शहीद जगदेव प्रसाद के शहादत स्थल कुर्था प्रखंड, जिला अरवल में उनके जन्म दिवस 2 फरवरी से 5 फरवरी तक 3 दिनों का एक मेला लगता है जो शहीद जगदेव मेला के नाम से जाना जाता है। बिहार में लगने वाले परंपरागत मेलों से यह मेला कई मायनों में अलग है। यह मेला एक जननेता के शहादत स्थल पर उनके जन्मदिन के अवसर पर उनके सिद्धांतों और विचारों की याद करने का एक जरिया बन गया है।
वैसे तो इस मेले में उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल आदि के लोग भी आते हैं, लेकिन अरवल, जहानाबाद, पटना, आरा, बक्सर, भभुआ एवं रोहतास जिलों का कोई ऐसा गांव नहीं होगा जिसका कम-से-कम एक व्यक्ति इस मेले में न जाए। फरवरी में लगभग सभी राजनीतिक दलों ने बड़े-बड़े होर्डिंग और बैनर-पोस्टर लगाकर उन्हें याद किया लेकिन जगदेव प्रसाद के विचारों और सिद्धांतों की अनुगूंज नहीं सुनाई पड़ी। मात्र कुर्था प्रखंड में ही सौ में नब्बे शोषित है, नब्बे भाग हमारा है, और अबकी सावन-भादो में गोरी कलाईयां कादों में, नारा गूंजता रहा।
कुर्था का यह पूरा इलाका जगदेव बाबू की जन्मभूमि-कर्मभूमि और मृत्युभूमि है। इसी कुर्था प्रखंड परिसर में 5 सितंबर, 1974 को जगदेव बाबू एक अन्य दलित छात्र लक्ष्मण चौधरी के साथ सवर्ण जातियों के गुंडों और पुलिस की गोलियों के शिकार हुए थे। तब से लेकर आजतक यह जगह जगदेव के अनुयायियों के लिए तीर्थस्थल बनी हुई है। इस मेले का मुख्य आकर्षण पाखंड मिटाओ प्रदर्शनी था, जिसका उदघाटन बिहार अर्जक संघ के अध्यक्ष अरुण गुप्ता ने किया। तीनों दिन और रात सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से लोकजागरण का अभियान चलाया गया। पूरे राज्य से आए लोक गायकों और कवियों ने तमाम तरह के छंदों द्वारा जगदेव बाबू के जीवन संघर्षों की कथा कही तथा दलित-पिछड़ों पर हो रहे अन्याय को समझने-समझाने की कोशिश की। आल्हा-बिरहा कवि सम्मेलन और जादू के खेलों के जरिए दलित-पिछड़ों में गहरे तक पैठ चुकीं रूढिय़ों और मान्यताओं की असलियत का बयान किया गया। लोक गायक लोहा सिंह व धीरज देव ठाकुर ने आल्हा छंद में जगदेव बाबू के पूरे जीवन को प्रस्तुत किया। गायक बबीता कुमारी व सविता कुमारी ने बड़े ही ओजस्वी स्वर में कब होई पूरा शोषित के सपनवां हो बबुआ, गाना गाकर तमाम लोगों को आशावादी बना दिया। मेले की अध्यक्षता शोषित समाज दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो. जयराम प्रसाद सिंह ने की।
(फारवर्ड प्रेस के मार्च 2013 अंक में प्रकाशित)
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