शोध एवं वैधानिक गतिविधियों में बहुत संलग्न थे। राजनेता और कूटनीतिज्ञ होने के अलावा, मोएनिहैन हारवर्ड विश्वविद्यालय में प्रोफैसर भी थे। प्रोफैसर मोएनिहैन को उनकी सीधी-सच्ची बातों के लिए जाना जाता था। एक बार उन्होंने कहा, “हर किसी के पास अपनी राय रखने का तो हक है लेकिन अपने तथ्य बनाने का नहीं।”

राय या मत ऐसे वक्तव्य होते हैं जिनके समर्थन में प्रमाण हमेशा पेश नहीं किए जा सकते। तथ्य प्रमाणों पर आधारित होते हैं। मत निजी होते हैं — वे व्यक्तिगत निष्कर्ष या विचार अभिव्यक्त करते हैं। तथ्य सार्वजनिक होते हैं — हर कोई उन्हें देख और उनकी पड़ताल कर सकता है।

यह आपका मत हो सकता है कि सामने से आ रहा ट्रक आपको टक्कर नहीं मारेगा। लेकिन जब वह आपको उड़ा कर निकल जाएगा तो हर कोई जमीन पर पड़ी आपकी कुचली देह के आसपास इकट्ठा होकर तथ्य की पड़ताल कर सकता है। और फिर वे भी अपने भिन्न-भिन्न मत दे सकते हैं कि क्या आप जिएंगे या नहीं। लेकिन उन मतों की भी जल्द ही परिस्थिति के तथ्यों द्वारा पड़ताल की जा सकती है।

साल 1985 में लॉरेंस हैरिसन की पुस्तक अंडरडिवेलेपमंट इज ए स्टेट ऑफ माइंड के प्रकाशन के बाद से वैश्विक संस्कृतियों और देशों के डाटा-आधारित तुलनात्मक अध्ययन में दिलचस्पी बढ़ रही है।

मिसाल के तौर पर, अर्जेंटीना के समाजशास्त्री और इतिहासकार मैरिआनो ग्रॉन्डोना ने सांस्कृतिक श्रेणियों (टाइपॉलोजी) की ऐसी प्रणाली का विकास किया जो उनके शब्दों में उनके देश के “निराशाजनक इतिहास” का विश्लेषण करती है। अपने निष्कर्षों के स्पष्टीकरण के तौर पर उन्होंने कल्चरल टाइपॉलोजी ऑफ इकोनॉमिक डिवेलेपमंट नाम की पुस्तक पेश की।

“आर्थिक विकास का पैराडॉक्स यह है कि यह केवल आर्थिक मूल्यों से ही सुनिश्चित नहीं किया जा सकता,” ग्रॉन्डोना ने कहा। “एक राष्ट्र द्वारा स्वीकार या खारिज किए गए मूल्य सांस्कृति क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं। इस तरह हम कह सकते हैं कि आर्थिक विकास एक सांस्कृतिक प्रक्रिया है।”

ग्रॉन्डोना को इस बात का इल्म था कि उनके निष्कर्ष विवादास्पद होंगे क्योंकि उनकी राय सांस्कृति कई लोगों के मनों में व्याप्त सापेक्षतावाद की राय के विरुद्ध जाती थी। सांस्कृतिक सापेक्षतावाद या कल्चरल रिलेटिविजम वह दृष्टिकोण है जिसके अनुसार सभी संस्कृतियाँ अनिवार्य रूप से समान हैं। साथ ही, संस्कृतियों और समाजों के बारे में तुलनात्मक वैल्यू जजमेंट समान रूप से अमान्य है। दूसरे शदों में, सभी संस्कृतियाँ अच्छी हैं। और कोई यह नहीं कह सकता कि एक संस्कृति किसी दूसरी से बेहतर है।

लेकिन जैसा कि ग्रॉन्डोना ने संकेत किया है, यह तथ्य बरकरार रहता है कि कुछ संस्कृतियाँ लचीले रूप से प्रगति-उन्मुख हैं जबकि कुछ अन्य लगातार प्रगति-रोधक बनी रहती हैं।

अर्थात्, ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ संस्कृतियाँ  प्रगति की ओर झुकी हुई हैं, वे लचीली हैं, वे पलट कर वापिस आती हैं। अगर उन्हें मरोड़ा, दबाया या खींचा जाए फिर भी वे एक रबर बैंड की भाँति वापस अपने मूल रूप में लौट आती हैं।

लेकिन कुछ अन्य संस्कृतियाँ, ऐसा लगता है कि प्रगति से दूसरी ओर झुकी हुई हैं, वे लगातार प्रगति का प्रतिरोध करती हैं। दूसरे शब्दों में, दुर्भाग्यवश, वे बार-बार, लगातार और हठी तौर पर प्रगति का प्रतिरोध करती हैं।

