बिहार में लालू प्रसाद यादव के शासन से तंग आकर यहां की आवाम ने पर भरोसा किया था लेकिन आज स्थिति वही ढाक के तीन पात वाली है। नीतीश कुमार ने पहले सुशासन का वादा किया, फिर यह स्वशासन में बदल गया जिसके मूल में सिर्फ और सिर्फ सिंहासन था। यही कारण रहा कि मैंने गत 8 दिसंबर, 2012 को अंतर्मन की आवाज पर जद-यू की प्राथमिक सदस्यता के साथ-साथ उच्च सदन की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। मैंने फैसला किया है कि 3 मार्च, 2013 को पटना के गांधी मैदान में एक नई पार्टी का गठन करूंगा। यह पार्टी राजनीति के साथ-साथ बिहार में सामाजिक परिवर्तन के आधार को मजबूत करने का काम करेगी, जिसमें सभी वर्गों की भागीदारी होगी।
नीतीश कुुमार से बिहार के लोगों की जो उम्मीदें थीं जद यू के शासन के सात सालों में वह धूमिल हो गई हैं। नीतीश कुमार अहंकार में मस्त हो गए हैं। जनता इनके तानाशाही रवैये से त्रस्त है। दलित को महादलित में बांटकर दलितों के साथ वोट की राजनीति करने वालों से बिहार में सामाजिक न्याय की अपेक्षा नहीं की जा सकती। सरकार के तीन डिसमील जमीन देने की योजना कागजों और अधिकारियों के फोन और फैक्स तक ही रह गई है। कुशवाहा समाज के साथ किए गए वायदे चुनावी जीत तक ही रह गए। उनका इस्तेमाल सिर्फ वोट के लिए किया गया। लव-कुश का नारा कुशवाहा समाज के लिए आज छलावा साबित हो रहा है। शिक्षा का स्तर इतना गिर चुका है कि इसका खामियाजा बिहार के शैक्षणिक जगत को भुगतना होगा। ब्रेन-ड्रेन की समस्या से सबसे ज्यादा आज बिहार जूझ रहा है। पढे-लिखे लोगों के लिए बिहार में कुछ भी करने को नहीं बचा है। पिछले दिनों सरकार के विरोधी स्वर से इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। भ्रष्टाचार चरम सीमा पर है। बिना रिश्वत दिए एक भी काम नहीं होता है। सरकारी अधिकारी भ्रष्टाचार मेें आपादमस्तक लिप्त है। जनांदोलनों को कुचलने के लिए पुलिस लाठी-गोली चलाने में तनिक भी नहीं हिचकती है। अधिकारी बेलगाम व निरंकुश हैै। कानून नाम की कोई चीज कहीं भी दिखाई नहीं देती है। नीतीश सरकार इस तरह काम कर रही है जैसेे उसे कुछ भी बताने की जरूरत नहीं है और जो भी बताने की कोशिश करता है उसे सबक सिखा दिया जाता है। कुछ दिनों पहले पटना में एक लड़की के साथ गैंगरेप किया गया। इस घटना के एक महीना के बाद भी पीडि़ता का एफआईआर नहीं दर्ज किया गया। राज्य के विभिन्न जगहों में डकैती की घटना में दिन-ब-दिन वृृद्धि होती गई लेकिन इस पर अंकुश नही लगा।
धर्मनिरपेक्षता के नाम पर नीतीश कुमार सत्ता की राजनीति कर रहे हैं। वर्तमान सरकार बिहार के युवा को यह कहकर बरगला रही है कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा जब तक नहीं मिलेगा तब तक यहां रोजगार और शिक्षा के लिए कुछ खास नहीं हो सकता है लेकिन यहां का युवा अब लंबा इंतजार नही करना चाहता है, क्योंकि वह पहले ही बहुत इंतजार और धैर्य का परिचय दे चुका है। पिछले सात-आठ सालों से उद्योग-धंधों के नाम पर सिर्फ सपने दिखाने की कोशिश हो रही है। इसका ही यह परिणाम है कि पढने-लिखने वाले छात्रों व पेट के लिए रोजी-रोटी चाहने वाले युवाओं और मजदूरों का पलायन लगातार जारी है, या यूं कहे कि इसमें बढोतरी हुई है, तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। बिहार की मीडिया में नीतीश सरकार के खिलाफ कुछ भी लिखा नहीं जा सकता। यदि कोई कोशिश भी करता है तो उसे उसकी सजा मिलनी अवश्यंभावी है। कुल मिलाकर बिहार आज फिर से वहीं खडा़ हो गया है जहां से हमलोगों ने जंगलराज के विरुद्ध आम जनता के साथ लडा़ई लडी़ थी।
सामाजिक परिवर्तन की लडाई में मीडिया की भी भूमिका अहम है। इस कड़ी में आम जन और पिछड़े समाज की आवाज उठाने के लिए फारवर्ड प्रेस की जितनी भी सराहना की जाए वह कम ही होगी। इस तरह की पत्रिका से लोगों को जमीनी सच्चाई एवं वास्तव में सही इतिहास का पता लगेगा और वे जागरूक होंगे। मैं इस पत्रिका को पत्रकारिता की नित नई ऊंचाई छूने की कामना करते हुए नववर्ष की शुभकामनाएं देता हूं।
(फारवर्ड प्रेस के फरवरी, 2013 अंक में प्रकाशित)
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