बिहार की राजधानी पटना भी सामंतवाद से किस तरह बजबजा रही है, यह गत 29 जनवरी को शहर के सैदपुर स्थित आम्बेडकर छात्रावास पर हुए सामंती हमले से साबित होता है। दलितों की ओर से सशक्त होने की कोशिशें जितनी बढ़ रही हैं, सामंती तत्व उतने ही आक्रामक हो रहे हैं। आम्बेडकर दलित छात्रावास पर सैदपुर छात्रावास के सामंती छात्रों ने हमला बोल दिया। बम फोड़े और गोलियां चलाईं। दलित छात्रों को बुरी तरह मारा-पीटा। हमलावर छात्र हत्यारे ब्रह्मेश्वर मुखिया और जातिवादी रणवीर सेना जिंदाबाद के नारे भी लगाते रहे। सैदपुर छात्रावास के ये सभी छात्र बिहार की एक खास सवर्ण जाति भूमिहार से आते हैं।
इस घटना का तात्कालिक कारण बिजली विवाद बताया जाता है। सैदपुर छात्रावास और आम्बेडकर दलित छात्रावास को एक ही पावर सब स्टेशन से बिजली सप्लाई होती है। बिजली सप्लाई को लेकर भी दलित छात्रावास के साथ भेदभाव बरता जाता है। आम्बेडकर छात्रावास में रहने वाले धर्मेंद्र कुमार बताते हैं, पहले दोनों छात्रावासों का एक ही कनेक्शन था। बाद में दोनों को अलग कर दिया गया, जहां सैदपुर को लगातार बिजली दी जाती है, वहीं आम्बेडकर छात्रावास में बिजली कटौती की जाती है। सैदपुर छात्रावास वाले तो दबाव बनाते ही हैं, बिजली कर्मचारी भी हमारे साथ भेदभाव करते हैं। ठीक यही पानी की आपूर्ति के मामले में भी होता है। वे मनमर्जी से हमें पानी सप्लाई करते हैं। दिन में केवल सुबह-शाम दो-दो घंटे हमें पानी मिल पाता है।
सूत्रों की मानें तो 29 जनवरी की शाम बिजली कटने से परेशान आम्बेडकर छात्रावास के दो-तीन छात्र बाहर निकलकर बिजली जाने का कारण पता लगाने चले गए थे। उधर से झुंड में गुजर रहे सैदपुर छात्रावास के भूमिहार छात्रों ने इन दलित छात्रों पर हमला बोल दिया। किसी तरह जान बचाकर वे भागे। उनकी पकड़ में एक दलित छात्र रवि पड़ गया, जिसे बुरी तरह पीटा गया और उसका सिर फोड़ दिया गया। जब आम्बेडकर छात्रावास के छात्रों ने इसका विरोध किया तो पहले 20-25 की संख्या में आए छात्र वापस सैदपुर छात्रावास अन्य छात्रों को बुलाने चले गए। फिर दुबारा सैदपुर के करीब सौ-डेढ सौ छात्रों ने रणवीर सेना जिंदाबाद के नारे लगाते हुए और जातिसूचक गालियां देते हुए दलित छात्रावास पर हमला कर दिया। यहां तक कि सूचना पाकर वहां पहुंचे स्थानीय पुलिसकर्मियों पर भी सैदपुर वालों ने हमला कर उन्हें जख्मी कर दिया। मामले की छानबीन के बाद सैदपुर से पकड़े गए पांच छात्रों अतुल शेखर, आशुतोष कुमार, अजीत कुमार, शिशुरंजन कुमार और नृपेंद्र कुमार को जेल भेज दिया गया।
इस बारे में आम्बेडकर छात्रावास के छात्र प्रधान अमित कुमार बताते हैं, इस बार तो प्रशासन ने तेजी दिखाई और कार्यवाही की, क्योंकि उन लड़कों ने पुलिस पर भी हमला कर दिया था। बड़ी मछलियां तो हमेशा बच ही जाती हैं। कुल 11 लोगों को गिरफ्तार किया गया था लेकिन केवल 5 पर कार्रवाई हुई। बाकी को रिहा कर दिया गया।
पटना में अवस्थित सारे दलित छात्रावास बदहाली के शिकार हैं। करीब देढ़ दशकों से न तो इनमें वार्डन नियुक्त हुए हैं और ना ही मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध हैं। एक-दो छात्रावास बिल्कुल जर्जर हालत में हैं। सरकार भी इनमें रुचि लेती नजर नहीं आती। ऐसे में दलित छात्र अपने भरोसे इनमें रहकर पढ़ाई कर रहे हैं। आम्बेडकर छात्रावास के धर्मेंद्र कहते हैं, सैदपुर जैसे छात्रावास तो संपत्ति वालों के होते हैं, कुछ नहीं तो धंधा करते जीवन-यापन कर लेते हैं। हम जैसे गरीब छात्र बड़ी मुश्किल से पढ़ाई जारी रखते हैं। वे यह भी बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं।
बहरहाल, खुद को दलितों-पिछड़ों का हितैषी बताने वाली प्रगतिशील ताकतें भी इस घटनाक्रम के प्रति उदासीन हैं। हैरानी की बात यह कि इस घटना को लेकर अखबारों में वामपंथी संगठन आल इंडिया स्टूडेंटस फेडरेशन (एआईएसएफ ) की ओर से उपाध्यक्ष अंशुमान सिंह का बयान सैदपुर के छात्रों के समर्थन में आया। इस बाबत पूछने पर उन्होंने बेबाकी से कहा, सैदपुर के छात्रों ने चुनाव में मुझे समर्थन दिया था, इसलिए वे मुझसे समर्थन की उम्मीद करते हैं। वैसे मैं उनके गलत कामों से वास्ता नहीं रखूंगा। वहीं दूसरे संगठनों को देखें तो ऑल इंडिया स्टूडेंटस एसोसिएशन (आइसा) भी इस घटना पर कुछ कहती-करती नजर नहीं आई। प्रतिक्रिया मांगने पर आइसा के मोख्तार कहते हैं, दलित छात्रों पर हमला सालों से चली आ रही सामंती सोच का परिणाम है, जिसकी हम भर्त्सना करते हैं। सामाजिक न्याय की बात करने वाला ऑल इंडिया बैकवर्ड स्टूडेंटस फोरम (एआईबीएसएफ ) का चुनावी गठबंधन भी मूलत: भूमिहार छात्रों के संगठन बिहार छात्र संघर्ष मोर्चा से रहा है, इसलिए उससे भी उम्मीद करना बेमानी है।
बहरहाल, तमाम मुश्किलों का सामना करते हुए दलित छात्र पढ़ाई कर अपने पैरों पर खड़े होने की कोशिश कर रहे हैं और सामंती दबंगों से जूझ रहे हैं, किन्तु़ यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकार या किसी और का ध्यान इनकी समस्याओं पर नहीं जा रहा है।
(फारवर्ड प्रेस के मार्च 2013 अंक में प्रकाशित)
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