महिला दिवस, 8 मार्च 2016 को राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने बिहार के नवादा जिले की डा. सौरभ सुमन को जब ‘नारी शक्ति’ सम्मान से सम्मानित किया तो शायद उन्हें भी नहीं पता हो कि डा. सौरभ सुमन को सम्मानित करना उन 14 दूसरी महिलाओं के सम्मानित करने से अलग क्यों है ! तब राष्ट्रपति भवन में एक कार्यक्रम में सामाजिक कार्यों से जुडी देश भर की 15 महिलायें सम्मानित की गईं. इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, महिला और बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने के अलावा देश की कई नामी-गिरामी हस्तियां उपस्थित थी।
अभी ज्यादा दिन नहीं हुए थे, जब देश की मानवसंसाधन विकासमंत्री ने क्रमशः 25 और 26 फरवरी को संसद के दोनो सदनों में महिषासुर शहादत दिवस मनाये जाने पर ‘क्रोध’ प्रकट किया था. इसके दो सप्ताह के भीतर ही डा. सौरभ सुमन को राष्ट्रपति भवन में सम्मानित किया जा रहा था, जो खुद को ‘महिषासुर की बेटी’ मानती हैं और 2010 से ही अपने शहर में ‘महिषासुर शहादत दिवस’ मना रही हैं. यह सम्मान उन्हें ‘कृषि –शोध’ के लिए दिया गया। सत्ता के शीर्ष प्रतीक राष्ट्रपति भवन पहुँची डा. सौरभ इस बात का प्रतीक थीं कि यह देश जल्द ही ब्राह्मणवादी सांस्कृतिक कुंठा से बाहर निकल जायेगा- यह राष्ट्रराज्य एक ऐसी शख्स को सम्मानित कर रहा था, जो सत्ता की एक ताकतवर मंत्री और सत्ता में बैठे बड़े समूह की नजरों में तथाकथित ‘देशद्रोही’ कार्य पिछले 6 सालों से करती रही हैं. जब 8 मार्च को उन्हें सम्मानित किये जाने की पूर्व सूचना उनके जिले में पहुँची तो जिले के पत्रकारों ने उनसे महिषासुर की शहादत दिवस आयोजित करने संबंधी सवाल भी पूछे। ‘सवाल तीखे थे, मुझे दिल्ली पहुँचना था इसलिए उस दिन तो कुछ ख़ास मैं उन्हें कह नहीं सकी लेकिन आज मैं बताना चाहती हूँ कि क्यों मनाते हैं हम महिषासुर शहादत दिवस,’ खुद को महिषासुर की बेटी बताते हुए सौरभ कहती हैं।
क्यों मनाती हैं महिषासुर शाहदत दिवस
“पहली बार मेरे मन में एक सवाल वर्ष 2010 में आया कि एक ही पर्व का तीन नाम क्यों-दुर्गापूजा, विजयादशमी और दशहरा? अपना शासन कायम करने के लिए आर्यों ने शुभ्म , निशुम्भ , मधु कैटय, धु्म्रलोचन आदि राजाओं को छल से मारा। उसी क्रम में राजा महिषासु , जो बंग देश के राजा थे, उन्हें विष्णु‘ मारने के असफल रहा तो दुर्गा, जिसका नाम अमृतापुष्पम था, उसे सजा-धजा कर और युद्ध कला में प्रशिक्षित कर राजा महिषासुर को मारने के लिए भेजा। अमृतापुष्पम अपने जाल में फंसाकर राजा महिषासुर की हत्या कर दी। इसी तरह मोहनजोदड़ो, हड़प्पा आदि पर आर्यो ने कब्जा किया। अमृतापुष्पम का नाम दुर्गा प्रचलित किया गया और उसकी पूजा की जाने लगी.
मौर्य वंश के अंतिम शासक वृहद्रथ के सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने वृहद्रथ की ह्त्या करके दस मौर्य राजाओं के सुशासन का अंत कर दिया और ब्राह्मणों की सत्ता स्थापित की दस मौर्यों के शासन को समाप्त करने के प्रतीक के तौर पर दशहरा मनाया जाने लगा.”
