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बहुलतावादी प्रजातंत्र का निर्माण जरूरी : मीसा भारती

युवा राजनेता व लालू प्रसाद की पुत्री डॉ मीसा भारती का मानना है कि महिषासुर का खलनायकीकरण करने के लिए मनुवादी स्याही और कलम का इस्तेमाल किया गया है। उनका आह्वान है कि आज के युवा बहुलतावादी प्रजातन्त्र के समतामूलक सरोकारों को मज़बूत करें

महिषासुर, रोहित वेमुला व जेएनयू की घटनाओं पर  डॉ मीसा भारती  से नवल किशोर कुमार की बेबाक बातचीत :

Misa Bharti on Mahishasur_Lalu Prasadक्या आप यह मानती हैं कि सामाजिक न्याय के लक्ष्य को हासिल करने के लिए वंचितों द्वारा राजनीतिक अधिकार के साथ-साथ सांस्कृतिक अधिकार भी आवश्यक हैं ?

संविधान समर्पित करते हुए बाबा साहेब डा। आंबेडकर ने चेतावनी दी थी कि अगर राजनीतिक समता, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक समता में रूपांतरित नहीं होगी तो प्रजातान्त्रिक- राजनीतिक संरचना का अवशेष नहीं बचेगा दुःख और क्षोभ का विषय है कि ‘महू’ जाकर डॉक्टर आंबेडकर की प्रतिमा पर फूल चढाने वाले लोगों ने संविधान की प्रस्तावना के मर्म को भी समझने की जहमत नहीं उठाई है। आधुनिक संविधान का व्यापक दर्शन और ब्राह्मणवाद का पौराणिक और संकीर्ण दर्शन एक साथ नहीं चल सकता।

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री दिशोम गुरु शिबू सोरेन ने अपने एक बयान में कहा है कि आदिवासियों की अपनी परंपरा और अपना धर्म व प्रतीक हैं। उन्होंने रावण और महिषासुर को अपना पूर्वज बताया है। जबकि हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में इन्हें खलनायक के रुप में चित्रित किया गया है। आप इस संबंध में क्या कहेंगी?

दरअसल सिर्फ गुरूजी नहीं, बल्कि भारत के विभिन्न प्रान्तों में बडी संख्या में लोग महिषासुर व ऐसे ही अन्य जननायकों, मिथकों और स्मृतियों में विश्वास करते हैं। बाबा साहेब के द्वारा प्रदत्त संविधान के हिसाब से हर कौम और वर्ग, हर जाति और समुदाय को यह आज़ादी है कि वे अपनी स्मृति और परंपरा के आधार पर अपनी पूजा पद्धति और प्राथमिकता तय करें। दिक्कत यह है कि आज जो लोग सत्ता पर काबिज़ हैं वे संविधान से ज्यादा ब्राह्मणवादी सरोकार और संघ(आरएसएस) के विधान से इस विशाल बहुलतावादी संस्कृति और परंपरा के मुल्क को चलाना चाहते हैं।

https://www.youtube.com/watch?v=Gnps2gTuCK8&feature=youtu.be

पूरे देश में सांस्कृतिक व धार्मिक प्रतीकों को लेकर वैचारिक स्तर पर जंग छिड़ी है। एक ओर शंकराचार्य का साईं विरोधी बयान तो दूसरी ओर केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी द्वारा महिषासुर को लेकर सवाल उठाया जाता है। आप चूंकि एक सामाजिक न्याय की विचारधारा को मानने वाले दल का प्रतिनिधित्व करती हैं, इन घटनाओं को किस रुप में विश्लेषित करेंगी?

Maikasur_Mahishasur_Mahoba-e1460958536387 (1)हम सबको अपनी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर की समझ होनी चाहिए.. कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक इतिहास, मिथक और स्मृति की अलग-अलग धाराएँ हैं। इसी साझी विरासत ने इस मुल्क को एक ख़ास खूबसूरती प्रदान की है। अलग- अलग प्रतीकों, परम्पराओं और मान्यताओं में विश्वास रखने वाले लोग एक साथ इस विरासत को मजबूती प्रदान करते रहें हैं। इसके साथ किसी भी प्रकार का छेड़छाड़ हमारे प्रजातंत्र की सामाजिक जड़ों को कमज़ोर करेगा। मैं यह भी मानती हूँ कि केंद्र की मौजूदा सरकार अपनी अकर्मण्यता और असफलताओं को छुपाने के लिए प्रतिस्पर्धी मिथकों में लोगों को उलझाना चाहती  है।

देश के कई प्रतिष्ठित उच्च शिक्षण संस्थानों, मसलन  जेएनयू, टाटा इंस्टीच्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज(मुंबई), हैदराबाद यूनिवर्सिटी, बीएचयू आदि में आदिवासी, दलित व अन्य पिछड़ा वर्ग के छात्रों द्वारा अपने नायकों, जैसे एकलव्य, शंबूक, महिषासुर आदि को पुनर्स्थापित करने की कोशिशें की जा रही हैं। इन छात्रों का कहना है कि इन प्रतीकों से उन्हें संघर्ष की प्रेरणा मिलती है। बहुजन संस्कृति की पुनर्स्थापना के लिए संघर्षरत इन छात्रों के लिए आपका संदेश क्या है?