हारवर्ड विश्वविद्यालय के लॉरेंस ई. हैरीसन ने कहा है, “मेरा मानना है कि वे संस्कृतियाँ जो मानवीय सृजनात्मक क्षमता को बढ़ावा देती हैं वे उन संस्कृतियों से बेहतर हैं जो ऐसा नहीं करतीं। कुछ लोगों को शायद यह बात बुरी लगे लेकिन मेरा मानना है कि यह इस बात से साबित होता कि जिन संस्कृतियों में प्रगति को दबाया जाता है वहाँ से प्रवासी लगातार उन संस्कृतियों में आते हैं जहाँ उसे बढ़ावा दिया जाता है।”

हैरिसन कहते हैं कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आम लोगों का दूसरे देशों में प्रवास करना उनकी राय की पुष्टि करता है। दूसरे शब्दों में, ज्यादातर लोग कनाडा जाना चाहते हैं न कि कैमरून। दुनिया भर में अधिकांश लोग भोपाल की बजाय बॉस्टन जाना अधिक पसंद करेंगे। और हालाँकि दोनों ही बहुत ठंडे देश हैं, उत्तरी कोरिया की बजाय लोग स्वीडन को चुनेंगे।

विकास प्रतिरोध के मामले में ग्रॉन्डोना का उदाहर रोमन कैथलिक देश अर्जेंटीना है। लेकिन उनकी आब्जरवेशन में दक्षिणी अमेरिका की वे सभी कैथलिक आधारित संस्कृतियाँ शामिल हैं जो पुर्तगाल और स्पेन की आइबेरियन प्रायद्वीप से निकली हैं। चाहे वह मैक्सिको हो या मकाओ, स्पेन या अल साल्वाडोर, पुर्तगाल या पेरू, बेल्जियम या ब्राजील, उन सबके कार्यकारी लक्षण एक समान हैं।

और यह गौर करने वाले ग्रॉन्डोना अकेले नहीं हैं। कार्लोस मॉन्टैनर, माना टन, एलिजाबेथ ब्रुस्को, और लेखक एवं भारत में मैक्सिको के पूर्व राजदूत, ऑक्तावियो पाज ने इसी प्रकार की बातों के दस्तावेज बना कर ऐसी ही दलीलें दी हैं।

एलेन पेयरेफीत, फ्राँस के वित्त मंत्री, और मैक्स वेबर, समाजशास्त्र के संस्थापकों में से एक, तथा अन्यों ने प्रोटैस्टंट संस्कृतियों को प्रगति या विकास-उन्मुख देशों के साथ जोड़ा है: स्विट्जरलैंड, स्वीडन, अमेरिका, कनाडा, डेनमार्क, नॉर्वे, पश्चिमी जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, फिनलैंड, न्यूजीलैंड, तथा ब्रिटेन। एशिया में ब्रितानी प्रभाव वाले हॉन्ग कॉन्ग तथा सिंगापुर इस समूह में शामिल किए जाएँगे।

उदाहरण के लिए तीन संबंधित सच्चाइयों को लें : “सत्ता दूरी”, “सामाजिक दूरी” और “श्रेणीगत दूरी”। सत्ता दूरी उस परिस्थिति को कहते हैं जहाँ किसी संगठन या संस्था के कम ताकतवर लोगों को यह लगे, बल्कि वे यह आशा भी करें कि, ताकत गैरबराबर रूप में बाँटी गई है। मानव असमानता का स्तर ही किसी भी समाज के कारगर होने या न होने का आधार बनता है।

समाज दूरी का अर्थ है कि किस हद तक व्यक्तियों और समूहों को एक-दूसरे के जीवनों में भाग लेने से वंचित रखा जाता है, किस हद तक उन्हें एक-दूसरे से दूर रखा जाता है। यह इस ओर इशारा करता है कि लोग एक-दूसरे के बार में क्या भाव रखते हैं, किसी दूसरे समूह के प्रति लोगों की प्रतिक्रिया कैसी होती है, सहानुभूति का भाव कितना है, सामाजिक श्रेष्ठता का निम्नता का भाव कितना है।

श्रेणीगत दूरी उसे कहते हैं कि किस हद तक अधिकार, कर्तव्य और जीवनशैलियाँ प्रतिष्ठा या इज्जत पर आधारित होते हैं। यह एक लंबवत पैमाने पर सामाजिक परतों की ओर संकेत करती है।

लंबी या ऊँची श्रेणीगत दूरी की संस्कृतियों के उदाहरण में दक्षिणी यूरोप की लातिनी बहनें शामिल हैं — इटली, स्पेन और पुर्तगाल तथा इनके अलावा पश्चिमी, मध्य एवं दक्षिणी अफ्रीका तथा कैरीबियन देश।