”आश्विन महीने में विजयी पखवारा के तौर पर महान शासक अशोक विजयोत्सव मनाते थे। विजयोत्सव पखवारे का समापन आश्विन महीना के दशमी के दिन सेनापति, सभी सेनाओं एवं प्रजा के बीच राजा तलवार की सलामी लेकर करते थे। इसलिए इसे विजयादशमी कहा जाता था। लेकिन ब्राह्मणवादी व्यवस्था ने इस दिवस के महत्व का अपने अनुसार इस्तेमाल कर लिया और पुष्यमित्र शुंग के द्वारा सम्राट वृहद्रथ की ह्त्या का जश्न इसी नाम से मनाया जाने लगा.”
सौरभ कहती हैं “ इन लड़ाइयों को मैने करीब से समझा और समाजिक समझ पैदा करने के दृष्टिकोण से मैंने महिषासुर शहादत दिवस मनाने का संकल्प पहली बार 2010 में लिया और अपने घर में ही अपने ही परिवार को बुलाकर इसके लिए मानसिक तौर पर तैयार किया। काफी विरोध हुआ और मुझे सामाजिक प्रताड़ना झेलनी पड़ी। बाबजूद मैं निराश नहीं हुई। मैं आगे बढ़ती गई। वर्ष 2013 में यादव शक्ति पत्रिका पढ़ने का मौका मिला। उससे पता चला कि जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में महिषासुर शहादत दिवस खुले तौर पर मनाया गया तो मैंने भी इसे खुले तौर और वृहत रूप से मनाने का संकल्प लिया।”
निरंतर मनाने का संकल्प
2014 में मुझे सामाजिक तौर पर भी काफी सहयोग मिला। मैंने वृहत पैमाने पर ‘महिषासुर शहादत दिवस’ का आयोजन किया. बिहार सेवा संस्थान, नवादा में आयोजित इस कार्यक्रम में पूर्व मंत्री भगवान सिंह कुशवाहा, विधायक कृष्णे नन्दन यादव, उप विकास आयुक्त, नवादा, चन्द्रिका यादव, जिला परिषद् सदस्य, अनिता देवी, जिला परिषद सदस्य, उमेश सिंह, संस्थापक बुद्ध विहार, नवादा, गायत्री कुमारी, चन्दन चैधरी, दिलीप साव आदि सैकडों लोगों ने भाग लिया।
2015 में बिहार में आदर्श अचार संहिता लागू होने की वजह से वृहत कार्यक्रम की अनुमति नही मिली। बाबजूद इसके सैकड़ो महिषासुर अनुयायियों के साथ महिषासुर की प्रतिमा पर श्रृद्धाजंली पुष्पव अर्पित करते हुए बिहार सेवा संस्थान के प्रागण में ‘शहादत दिवस’ मनाया गया। साथ ही एक समिति बनायी गई – महिषासुर शहादत दिवस आयोजन समिति।
इसके सदस्य हैं डा0 सौरभ सुमन (संरक्षिका), उमेश सिंह बौद्ध (संरक्षक), सुरेश पासवान (अध्यक्ष), कमल नयन (महासचिव), सावित्री बौध (कोषाध्यक्ष), चंदन कुमार चैधरी (सदस्य), दिलीप साव (सदस्य) और गायत्री कुमारी (सदस्य)
बहुजन समाज की बेटी का संघर्ष
अलीगढ़ विश्वविद्यालय से कृषि विज्ञान में डाक्टरेट डा. सौरभ की जीवन –यात्रा कम संघर्षपूर्ण नहीं रहा है . जब छोटी थीं, तो पिता कामेश्वर सिंह एक सामंत की ह्त्या के आरोप में 1980 में जेल चले गये. नवादा जिले के चांदो सिंह हत्याकांड नाम से जानी जाने वाली इस घटना में डा. सौरभ के अनुसार यूं तो सामंत से त्रस्त जनता ने यह ‘कार्रवाई’ की थी , लेकिन न्यायालय ने उनके पिता को फांसी की सजा दे दी. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सजा समाप्त कर दी. पिता की अनुपस्थिति में उनके परिवार का देखभाल उनके यहाँ काम करने वाले मुसहर जाति के श्रमिक ने की. वे बताती हैं कि ”मैं कुशवाहा (ओबीसी) परिवार में पैदा हुई. लेकिन मैं खुद को अपने पालक दलित पिता की बेटी मानती हूँ, जिन्होंने मजदूरी करके मुझे, मेरी बहन और मेरी मां का ख्याल रखा. पढ़ाया –लिखाया.’’
