भूटान राज्य नहीं जाऊंगी
मत डॉटना मां, मत डॉंटना पिता
मैं, तो दादा नहीं जाऊंगी भूटान राज्य
यहीं जन्मभूमि, यहीं मृत्यु भी
भुईंहरी स्थान यह दादा, नहीं मैं नहीं जाऊंगी भूटान राज्य
वनराज यहीं वन भैंसा भंइस
बाघ-बाराह मित्रा, झरने, नदियां खुशी-हंसी
कुही, तोता, कौवा-मैना, रूनिया और बेसरा,
मैं, मैं तो दादा नहीं जाऊंगी भूटान राज्य।
गूलर, बार, केंद-चिरौंजी, बेहरा और आंवला
जिरहुल, सखुआ, तिरियो-कोरोया, आसन-कोयनार;
तुम्हारे मेरे संगी खेलते हैं झाक-झूमर (झूमते हैं)
मैं तो दादा नहीं जाऊंगी भूटान राज्य
नहीं मैं ललचाती सोना चांदी, ढेर-ढेर-सा पैसा
अक्ल, बुद्धि, ज्ञान, पाऊंगी, सजाऊंगी
यत्न से समेटना इन्हें अवश्य है,
छोड़ जाओ दादा मैं नहीं जाऊंगी भूटान राज्य
पहली बारिश
पहली बरसात में ही
नदी उमड़ी थी
और मछलियां मानो जलपरियां
तेजी से गहराई से लदगद-लदगद करते जल में
ऊंचाई की ओर उड़ी थी
थिरक रही थीं, रोशनी में चमक रही थीं
क्या तुमने देखा है
मछलियों का नृत्य, मछलियों का थिरकना?
बारिश में खेत-गड्ढे
छलके छपाछप भर उठे
कतार में ऊपर उठती मछलियां
फैल जातीं छिछले पानी में
और निष्ठुर मानव
जवान बूढ़े बच्चे सब
छोटे-बड़े निकल पड़े जाल लेकर
खेतों, नालों, झरनों और नदियों में
छा जाते काल बनकर।
वे मछलियां
बेखौफ मौत से अठखेलियां करतीं
फंस गईं, फंसा ली गईं जालों में
मछलियों की प्रणय लीला
उमंग का उत्कर्ष
पल में परिवर्तित होता मौत में
उनकी मौत
नहीं करती द्रवित मानव को
इतना निष्ठुर, इतना निर्मम
आज का मानव
सृजन काल में मछलियां मारी जाती हैं।
(फारवर्ड प्रेस, बहुजन साहित्य वार्षिक, मई, 2014 अंक में प्रकाशित )
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