जयपुर साहित्य उत्सव 26 जनवरी, 2013 : वरिष्ठ समाज मनोविज्ञानी आशीष नंदी ने तहलका के संस्थापक संपादक तरुण तेजपाल की इस टिप्पणी कि भारत में भ्रष्टाचार समाज में बराबरी लाने वाला एक महत्वपूर्ण सामाजिक कारक है, के जवाब में कहा कि भारत के अधिकांश भ्रष्ट अन्य पिछड़ा वर्गों, अनुसूचित जातियों व अनुसूचित जनजातियों से आते हैं। इस मुद्दे पर मीडिया में जबरदस्त बवाल मचा और अब यह मसला अदालतों के सामने है। फारवर्ड प्रेस मूल वक्तव्य व उससे उपजी बहस के प्रमुख अंशों को प्रस्तुत कर रहा है। निर्णायक आप हैं।
तरुण तेजपाल : मैं कह रहा हूं कि शायद भारत जैसे देश में भ्रष्टाचार समाज में बराबरी लाने वाला एक महत्वपूर्ण सामाजिक कारक है।
आशीष नंदी : इस बारे में मेरी प्रतिक्रियाएं, बहुत संक्षेप में, वे इस बाबत सबसे महत्वपूर्ण बात नहीं कह रहे हैं, जिससे आपको धक्का लगेगा और यह मेरी ओर से बहुत अशोभनीय-मैं इसे कैसे कहूं, लगभग अशिष्ट वक्तव्य होगा। यह तथ्य है कि अब अधिकांश भ्रष्ट लोग ओबीसी, एससी व एसटी से आते हैं और जब तक यह स्थिति विद्यमान रहेगी, भारतीय गणतंत्र बचा रहेगा। और मैं एक उदाहरण दूंगा, जिस एक राज्य, जिसमें सबसे कम भ्रष्टाचार है, वह है पश्चिम बंगाल, जहां सीपीएम थी। मैं कहता हूं, आपका ध्यान इस तथ्य की ओर आकर्षित करता हूं कि पिछले 100 सालों में कोई ओबीसी से, अनुसूचित जातियों व जनजातियों से पश्चिम बंगाल में सत्ता के पास तक नहीं फटक सका है। वह एकदम
साफ -सुथरा राज्य है।
बीएल सोनी, पुलिस आयुक्त, जयपुर, 30 जनवरी : नंदी के विरुद्ध अजा, अजजा अधिनियम के तहत मामला दर्ज कर लिया गया है।
योगेन्द्र यादव : हो सकता है कि आप उनसे सहमत न हों, मै निश्चित रूप से नहीं हूं। यह कहना कि भ्रष्टाचार अन्याय का मुआवजा है, तथ्यात्मक तैार पर गलत है और त्रुटिपूर्ण तर्क है। परंतु यह कहना कि नंदी एससी, एसटी व ओबीसी विरोधी हैं या वे वंचित समुदायों को कलंकित कर रहे थे, उनके मत को समझने में विकट भूल करना है। ज्यादा से ज्यादा यह सामाजिक दृष्टि से वंचित समूहों की वकालत का अतिरंजित प्रयास है। (द इंडियन एक्सप्रेस, 28 जनवरी)
प्रोफेसर रविंदर कौर, आईआईटी दिल्ली : मेरा निवेदन यह है कि यह बहस जाति के बारे में नहीं है। यह वर्ग के बारे में है, श्रेष्ठी वर्ग के बारे में। नंदी शायद कहना चाह रहे हैं कि नीची जातियों के भ्रष्टाचार में वर्ग सहायक नहीं होता। तेजपाल शायद कहना चाह रहे हैं कि नीची जातियों का भ्रष्टाचार न्यायसंगत वर्ग संघर्ष है। जयपुर साहित्य उत्सव जो कि एक बड़े से ड्राइंग रूम से ज्यादा कुछ नहीं है, में प्रदर्शित ये भंगिमाएं नीची जातियों के प्रति दयालुता व कृपाशीलता के भाव की घोतक हैं। (द इंडियन एक्सप्रेस, 6 फरवरी)
