एलेनर जेलिअट ने 5 जून, 2016 को अंतिम सांस ली। वे दलित अध्ययन की अग्रिम पंक्ति की विद्वान और आंबेडकर के जीवन और कार्यों की प्रमाणिक विशेषज्ञ थीं। इन विषयों में रूचि रखने वाले मेरे जैसे कई लोगों का आंबेडकर से परिचय उन्हीं के लेखन द्वारा हुआ। जिस समय भारत के बाहर आंबेडकर की कोई पहचान नहीं थी, उस समय उन्होंने आंबेडकर और दलित आन्दोलन पर कई पुस्तकें लिखीं,जिन्होंने दुनिया भर के अध्येताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं पर गहरी छाप छोड़ी।
एलेनर जेलिअट से मेरी व्यक्तिगत मुलाकात कभी नहीं हुई। इसलिए मैं यहाँ उन्हें एक महान मनुष्य और विद्वान – जो वे थीं – के रूप में याद नहीं कर रहा हूं। मुझे विश्वास है कि अमेरिका के नार्थफील्ड, मिनेसोटा के कार्लटन कॉलेज, जहाँ उन्होंने 30 वर्षों तक अध्यापन किया, के उनके विधार्थी और सहकर्मी इस बारे में मुझसे कहीं बेहतर बता सकेंगे। मेरा लक्ष्य साधारण है। मैं तो केवल उनकी उदारता की एक झलक दिखलाना चाहता हूं और यह बताना चाहता हूं कि उनके लेखन का मुझ पर क्या प्रभाव पड़ा और उसने मेरे विचारों को आकार देने में कैसे मदद की। मैं यहां केवल अपने अनुभव की बात कर रहा हूं यद्यपि बाद के वर्षों में मैं ऐसे कई व्यक्तियों के संपर्क में आया, जिनका अनुभव मुझसे मिलता-जुलता था और जिन्हें जेलियट ने शोध-कार्य करने के लिए प्रोत्साहित किया था।
सन 2008 के प्रारंभ में मैंने पहली बार एलेनर जेलिअट के बारे में सुना। उस समय मैं मैक्सिको में एमए का विद्यार्थी था और भारत के इतिहास पर काम कर रहा था। गांधी और अछूत प्रथा के संबंध में उनके विचारों और कार्यों के बारे में कुछ समय तक अध्ययन करने के बाद मुझे बीआर आंबेडकर के जीवन और उनके लेखन के बारे में पता लगा। मैंने आंबेडकर का नाम इससे पहले कभी नहीं सुना था और इसलिए उनके बारे में जो कुछ भी मुझे उपलब्ध हो सका, वह सब मैंने पढ़ डाला। मैक्सिको में आंबेडकर के बारे में सामग्री ढूंढना आसान नहीं था, परंतु जो कुछ भी मुझे मिला, उन सब में मैंने एक समानता पाई। मैंने पाया कि उन सभी में, सन 1969 में पेन्सिल्वेनिया विश्वविद्यालय में एलेनर जेलिअट के अप्रकाशित पीएचडी शोधप्रबंध, जिसका शीर्षक ‘‘डा. आंबेडकर एंड द महार मूवमेंट’’ था, का कहीं न कहीं हवाला दिया गया था।
जेलिअट के विचारों और उनके कार्य के बारे में जानने के लिए मैंने कुछ शोध किया। मुझे पता चला कि उन्होंने बड़ी संख्या में लेख लिखे हैं, जो कई अलग-अलग सम्पादित ग्रंथों में प्रकाशित हैं। उनका लेखन मुख्यतः तीन बिंदुओं पर केंद्रित था। जेलिअट के अधिकांश लेख महाराष्ट्र में अछूत प्रथा के खिलाफ आंबेडकर के संघर्ष के बारे में थे। उनका तर्क था कि आंबेडकर ने धर्म को खारिज कर और आधुनिक राजनीतिक साधनों का इस्तेमाल कर इस कुप्रथा के खिलाफ संघर्ष किया। जिस दूसरे मुद्दे में जेलिअट की दिलचस्पी थी, वह था समकालीन दलित आंदोलन और बौद्ध धर्म व साहित्य से उसका रिश्ता। उन्होंने यह समझने की कोशिश की कि दलित, बौद्ध धर्म को किस तरह देखते हैं और इस प्रयास के चलते वे दलित मराठी लघुकथाओं और कविताओं की समृद्ध दुनिया में प्रवेश पा सकीं। जेलिअट की दिलचस्पी का तीसरा क्षेत्र था चोखामेला जैसे मध्यकालीन अछूत संत कवियों के गुम हो चुके इतिहास की खोज और जाति-विरोधी विचारों की परंपरा का अध्ययन। मैंने इन लेखों से बहुत कुछ जाना-सीखा परंतु जेलिअट का अप्रकाशित शोध प्रबंध मुझे नहीं मिल सका।
कुछ और खोज करने पर मुझे पता चला कि एलेनर जेलिअट, मिनेसोटा के कार्लटन कालेज से जुड़ी हुईं थीं। उन्होंने 1969 से 1997 तक वहां अध्यापन कार्य किया था। परंतु मुझे यह जानकर निराशा हुई कि वे सेवानिवृत्त हो गई हैं। परंतु मैंने अपनी किस्मत आज़माने का निर्णय किया और कार्लटन की वेबसाईट पर दिए गए उनके ईमेल पते पर उन्हें एक संदेश लिख भेजा। मेरे पहले ईमेल में मैंने उन्हें लिखा कि मैं आंबेडकर पर अपना एमए का लघु शोधप्रबंध लिख रहा हूं और इसके लिए मुझे उनकी पीएचडी थीसिस की आवश्यकता है। मुझे आश्चर्य हुआ जब उनका जवाब कुछ ही घंटों में आ गया। अपने ईमेल में उन्होंने लिखा कि उस शोधप्रबंध को एक छोटे-से दलित प्रकाशन ‘ब्लूमून बुक्स’ ने सन 1998 में प्रकाशित किया था। उन्होंने मुझे लिखा कि मैं अपना पोस्टल पता उन्हें लिख भेजूं ताकि वे उसकी एक प्रति मुझे भेज सकें।
