कांग्रेस के सांसद, पार्टी प्रवक्ता और छत्तीसगढ़ के प्रभारी भक्त चरणदास दलित समुदाय से आते हैं लेकिन चुनाव कालाहांडी जैसी सामान्य सीट से लड़ते हैं। कालाहांडी के आदिवासियों का दर्द उन्होंने करीब से देखा है और आज यदि कालाहांडी के हालात पहले से बेहतर हैं, तो इसका कुछ श्रेय चरणदास को भी जाता है। प्रस्तुत है, भक्त चरणदास से फारवर्ड प्रेस की दिल्ली संवाददाता नीलम शुक्ला की बातचीत
राजनीति में आने के बारे में कब सोचा? क्या यहां तक आने का रास्ता आसान था?
बचपन संघर्ष और दुख-दर्द के बीच बीता तो लोगों का दुख-दर्द आसानी से समझ में आने लगा। मैं जब कालेज में पहुंचा तो लोगों के लिए लडऩे का मन बना लिया और छात्र संघर्ष वाहिनी से जुड़ा। उससे छात्रों और युवाओं को जोड़ा और लोगों की आवाज बना। इसका मैं राष्ट्रीय प्रतिनिधि बना। पूरे भारत में घूम-घूमकर आदिवासी महिलाओं के अधिकारों, जमीनों और जंगल के लिए लड़ाइयां लड़ीं। उस दौरान मुझ पर 30 से ज्यादा मुकदमे भी हुए। पर फिर भी मैं संघर्ष करता रहा, लोगों के लिए लड़ता रहा।
विधायक बनने के बाद कालाहांडी के विकास के लिए आपने क्या किया?
मैं जिस साल विधायक बना उसी साल कालाहांडी में अकाल पड़ा और वह कितना भयानक था, इसे आप सभी जानते हैं। उस समय मैंने वहां की भुखमरी और गरीबी के सवाल पर पूरे ओडिशा का साइकिल से दौरा किया। साथ ही दिल्ली तक भी पैदल आया और लोगों को कालाहांडी की समस्या से अवगत कराया, ताकि हमें अधिक से अधिक लोगों की मदद मिल सके।
आप जनता दल से क्यों जुड़े और फिर उससे अलग क्यों हो गए?
जब मैं जनता दल का हिस्सा बना, तब उसकी नीतियां और विचारधारा मेरी विचारधारा से मिलती थीं। चंद्रशेखर जैसे नेता थे। मैं उनके काफी करीब रहा। यही कारण था कि जब वे प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने मुझे खेल उपमंत्री और फिर रेल राज्य मंत्री बनाया। पर धीरे-धीरे जनता दल की विचारधारा बदलने लगी और पार्टी में हर कोई खुद को दूसरे से बड़ा समझने लगे। लोगों का अहंकार बढऩे लगा। तब मैंने खुद को इससे अलग कर लेना ही बेहतर समझा और कांग्रेस की सदस्यता ले ली।
क्या वह मकसद पूरा हो पाया जिसको लेकर आप राजनीति में आए थे?
राजनीति में आने का मकसद सिर्फ और सिर्फ लोगों की मदद करना था और वह मैं आज भी कर रहा हूं।
राजनीति के अलावा और क्या-क्या शौक हैं?
खाली समय में मैं जनप्रतिनिधि के लिए उपयोगी किताबें पढ़ता हूं। सच्चाई को पढऩा पसंद है। पहले गीतों की रचना करता था पर अब समय नहीं मिल पाता है। लोगों के बीच समय बिताना काफी पसंद है। बैडमिंटन खेलना पसंद है।
(फारवर्ड प्रेस के नवंबर 2013 अंक में प्रकाशित)
फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्त बहुजन मुद्दों की पुस्तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्य, सस्कृति व सामाजिक-राजनीति की व्यापक समस्याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in
फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें
मिस कैथरीन मेयो की बहुचर्चित कृति : मदर इंडिया