पारसी समुदाय की तरह बिहार का पटवा समाज भी अन्य जातियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया है। समाज के सदस्यों की मेहनत रंग ला रही है। पारंपरिक रूप से बुनकर, अत्यंत पिछड़ी जाति के अंतर्गत आने वाला गया का यह समाज आज बड़ी संख्या में इंजीनियर पैदा करने के लिए जाना जाता है। मात्र 15,000 की आबादी वाला यह समाज 1996 से लेकर अब तक 400 से ज्यादा आईआईटी इंजीनियरों को पैदा कर चुका है।
लगभग 1,200 घरों में रहने वाले पटवा समाज के सदस्यों में से कुछ पूरी तरह से पावरलूम के पेशे पर आश्रित है। समाज में पढने-लिखने का चलन पहले ना के बराबर था। वर्ष 1971 में पहली मर्तबा समाज के रामलगन प्रसाद ने आईआईटी की परीक्षा उत्तीर्ण की और आईआईटी खडग़पुर में आर्किटेक्ट बने, लेकिन घर में डकैती हो जाने से वो आगे की पढाई जारी नहीं रख सकें। वर्ष 1996 में ठाकुर प्रसाद के बेटे जितेंद्र कुमार से लेकर वर्तमान के 2013 तक इस समाज के कुल 400 युवा आईआईटी के क्षेत्र में देश व विदेश में अपनी सफलता का झंडा गाड़ चुके हैं, जिसमें 19 छात्र अमेरिका में कार्यरत हैं।
लेकिन वहीं दूसरी ओर यह समाज उतना ही परंपरावादी और रूढिवादी भी है। अमेरिका और कनाडा में भी नौकरी कर रहे युवाओं को अपने ही समाज में आकर शादी करनी पड़ती है।
अंतर्जातीय विवाह की यहां सख्त मनाही है, क्योंकि समाज के बुजुर्गों को यह आशंका सताती है कि इससे उसकी जातीय संरचना गड़बड़ा जाएगी। पटवा समाज के बुजुर्गों की इस आशंका में कितना दम है यह तो हम नहीं जानते, लेकिन एक बात सच है कि कहीं पटवा समाज भी उस गति को न प्राप्त कर जाए जिस गति को आज भारत का पारसी समुदाय प्राप्त कर चुका है और अपनी जातीय श्रेष्ठता को बरकरार रखने के चक्कर में लगभग विलुप्ति के कगार पर पहुंचता जा रहा है।
पावरलूम संचालक हेमंत कुमार से मुलाकात हुई तो उन्होंने बताया कि पटवा समाज करीब 200 से अधिक सालों से रूढिवादी तरीके से जीता आ रहा है, मसलन समाज के लोग जाति से बाहर जाकर शादी-विवाह नहीं कर सकते। अगर ऐसा होता है तो समाज के पंचायत द्वारा उसका बहिष्कार कर दिया जाता है। उन्होंने बताया कि पंचायत द्वारा अब तक कई लोगों का बहिष्कार किया जा चुका है।
वहीं 57 वर्षीय मेघनाथ प्रसाद बताते हैं कि जाति से बाहर जाकर शादी करना पटवा संस्कृति व परंपरा के खिलाफ है। वे यह भी बताते हैं कि हालांकि लड़कियों को कोई 20 साल पहले तक परिवार की माली हालत को देखते हुए जाति से बाहर शादी करने की छूट पंचायत द्वारा मिली हुई है, लेकिन लड़कों को यह छूट बिल्कुल भी नहीं है। वो यह भी बताना नहीं भूलते कि पटवा समाज जो गौरिया पटवा समाज के नाम से जाना जाता है, अंतर्जातीय विवाह नहीं होने के कारण ही आज भी सुरक्षित है। वो बताते हैं कि पटवा समाज ही एक ऐसा समाज है, जहां दहेज प्रथा पूरी तरह से निषेध है, जिसके कारण पटवा समाज की गरीब लड़की की शादी भी अमेरिका व कनाडा में काम कर रहे समाज के लड़के के साथ आसानी से हो जाती है।
हालांकि एक बात यहां महत्वपूर्ण है कि मानपुर स्थित इस समाज के लोगों की शादी मुख्य तौर पर मानपुर, चांकद व डंगरा स्थित रहने वाले पटवा समाज के अलावा पूरे राज्य व देश में कहीं भी नहीं होती है। बातचीत के क्रम में कई बार चूड़ामणि पाटेश्वरी यह कहने से नहीं चूकते कि आज इस टोले में रहने वाली अगड़ी जाति के अभिभावक भी अपने बच्चों के भविष्य को लेकर उन्हीं के पास राय-मशविरा करने आते हैं। हालांकि इस मसले पर समाज की युवा पीढ़ी कहती है कि जिस प्रकार उनके अंदर शिक्षा को लेकर चेतना का भाव पैदा हुआ, उसी तरह रूढि़वादिता को लेकर भी एक दिन समाज के अंदर बदलाव होगा।
(फारवर्ड प्रेस के फरवरी, 2014 अंक में प्रकाशित )
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