नवादा से प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद घर के आर्थिक कर घर की हालत के कारण वे सिलाई सिखकर उसी से संबंधित काम करने लगीं. मैट्रिक की पढाई उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र नवादा से की थी. 1992 में ‘बिहार सेवा संस्थान’ से जुडीं और आगे की पढाई के लिए प्रेरित हुईं. उसके बाद गया से कॉलेज की पढाई की और अलीगढ़ से ‘रूरल एग्रीकल्चर एंड मार्केटिंग’ विषय पर डाक्टरेट किया.
पढाई के बाद डा. सौरभ अपने जिले में आकर सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में काम करने लगीं. लोगों के बीच कृषि –संबंधी जानकारियां देने के अलावा वर्चस्वशाली संस्कृति के खिलाफ सामाजिक रूप से सक्रिय हो गई. वे बताती हैं, ‘’मैंने बुद्ध को पढ़ा, डा. आम्बेडकर को पढ़ा और बहुजनों के खिलाफ मायाजाल को समझ सकी.’’ वे कहती हैं कि ‘’नवादा सहित मगध के कई जिलों में बौद्ध मठों, मंदिरों पर कब्जा किया जा रहा है. बौद्ध मूर्तियों को तेल, सिन्दूर लगाकर हिन्दू नाम दिया जा रहा है. यह प्रत्यक्ष सांस्कृतिक गुंडागर्दी है, जिसके खिलाफ भी हम जनजागृति कर रहे हैं.’’
जारी रहेगा महिलओं के लिए संघर्ष
इतने विद्रोही तेवर की महिला को सरकार ने कैसे सम्मानित किया के सवाल पर वे कहती हैं कि दरअसल कृषि विज्ञान केंद्र नवादा ने अपने यहाँ से सक्सेस स्टोरी के तौर पर उनका नाम आगे बढाया. वे कहती हैं, ‘’सरकार क्या सिर्फ ब्राह्मणवादियों की है? कोई मंत्री ब्राह्मणवादी हो सकता है, हो सकती है , लेकिन संविधान ब्राह्मणवाद या किसी भी समूह या व्यक्ति के वर्चस्व के खिलाफ है. संविधान वैज्ञानिक चेतना के लिए प्रतिबद्ध है’। डा. सौरभ ने सम्मान के लिए मिले एक लाख रूपये को जिले की महिलाओं के विकास के लिए स्थानीय प्रशासन को दे दिया. वे कहती हैं, ‘’ यह सम्मान मुझे नहीं बल्कि उन तमाम दबे -कुचले महिलाओं को मिला है, जो आज हमारे प्रयास से समाज के मुख्यधारा से जुड़ कर आम लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत बन कर काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि मुझे विश्वास हो गया है कि काम करने से सम्मान जरूर मिलता है। डा. सौरभ कहती हैं ‘’ महिलाओं के उत्थान और जातिविहीन समाज का निर्माण मेरे जीवन का लक्ष्य है.”
(महिषासुर आंदोलन से संबंधित विस्तृत जानकारी के लिए पढ़ें ‘फॉरवर्ड प्रेस बुक्स’ की किताब ‘महिषासुर: एक जननायक’ (हिन्दी)।घर बैठे मंगवाएं : http://www.amazon.in/dp/819325841X किताब का अंग्रेजी संस्करण भी शीघ्र उपलब्ध होगा )