प्रिय दादू,
हम जिस घर में रहते हैं, वहां बिजली भी नहीं है। मैं खूब मेहनत से पढ़ता हूँ और अच्छे नंबरों से परीक्षाएं पास भी करता हूँ। मुझे सफल होने के लिए और क्या करना चाहिए?
सप्रेम
अशोक
प्रिय अशोक,
सबसे पहले मैं तुम्हें यह बताना चाहता हूँ कि मेरा जन्म एक समृद्ध परिवार में हुआ था परन्तु जब मैं आठ साल का था, तब मेरे पिताजी की मृत्यु हो गयी। मेरी माँ को हम बच्चों का पालन-पोषण करने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा, विशेषकर इसलिए क्योंकि उनकी कोशिश रहती थी कि वे हमारे लिए बेहतर से बेहतर करें। मैंने अपनी स्कूल की और कॉलेज के पहले साल की पढ़ाई मोमबत्ती की रोशनी में की। इसके बाद पेट्रोमैक्स आ गया और फिर मैं उसके सहारे पढ़ने लगा। इसलिए मेरे जीवन का अनुभव तुमसे बहुत मिलता जुलता है।
तुम्हारे प्रश्न ने मुझे अपनी गुजरी जिंदगी पर निगाह डालने के लिए मजबूर कर दिया है। आखिर वे क्या चीजे थीं, जिन्होंने मुझे सफलता दिलाने में भूमिका निभायी।
आओ, हम शुरुआत बाहरी चीज़ों से करें। यह दुखद परंतु सच है कि लोग हमारे बारे में अपनी राय इससे बनाते हैं कि हम कैसे दिखते हैं। इसलिए यह जरूरी है कि भले ही तुम फैशनेबल या महंगें कपड़े न खरीद सको परन्तु यह जरूरी है कि तुम कोशिश करो कि तुम हमेशा साफ-सुथरे दिखो।
इसके अलावा, मैं इस बात पर भी जोर देना चाहता हूँ कि तुम बातचीत के अपने तरीके (अर्थात उच्चारण और जो शब्द तुम इस्तेमाल करते हो दोनों) पर विशेष ध्यान दो। कई बार ऐसा भी होता है कि हम अपने मित्रों और पड़ोसियों से जिस तरह बातचीत करते हैं, वह तरीका, बाहर के लोगों से बातचीत करने के लिए उपयुक्त नहीं होता। मेरे अपने मामले में मैंने पाया कि मुझे व्यवहार और बातचीत के दो अलग-अलग तरीके अपनाने पड़े: एक ने अपने परिवार और मित्रों के साथ जुड़े रहने में मेरी मदद की और दूसरे ने बाहर की दुनिया में सफलता दिलाने में। तुम्हारी स्थिति मुझे पता नहीं है। शायद तुम अपने मित्रों, परिवारजनों और पड़ोसियों से हिंदी में संवाद करना चाहो और अन्य लोगों से अंग्रेजी में। परन्तु यहाँ भी एक समस्या है। वह यह कि बिहार के लोग जिस तरह की हिंदी बोलते हैं, हरियाणा निवासियों का तरीका उससे एकदम अलग है। यह महत्वपूर्ण है कि तुम इन अंतरों को जानो-समझो और अपने में इस क्षमता का विकास करो कि तुम उसी तरह की हिंदी (या अंग्रेजी या कोई और भाषा) बोल सको, जिस तरह की भाषा उस समूह में बोली जाती है, जिसका हिस्सा तुम बनना चाहते हो। किसी भी हलके में तुम्हें अपेक्षाकृत आसानी से स्वीकार कर लिया जायेगा अगर बातचीत का तुम्हारा लहजा वैसा ही होगा, जैसा कि उस हलके के लोगों का है।
