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किसकी ‘जादुई गोलियों’ ने ली ‘बिहार के कसाई’ की जान?

जो गोलियाँ शरीर के अंदर से होकर बाहर जाती हैं, उनमें कोई गति नहीं रहती और वे आमतौर पर घटनास्थल पर ही मिल जाती हैं। क्या जिन गोलियों ने मुखिया की जान ली, वे 'जादुर्ई' गोलियां थीं, जो बंदूक से निकलने के बाद मुखिया की हत्या करने के बाद गायब हो गईं?

नरपिशाच नाम से कुख्यात रणवीर सेना के प्रमुख ब्रह्मेश्वर सिंह ऊर्फ ब्रह्मेश्वर मुखिया हत्याकांड मामला सुलझने के बजाय उलझता जा रहा है। इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपी जा चुकी है, लेकिन चुंकि अभी तक यह मामला सीबीआई द्वारा स्वीकार नहीं किया गया है, इसलिये राज्यसरकार द्वरा गठित एसआईटी (स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीम) मामले की जांच कर रही है। हालांकि भोजपुर एसपी एम आर नायक का दावा है कि पूरा मामला – दिन के उजाले की तरह साफ़ हो गया है। मूल विवाद एक जमीन पर कब्जा को लेकर था। हरे राम पांडेय, जो आरा शहर के सबसे पुराने रंगदार के रुप में जाना जाता है, के बेटे अभय पांडेय ने घटना के 9 दिन पहले ब्रहमेश्वर मुखिया को जमीन के मामले में टांग न अड़ाने की बात कही थी। पुलिस का अनुमान है कि हत्या के बाद अभय नोएडा चला गया है और अब तक फ़रार है। अबतक हरे राम पांडे के भतीजे अनिल कुमार पांडे समेत तीन लोगों को गिरफ़्तार किया गया है और उन्हें आरा जेल में रखा गया है।

बताते चलें कि 1 जून 2012 को ब्रह्मेश्वर मुखिया की हत्या सुबह चार बजे कर दी गयी, जब नवादा पुलिस थाने के अंतर्गत आने वाले कातिरा मुहल्ले में वह अपनी रोज़ाना की सैर के लिए निकला था। स्थानीय निवासियों की आपसी बातों को सुनें तो मुखिया की हत्या करने वाले चार लोग थे। उनमें से मुखिया के घर के पास एक गली के पहले मोड़ पर खड़ा होकर आने-जाने वालों पर निगाह रख रहा था। दो लोग मोटरसाइकिल पर सवार थे। जबकि एक के पास जिसने लाल टी-शर्ट पहनी हुई थी हथियार था और उसने गोलियां चलायी। एक बुज़ुर्ग महिला ने बताया कि उस वक्त वह पूजा के लिए फूल तोड़ रही थी, जब उसने मुखिया के चिल्लाने की आवाज सुनी लेकिन गोली चलने की आवाज़ नहीं आई।

जांच पर सवाल : पुलिस महानिदेशक अभयानंद हत्या के बाद रणवीर सेना प्रमुख के घर में (दायें से प्रथम)। साथ में हैं सुनील पांडे एवं अन्य स्थानीय बाहुबली।

दूसरी ओर, बिहार पुलिस और पोस्टमार्टम रिपोर्ट बताती है कि मुखिया की हत्या जिन गोलियों के कारण हुई, उनका साइज 7.36 बोर था। पोस्टमार्टम की रिपोर्ट यह भी बताती है कि मुखिया के शरीर से कोई गोली नहीं मिली। गोलियां उस जगह पर भी नहीं मिलीं, जहां मुखिया की हत्या हुई। अजीब बात यह है कि पुलिस दावा कर रही है कि गोली के तीन खोखे अवश्य मिले हैं। लेकिन उसका बोर साइज 6.75 बताया गया है न कि 7.36 बोर। इसके अलावा, एक स्वचलित गन की पूरी मैगज़ीन घटनास्थल पर कथित तौर से बरामद हुई है।

पोस्टमॉर्टम कक्ष में उच्च पुलिस अधिकारी?

