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प्रेम, आरक्षण और हरियाणा के खापवादी डीएसपीगण

लौटते-लौटते मैं सोच रहा था कि हरियाणा बदल रहा है, इस बदलाव को रोकना खापों के वश में नहीं है। हालांकि इस निष्कर्ष पर भी था कि बदलाव के खिलाफ संविधान के रक्षकों की ही भूमिका को कम करने के लिए कई और साल जाति और जेंडर की संवेदना के कक्षाएं लगानी होंगी

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सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट अरविंद जैन हरियाणा पुलिस अकादमी में

हरियाणा पुलिस अकादमी, करनाल में एक वर्कशॉप में शामिल होना मेरे लिए इस राज्य की सामाजिक संरचना, वहाँ की पितृसत्तात्मक जाति संरचना और इसके प्रतिरोध की बनती स्थितियों को समझने वाला अनुभव था। 1 जुलाई को अकादमी ने पुलिस अफसरों और सामज कल्याण विभाग के अफसरों के लिए अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति  उत्पीड़न क़ानून को समझने और पीड़ितों को अधिकतम सहयोग कैसे किया जाये, इसे समझने के लिए आयोजित किया था। जब आमंत्रित वक्ता और वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद जैन ने मुझे साथ चलने के लिए कहा, तो मैंने इसे अवसर की तरह इसलिए भी देखा कि, हरियाणा पुलिस अकादमी अपने पूर्व निदेशक विकास नारायण राय के जेंडर संवेदी अभियानों के लिए काफी चर्चित रहा था-वहाँ जाना ऐसे अभियानों के असर को समझने के लिए भी एक अवसर जैसा था।

खाप की वकालत करता खाकी वाला

अरविंद जैन के लम्बे संबोधन के बाद वहाँ उपस्थित पुलिस उपाधीक्षक स्तर के अधिकारी (डीएसपी) काफी परेशान दिखे। उन्होंने चुनौती दे डाली कि महानगरों में बैठे लोग खाप को समझते नहीं है। उनका गुस्सा मीडिया पर भी था कि खापों की गलत तस्वीर पेश की जाती है। वे यह भी दावा कर रहे थे कि कोई समूह एक साथ किसी एक व्यक्ति या समूह की ह्त्या का निर्णय नहीं ले सकता था। वे बड़े मासूम अंदाज में पूछ रहे थे कि कोई किसी लड़की या लड़के को अपने ही गाँव में शादी की इजाजत कैसे दे सकता है?

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हरियाणा पुलिस अकादमी में जेंडर ट्रेनिंग।

उनके तेवर, उनके सवाल काफी थे यह बताने के लिए क्यों हरियाण में गांवों से दलितों को भगाया जा रहा है, यादिल्ली से सटे इलाकों से क्यों लड़कियों के खिलाफ फरमान आते रहते हैं या यह भी कि क्यों पिछले दिनों जाट-आंदोलन के दौरान पुलिस उपद्रवियों पर अंकुश नहीं लगा सकी और उपद्रवी आगजनी, हत्याएं और बलात्कार करते रहे। वक्ता अरविंद जैन और आयोजक हरियाण पुलिस अकादमी के डिस्ट्रीक्ट अटॉर्नी, शशिकांत शर्मा उदाहरणों से यह समझाते रहे कि समूहों ने और खाप ने कैसे ह्त्या तक के निर्णय लिए हैं या यह भी कि क़ानून का काम है कमजोरों के साथ खड़ा होना और संविधान के अनुपालन की स्थितियां पैदा करना, लेकिन पुलिस वाले उन्हें समझाते रहे कि आप गाँव को समझते ही नहीं।

आरक्षण क्यों नहीं लौटाते दलित अमीर 

अनुसूचित जाति-जनजाति के उत्पीडन पर लम्बे व्याख्यान के बाद राज्य के डीएसपी खेमे से ही एक टिप्पणी आई यह कहते हुए कि दलितों की हालात खराब होने का एक बड़ा कारण है, आरक्षण से उनके कुछ ही लोगों का लाभान्वित होना। लगे हाथ उन्होंने यह भी सुझाव दे दिया कि जिस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमीरों को एलपीजी की सब्सिडी लौटाने को कहा उसी तरह से एक-दो पीढ़ी तक आरक्षण का लाभ ले चुके दलित आरक्षण क्यों नहीं लौटाते, अपने ही गरीब भाइयों के लिए।

समझना होगा प्रतिरोध को भी 

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हरियाणा में प्रदर्शनकारियों से भीड़ते पुलिस।

पुलिस अधिकारी कोने से जब-जब ये टिप्पणियाँ आतीं, समाज-कल्याण विभाग के अफसरों के बीच खलबली सी होने लगती। यह खलबली हरियाण के समाज की एक दूसरी बानगी देती है। वह बानगी है, जातिवादी-पितृसत्तात्मक वर्चस्व को हाशिये से मिलती चुनती की। मैं, श्रोताओं के बीच, जब-जब डीएसपी महोदयों को उदाहरणों से गलत ठहराने की कोशिश करता तो इधर के चेहरे प्रसन्न भाव में समर्थन करते। एकअधिकारी ने जाते-जाते अपना हाथ उठाया कुछ कहने के लिए। उसने कहा, ‘मैं नहीं कहूंगा तो बात पचेगी नहीं मेरे पेट में, बीमार हो जाउंगा। उसने आगे की कतार में बैठे पुलिस अफसरों से पूछा, ‘सौ एकड़ से ज्यादा जोत वाले गैर दलित अपनी खेतियाँ अपने ही भाई-बंधुओं के लिए क्यों नहीं छोड़ देते? या पीढी-दर-पीढी नौकरियाँ करने वाले ऊंची जाति के लोग ऊंची जाति के गरीबों के लिए अपनी नौकरियाँ क्यों नहीं छोड़ देते? प्रतिरोध की आवाज बताती है कि सबकुछ एकतरफ़ा नहीं है हरियाण में। दलितों और महिलाओं की ओर से वर्चस्व को मिल रही चुनौतियां भी बेचैनी पैदा कर रही है दबंगों में।

लौटते-लौटते मैं सोच रहा था कि हरियाणा बदल रहा है, इस बदलाव को रोकना खापों के वश में नहीं है। हालांकि इस निष्कर्ष पर भी था कि बदलाव के खिलाफ संविधान के रक्षकों की ही भूमिका को कम करने के लिए कई और साल जाति और जेंडर की संवेदना के कक्षाएं लगानी होंगी।

लेखक के बारे में

संजीव चन्दन

संजीव चंदन (25 नवंबर 1977) : प्रकाशन संस्था व समाजकर्मी समूह ‘द मार्जनालाइज्ड’ के प्रमुख संजीव चंदन चर्चित पत्रिका ‘स्त्रीकाल’(अनियतकालीन व वेबपोर्टल) के संपादक भी हैं। श्री चंदन अपने स्त्रीवादी-आंबेडकरवादी लेखन के लिए जाने जाते हैं। स्त्री मुद्दों पर उनके द्वारा संपादित पुस्तक ‘चौखट पर स्त्री (2014) प्रकाशित है तथा उनका कहानी संग्रह ‘546वीं सीट की स्त्री’ प्रकाश्य है। संपर्क : themarginalised@gmail.com

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