मोटे तौर पर, तुम्हें नीची आवाज़ में और धीरे-धीरे बोलना चाहिए। और हमेशा बोलने से पहले यह सोच लो कि तुम क्या बोलने वाले हो: फिर चाहे वह दोस्तों की महफिल हो, जन्मदिन की पार्टी या कोई कार्यालयीन बैठक।
अगर संभव हो तो तुम वादविवाद और भाषण प्रतियोगिताओं में हिस्सा लो – या कम से कम इस तरह की प्रतियोगिताओं को ध्यान से देखो और सुनो, चाहे इन्टरनेट पर, रेडियो पर, टीवी पर या किसी सभागार में। इससे तुम्हें यह समझ में आएगा कि लोग उनके पास उपलब्ध सामग्री को किस तरह जमाते हैं और किस प्रकार उसे प्रस्तुत करते हैं। इससे तुम्हें चेहरे के उतार-चढ़ाव, हावभाव और वाकपटुता से अपनी बात को बेहतर ढंग से प्रस्तुत करने की कला भी सीखने को मिलेगी। तुम यह जान पाओगे कि क्या कहना प्रभावी होता है और क्या, निष्प्रभावी। इससे तुम संप्रेषण कला में निष्णात बन सकोगे।
रईसाना जिंदगी का स्वाद लो
शनैः शनैः उच्च स्तर की चर्चाओं में भाग लेने की तुम्हारी क्षमता बढ़ती जाएगी। परंतु याद रखो कि इनमें से बहुत सी बैठकें और चर्चाएं बड़ी होटलों और प्रतिष्ठित कन्वेंशन सेंटरों में होती हैं। अगर तुम्हें ऐसी जगह आने का निमंत्रण मिले तो तुम्हें वहां अजीब-सा नहीं लगना चाहिए। इसलिए अच्छे से तैयार हो, अपने पास की किसी बड़ी होटल में जाओ, थोड़ी देर घूमों और फिर वापिस आ जाओ। यद्यपि मैं लोगों को हमेशा यह सलाह देता हूं कि वह दिखने की कोशिश न करें जो वे नहीं हैं परंतु किसी होटल में जाने और वहां से निकल आने में तुम कुछ भी गलत नहीं कर रहे हो। होटलें आदि ग्राहकों की सेवा के लिए होती हैं और तुम भले ही आज उनके ग्राहक न हो परंतु तुम उस समय के लिए तैयारी कर रहे हो, जब तुम इस तरह के स्थानों पर ग्राहक बतौर जाओगे।
दो अंतिम बातें: अपने दोस्तों का चुनाव सावधानी से करो। किसी ऐसे समूह से मत जुड़ो जो तुम पर इस तरह का व्यवहार करने का दबाव डाले, जो तुम्हें तुम्हारे लक्ष्यों तक पहुंचने में बाधक हो। अगर इस तरह के समूह का हिस्सा बनने के दबाव से बचना संभव ही न हो तो किसी दूसरे स्थान पर रहने चले जाओ, चाहे वह नई जगह उतनी ही खराब क्यों न हो, जितना कि वह स्थान जहां तुम पहले रहते थे।
आखिरी बात यह कि कभी कर्ज के दुष्चक्र में मत फंसो क्योंकि उससे तुम साहूकार या बैंक के गुलाम बन जाओगे। चाहे तुम्हारी कमाई कितनी ही कम क्यों न हो उसी में अपना खर्चा चलाने की कोशिश करो और यह भी कोशिश करो कि हर महीने तुम कुछ पैसा बचाओ। इससे तुम्हारे पास एक छोटा-सा कोष इकट्ठा हो जाएगा जो किसी मुसीबत में तुम्हारे काम आ सकेगा। इसके अलावा, तुम इस पैसे का इस्तेमाल, अपने लक्ष्य को पाने के लिए जरूरी चीजें खरीदने के लिए कर सकते हो। उदाहरणार्थ, किसी कोचिंग क्लास की फीस देने में, कम्प्यूटर खरीदने में या कोई छोटा-मोटा व्यवसाय शुरू करने में।
सप्रेम
दादू
फारवर्ड प्रेस के अगस्त, 2015 अंक में प्रकाशित