इस विषय पर व्यापक अध्ययन करने वाले और लिखने वाल गीर्ट होफस्टीड कहते हैं कि संस्कृतियों के परिणाम भी होते हैं, क्योंकि संस्कृतियों के नैतिक केंद्र होते हैं, और इन केंद्रों में अंतर होता है। लगभग हर तरह का अंतर अलग-अलग सांस्कृतिक मूल्य के कारण आता है और वे अलग-अलग प्रकार की सामाजिक व्यवस्था का निर्माण करते हैं।

सो, “कम श्रेणीगत दूरी वाले देशों में यह उलटा होता है। प्रौद्योगिकी से आने वाले बदलाव इन्हीं देशों में आते हैं क्यों लोगों को तकनीकी प्रगति की आवश्यकता महसूस होती है। राजनैतिक व्यवस्था विकेंद्रित होती है और प्रतिनिधि प्रणाली पर आधारित होती है। राष्ट्र की संपदा, जो काफी अधिक होती है, व्यापक तौर पर बाँटी जाती है और बच्चे वे बातें सीखते हैं जो उनके माता-पिता कभी नहीं जानते थे।”

ग्रान्डोना लगभग वही कहते हैं जिसका बयान लैंडिस और हक करते हैं। हारवर्ड के आर्थिक इतिहासकार डेविड लैंडिस यह दलील देते हैं, “लगभग सारा फर्क ही संस्कृति से पड़ता है।”

मानव विकास सिद्धांत के अग्रदूत और संयुक्त राष्ट्र की मानव विकास रिपोर्ट (एचडीआर) के संस्थापक पाकिस्तान के अर्थशास्त्री महबूब उल हक का निष्कर्ष यह है कि शोध का मानव विकास प्रतिमान “पूरे समाज को अपने घेरे में लेता है — केवल अर्थशास्त्र को ही नहीं। राजनैतिक, सांस्कृतिक और सामाजिक कारकों को उतनी ही तवज्जो दी जाती है जितनी आर्थिक कारकों को।”

वह जोर देकर कहते हैं: “दरअसल इस नए विश्लेषण का सबसे आकर्षक और लाभप्रद पहलुओं में से एक यह है कि यह आर्थिक और गैर-आर्थिक परिवेशों के संबंधों का अध्ययन करता है।”

लैंडिस के शोध ने कई कारकों के आपसी संबंध को माना है कि वे सब के सब अलग-अलग किस्म से अपना योगदान देते और अंतर पैदा करते हैं। लेकिन यह तथ्य लगातार सामने आता है कि राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक डाइनैमिक्स के बीच, “लगभग सारा फर्क संस्कृति से ही पड़ता है।” और मैं इसी दलील को सामने रख रहा हूँ।

अपनी उपरोक्त पुस्तक में ग्रॉन्डोनो 20 कारकों का शामिल करते हैं। इस केस स्टडी के लिए मैंने आठ श्रेणियाँ (या सांस्कृतिक आयाम) बनाई हैं, जो ग्रॉन्डोना के आठ कारकों को लेती हैं और उनमें लॉरेंस हैरिसन के इसी प्रकार के विमर्श से ली गई और जानकारी जोड़ती हैं (देखें चित्र)।

इस अनुकूलनता (अडैप्टेशन) का कारण यही है, जैसा ग्रॉन्डोना खुद संकेत करते हैं, कि उनकी सूची “निर्णायक नहीं है। इसे अतिरिक्त विभेदों के द्वारा बढ़ाया जा सकता है या फिर केवल सबसे महत्वपूर्ण अंतरों को लेने के द्वारा घटाया भी जा सकता है।”

सो, ग्रॉन्डोना की बात मानते हुए, मैंने आठ सांस्कृतिक आयामों को चुना है कि प्रगति-उन्मुख और प्रगति-रोधक समाज के कारकों के विषय में (करुणा और सरोकार के साथ) आलोचनात्मक रीति से सोचा जा सके। मैं इसे कहता हूँ

मानवीय विकास की सांस्कृतिक श्रेणी प्रगति-उन्मुख और प्रगति-रोधक संस्कृति के गुणों का चार्ट

अगले महीने हम इनमें से प्रत्येक आयाम पर गौर करना आरंभ करेंगे। हम कई राष्ट्रों की तुलना करेंगे और बार-बार वापस आकर उन दो पर्वतीय राष्ट्रों स्विट्जरलैंड और नेपाल में संस्कृति के परिणामों पर नजर डालेंगे।

(फारवर्ड प्रेस के फरवरी 2012 अंक में प्रकाशित)


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लेखक के बारे में

टॉम वुल्फ

डॉ. टॉम वुल्फ यूनिवर्सिटी इंस्टिट्यूट, नई दिल्ली, के निदेशक हैं। उन्होंने महात्मा जोतिराव और सावित्रीबाई फुले पर कई लेख और पुस्तकें प्रकाशित की हैं

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