बिहार पुलिस द्वारा गठित एसआईटी का नेतृत्व कर रहे शाहाबाद रेंज (जिसमें भोजपुर, बक्सर और कैमूर जिले शामिल हैं) के डीआईजी अजिताभ कुमार ने इस बात की पुष्टि 23 जून 2012 को फारवर्ड प्रेस के साथ फोन पर हुई बातचीत में की कि मुखिया के शरीर में गोली के प्रविष्ठ होने के 6 सुराख और बाहर निकलने के 6 सुराख थे। इसका मतलब यह हुआ कि मुखिया को 6 गोलियां लगी और सभी उसके शरीर को पार कर बाहर निकल गईं।

अगर इस बात को सच मान भी लिया जाय तो सवाल यही उठता है कि आखिर गोलियां गई कहां? जो गोलियाँ शरीर के अंदर से होकर बाहर जाती हैं, उनमें कोई गति नहीं रहती और वे आमतौर पर घटनास्थल पर ही मिल जाती हैं। क्या जिन गोलियों ने मुखिया की जान ली, वे ‘जादुर्ई’ गोलियां थीं, जो बंदूक से निकलने के बाद मुखिया कि हत्या करने के बाद गायब हो गईं?

सबसे बड़ा सवाल यह कि जब मुखिया के शरीर का अंत्यपरीक्षण किया जा रहा था तब अजिताभ कुमार वहां क्या कर रहे थे? जाहिर तौर पर पोस्टमार्टम कक्ष में डाक्टरों के साथ उनकी उपस्थिति पूरे मामले को संदेहास्पद बनाती है और बिहार पुलिस को कटघरे में खड़ा करता है।
इस संबंध में सूबे के डीजीपी अभयानंद ने फारवर्ड प्रेस को बताया कि चुंकि मामला बहुत संगीन था और पोस्टमार्टम में विलम्ब न हो, इसके लिये अजिताभ ने डाक्टरों से औपचारिक बात की थी और वह बैठक बंद कमरे में नहीं हुई थी। वही इसी मामले में शाहाबाद रेंज के डीआईजी और एसआईटी का नेतृत्व कर रहे अजिताभ कुमार ने बताया कि उन्होंने डाक्टरों के साथ कोई मुलाकात नहीं की। जबकि पटना से प्रकाशित समाचार पत्रों के अनुसार अजिताभ कुमार पोस्टमार्टम की पूरी प्रक्रिया के दौरान आरा सदर अस्पताल के पोस्टमार्टम चैम्बर में मौजूद थे। जाहिर तौर पर यदि समाचार पत्रों में प्रकाशित रिपोर्ट सही है तो यह सवाल उठना लाजमी है कि बिहार पुलिस के इतने आला आफि सर की इस पोस्टमार्टम में क्या दिलचस्पी थी? हम आशा करेंगे कि उनके इरादे कुछ भी रहे हों, यह दो आला अधिकारी कम से कम एक बात तो करें।

मुखिया हत्याकांड की जांच कर रहे अधिकारी और पांच सदस्यीय एसआईटी
नामपदसमाजिक पृष्ठभूमिखासियत
अभयानंदडीजीपी, बिहारभूमिहारब्रह्मेश्वर मुखिया का करीबी रिश्तेदार
अजिताभ कुमारडीआईजी, शाहाबाद रेंजराजपूतअभयानंद के खास विश्वासपात्र एसआईटी के प्रमुख
सुनील कुमारडीएसपी, गयाभूमिहारएसआईटी के सदस्य
सोनेलाल सिंहइंस्पेक्टर, पटनाभूमिहारएसआईटी के सदस्य
उदय बहादुरसब इंस्पेक्टर, भोजपुरभूमिहारएसआईटी के सदस्य
अजय कुमारसब इंस्पेक्टर, पटनाभूमिहारएसआईटी के सदस्य
कुमार सौरवसब इंस्पेक्टर, बक्सरभूमिहारएसआईटी के सदस्य

ऊँगली पांडे परिवार की ओर

अब यदि पूरे घटनाक्रम पर निगाह डालें तो मुखिया के परिजनों ने सबसे पहले हत्या के मामले में जदयू के बाहुबली विधायक नरेंद्र कुमार पांडे ऊर्फ सुनील पांडे पर शक जाहिर किया था। पुलिस ने भी अपनी जांच की शुरुआत इसी बाहुबली को केंद्र में रखकर की थी। इनके पटना स्थित सरकारी आवास पर छापा मारकर इनके निजी ड्राइवर को गिरफ़्तार किया गया था। इसके अलावा इनके भाई हुलास पांडे, जो विधान परिषद में निर्दलीय सदस्य हैं, को हिरासत में लेकर दो दिनों तक उनसे पूछताछ की गयी और बाद में उन्हें छोड़ दिया गया।

