इस वर्ष केंद्र सरकार ने ओबीसी को बजट का हिस्सा बनाया और एक नयी पहल की शुरूआत की। जाहिर तौर पर इस पहल का एक सकारात्मक पक्ष है। लेकिन एक दूसरा पक्ष भी है। करीब 70 फीसदी आबादी (पसमांदा मुसलमानों को जाेड़ लें तो) के लिए बजटीय प्रावधान महज कुछ योजनाआें तक सीमित हैं। इनमें से कई योजनाएं पुरानी हैं। यानी पुरानी योजनाओं को नये रूप में पेश कर वाहवाही बटोरने की रणनीति भी है।

एक नजर सकारात्मक पहलों पर
हाल ही में केंद्रीय सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने नई दिल्ली में संवाददाता सम्मेलन के जरिए यह सूचना दी कि केंद्र सरकार ने इस बार ओबीसी के लिए बजटीय प्रावधान में 41 फीसदी की वृद्धि की है। उनके मुताबिक एक दूसरा शब्द बजटीय आवंटन है। बकौल गहलोत मंत्रालय के लिए बजट आवंटन में 12.10 प्रतिशत की बढ़ोतरी की गई है। वर्ष 2017-18 में 6,908 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे और यह राशि 2018-19 में बढ़ाकर 7,750 करोड़ रुपए कर दी गई।
ओबीसी कल्याण योजनाओं के लिए राशि में वृद्धि
गहलोत ने कहा कि ओबीसी के कल्याण के लिए आवंटन में 41.03 प्रतिशत की बढ़ोतरी करते हुए वर्ष 2018-19 में 1,747 करोड़ रुपए आवंटित किए गए जबकि वर्ष 2017-18 में 1,237.30 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे। उन्होंने कहा कि इसके अलावा वर्ष 2017-18 की तुलना में वर्ष 2018-19 में योजनाओं के लिए बजट में 11.57 प्रतिशत की बढ़ोतरी की गई।

ओबीसी उद्यमियों के लिए नई शुरूआत
अनुसूचित जातियों के लिए उद्यम पूंजी निधि की तर्ज पर ओबीसी के लिए एक नई उद्यम पूंजी निधि 200 करोड़ रुपए के शुरूआती कोष के साथ शुरू की जाएगी। इसके लिए वर्ष 2018-19 में 140 करोड़ रुपए की राशि निश्चित की गई है।
सरकार का एक महत्वपूर्ण फैसला यह भी
केंद्र सरकार ने इस बार के बजट में ओबीसी के लिए अनेक महत्वपूर्ण घोषणाएं की हैं। इसमें सबसे महत्वपूर्ण है लाभुकों की संख्या के विस्तार की नीति। जैसे ओबीसी छात्रों को प्री-मैट्रिक स्कॉरलरशिप योजना के लाभार्थियों के लिए परिवार की आय अहर्ता को 44 हजार 500 रुपए से बढ़ाकर ढाई लाख कर दी गयी। यानी पहले इस योजना का लाभ केवल उन्हें ही मिल पाता था जिनके परिवार की वार्षिक आय 44 हजार 500 रुपए थी। अब यह ढाई लाख रुपए तक की आय वाले ओबीसी परिवार के बच्चों को मिलेगा। इसी प्रकार अनुसूचित जाति के लिए भी सीमा दो लाख रूपए से बढाकर ढाई लाख रुपए कर दी गई है। इसी तरह की एक पहल ओबीसी छात्रों की कोचिंग योजना के मामले में की गई है। पहले इस योजना का लाभ साढ़े चार लाख रुपए तक वार्षिक आय वाले ओबीसी परिवार के छात्र-छात्राओं को मिलता था। लेकिन अब यह सीमा बढ़ाकर 6 लाख कर दी गयी है। इसी प्रकार कोचिंग योजना के तहत देय राशि में भी वृद्धि की गयी है। जैसे स्थानीय छात्रों को पहले केवल 1500 रुपए प्रति वर्ष मिलते थे और अब उन्हें 2500 रुपए मिलेंगे। दूसरे राज्यों में जाकर पढ़ने वालों को 3000 के बदले 5000 रुपए मिलेंगे। सनद रहे कि इन योजनाओं में पचास फीसदी हिस्सेदारी राज्य सरकारों की होती है।