प्रो. एन सुकुमार, दिल्ली विश्वविद्यालय : एक दिन मुखौटा उतर गया और उनका जातीय पूर्वाग्रहों से भरपूर असली चेहरा सामने आ गया। क्या यह फ्रायड के सिद्धांत के अनुरूप उनके छिपे भावों की घोतक है। नंदी ने अनजाने में शैक्षणिक दुनिया के एक गहरे भय को अभिव्यक्त किया है। वे एकलव्यों को अब प्रताडि़त नहीं कर सकते और ऐसे में अर्जुन की श्रेष्ठता के बारे में कौन बात करेगा। अत: वे अब संपूर्ण एससी, एसटी व ओबीसी समुदाय पर कालिख पोतना चाहते हैं। वे उन्हें चोर, बेभरोसे, सेंधमार आदि निरूपित करना चाहते हैं। (द राउंड टेबिल, 30 जनवरी)
विद्या सुब्रमण्यम : अगर किसी और कारण से नहीं, तो कम से कम इस बहस को अर्थपूर्ण बनाने के लिए हमें नंदी के बाद में दिए गए स्पष्टीकरण को भी ध्यान में रखना होगा। मेरा मतलब यह था कि ओबीसी, एससी व एसटी समुदायों के लोगों के पास बचाव के तरीके नहीं हैं। इसके विपरीत ऊंची जातियों के लोग अपना भ्रष्टाचार छुपा लेते हैं। नंदी कांड की असली उपयोगिता तब होगी जब इस वक्तव्य को आधार बनाकर हम समाज में बरकरार उन जातीय पूर्वाग्रहों और दोहरे मानकों की बात करते, जो एक प्रकार के भ्रष्टाचार का पर्दाफाश होने देते हैं और दूसरे प्रकार के भ्रष्टाचार को छुपाए रखते हैं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि भारत में प्रधान विमर्श का निर्धारण सामाजिक दृष्टि से सुविधायुक्त वर्ग कर रहा है। (द हिन्दू, 11 फरवरी)
एस आनंद : नंदी जितना ज्यादा स्पष्टीकरण दे रहे हैं वे उतने ही घोर जातिवादी साबित हो रहे हैं। उनके तर्क के अनुसार जो बहुमत में है वो आवश्यक रूप से सबसे भ्रष्ट हैं। जिसे वह तथ्य बता रहे हैं, दरअसल वह तथ्य नहीं बल्कि पुनरुक्ति है। वे गोल-मोल घूम रहे हैं। अन्ना हजारे, अरविंद केजरीवाल के श्रेष्ठी वर्ग के भ्रष्टाचार-विरोधी आंदोलन के निशाने पर तक बड़ी मछलियां थीं। नंदी के जाति व भ्रष्टाचार के संबंध में विचारों पर बहस होनी चाहिए। उन्हें चुनौती दी जानी चाहिए। नंदी श्रेष्ठी वर्ग के पूर्वागहों को नए कलेवर मेें, अंतर्दृष्टि से उपजे ज्ञान व मिथ्याभासी विवेकशीलता के रूप में प्रस्तुत करने में सिद्धहस्त हैं। इस तरह की बौद्धिक जुगाली से निपटने का सबसे अच्छा तरीका है उनकी अज्ञानता को सबके सामने लाना। (आउटलुक, 11 फरवरी)
प्रिय आशीष नंदी,
आपने एससी, एसटी व ओबीसी को ऊंची जातियों की तरह भ्रष्ट बताने की कोशिश की है। उन ऊंची जातियों का जो केवल भ्रष्ट ही नही हैं वरन शोषण भी करती हैं। अत: हमें केवल जाति और भ्रष्टाचार पर बहस नहीं करनी है, वरन् जाति और शोषण पर भी विमर्श करना है। यह खेल अब भी बराबरी का नहीं है। नए खिलाडिय़ों का शुभचिंतक होने का नाटक करते हुए अंपायर को यह इशारा मत करिए कि नए खिलाडिय़ों की धूर्तता से विजय हासिल की संभावना है। नहीं, नहीं यह धोखेबाज मित्र होना है।
-आपका, कांचा आयलैया, (खुला पत्र, 4 फरवरी)
(फारवर्ड प्रेस के मार्च 2013 अंक में प्रकाशित)
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