शोक जताने पहुंचे बाहुबली जदयू विधायक सुनील पांडे पर टूट पड़े मुखिया समर्थक

क्या सचमुच इस हत्या में सुनील पांडे की भूमिका थी? वैसे ब्रहमेश्वर मुखिया और सुनील पांडे के बीच अदावत बहुत पुरानी है। जानकार बताते हैं कि वर्ष 1993 में एक ईंट भट्टा के मालिक की हत्या के बाद ब्रह्मेश्वर मुखिया और सुनील पांडे क बीच खूनी जंग शुरु हुई। 10 जनवरी 1997 को भोजपुर के तरारी प्रखंड के बागर गांव में ब्रह्मेश्वर मुखिया गुट ने 3 लोगों की हत्या कर दी। इस घटना में मरने वाले सभी भुमिहार थे और इनमें एक महिला भी थी, जो सुनील पांडेय की करीबी रिश्तेदार थी। मुखिया के परिजन इस बात की भी पुष्टि करते हैं कि ब्रहमेश्वर मुखिया की हत्या की मूल वजह कम से कम जमीन पर कब्जा या फिऱ हरे राम पांडेय जैसे छुटभैये गुंडे के साथ आपसी वर्चस्व नहीं हो सकती। न ही यह हत्या रणवीर सेना के बैंक खाते में पड़े 62 करोड़ रुपये और हजारों आग्नेयास्त्रों के लिये ही हुई।

मुखिया के परिजनों की बातों की उपेक्षा भी कर दें तो भी तथ्य कुछ और ही ईशारा करते हैं। क्योंकि यह तो साफ हो ही चुका है कि चरमपंथी वामगुटों ने मुखिया की हत्या नहीं की है। सभी वाम गुट अखबारों में इस बारे में अपनी सफाई दे चुके हैं।

हत्या की राजनीति

ब्रहमेश्वर सिंह चुनाव लडऩे की तैयारी कर रहा था। इसके लिये उसने प्रतिबंधित रणवीर सेना से जुडे संगठन राष्ट्रवादी किसान संगठन को फि़र से जीवित करना शुरु कर दिया था। उनकी नजर वर्ष 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव पर थी। वह बिहार में सत्तााधारी एनडीए के साथ रहकर चुनावी राजनीति करना चाहता था। लेकिन बथानी टोला नरसंहार मामले में पटना हाईकोर्ट के फ़ैसले के विरोध में राज्य सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट जाने की बात को लेकर एनडीए से नाराज हो गया था। उसके बाद आरा, गया, औरंगाबाद, पटना और भोजपुर के अनेक स्थानों पर राष्ट्रावादी किसान संगठन के बैनर तले जन सभाओं को संबोधित करने के दौरान उसने सरकार के खिलाफ़ आवाज उठाना शुरु कर दिया था। मुखिया के पक्ष में अदालती लड़ाई लडऩे वाले अधिवक्ता रामनिवास शर्मा की मानें तो मुखिया की हत्या की वजह यह भी हो सकती है।

पिता के मरने पर बेटे की हुई ताजपोशी। मुखिया के श्राद्ध के दिन उसके बेटे इन्दूभूषण सिंह को रणवीर सेना का नया मुखिया मान लिया गया।

पोस्टमार्टम रिपोर्ट की ओर दुबारा मुड़ें तो डाक्टरों ने पाया कि मुखिया को 7.36 बोर की छह गोलियां मारी गयीं। इस बोर की गोली आमतौर पर स्वचलित मशीन गन में इस्तेमाल होती है जिसे जनरल पर्पस मशीन गन भी कहा जाता है। भारत में यह हथियार या तो भारतीय सेना के पास होता है या फि़र खुफिया विभाग के पास। क्या ये तथ्य इस संभावना की ओर संकेत करते हैं कि बिहार पुलिस की स्पेशल टास्क फ़ोर्स (एसटीएफ़) जो ‘एनकाउंटर स्पैशलिस्ट’ के नाम से कुख्यात है, का एक बूढ़े लेकिन परेशान करने वाले व्यक्ति की, बहुत ही पेशेवराना ढंग से हत्या करने में किसी प्रकार का हाथ है?