ताली बजाने से पहले यह देखें
निश्चित तौर पर केंद्र सरकार के अपने दावे अपनी जगह सही हैं और उनकी घोषणाओं से एक उम्मीद भी बनती दिखती है। लेकिन इसका दूसरा पक्ष भी है। सबसे पहला पक्ष तो यह है कि केंद्र सरकार इस बार भी ओबीसी के लिए कोई नई योजना नहीं ला सकी। उद्यमियों के प्रोत्साहन के लिए पहले से ही केंद्र सरकार मुद्रा योजना चला रही है। यह भी पूर्ववर्ती डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार द्वारा चलायी गयी उद्यमिता विकास योजना का दुहराव सरीखा ही है। इसी के तर्ज पर अनुसूचित जातियों के उद्यमियों के लिए वेंचर कैपिटल फंड सरकार ने 2014 में ही प्रारंभ किया था। हालांकि उस समय भी पहले से क्रेडिट एनहांसमेंट गारंटी स्कीम लागू था। इसके तहत उद्यम करने की इच्छा रखने वालों को बिना किसी गारंटर के लोन देने का प्रावधान था। लेकिन दलितों के वोट बैंक पर नजर गड़ाए केंद्र सरकार ने इस योजना की शुरूआत की। इस योजना का क्रियान्वयन प्रारंभ से ही सरकारी तंत्र की मंशा पर सवाल उठाता रहा है। मसलन पहले दो वर्षों में यानी 2014 से लेकर 2016 के बीच पूरे देश में केवल 53 उद्यमियों को ऋण सहायता उपलब्ध करायी गयी। सनद रहे कि इस बार भी केंद्र ने ओबीसी के लिए वेंचर कैपिटल फंड बनाया है और केवल 200 करोड़ रुपए का कारपस फंड मुकर्रर किया है। इससे भी महत्वपूर्ण यह कि केवल 140 करोड़ आवंटन की बात कही गयी है। यह देखना दिलचस्प होगा कि कहीं इसका हाल भी अनुसूचित जाति के लिए बनाये गये वेंचर कैपिटल फंड के जैसा न हो।

दलितों और आदिवासियों के मुकाबले ओबीसी को कम हिस्सेदारी
इस वर्ष का केंद्रीय बजट कुल 24, 42,213.30 करोड़ रुपए का है। इसमें दलितों को स्पेशल कंपोनेंट प्लान के तहत कुल बजट में 56,619 करोड़ रुपए की हिस्सेदारी दी गयी। वहीं आदिवासियों के लिए ट्राइबल कंपोनेंट प्लान के तहत 39,135 करोड़ रुपए की राशि मुकर्रर की गयी। अब एक नजर फिर से देश में ओबीसी पर डालते हैं। देश में ओबीसी बहुसंख्यक हैं। इस बार ओबीसी के लिए केवल 1747 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। यद्यपि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की हिस्सेदारी भी अपेक्षाकृत काफी कम है। इन वंचित वर्गों के मामले में भी स्पेशल कंपोनेंट की परिभाषा यानी आबादी के हिसाब से हिस्सेदारी, का उल्लंघन किया गया है।
ओबीसी को बाजार के हवाले कर रहा राज्य
बिहार की राजधानी पटना में एशियन डेवलपमेंट रिसर्च इन्स्टीच्यूट के निदेशक व प्रख्यात अर्थशास्त्री प्रो. शैवाल गुप्ता के मुताबिक ओबीसी के लिए बजटीय आवंटन ऊंट के मुंह में जीरा से भी कम है। उन्होंने यह भी कहा कि ओबीसी के लिए वेंचर कैपिटल फंड बनाया जाना भी एक साजिश का हिस्सा है। सरकार बहुसंख्यक आबादी की जिम्मेवारी से अपने आपको मुक्त कर उसे बाजार के हवाले कर देना चाहती है।
सौ टके का सवाल
सवाल यह है कि आखिर सरकार अन्य पिछडा वर्ग, जिनकी अनुमानित आबादी देश की कुल आबादी की 60 से 70 फीसदी के बीच है, उसे नजरअंदाज क्यों किया जा रहा है? क्या देश की अधिसंख्य जनता का विकास किसी कंपोनेंट प्लान के बूते संभव है? अबतक उपलब्ध सारे आंकड़े बताते हैं कि देश में सवर्ण अल्पसंख्यक हैं। इस संबंध में पिछड़ा वर्ग के विभिन्न मुद्दों के जानकार कोंडला राव का कहना है कि ओबीसी के लिए केंद्रीय बजट में 1700 करोड़ रुपए का प्रावधान बेमानी है। होना तो यह चाहिए कि केंद्र सरकार देश में दलितों और आदवासियों के लिए बनाये गये स्पेशल कंपोनेंट प्लान के अनुसार ही ऊंची जातियों के लोगों के लिए भी कंपोनेंट प्लान उनकी आबादी के अनुसार तय कर दे। इस प्रकार बजट में ओबीसी की हिस्सेदारी सुनिश्चित हो जाएगी। उनका कहना है कि इसी आधार पर सवर्णों को नौकरियों और शिक्षा में प्रवेश में भी आबादी के अनुसार आरक्षण निश्चित कर दलिताें व आदिवासियों को मिलने वाले आरक्षण के बाद शेष सीटों को ओबीसी के छोड़ दे।
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