इसके बाद मेरे और उनके बीच करीब बीस ईमेलों का आदान-प्रदान हुआ और इनके ज़रिए मुझे एलेनर जेलिअट के विचारों, उनकी उदारता और उनके धैर्य का परिचय मिला। जब ‘‘आंबेडकर एंड द अनटचेबिल मूवमेंट’’ की प्रति मुझे मिली तब मैंने उन्हें धन्यवाद देते हुए एक ईमेल भेजा। उन्होंने जवाब में लिखा कि वे पुस्तक की सामग्री से तो प्रसन्न हैं परंतु उसका आवरण और शीर्षक उन्हें बिलकुल नहीं भाता। आवरण पृष्ठ पर नीले रंग में आंबेडकर का चित्र छपा हुआ था। मुझे लगा कि वह बहुत बुरा नहीं है। शीर्षक के बारे में उनकी शिकायत दूसरी थी। जेलिअट का कहना था कि आंबेडकर को अछूत आंदोलन का एकमात्र नेता बताना अतिरंजना है। मेरी दृष्टि में यह बहुत बड़ा मुद्दा नहीं था। जैसा कि मैंने अन्यत्र लिखा है, आंबेडकर वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने अछूत प्रथा की अवधारणा को एक राष्ट्रीय राजनैतिक अवधारणा में बदल दिया-एक ऐसी अवधारणा में जो भाषा, पेशे और इतिहास की क्षेत्रीय विभिन्नताओं के बाद भी पूरे देश के दलितों को एक करने में सक्षम थी। परंतु मैं जेलिअट की बात समझ सकता था। वे आंबेडकर के विचारों के प्रभाव पर नहीं लिख रही थीं। उनकी विषयवस्तु आंबेडकर का राजनीतिक आंदोलन था। आंबेडकर की मृत्यु के बाद, उनके एक नायक के रूप में उभरने के महत्व को जेलिअट कम करके नहीं आंक रही थीं वे दरअसल, यह कहना चाह रही थीं कि आंबेडकर के आंदोलन के केंद्र में मुख्यतः पश्चिमी भारत के महार थे। इन मुद्दों के बावजूद हम यह समझ सकते हैं कि जेलिअट ने एक इतनी छोटी-सी अनजान प्रेस को अपनी किताब प्रकाशित करने की इजाजत क्यों दी। उनका दलित आंदोलन से जुड़ाव केवल एक अध्येता बतौर नहीं था। वे इस आंदोलन के प्रति प्रतिबद्ध थीं। वे चाहती थीं कि उनके विचार भारत और अमरीका और मैक्सिको में भी ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचे।
जेलिअट के साथ मेरा ईमेल के ज़रिए आगे जो पत्रव्यवहार हुआ वह मुख्यतः उन प्रश्नों के बारे में था, जिनके उत्तर मैं उनसे जानना चाहता था। उन्होंने बड़े धैर्य से आंबेडकर के बारे में मेरे प्रश्नों का उत्तर दिया। उन्होंने मुझे बताया कि किन-किन अभिलेखाकारों में गईं और उन्होंने किन-किन व्यक्तियों से बातचीत की। उन्होंने मेरे पीएचडी के विषय में भी रूचि ली और उसके संबंध में अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने मुझे मेहनत करने के लिए प्रोत्साहित किया। बाद में अपनी डाक्टरेट की पढ़ाई में व्यस्त हो जाने के बाद मेरा उनसे संपर्क समाप्त हो गया। परंतु उनकी टिप्पणियां और उनसे हुई बातचीत मेरे लिए बहुत उपयोगी सिद्ध हुई और मुझे वह आज भी काम आती है। उनकी पुस्तक मेरे लिए एक खजाना है। जब भी मैं किसी अभिलेखागार में जाता हूं तो वह मेरे साथ होती है और जब भी आंबेडकर के जीवन के संबंध में मुझे कोई संदेह होता है तो वह उसका निवारण करती है। इससे भी महत्वपूर्ण यह है कि उनकी वह उदारता जो उनके ईमेलों से झलकती थी ने मुझे अकादमिक दुनिया में अपने कनिष्ठों से मित्रवत संबंध रखने के महत्व से परिचय करवाया और इससे भी कि कई बार कुछ शब्द या पंक्तियां किसी दूसरे के जीवन के लिए कितनी महत्वपूर्ण हो सकती हैं।
बहुत खुब, दिल-ओ-दिमागस्पर्शी लेख ।
एस्टल जेलियट की जीवनचेतना को सादर नमन ।
हसूस रिटायर्ड को साधुवाद सह अभिनंदन ।
जय भीम नमो बुद्धाय
वाकई यहाँ अत्यंत महत्त्वपूर्ण जानकारी है। डॉ॰ बाबासाहेब आम्बेडकर जी के बारें यहाँ जिस प्रकार विस्तारीत जानकारी और अंग्रेजी के साथ हिन्दी में बहुत ही बढियाँ है। यहाँ बाबासाहेब से जूडे अलग अलग पहलू मिल जाते है। इसके लिए आप सब का दिल से अभिनंदन…
जय भीम…