बहरहाल, मुखिया मारा जा चुका है और इसके बाद रणवीर सेना के नये सुप्रीमो का ध्वनिमत से चुनाव कर लिया गया है। परिवारवाद के तर्ज पर रणवीर सेना के जांबाजों ने मुखिया के बेटे इन्दूभूषण सिंह को अपना नया सरगना चुन लिया है। राजधानी पटना के राजनीतिक गलियारे में रणवीर सेना यानी मुखिया के शब्दों में ‘अखिल भारतीय किसान संगठन’ का विलय जनता दल यूनाटेड (जद.यू) में होने की चर्चा जोरों पर है। हालांकि इस संबंध में भाजपा ने अपना प्रयास नहीं छोड़ा है। प्रदेश भाजपा के कार्यकारी अध्यक्ष डा सी पी ठाकुर इस मामले में खुद निगाह रख रहे हैं। मामला आखिरकार भूमिहारों का है, जो अगर आपके साथ नहीं है आप की आँख की किरकिरी बन सकते हैं।

अब देखना यह है कि सैंकड़ों दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों की हत्या करने के आरोपी ब्रह्मेश्वर मुखिया की हत्या किसकी जादुई ‘गोलियों’ ने की? फि़लहाल जो संकेत मिल रहे हैं, उनसे बिहार सरकार और पुलिस की भूमिका जवाबों की बजाय सवाल खड़े करने वाली अधिक लग रही है। उम्मीद करनी चाहिए कि असलियत सीबीआई जांच के दौरान छन-छन कर सामने आयेगी। वैसे इस मामले में सब कुछ कभी न कभी दिन के उजाले की तरह साफ़ हो जायेगा, यह संदिग्ध ही है। या फिर जिन ‘जादुई’ गोलियों ने ‘बिहार के कसाई’ को मार गिराया उन्हें प्रगट करने के लिए किसी जादूगर की ज़रूरत पड़ेगी?


पुलिस अपना काम कर रही है : अभयानंद, डीजीपी, बिहार

बिहार पुलिस महानिदेशक यानी डीजीपी अभयानंद, जो न केवल मुखिया के सजातीय है बल्कि उसके संबंधी भी हैं, का कहना है कि ब्रहमेश्वर मुखिया की हत्या के मामले में पुलिस अपना काम कर रही है।

फ़ारवर्ड प्रेस – क्या यह सही है कि डाक्टरों को मुखिया के शव से अंत्यपरीक्षण के दौरान कोई गोली नहीं मिली है?
अभयानंद – हां, पुलिस पूरे मामले की जांच कर रही है। पुलिस को घटनास्थल से तीन खोखे और एक लोडेड मैगजीन मिली है। राज्य सरकार ने मामले की जांच सीबीआई को सौंपने का फैसला कर लिया है। सिर्फ हत्या की जांच का आग्रह सीबीआई से किया गया। हत्या के बाद हुई घटनाओं की जांच हम अपने स्तर पर करेंगे।

फ़ारवर्ड प्रेस – क्या यह भी सही है कि शाहाबाद रेंज के डीआईजी अजिताभ कुमार ने आपके कहने पर पोस्टमार्टम से पहले डाक्टरों के साथ विशेष बैठक की थी?
अभयानंद – नहीं, हत्या के दिन जनाक्रोश अधिक था और यही कारण था कि हमारी पहली जिम्मेवारी मुखिया जी के शव का अंत्यपरीक्षण कराकर उनके परिजनों को सौंपने की थी। मुखिया जी के शव का अंत्यपरीक्षण जल्द से जल्द हो, केवल इसके लिये अजिताभ ने डाक्टरों से बातचीत की थी। बंद कमरे में बैठक नहीं की गयी थी।

