राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो के अनुसार बिहार की राजधानी पटना में दलितों पर अत्याचार के कुल 103 मामले दर्ज हुए। जबकि पूर्व से लंबित मामलों की संख्या 704 रही। 2016 में न्यायालय द्वारा एक भी मामले में दोषसिद्धि नहीं हुई। राज्य स्तर पर ऐसे मामलों की संख्या 27,814 है जिसमें न्यायालय में ट्रायल पूर्ण नहीं हुए। अगले वर्ष इन आंकड़ों में और वृद्धि होगी।

ऐसा इसलिए कि बाबा साहब ने जो कानूनी अधिकार दलितों एवं अन्य वंचित समाज के लोगों को दिये, उनका अनुपालन न तो पुलिस थानों में होता है और न ही न्यायालयों में। वजह न्यायपालिका में ऊंची जातियों का वर्चस्व है। जबतक यह वर्चस्व खत्म नहीं होगा तबतक दलितों को न्याय कैसे मिलेगा। यह कहना है दलित मानवाधिकार कार्यकर्ता व पटना हाईकोर्ट में अधिवक्ता सविता अली का।
पिछले दस वर्षों से दलितों के हक-हुकूक के लिए संघर्ष कर रही सविता अली मूलरूप से हरियाणा के पानीपत की हैं और पिछले 4 वर्षों से बिहार की राजधानी पटना में वकालत कर रही हैं। सविता मानती हैं कि उन्हें दलित महिलाओं के कानूनी अधिकार के लिए लड़ने की प्रेरणा बाबा साहब आंबेडकर से मिली। जब बाबा साहब ने इतना दुख-तकलीफ सहकर दलितों और वंचितों को अधिकार दिया तो यह हमारा कर्तव्य है कि उनके कानून के सहारे हम उनके अधिकारों की रक्षा करें जो देश में अत्याचार के शिकार होते हैं।
यह पूछने पर कि पानीपत से शुरू हुआ उनका संघर्ष पटना कैसे पहुंचा, सविता बताती हैं कि एक स्वयंसेवी संस्था के सदस्य के तौर पर 2013 में वह पटना गयीं। उन दिनों वह दलित समाज के बुद्धिजीवियों की सफलता को दलित समाज के बीच ले जाने संबंधी प्रोजेक्ट पर कार्य कर रही थीं। इस बीच उन्होंने मजहब की दीवार तोड़ सफदर अली के साथ शादी की और पटना में बस गयीं। लेकिन इसके समानांतर दलित महिलाओं के लिए उनका संघर्ष जारी रहा।
सविता बताती हैं कि बिहार देश के उन राज्यों में सबसे प्रमुख है जहां दलित और अल्पसंख्यक वर्ग की महिलाओं के साथ सबसे अधिक अत्याचार किया जाता है। एक घटना का जिक्र करते हुए वह बताती हैं कि नवादा की एक अल्पसंख्यक महिला के साथ गैंगरेप किया गया। रेप के बाद अपराधियों ने उसके शरीर पर धारदार हथियार से वारकर उसे जख्मी कर दिया। लेकिन पुलिस ने अपनी रिपोर्ट में गैंगरेप के बजाय केवल यौन प्रताड़ना का मामला दर्ज किया।

इसी प्रकार पटना के फुलवारी शरीफ थाना के इलाके में घटित एक घटना का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि एक दलित महिलाओं के साथ दस लोगों ने गैंगरेप किया। पीड़िता अपने पति के साथ थाने पहुंची। पुलिस ने शिकायत दर्ज करने के बजाय उसे और उसके पति को ही थाने में नजरबंद कर दिया। करीब एक महीने बाद पुलिस ने पीड़िता की चिकित्सकीय जांच करवाई। जांच में गैंगरेप के सबूत नहीं मिले जो कि स्वभाविक है। देर होने से सबूत मिट जाते हैं।
सविता ने बताया कि उन्होंने पीड़िता के पक्ष में मामला उठाया और स्थानीय आईजी से मिलकर अपनी बात रखने के लिए उसे पुलिस मुख्यालय बुलाया। लेकिन अपराधियों ने पीड़िता को ऑटो से खींचकर मारा और गंभीर रूप से घायल कर दिया।
सविता बताती हैं कि इस तरह की अनेक घटनायें बिहार में आये दिन घटती हैं। लेकिन न्यायपालिका में गैर दलितों के वर्चस्व के कारण मामले बीच में ही दम तोड़ दे हैं और पीड़ित मन मसोसकर रह जाते हैं।
बहरहाल सविता मानती हैं कि दलित महिलाओं को शिक्षित और कानूनी रूप से सशक्त बनाये बिना स्थिति में बदलाव नहीं किया जा सकता है। जब ऐसा होगा तभी बाबा साहब का सपना पूरा होगा।
फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्त बहुजन मुद्दों की पुस्तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्य, सस्कृति व सामाजिक-राजनीति की व्यापक समस्याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। डॉ. आम्बेडकर के बहुआयामी व्यक्तित्व व कृतित्व पर केंद्रित पुस्तक फारवर्ड प्रेस बुक्स से शीघ्र प्रकाश्य है। अपनी प्रति की अग्रिम बुकिंग के लिए फारवर्ड प्रेस बुक्स के वितरक द मार्जिनालाज्ड प्रकाशन, इग्नू रोड, दिल्ली से संपर्क करें। मोबाइल : +919968527911फारवर्ड प्रेस बुक्स से संबंधित अन्य जानकारियों के लिए आप हमें मेल भी कर सकते हैं । ईमेल : info@forwardmagazine.in
फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें :
जाति के प्रश्न पर कबीर (Jati ke Prashn Par Kabir)
https://www.amazon.in/dp/B075R7X7N5
बहुजन साहित्य की प्रस्तावना (Bahujan Sahitya Ki Prastaawanaa)
https://www.amazon.in/dp/B0749PKDCX
महिषासुर : एक जननायक (Mahishasur: Ek Jannayak)
https://www.amazon.in/dp/B06XGBK1NC
चिंतन के जन सरोकार (Chintan Ke Jansarokar)