यह तो स्पष्ट रूप से हमें ज्ञात है कि धर्म की जो व्यवस्थाएं या मान्यताएं हम तक पहुचायी गईं, उन्हें एक सीमित वर्ग ने मनुवादी कलम और स्याही से लिखी थी। हजारों वर्ष तक ज्ञान और दर्शन सिर्फ एक दो जातियों के कब्ज़े में बना रहा और जाहिर तौर पर उन्होंने सत्ता और संसाधनों पर अपने निरंतर नियंत्रण के लिए मिथक और परम्पराएँ गढ़ी। महिषासुर  जैसे जननायक का खलनायकीकरण भी इसी का हिस्सान है। लेकिन स्वाधीनता के थोड़े पूर्व और उसके पश्चात शिक्षा और चिंतन में उन जातियों की भी भागीदारी और हिस्सेदारी बढ़ी, जिन्हें अब तक एक आपराधिक साज़िश के तहत इससे वंचित किया गया था। अतः लोगो ने मिथकों के साथ-साथ स्मृति और इतिहास की वैज्ञानिक पड़ताल शुरू की और नतीजा है कि कई मान्यताओं और परम्पराओं पर सवालिया निशान लगाये जा रहे हैं। मैं आग्रह करुँगी की बहुजन संस्कृति से सरोकार रखने वाले साथी अपनी पहल जारी रखें और बहुलतावादी प्रजातन्त्र के समतामूलक सरोकारों को और मज़बूत करें।

Asur_Mahishasura-Diwas_Haydrabad10649446_1260433887304100_5804138588371162703_n-e1460949443255क्या आपको लगता कि पिछले कुछ महीनों में धर्म को लेकर राजनीति अब अत्याधिक उग्र हो रही है?

जिस तरह की घटनाएँ देश के अलग-अलग हिस्सों में हो रहीं है, इसमें कतई कोई संदेह नहीं है कि धर्म और राजनीति के घालमेल ने लोकजीवन और खास तौर पर राजनीतिक जीवन को एक हद तक विषाक्त कर दिया है। उग्रता और हिंसा की छवियाँ हमारे लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए घातक हैं।

आपके हिसाब से राजनीति में धर्म व संस्कृति की भूमिका क्या होनी चाहिए?

देखिये धर्म और संस्कृति मानव जीवन को मूल्यवान बनाते हैं। दोनों अपने प्रभाव से समाज को एक सम्पूर्णता का अहसास देते हैं। लेकिन राजनीति के निहितार्थ और सरोकार अलग हैं। हमें यह मानना होगा कि एक बहुलतावादी मुल्क में राजनीति का एक व्यापक समावेशी दृष्टिकोण होना चाहिए। एक बहुधर्मी और बहुसंस्कृति वाले देश में राजनीति को एक ऐसी विचारधारा के रूप में देखना चाहिए, जो पूरे हिन्दुस्तानी कारवां को साथ लेकर चल सके।

रोहित वेमुला की आत्महत्या और जेएनयू में हुए विवाद को आप किस रुप में देखती हैं?

रोहित वेमुला की आत्महत्या के पूर्व लिखा गया पत्र हमारी पूरी सभ्यता और समाज के लिए आत्मचिंतन का दस्तावेज़ है। रोहित जब यह कहता है कि, ‘मेरा जीवन ही एक घातक दुर्घटना है’, तो वह सिर्फ अपने लिए नहीं बोल रहा था बल्कि तमाम दलित और पिछड़े वर्गों के संरचनात्मक और संस्थागत उत्पीडन की व्यथा कथा कह रहा था। लेकिन सरकारी संवेदनहीनता ने अपनी पूरी कार्यशैली से मनुवादी परंपरा के पोषण का ही परिचय दिया। रोहित के सवालों के पक्ष में अलग-अलग जगहों पर, कई विश्वविद्यालयों में लोग खड़े होने लगे और इसमें जेएनयू भी एक था। लेकिन देशभक्ति और देशद्रोह की आड़ लेकर सरकार ने संस्थागत वैमनस्य और उत्पीडन के सवालों को ढंकने की कोशिश की। देशभक्ति के सवाल पर कभी भी दो राय नहीं रही है इस देश में। लेकिन मजे की बात है कि सबसे ज्यादा देशभक्ति की बात करने वाले दल का इस देश के बनने और बढ़ने में रत्ती भर भी योगदान नहीं रहा है। सच तो यह है कि दिल्ली की सत्ता पर बैठे लोगों ने छात्रों और युवाओं के खिलाफ एक अघोषित युद्ध छेड़ रखा है.

महिषासुर आंदोलन से संबंधित विस्‍तृत जानकारी के लिए पढ़ें ‘फॉरवर्ड प्रेस बुक्स’ की किताब ‘महिषासुर: एक जननायक’ (हिन्दी)।घर बैठे मंगवाएं : http://www.amazon.in/dp/819325841X किताब का अंग्रेजी संस्करण भी शीघ्र उपलब्ध होगा )

लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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