फ़ारवर्ड प्रेस – 2 जून को शवयात्रा के दौरान मुखिया समर्थकों ने जो हंगामा बरपाया, उसे आप पुलिस की विफलता मानते हैं?
अभयानंद – देखिए, उस दिन की घटना के बारे में पहले ही कह चुका हूं कि उस दिन यदि पुलिस ने संयम और धैर्य नहीं रखा होता तो बात बिगड़ सकती थी। हमारी जिम्मेवारी शांति को बरकरार रखना था और हम सफ़ ल हुए। देश में ऐसा कोई कानून है, जिसके आधार पर किसी को कहीं अत्येष्ठी करने से रोका जा सके । हमने यह बात राजभवन को भी कही है।


मेरे लिए भगवान थे मुखिया जी सुनील पांडे

नरेंद्र कुमार पांडे ऊर्फ सुनील पांडे तरारी विधानसभा क्षेत्र से जदयू के विधायक हैं और मुखिया के परिजनों के प्राथमिक बयानों के आधार पर पुलिस इन्हें शक की निगाह से देख रही है।

फ़ारवर्ड प्रेस – मुखिया के परिजन आपको हत्या का आरोपी बता रहे हैं। इस संबंध में आप क्या कहेंगे?
सुनील पांडे – मैं मुखिया जी को तबसे मानता आया हूं जबसे मैंने होश संभाला है। रही बात हत्या की तो मैं केवल इतना ही कहना चाहूंगा कि वो मेरे लिये भगवान सरीखे थे।

फ़ारवर्ड प्रेस – अब तक जो जानकारी मिल रही है, उसके अनुसार आपके और मुखिया के बीच में अदावत चल रही थी?
सुनील पांडे – अदावत का कोई सवाल ही नहीं खड़ा होता है। एक जनप्रतिनिधि होने के नाते मैं अपना काम कर रहा हूं और मुखिया जी समाज के अग्रदूत थे। मैं उनका सम्मान करता था।

फ़ारवर्ड प्रेस – क्या यह सही नहीं है कि वर्ष 1997 में बागर गांव में जो नरसंहार रणवीर सेना ने किया था, उसमें आपके एक रिश्तेदार की हत्या भी की गयी थी?
सुनील पांडे – मुझे इस संबंध में कुछ नहीं कहना है।

फ़ारवर्ड प्रेस – जिस अभय पांडे को पुलिस मुख्य अभियुक्त बता रही है, उसके बारे में कहा जा रहा है कि वह आपका नजदीकी है।
सुनील पांडे – मैं उसे नहीं जानता हूं।


यूट्यूब पर मुखिया

ब्रह्मेश्वर मुखिया के मामले को फारवर्ड प्रेस बहुत नजदीकी से देखता रहा है। 8 जुलाई, 2011 को जब बिहार सरकार द्वारा ठीक से मुकदमा नहीं लडने के कारण मुखिया की रिहाई हुई तो हमने उसके मंदिर में सर नवाते चेहरे के पीछे का सच सामने लाने के लिए अगस्त 2011 अंक में फोटो फीचर प्रकाशित किया था। इसी क्रम में हमने मार्च 2012 अंक में मुखिया के इंटरव्यू के संपादित अंश प्रकाशित किया, जिसे हमारे उपसंपादक नवल किशोर कुमार ने किया था। वह मुखिया का किसी भी मीडिया हाउस द्वारा किया गया पहला और अंतिम व्यवस्थित इंटरव्यू है, जो कैमरे पर रिकार्डेड है। इस इंटरव्यूू में मुखिया का हाव-भाव और उसके द्वारा कही गयी बातों के बीच के निहितार्थ गहरे हैं। 29 अगस्त, 2002 को गिरफ्तार होने के पहले तक मुखिया पूरी तरह अंडरग्राउंड रहा। 8 जुलाई 2011 को जेल से रिहा के होने के बाद उसने पटना में कुछ टीवी चैनलों का महज कुछ बाइट्स दीं थीं।

इसके बाद, जब 16 अप्रैल 2012 को बथानी टोला के सभी आरोपियों का पटना हाईकोर्ट ने बरी कर दिया तो हमने मई, 2012 के समय भी हमने ‘क्या भ्रम थी वे 21 लाशें?’ शीर्षक विस्तृत रिपोर्ट छापी थी। मुखिया की हत्या की अनकही सच्चाइयों को दलित-बहुजन दृष्टिकोण से सामने लाती इस अंक की सामग्री भी इसी कड़ी में है।

(फारवर्ड प्रेस, जुलाई, 2012 अंक में प्रकाशित )


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लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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