बिहार के राइस मिलरों को केंद्र सरकार की नीति के कारण बड़ी समस्या का सामना करना पड़ रहा है। केंद्र सरकार ने राइस मिलों को अन्य एजेंसियों (नेफेड आदि) की तरह सरकार द्वारा घोषित समर्थन मूल्य पर किसानों से धान खरीदने का निर्देश तो दिया है परंतु समर्थन मूल्य पर खरीदे गए धान से उत्पादित चावल को केंद्र सरकार की एजेंसी भारतीय खाद्य निगम नहीं लेती। उल्टे, उन्हें लेवी चावल का समर्थन मूल्य, स्टेट एजेंसी के चावल के समर्थन मूल्य से 150 रुपये कम दिया जाता है। इस स्थिति में मिलरों को हर वर्ष लाखों रुपये का नुकसान उठाना पड़ता है।
भारतीय खाद्य निगम द्वारा निर्धारित चावल कुटाई की दर (अरबा 10 रुपये प्रति क्विंटल, उसना 15 रुपये प्रति क्विंटल) काफी पुरानी व कम है, जबकि लगातार बढती महंगाई की वजह से महंगे मशीनरी पार्ट व बढती मजूदरी के चलते, चावल कुटाई करना काफी महंगा हो गया है। राइस मिलर भरत कुमार कहते हैं कि बाजार में गेहूं की पिसाई डेढ रुपये प्रति किलो है, जबकि धान की कुटाई दस पैसा प्रति किलो पिछले 20 सालों से मिल रही है। हाल में खाद्यान्न पर एक प्रतिशत वैट सरकार द्वारा हटा लिए जाने के कारण एंट्री टैक्स भी खत्म हो गया, जिसके कारण यहां के व्यवसायी राज्य के बाहर से चावल मंगाना पसंद कर रहे हैं। इससे यहां का चावल उद्योग खतरे में है। भारतीय खाद्य निगम का निर्देश है कि राइस मिलर, समर्थन मूल्य पर खरीदे गए धान से उत्पादित चावल का पचास प्रतिशत पहले लेवी के रूप में देे। इसके बाद ही शेष स्टाक खुले बाजार में बेचेे। ऐसा नहीं करने पर आवश्यक वस्तु अधिनियम की धारा 7 के तहत उन पर मुकदमा कर जेल भेजने की भी चेतावनी दी गई है।
लेवी आदेश के अनुसार, नवंबर माह से ही चावल लेना है लेकिन भारतीय खाद्य निगम के पास लेवी लेने की कोई समय-सीमा निर्धारित नहीं है। ऐसे में चावल मिल तब तक बंद करना पड़ेगा जब तक लेवी चावल 50 प्रतिशत नहीं दे दिया जाता। ऐसी स्थिति में कर्मचारियों का खर्च, किसानों के धान का भुगतान और बैंक का ब्याज भी देना मुश्किल हो जाएगा।
मिल बंद होने की स्थिति में क्या होगा असर
एक राइस मिल में बॉयलर मशीन सहित विभिन्न विभागों में कम से कम सौ लोग रोजगार पाते हैं। यही नहीं, इस व्यवसाय से जुड़े सैकड़ों बारदाना आपूर्तिकर्ता, ब्रोकर, ब्रान, धान देने वाले व चावल खरीदने वाले व्यवसायी भी प्रभावित होंगे। रोहतास जिले का उदाहरण लें। लगभग 25 लाख की आबादी वाले इस जिले में ओबीसी की खासी आबादी है। जिले में चावल उद्योग के बंद होने से इस व्यवसाय से जुड़े लगभग 50 हजार मजदूर, उनके परिजन व व्यवसायी भुखमरी के कगार पर पहुंच जाएंगे या यहां से पलायन करने पर मजबूर हो जाएंगे। यही नहीं, नक्सली समस्या से जूझ रहे रोहतास प्रशासन को इतनी तादाद में लोगों के सड़क पर आने से एक और बड़ी समस्या का सामना करना पड़ सकता है। राज्य में नए उद्योग लगाने व यहां से बेरोजगारों का पलायन रोकने की सोच रही राज्य सरकार के समक्ष पहले से फल-फूल रहे एक बड़े उद्योग राइस इंडस्ट्रीज को बंद होने से बचाने व इससे जुड़़े हजारों मजदूरों व उनके लाखों परिजनों को सड़क पर आने से रोकने की बड़ी चुनौती है। हाल ही में नोखा, रोहतास आए बिहार इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के अध्यक्ष केपीएस केसरी, एमएसएमई के निदेशक डीके सिंह, खाद्य प्रसंस्करण के उप निदेशक बीएन ठाकुर एवं सासाराम आए खाद्य व आपूर्ति मंत्री श्याम रजक के समक्ष बिहार स्टेट राइस मिलर एसोसिएशन ने अपनी स्थिति व समस्या रख दी है एवं समस्या के शीघ्र समाधान नहीं होने पर राइस मिल बंद करने की घोषणा भी कर रखी है।
राइस मिलरों का कहना है
महाजन राइस उद्योग के मालिक महेंद्र प्रसाद के अनुसार केंद्र की गलत नीतियों के कारण चावल मिलें बंद होने के कगार पर हैं। ऐसे में चावल उद्योग को बचाना है तो केंद्र अपनी नीतियों में परिवर्तन करे। पवनसूत राइस मिल के मालिक रामअवध पटेल कहते हैं कि सरकार राइस इंडस्ट्रीज को भी स्टेट एजेंसी घोषित करे, या फिर समान मूल्य पर शत-प्रतिशत चावल की खरीद की जाए। राधिकाजी राइस मिल के मालिक संजय सिंह का कहना है कि चूंकि भारतीय खाद्य निगम द्वारा निर्धारित चावल कुटाई की दर काफी पुरानी व कम है, अत: बढती महंगाई को देखते हुए या तो इसे बढ़ाया जाए अथवा अन्य राज्यों की तरह यहां की सरकार पचास रुपये प्रति क्विंटल अनुदान दे। सीताजी राइस मिल के
मालिक पंकज कुमार कहते हैं कि बिहार सरकार बाहर से अनाज मंगाने की बजाय यहां के मिलर्स को प्रोत्साहित कर शत-प्रतिशत चावल की अधिप्राप्ति करे तो समस्या का समाधान हो सकता है।
सरकार का कहना है
खाद्य व आपूर्ति मंत्री श्याम रजक कहते हैं कि चावल की लेवी केंद्र सरकार निर्धारित करती है। दर तय करने का काम भी भारत सरकार का ही है। राइस मिलरों की समस्या को देखते हुए राज्य सरकार ने समस्या के समाधान हेतु केंद्र को लिखा है।
(फारवर्ड प्रेस के फरवरी, 2013 अंक में प्रकाशित)
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