h n

क्षमा करें, इस अंग्रेजी लेख का हिंदी अनुवाद अभी उपलब्ध नहीं है

Share on Facebook UI2 UI2 Share on Like on Facebook Share on X (Twitter) Share on WhatsApp Share on Telegramफारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व […]

फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +919968527911, ईमेल : info@forwardmagazine.in

फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें :

बहुजन साहित्य की प्रस्तावना 

महिषासुर एक जननायक’

महिषासुर : मिथक व परंपराए

दलित पैंथर्स : एन ऑथरेटिव हिस्ट्री : लेखक : जेवी पवार 

जाति के प्रश्न पर कबी

चिंतन के जन सरोकार

 

लेखक के बारे में

अनिरूद्ध देशपांडे

डा. अनिरुद्ध देशपांडे दिल्ली विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग में असोसिएट प्रोफ़ेसर हैं। पूर्व नेहरू फेलो डा. देशपांडे की तीन किताबें प्रकाशित हैं: ‘द ब्रिटिश राज एंड इट्स आर्म्ड फोर्सेज’(2002), ‘ब्रिटिश मिलिट्री पालिसी इन इंडिया 1900-1945’(2005), क्लास,पावर एंड कांशसनेस इन इन्डियन सिनेमा एंड टेलीविजन(2009), कई शोध पत्र, आलेख और समीक्षाएं भी प्रकाशित हैं। वे हाल में ‘तीन मूर्ती’ के लिए ‘मोतीलाल नेहरू सेंटेनरी बायोग्राफी फेलो’ चयनित हुए हैं। उनकी एक किताब: ‘नैवल म्युटिनी एंड स्ट्रीट नेशनलिज्म’ प्राइमस बुक्स से शीघ्र प्रकाश्य है।

संबंधित आलेख

दलित सरकारी कर्मी ‘पे बैक टू सोसायटी’ का अनुपालन क्यों नहीं करते?
‘शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो’ का ऐतिहासिक नारा देने के तकरीबन चौदह साल बाद डॉ. आंबेडकर ने आगरा के प्रसिद्ध भाषण में...
बंगाली अध्येताओं की नजर में रामराज्य
रवींद्रनाथ टैगोर से लेकर राजशेखर बसु और दिनेश चंद्र सेन आदि बंगाली अध्येताओं ने रामायण का विश्लेषण अलग-अलग नजरिए से किया है, जिनमें तर्क...
क्या बुद्ध पुनर्जन्म के आधार पर राष्ट्राध्यक्ष का चयन करने की सलाह दे सकते हैं?
दलाई लामा प्रकरण में तिब्बत की जनता के साथ पूरी सहानुभूति है। उन पर हुए आक्रमण की अमानवीयता का विरोध आवश्यक है। तिब्बत और...
हूल विद्रोह की कहानी, जिसकी मूल भावना को नहीं समझते आज के राजनेता
आज के आदिवासी नेता राजनीतिक लाभ के लिए ‘हूल दिवस’ पर सिदो-कान्हू की मूर्ति को माला पहनाते हैं और दुमका के भोगनाडीह में, जो...
यात्रा संस्मरण : जब मैं अशोक की पुत्री संघमित्रा की कर्मस्थली श्रीलंका पहुंचा (अंतिम भाग)
चीवर धारण करने के बाद गत वर्ष अक्टूबर माह में मोहनदास नैमिशराय भंते विमल धम्मा के रूप में श्रीलंका की यात्रा पर गए थे।...